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जम्मू में कांग्रेस के 'असंतुष्टों' के शक्ति प्रदर्शन के बाद क्या राहुल गांधी की मुश्किलें बढ़ गई हैं?

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जम्मू: कांग्रेस के 8 असंतुष्ट नेताओं ने जिस तरह से शनिवार को भगवा पगड़ी में जम्मू में शक्ति प्रदर्शन किया, उसके शुरू में तो कुछ अलग ही मायने निकाले गए। क्योंकि, भगवा तो सत्ताधारी भाजपा की पहचान बन चुकी है। लेकिन, जिन्हें जम्मू-कश्मीर के कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद का राजनीतिक अतीत मालूम है, उन्हें पता है कि जम्मू और भगवा से उनका नाता कोई नया नहीं है। वह जब भी यहां आते हैं तो इसी रंग की पगड़ी का शौक फरमाते रहे हैं। वैसे यह तो खास जरूर है कि उनका साथ देने पहुंचे जी-23 के सभी नेताओं ने भी उन्हीं की पहचान से खुद को जोड़ने की कोशिश की है। इन नेताओं ने कांग्रेस को मजबूत बनाने की बात पर जोर देकर यह साफ कर दिया है कि उनका बीजेपी में जाने का किसी तरह का कोई इरादा नहीं है। लेकिन, इसके साथ ही उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि उन्हें मौजूदा स्थिति में तो पार्टी कतई स्वीकार्य नहीं है और वो हर हाल में बदलाव चाहते हैं।

जब चुनाव रणनीति में शामिल नहीं किया तो गलत क्यों बताया ?

जब चुनाव रणनीति में शामिल नहीं किया तो गलत क्यों बताया ?

पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों का ऐलान हो चुका है। इसलिए आलाकमान संस्कृति में ढल चुकी कांग्रेस ने आधिकारिक तौर पर असंतुष्ट नेताओं की सियासी 'गुस्ताखी' पर बहुत ही सधी हुई प्रतिक्रिया दी है। पार्टी ने कहा है कि ये सारे वरिष्ठ नेता हैं और उन्हें इसकी जगह राज्यों में जाकर पार्टी के लिए प्रचार करना चाहिए। लेकिन, जी-23 के एक सदस्य ने न्यूज18 डॉट कॉम से कहा है कि 'क्या हमें चुनाव रणनीति तैयार करने में शामिल भी किया गया है? क्या उन्होंने हम से प्रचार करने के लिए कहा है? हमें तो पूरी तरह से छोड़ दिया गया है।' यानी अगर असंतुष्टों के दावों पर यकीन करें तो कांग्रेस के कथनी और करनी में बहुत ज्यादा अंतर है।

जम्मू के बाद हिमाचल में जुटेंगे असंतुष्ट!

जम्मू के बाद हिमाचल में जुटेंगे असंतुष्ट!

सवाल ये भी है कि सिर्फ कांग्रेस को मजबूत करने की बात करके ही हाई कमांड के खिलाफ एक तरह से 'बगावत' का झंडा उठा चुके ये नेता यूं ही शांत बैठ जाएंगे? तो इसका जवाब है नहीं। जानकारी के मुताबिक आगे भी ऐसी ही सभाएं आयोजित की जाएंगी, जिसका अगला ठिकाना आनंद शर्मा का गृहराज्य हिमाचल प्रदेश हो सकता है। शर्मा एक समय में 10 जनपथ के बहुत ही वफादार माने जाते थे। लेकिन, अब उन्हें वहां उतना भाव नहीं मिल पा रहा है। उनका राज्यसभा में एक साल का ही कार्यकाल बचा हुआ है। लेकिन, सदन में विपक्ष के उपनेता होने के बावजूद पार्टी ने उन्हें प्रमोशन नहीं दिया। शर्मा के एक करीबी सूत्र के मुताबिक 'उनके लिए खड़गे के आदेशों को मानना नामुमकिन होगा।' कांग्रेस ने आजाद की जगह राहुल गांधी के वफादार मल्लिकार्जुन खड़गे को नेता विपक्ष बनाया है।

कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में राहुल को मिल सकती है चुनौती

कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में राहुल को मिल सकती है चुनौती

ये नेता हिमचाल के बाद हरियाणा, पंजाब, यूपी और दिल्ली में भी ऐसे ही कार्यक्रम करने की योजनाएं बना रहे हैं। लेकिन, राहुल के सामने सबसे बड़ी मुश्किल ये खड़ी हो सकती है कि ये नेता जून में होने वाले कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में उनके खिलाफ उम्मीदवार उतारने की संभावनाएं तलाश रहे हैं। हालांकि, राहुल के सामने कांग्रेस में ऐसे किसी उम्मीदवार का टिक पाना संभव तो नहीं लगता, लेकिन इसका परिणाम क्या होगा, उसका सिर्फ अंदाजा ही लगाया जा सकता है। अभी तक तो ये नेता बहुत ही सधे हुए अंदाज में सिर्फ कांग्रेस को मजबूत करने की बातें ही कर रहे हैं। लेकिन, पिछले साल अगस्त में सोनिया गांधी को नेतृत्वविहीन पार्टी को मजबूत करने की मांग उठाने के बाद अब यह ये भी सवाल पूछने लगे हैं कि पार्टी के दैनिक कार्यों से उनके दूर होते हुए भी फैसले ले कौन रहा है? जाहिर है कि सिर्फ नाम लेना बाकी रह गया है, लेकिन परोक्ष रूप से यह राहुल गांधी के रवैए पर सीधा सवाल उठा रहे हैं। यही वजह है कि राहुल के करीबी कांग्रेसी इनपर एहसान फरामोश होने का आरोप लगा रहे हैं, जो उनके मुताबिक ठीक चुनावों के दौरान कथित तौर पर पार्टी को कमजोर कर रहे हैं।

क्या चुनाव के बाद अलग हो जाएंगे रास्ते ?

क्या चुनाव के बाद अलग हो जाएंगे रास्ते ?

अभी तो चुनाव का समय है। लिहाजा कांग्रेस नेतृत्व इनपर किसी तरह से अनुशासनात्मक कार्रवाई करने से बच रहा है। ना ही ये नेता किसी तरह पार्टी को विभाजित करने की बात कर रहे हैं। लेकिन, जब विधानसभा चुनावों के बाद पार्टी राहुल को दोबारा अध्यक्ष के रूप में लॉन्च करेगी तो क्या सबकुछ इतना ही सामान्य रह जाएगा। पार्टी के रुख से मायूस हो चुके नेताओं के रुख से तो लगता नहीं कि वह इतनी आसानी से हथियार डाल देंगे। आजाद तो साफ कह चुके हैं कि राज्यसभा से रिटायर हुए हैं, राजनीति से नहीं। इसी तरह ये भी प्रश्न है कि पार्टी इन नेताओं के सवालों को क्या चुनावों के बाद भी इसी 'बर्दाश्त' कर पाएगी? ऐसा संभव तो नहीं लगता। फिर रास्ता अलग हो जाए तो बहुत हैरानी भी नहीं होनी चाहिए!

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English summary
Rahul Gandhi's worries may increase after congress dissidents show strength in Jammu,Party may move towards split
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