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LoC:भारत-पाकिस्तान में सीजफायर का दिखने लगा है असर, J&K में लोगों ने शुरू की ऐसी मांग

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श्रीनगर: जब पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन के साथ तनाव कम होने लगी तो अचानक पिछले महीने जम्मू और कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर भी भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर होने की अच्छी खबर आ गई। खासकर राज्य में 5 अगस्त, 2019 को आर्टिकल-370 हटाने के बाद से तनाव काफी बढ़ा हुआ था और आए दिन पाकिस्तान की ओर से एलओसी के उस पार से भारत के सीमावर्ती इलाकों में कोई ना कोई गोले दागे जाने की खबरें आती थीं। पाकिस्तानी रेंजर कभी अचानक फायरिंग शुरू कर देते थे तो कभी मोर्टार के गोले दागने लगते थे। जाहिर है कि सीजफायर हुआ तो सबसे ज्यादा सीमा से सटे गांवों के लोगों ने चैन की नींद ली। लेकिन, वो चाहते हैं कि अगर नियंत्रण रेखा पर तनाव कम हुआ है तो दोनों देशों के बीच लोगों को आपसी संपर्क और कारोबार को भी एकबार फिर से पटरी पर लौटने का मौका दिया जाए।

कारवां-ए-अमन बस सेवा फिर शुरू करने की मांग

कारवां-ए-अमन बस सेवा फिर शुरू करने की मांग

2005 में दोनों देशों के बीच कारवां-ए-अमन बस सेवा शुरू हुई थी, जिसे आर्टिकल-370 हटाने के बाद दोनों देशों के बीच तनाव के चलते 2019 में निलंबित करना पड़ा था। लेकिन, अब कश्मीर के सीमावर्ती इलाके के लोग चाहते हैं कि उसे फिर से बहाल किया जाए। मसलन बारामूला जिले के उरी निवासी आयतुल्ला हांडू ने न्यूज18 से कहा है कि नियंत्रण रेखा के उसपार रहने वाले उनके रिश्तेदारों को देखने के लिए उनकी आंखें अब तरस गई हैं। उन्होंने कहा है, 'अब दोनों देश सीजफायर पर सहमत हो गए हैं, अब उन्हें एक और कदम बढ़ाना चाहिए और ऐतिहासिक बस सेवा को फिर से शुरू करना चाहिए, जिसे आपसी विश्वास बहाली का एक बड़ा कदम माना गया था।' उन्होंने अपनी यादों को संजोते हुए बताया, 'मैं उन यादों को नहीं भूल सकता, जब वर्षों अलग होने के बाद 2006 में पहली बार अपने रिश्तेदारों से मिला था। कई लोग तो ऐसे थे जो उस दौरान पैदा हुए थे.....जब भी मैं उसे याद करता हूं, वह सारी बातें मेरे आंखों के सामने घूमने लगती हैं।' 55 वर्षीय बुजुर्ग के लिए वह पहला मौका था, जब वो अपने उसपार रहने वाले रिश्तेदारों से मिल पाए थे। लेकिन, अब वह बस सेवा बंद होने को बड़ी दुर्घटना मान रहे हैं।

बस सेवा में एक उम्मीद बसी हुई थी

बस सेवा में एक उम्मीद बसी हुई थी

हांडू अकेलने नहीं हैं, उरी सब-डिविजन के गांवों में रहने वाले अनेकों लोगों की यही कहानी है। लेकिन, उनके दर्द का तो ठिकाना नहीं है, जो पीर पंजाल रेंज के पहाड़ों में कुछ किलोमीटर या कुछ मीटर के फासले के बावजूद, कोई पिता अपने बेटे से अलग है तो कोई मां अपनी बेटी को देखने के लिए तरस गई है। कई तो पति और पत्नी हैं, जिनका मिलना मुहाल हो चुका है। गरगोटे गांव के कैंसर पीड़ित मोहम्मद्दीन ख्वाजा बुड्डू उन्हीं दुर्भाग्यशालियों में से एक थे। मरने से पहले उनकी एक ही ख्वाहिश थी, उन्हें एकबार अपने बेटे को देखना है, जो 90 के दशक में कश्मीर में पनपे आतंकवाद के दौरान मुजफ्फराबाद में रहने लगा था। 2008 में उनकी मौत हो गई और उनकी आखिरी इच्छा भी उनके साथ उन्हीं के कब्र में दफन हो गई। 2 साल बाद उनकी पत्नी राजा बेगम को भी उसी बीमारी ने जान ले ली और वह भी अपने बेटे को नहीं देख सकी। ऐसी दर्द भरी दास्तां यहां भरी पड़ी हैं। कोई देश के बंटावारे का जख्म झेल रहा है तो कोई आतंकवाद की मार भुगत रहा है। कई लोगों के बच्चे पाकिस्तान गए तो आतंकी बनकर लौटे और उन्हें ऐसे समय में देखना नसीब हुआ, जो कोई मां-बाप सोच भी नहीं सकता। लेकिन, कारवां-ए-अमन सेवा इनमें से कई परिवारों के लिए एक उम्मीद की किरण थी। इस यात्रा के लिए पासपोर्ट और दोनों देशों की खुफिया एजेंसियों से मंजूरी की जगह सिर्फ यात्रा परमिट की जरूरत पड़ती है।

एलओसी के लोग फिर से चाहते हैं सीमापार से कारोबार

एलओसी के लोग फिर से चाहते हैं सीमापार से कारोबार

इसी तरह से कई व्यापारी भी हैं, जिनकी जिंदगी दोनों देशों के बीच तनाव के चलते पिछले डेढ़ वर्षों में ठहर सी गई है, लेकिन अब एक नई उम्मीद जगी है। 50 साल के मोहम्मद यूनुस अवान उन्हीं में से एक हैं। वो पहले मजदूरी करते थे, लेकिन11 वर्षों से सीमापार से कारोबार के चलते उनके दिन फिर गए थे। लेकिन, करीब डेढ़ वर्ष से तनाव के बाद उनका वह कारोबार चौपट हो गया। उनके जैसे कई लोग हैं, जो अब सोच रहे हैं कि अमन बहाली से उनकी जिंदगी एकबार फिर से संवर सकेगी। आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि सिर्फ उरी के सलामाबाद से 21 अक्टूबर, 2008 से 7 मार्च, 2019 के बीच 3,118 करोड़ रुपये का निर्यात और 2,709 करोड़ रुपये का आयात हुआ था। एलओसी के जरिए यह व्यापार जम्मू के चक्कन दा बाग से भी किया जाता है।

अभी दोनों देशों में इन मुद्दों पर नहीं बनी है बात

अभी दोनों देशों में इन मुद्दों पर नहीं बनी है बात

अवान की तरह ही 45 साल के हाजी मोहम्मद वाथलू भी सीजफायर की खबर से गदगद हैं। बंदूकों की आवाजें थमने के बाद वह कहते हैं कि अब एलओसी के लोग कम से कम 'एक तरह की जिंदगी तो जी सकते हैं।' उन्होंने कहा है, 'मोर्टार, गोलियों की बारिश, बम, इन सबकी आवाजें बहुत ही डरावनी होती हैं। कोई रात में ठीक से सो भी नहीं सकता। बहुत ही भयावह था। ' यह भी क्रॉस-बॉर्डर ट्रेड में शामिल थे। वो कहते हैं, 'शांति भी होती थी तो लग सहमे रहते थे कि उन्हें कोई बूलेट या गोले लग सकते हैं। 'अब वह चाहते हैं कि दोनों देश व्यापार को फिर से शुरू कराएं। उनके मुताबिक, 'दोनों ओर के लोगों ने भुगता है। व्यापार शुरू होना चाहिए। सबसे बड़ी चीज ये है कि जब लोगों के पास जीवन-यापन के लिए मौका है, तो उन्हें उससे वंचित क्यों किया जाए। ' कश्मीर के डिविजनल कमिश्नर पांडुरंग कोंडबाराव पोले कहते हैं, व्यापार के फ्रंट पर अभी कोई नई बात नहीं हुई है, 'अभी तक नहीं, अगर ऐसा कुछ (बस सेवा और व्यापार) होता है तो हम निश्चित तौर पर इसकी जानकारी देंगे। '(तस्वीरें-फाइल और सांकेतिक)

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English summary
LoC:Ceasefire effect in India-Pakistan border,People from Jammu and Kashmir are demanding to start bus service and business
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