Swami Vivekananda : चोगा व पगड़ी खेतड़ी की देन, विविदिषानंद को यहीं पर मिला स्वामी विवेकानंद का नाम
Swami Vivekananda Birthday / National Youth Day 2021 जयपुर। आज से ठीक 158 साल पहले 12 जनवरी 1863 को कोलकात्ता के विश्वनाथ दत्त और भुवनेश्वरी देवी के घर जन्मे स्वामी विवेकानंद से पूरी दुनिया भलीभांति परिचित है। अमेरिका के शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन में दिए गए ऐतिहासिक भाषण के बाद उनकी जो पहचान बनी वो अमर हो गई। स्वामी विवेकानंद का कोलकात्ता के अलावा राजस्थान के झुंझुनूं के खेतड़ी कस्बे से गहरा रिश्ता था। यहीं वो जगह है जहां स्वामी जी को न केवल विवेकानंद नाम मिला बल्कि चोगा और पगड़ी (पोशाक) भी खेतड़ी की ही देन है। स्वामी विवेकानंद की 158वीं जयंती के मौके पर खेतड़ी में संस्कृति मंत्रालय की ओर से विशेष आयोजन हुए।
इसलिए दी साफा पहनने की सलाह
बता दें कि राजस्थान की गर्म जलवायु से स्वामी विवेकानंद को असुविधा होते देख खेतड़ी के तत्कालीन राजा अजीत सिंह ने उन्हें साफा पहनने की सलाह दी थी। बाद में यही साफा व चोगा उन्होंने शिकागो के सम्मेलन में पहना था। इसके अलावा खेतड़ी आने से पहले उनका नाम विविदिषानंद था, यह नाम राजा को उच्चारण में सही नहीं लगता था। बाद में खेतड़ी के राजा ने ही विवेकानंद नाम दिया था। वैसे उनके पांच नाम थे, जिनमें बचपन का नाम नरेन्द्र नाथ, कमलेश, सच्चिदानंद, विविदिषानंद और विवेकानंद। सबसे ज्यादा चर्चित वे खेतड़ी से मिले विवेकानंद नाम से हुए।
स्वामी जी तीन बार आए थे खेतड़ी
विवेकानंद पर पीएचडी चुके झुंझुनूं जिले के गांव भीमसर निवासी डॉ. जुल्फीकार के अनुसार खेतड़ी व स्वामी विवेकानंद का रिश्ता गहरा रहा है। वे खेतड़ी का अपना दूसरा घर कहते थे। वे खेतड़ी में तीन बार आए। पहली बार 7 अगस्त 1891 से 27 अक्टूबर तक रुके। दूसरी बार 21 अप्रेल 1893 से 10 मई तक रुके और तीसरी बार 12 दिसम्बर 1897 से 21 दिसम्बर तक रुके।
खेतडी के राजा के प्रयासों से पहुंचे शिकागो
एक बार स्वामी विवेकानंद ने खुद कहा था कि भारतवर्ष की उन्नति के लिए जो कुछ मैंने थोड़ा बहुत किया है। वह मैं नहीं कर पाता यदि राजा अजीतसिंह मुझे नहीं मिलते। खेतड़ी राजा के कहने पर उनके सचिव जगमोहनलाल ने उनके लिए शिकागो यात्रा की माकूल व्यवस्था की थी। 31 मई 1893 को ओरियंट कम्पनी के पैनिनशुना नामक जहाज के प्रथम श्रेणी का टिकट खरीदकर दिया था। इसके बाद वे शिकागो रवाना हुए थे।
सिरोही में हुई थी स्वामी विवेकानंद व राजा अजीत सिंह की मुलाकात
स्वामी विवेकानंद और राजा अजीत सिंह की पहली मुलाकात सिरोही जिले के माउंट आबू में हुई थी। उसके बाद दोनों के बीच गहरी मित्रता हो गई थी। उनकी यादों को चिरस्थायी बनाने के लिए पंडित झाबरमल शर्मा एवं पंडित वेणीशंकर शर्मा के प्रयासों से खेतड़ी के तत्कालीन राजा बहादुर सरदार सिंह ने अपना फतेह विलास महल एवं जनानी ड्योडी रामकृष्ण मिशन आश्रम को दान में दे दी। राजस्थान के प्रथम रामकृष्ण मिशन आश्रम खेतड़ी का विधिवत उद्घाटन तत्कालीन राज्यपाल डा. सम्पूर्णानंद ने 11 नवम्बर 1963 को किया।
‘प्रभुजी मोरे अवगुण चित न धरो...'
स्वामी विवकानंद खेतड़ी जब दूसरी बार आए तब दीवान खाना में छत पर बने कमरे में ठहरे हुए थे। नीचे राजा अजीत सिंह दरबारियों सहित बैठे तथा राज नर्तकी मैनाबाई राजा के पुत्र जन्मोत्सव पर नृत्य कर रही थी। राजाजी ने स्वामी जी को भी नौकर को भेजकर नीचे बुलाया। स्वामी जी नीचे राज नर्तकी को नृत्य करते देख तुरन्त वापस जाने लगे। इस पर राज नर्तकी ने तुरन्त सूरदास का भजन 'प्रभुजी मोरे अवगुण चित न धरो...' गाया तो स्वामीजी राज नर्तकी के इस भजन से वे प्रभावित हुए व वापस आकर राज नर्तकी मैना बाई के चरणों में नमन कर कहा कि माता मुझसे भूल हुई मुझे माफ कर दो मुझे आज ज्ञान की प्राप्ति हुई है।
|
देसी घी की रोशनी जगमग उठा था खेतड़ी
जब स्वामी विवेकानंद शिकागो से लौटकर खेतड़ी आए थे,तब देसी घी के दीप जलाए गए थे। उस समय खेतड़ी सीमा पर बबाई से राजा अजीत सिंह स्वयं राजबग्घी में बैठकर स्वामी जी की अगवानी कर खेतड़ी लेकर आए। राजबग्घी से स्वामीजी को जुलूस के रूप में पन्नासर तालाब पर ले जाया गया। रास्ते में नगरवासियों ने जगह-जगह पुष्प वर्षा कर स्वामी जी का स्वागत किया।