राजस्थान सियासी संकट से क्या भाजपा में भी हो रही है गुटबाजी, जानिए इनसाइड स्टोरी
जयपुर। राजस्थान की राजनीति में उठा-पटक का खेल चल रहा है। कांग्रेस अशोक गहलोत और सचिन पायलट खेमे में बंट चुकी है। इस सियासी भंवर में तीन बार के गहलोत की सीएम की कुर्सी फंसी हुई है। कुर्सी बचेगी या जाएगी। यह अभी तय नहीं है।
गहलोत सरकार गिराने की कोशिश में शेखावत का नाम
राजस्थान में तेजी से बदल रहे सियासी घटनाक्रम का अप्रत्यक्ष रूप से असर भाजपा पर भी पड़ता दिखाई दे रहा है। खुद सीएम अशोक गहलोत तो खुलकर आरोप लगा चुके हैं कि सचिन पायलट गुट के साथ भाजपा मिलीभगत करके राजस्थान की चुनी हुई सरकार को गिराने की साजिश रच रहे हैं। वहीं, सियासी भूचाल तो तब आया जब सचिन पायलट खेमे के विधायक विश्वेंद्र सिंह और भंवरलाल शर्मा की कथित तौर पर भाजपा नेताओं से बातचीत के ऑडियो टेप कांड में केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत का भी नाम आया और एसओजी में शिकायत दर्ज हुई।
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वसुंधरा राजे की चुप्पी
18 जुलाई पहले तक राजस्थान के सियासी घटनाक्रम पर पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की चुप्पी भी सुर्खियों में रही। नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल ने इस चुप्पी पर वसुंधरा राजे पर गहलोत सरकार को बचाने की पुरजोर कोशिश करने तक का आरोप लगा दिया। हालांकि राजे ने अब चुप्पी तोड़ते हुए शनिवार को ट्वीट किया कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कांग्रेस के आंतरिक कलह का नुकसान आज राजस्थान की जनता को उठाना पड़ रहा है। उन्होंने लिखा, ऐसे समय में जब हमारे प्रदेश में कोरोना से 500 से अधिक मौतें हो चुकी है और करीब 28,000 लोग कोरोना पॉजिटिव है।
वसुंधरा राजे खेमे में असंतोष बढ़ा
मीडिया की खबरों की मानें तो वसुंधरा राजे विरोधी आरएलपी सांसद हनुमान बेनीवाल को भी पार्टी के ही एक धड़े ने हवा दे रखी है, जिसके चलते बेनीवाल लगातार वसुंधरा राजे के खिलाफ बयानबाजी कर रहे हैं। जिससे वसुंधरा राजे खेमे में असंतोष बढ़ गया है। बेनीवाल की ओर से लगाए गए आरोपों का वसुंधरा कैंप की ओर से पुरजोर विरोध किया गया, लेकिन बीजेपी के प्रदेश नेतृत्व की ओर से हनुमान बेनीवाल को कोई भी हिदायत नहीं दी गई और न ही बेनीवाल को राजे के खिलाफ बयानबाजी से रोका गया।
कैलाश मेघवाल ने संभाला मोर्चा
मीडिया की खबरों की मानें तो सचिन पायलट और भाजपा के बीच कथित तौर पर जो गठजोड़ है कि उसको लेकर भी वसुंधरा राजे से न तो केंद्रीय नेतृत्व और न ही प्रदेश नेतृत्व ने कोई राय-मशवरा किया। बेनीवाल के आरोपों के बाद राजे कैंप की ओर से वरिष्ठ विधायक व पूर्व विधानसभा अध्यक्ष रहे कैलाश मेघवाल ने मोर्चा संभाल लिया है। लगातार दो दिन से उनके बयान आ रहे हैं। इशारों ही इशारों में मेघवाल ने अपनी पार्टी पर सवाल खड़े कर दिए।
राजे कैंप भी खुलकर आएगा सामने
पत्रिका की खबर में सूत्रों के हवाले से दावा किया गया है कि भाजपा में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का खेमा ही सबसे मजबूत है। भाजपा के ज्यादातर विधायकों की निष्ठा भी राजे के साथ है। राजे कैंप सावन मास के बाद प्रदेश भाजपा में बड़ा मोर्चा खोलने की तैयारी में है। राजे कैंप हनुमान बेनीवाल और भाजपा के प्रदेश नेतृत्व के खिलाफ खुलकर सामने आएगा।
बेनीवाल ने भाजपा गठबंधन के तहत लड़ा था चुनाव
बता दें कि लोकसभा चुनाव 2019 में भाजपा और हनुमान बेनीवाल की पार्टी आरएलपी ने गठबंधन करके चुनाव लड़ा था। भाजपा ने यह सीट बेनीवाल के लिए छोड़ी दी थी। यहां अपना कोई प्रत्याशी नहीं उतारा था। अब पायलट-गहलोत की लड़ाई में बेनीवाल द्वारा राजे पर गंभीर आरोप लगाने के बाद अब राजस्थान के राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि राजे कैंप का पहला लक्ष्य हनुमान बेनीवाल से गठबंधन खत्म कराने का है। इसके लिए केंद्रीय नेतृत्व पर दबाव बनाया जा सकता है। दरअसल लोकसभा चुनाव के दौरान राजे के विरोध के बावजूद केंद्रीय नेतृत्व ने बेनीवाल की पार्टी से गठबंधन किया था, यहीं से राजे कैंप में अंदरखाने नाराजगी बढ़ी है।
राजे पहले भी खोल चुकी हैं मोर्चा
बता दें कि यह कोई पहला ऐसा मौका नहीं है जब पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे खेमा सक्रिय हुआ हो और मोर्चा खोला हो। इससे पहले भी वर्ष 2012 में तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष गुलाब चंद कटारिया के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए तत्कालीन आलाकमान नितिन गड़करी के सामने अपने समर्थक विधायकों की परेड कराते हुए इस्तीफे की धमकी तक दे डाली थी।
इन धड़ों में बंटी है भाजपा
प्रदेश भाजपा में इन दिनों कई धड़े तैयार हो चुके हैं। पूर्व सीएम राजे, केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनियां के गुट हैं। कभी वसुंधरा राजे के रणनीतिकार रहे बीजेपी सांसद ओम प्रकाश माथुर इन दिनों केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के खड़े नजर आ रहे हैं। दोनों मिलकर कुटनीति और रणनाीति बनाने का काम कर रहे हैं और पायलट के समर्थन में बयान भी दे रहे हैं। वहीं, नेता प्रतिपक्ष गुलाब चंद कटारिया और उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ सतीश पूनियां के साथ खड़े हैं। राठौड़ के पूनियां के साथ खड़े होने की एक वजह सजातीय प्रतिस्पर्धा भी है।
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