ट्रेन से जौनपुर पहुंचे श्रमिकों ने कहा- सरकारी दावा खोखला, 710 रु किराया दिया, खाने में मिली एक बार खिचड़ी
जौनपुर। लॉकडाउन के चलते दूसरे प्रदेशों में फंसे प्रवासी श्रमिकों को वापस लाने के लिए स्पेशल ट्रेन चलाई गई है। इन स्पेशल ट्रेनों के किराये पर राजनीति भी शुरू हो गई हैं। वहीं, सोमवार की देर रात साबरमती से जौनपुर पहुंची ट्रेन के यात्रियों ने किराया माफी के सरकारी दावों को खारिज कर दिया। मजदूरों ने बताया कि उनसे अहमदाबाद से जौनपुर की यात्रा के लिए 710 रुपए लिए गए है, जबकि टिकट 630 रुपए का है।
टिकट 630 रु का, कीमत चुकाई 710 रुपए
सोमवार देर रात साबरमती से चली ट्रेन जौनपुर जंक्शन पर पहुंची। इस ट्रेन में यूपी-बिहार के कई जिलों के 1250 यात्री सवार थे। जौनपुर स्टेशन पहुंचते ही ज्यादातर यात्रियों को थर्मल स्क्रीनिंग के बाद रोडवेज बसों से रात में ही घर भेज दिया गया, जबकि कई बसें सुबह रवाना हुईं। इस दौरान ट्रेन में सवार श्रमिकों ने बताया कि उनसे साबरमती से जौनपुर की यात्रा के लिए 710 रुपए लिए गए। इसमें से 60 रुपए रास्ते में खाना-पानी के लिए लिए थे, लेकिन 24 घंटे के सफर में उन्हें एक बार खिचड़ी और दो बोतल पानी ही दिया गया। ट्रेन का टिकट 630 रुपए का है, जबकि यात्रियों से 710 रुपए लिए गए। उन्हें यह बताया गया था कि बाकी पैसे से रास्ते में खाने की व्यवस्था होगी। हालांकि यात्रा की तमाम दुश्वारियों के बावजूद यात्रियों में इस बात का सुकून था कि वह अपने घर लौट रहे हैं।
कर्ज लेकर दिया ट्रेन का किराया
ट्रेन में सर्वाधिक 165 यात्री जौनपुर के थे। इनके अलावा अमेठी, प्रतापगढ़, गोरखपुर, जालौन, औरैया के मजदूरों की संख्या भी अधिक रही। आठ यात्री बिहार और एमपी के सवार थे। स्पेशल ट्रेन से यात्रा करने वाले मजदूरों ने लॉकडाउन के कारण परदेश में होने की दुश्वारियों का जिक्र किया तो उनके गले रुआंसे हो गए। कई यात्रियों के पास ट्रेन का किराया चुकाने को भी पैसे नहीं थे। अन्य सहयोगियों से उधार लेकर उन्होंने ट्रेन का टिकट खरीदा। औरैया निवासी सर्वेश कुमार ने बताया कि अहमदाबाद में फैक्ट्री बंद होने के बाद कमरे के अंदर कैद होकर रह गए थे। जेब में जो भी पैसे थे, वह धीरे-धीरे खत्म हो गए। लग रहा था कि अब यहीं जिंदगी खत्म हो जाएगी।
खाने के नाम पर मिली एक बार खिचड़ी
सुमित ने बताया कि 710 रुपए में ट्रेन का टिकट खरीदा है। जेब में यही पैसे ही बचे थे। अब यहां तक आ गए, आगे की कोई चिंता नहीं। सीधे घर नहीं जाएंगे, जिससे घर वालों में संक्रमण की आशंका बने। डोभी के अर्पित पटेल ने बताया कि ट्रेन के किराए में भी 60 रुपए रास्ते मे खाने और पानी के लिए भी लिया गया था, मगर भोजन के नाम पर सिर्फ एक बार खिचड़ी मिली। दिहाड़ी मजदूर पिंटू ने बताया कि काम जब तक चालू था तब तक सेठ ने उनका ख्याल रखा। लॉक डाउन होने के बाद हमारे हाल पर छोड़ दिया।