राजस्थान सरकार लाई एम सैंड नीति, जानिए इससे कैसे रुकेगा बजरी का अवैध खनन?
जयपुर। राजस्थान में अब किसी भी खनिज या ओवरबर्डन की क्रशिंग से तैयार सैंड बजरी के विकल्प के रूप में काम में ली जाएगी। अवैध बजरी खनन और परिवहन पर लगाम लगाने के लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सोमवार को राज्य की एम सैंड नीति का लोकार्पण किया।
दरअसल, राजस्थान में नदी-नालों से बजरी लेकर विभिन्न निर्माण कार्य किए जा रहे थे। इस बीच वर्ष 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने दीपक कुमार बनाम हरियाणा के मामले में दिए आदेश से नदियों में पर्यावरण अनुमति के बिना बजरी खनन बंद कर दिया। इसके बाद राज्य सरकार ने नदियों में स्ट्रेच मार्क बजरी के प्लॉट बनाकर नीलामी से आवंटन किए।
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सुप्रीम कोर्ट से अनुमति प्राप्त पत्र धारकों को अस्थाई रूप से बजरी खनन की अनुमति दी गई। इधर, लंबे समय तक पर्यावरण अनुमति नहीं मिलने पर सुप्रीम कोर्ट ने 16 नवंबर 2017 से बजरी खनन पर रोक लगा दी। उसी बाद राज्य में बजरी का अवेध खनन परिवहन और भंडारण शुरू हो गया।
बजरी माफिया ने मचाया 'आतंक'
बजरी बंद होने के बाद प्रदेश में बजरी माफिया पनप गया। बजरी माफिया को रोकने के लिए सरकार ने भरकस प्रयास किए, लेकिन कामयाबी नहीं मिली। इसके बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बजरी का विकल्प तलाशने के निर्देश दिए। इसके बाद मैन्युफैक्चर्ड सेंड एम सैंड बजरी विकल्प के रूप में तय की गई। प्रदेश में वर्तमान में 20 एम सैंड इकाइयां कार्यरत है। जयपुर-दौसा जोधपुर भरतपुर जिलों में स्थापित इकाइयों में हर रोज लगभग 20000 टन एम सैंड उत्पादित किया जा रहा है।
नीति का उद्देश्य
-प्रदेश
के
लोगों
को
विभिन्न
निर्माण
कार्यो
के
लिए
सस्ता
एवं
सुगम
विकल्प
उपलब्ध
करवाना।
-खनन
क्षेत्रों
में
उपलब्ध
ओवरबर्डन
का
उपयोग
कर
खनन
क्षेत्रों
का
पर्यावरण
संरक्षण
करना।
-एम
सैंड
के
कारण
नदियों
से
बजरी
की
आपूर्ति
पर
निर्भरता
कम
हो
जाएगी,
परिस्थितिकी
तंत्र
में
सुधार
हो
जाएगा।
-खनिज
आधारित
उद्योगों
को
बढ़ावा
देने
के
साथ
साथ
स्थानीय
स्तर
पर
रोजगार
उपलब्ध
कराना।
-एम
सैंड
इकाई
को
उद्योग
का
दर्जा
दिया
जाएगा।
राजस्थान
निवेश
प्रोत्साहन
योजना
के
तहत
एम
सैंड
की
नई
और
विस्तारित
इकायों
को
सभी
लाभ
दिए
जाएंगे।
-एम
सैंड
इकाई
स्थापित
करने
के
लिए
आवेदक
को
विस्तृत
योजना
प्रस्तुत
करनी
होगी।
-न्यूनतम
तीन
करोड़
की
नेटवर्थ
तथा
इतना
ही
टर्नओवर
जरूरी
है।
इस
क्षेत्र
में
तीन
वर्ष
का
अनुभव
जरूरी
रखा
गया
है।
-एम
सैंड
इकाई
स्थापित
करने
वाली
इकाइयों
को
आवेदन
पत्र
मिलने
की
120
दिन
की
अवधि
में
भूमि
कनवर्जन
सहित
निस्तारित
किया
जाएगा।
-एम
सैंड
की
गुणवत्ता
मापने
के
लिए
इकाई
पर
प्रयोगशाला
जरूरी
होगी।
-सरकारी
निर्माण
कार्यों
में
एम
सैंड
बजरी
की
मात्रा
25
प्रतिशत
जरूरी
होगी।
-किसी
भी
क्षेत्र
में
एम
सैंड
अनुपब्धता
प्रमाण
पत्र
खनिज
या
सहायक
खनिज
अभियंता
जारी
करेंगे।
-एम
सैंड
के
अधिक
से
अधिक
उपयोग
के
लिए
आमजन
को
जागरूक
करने
के
लिए
विभाग
कार्यशाला,
सेमीनार
आयोजित
करेगा।
-हर
छह
महीने
में
एम
सैंड
नीति
की
समीक्षा
की
जाएगी।