राजेन्द्र सिंह शेखावत : मां ने सिलाई करके पढ़ाया, बेटा 6 बार लगा सरकारी नौकरी, अफसर बनकर ही माना
सीकर। मुफलिसी। हिम्मत। मेहनत और कामयाबी। ये चारों बातें आपको एक साथ राजेन्द्र सिंह शेखावत की जिंदगी में मिलेंगी। राजस्थान के सीकर जिला मुख्यालय से करीब 19 किलोमीटर दूर शिश्यू-रानोली निवासी राजेन्द्र शेखावत वर्तमान में जयपुर जिले के दूदू में उपखंड अधिकारी के पद पर तैनात हैं।
राजेन्द्र सिंह शेखावत का साक्षात्कार
आरएएस राजेन्द्र सिंह शेखावत ने वन इंडिया हिंदी से खास बातचीत में अपनी गरीबी से लेकर राजस्थान प्रशासनिक सेवा का अफसर बनने का सफर बयां किया जो हर किसी को प्रेरित करने वाला है। खासकर उन लोगों को, जो सोचते हैं कि घर की आर्थिक तंगी उनकी राह में रोड़ा है। बिना आरक्षण नौकरी लगना मुश्किल है। राजेन्द्र सिंह शेखावत ने छह बार सरकारी नौकरी लगकर दिखा दिया। वो भी सामान्य श्रेणी से।
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राजेन्द्र सिंह शेखावत इन पदों पर लगे नौकरी
-वर्ष 2005 में पहली बार तृतीय श्रेणी शिक्षक के रूप में सरकारी नौकरी लगे। खुद के कस्बे शिश्यू के ही सरकारी स्कूल में पोस्टिंग मिली।
-वर्ष 2010 में राजस्थान पुलिस में उप निरीक्षक पद पर चयन हुआ। दो साल तक जोधपुर स्थित राजस्थान पुलिस अकादमी में प्रशिक्षण लिया। प्रशिक्षण के अंतिम चरण में नौकरी छोड़ दी।
-वर्ष 2012 में एसआई के रूप में प्रशिक्षण लेने के दौरान द्वितीय श्रेणी शिक्षक भर्ती परीक्षा में नंबर आ गया। सीकर के पिपराली के लखीपुरा के सरकारी स्कूल में ज्वाइनिंग मिली।
-वर्ष 2012 में ही राजस्थान प्रशासनिक सेवा (आरएएस) में 708वीं रैंक पर चयन हुआ। अधीनस्थ सेवाओं में नौकरी लग रही थी, मगर ज्वाइन नहीं किया।
-वर्ष 2013 में इतिहास के स्कूल व्याख्याता और एमएच सैकंडरी के रूप में चयन हुआ। बाड़मेर के चौहटन इलाके के गांव बामणोत स्थित राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में बतौर हैड मास्टर ज्वाइन किया।
-वर्ष 2015 में राजस्थान प्रशासन सेवा (आरएएस) में कमाल कर दिखाया। पूरे प्रदेश में पुरुष वर्ग में तीसरी रैंक प्राप्त की। वर्तमान में दूदू एसडीएम के रूप में कार्यरत हैं।
10 साल की उम्र में पिता को खोया
शिश्यू रानोली के रघुनाथ सिंह शेखावत और मोहन कंवर के घर 30 जनवरी 1982 को जन्मे राजेन्द्र सिंह के सिर पर पिता का साया महज 10 साल की उम्र तक ही रहा। राजेन्द्र सिंह दो बहनों के इकलौते भाई हैं। बड़ी बहन सुमन और छोटी बहन ममता है। रघुनाथ सिंह की मौत के बाद तीन बच्चों की जिम्मेदारी मोहन कंवर के कंधों पर आ गई थी। उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और सिलाई करके बच्चों को खूब पढ़ाया लिखाया।
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जब पांच-पांच स्कूलों में पढ़ाया करते थे राजेन्द्र सिंह
राजेन्द्र सिंह में गजब का हौसला है। इन्होंने वो दिन भी देखे हैं जब पढ़ाई का खर्च निकालने और घर की जरूरतों को पूरा करने में मां की मदद करने के लिए राजेन्द्र सिंह रोजाना शिश्यू रानोली और आस पास के गांवों के पांच-पांच निजी स्कूलों में पढ़ाया करते थे। फिर शाम को घर-घर जाकर ट्यूशन भी लेते। राजेन्द्र सिंह बताते हैं कि स्कूल और कॉलेज में सिर्फ वे अपना नाम ही लिखवाते थे। नियमित रूप से जा नहीं पाते थे। पढ़ाई तो खुद पर ही करते थे, क्योंकि अगर स्कूल-कॉलेज जाता तो पार्ट टाइम पढ़ाने और ट्यूशन का काम नहीं कर पाता। ये नहीं करता तो घर खर्च नहीं निकलता।
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पत्नी को पढ़ाकर बना दिया शिक्षिका
राजेन्द्र सिंह की शादी वर्ष 2006 में श्रीगंगानगर के सूरतगढ़ की राजेश कंवर के साथ हुई। इनके दो बेटी प्रतिष्ठा और भानूप्रिया हैं। खास बात यह है कि राजेन्द्र सिंह ने शादी के बाद अपनी पत्नी राजेश कंवर को भी पढ़ाया और उन्हें प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करवाई। नतीजा यह रहा कि पत्नी भी सरकारी नौकरी लग गई। वे वर्तमान में शिश्यू रानोली के पास स्थित पलसाना कस्बे के सरकारी स्कूल में अंग्रेजी की टीचर के रूप में कार्यरत हैं।
युवाओं को दो साल तक फ्री में करवाई तैयारी
राजेन्द्र सिंह बताते हैं कि सरकारी नौकरी लगने के बाद मैं मेरे जैसे कई 'राजेन्द्र सिंह' की मदद करना चाहता था। इसलिए शिश्यू रानोली में अपने घर पर दो साल तक युवाओं को फ्री में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करवाई। इस बात की खुशी है कि उनमें से करीब 30 युवा लिपिक, एसआई, आरएएस आदि पदों पर सरकारी नौकरी लग गए। अब राजेन्द्र सिंह खुद आरएएस बन गए तो भी युवाओं का मार्गदर्शन में लगे हुए हैं। समय कम मिल पाता है इसलिए राजस्थान प्रशासनिक सेवा के साक्षात्कार के समय जयपुर में सात दिन की कोचिंग कक्षा लगाते हैं। जिसमें युवाओं को साक्षात्कार के गुर सिखाए जाते हैं। उन युवाओं के रहने और खाने की व्यवस्था खुद की ओर से ही करते हैं।
मैं सफल हो सकता हूं कोई भी हो सकता है-राजेन्द्र सिंह
राजेन्द्र सिंह शेखावत अपनी सफलता का मूलमंत्र इस बात को मानते हैं कि किसी भी लक्ष्य हासिल करने से डरने की बजाय उसमें जुट जाओ। बकौल राजेन्द्र सिंह, पहले मुझे लगता था कि गरीब परिवार से हूं। आरक्षण के दायरे में भी नहीं आता। प्रतियोगी परीक्षाओं में कड़ा मुकाबला है, लेकिन नौकरी लगने के लिए सही दिशा में मेहनत करनी शुरू की और इस प्रक्रिया में घुसा तो पता चला कि भगवान ने सबको एक जैसा दिमाग दिया है। बस इसका सही दिशा में इस्तेमाल करना सीख लो।