गुर्जर आंदोलन : 13 साल में 6 बार गुर्जर Vs सरकार, राजस्थान के 72 लोगों ने गंवाई जान
Jaipur News , जयपुर। गुर्जर..., आरक्षण... और आंदोलन। ये तीन शब्द राजस्थान के लिए कोई नए नहीं हैं। सुने और पढ़े तो दशकों से जा रहे हैं, मगर पिछले 13 साल के दौरान तीनों ही शब्दों का मतलब गुर्जर Vs सरकार, यातायात ठप्प और जनजीवन पटरी से उतर जाना हो गया है। ताजा आंदोलन राजस्थान के सवाई माधोपुर के मलारना रेलवे स्टेशन के पास मकसूदनपुरा गांव से शुक्रवार शाम से शुरू किया गया है।
शनिवार को गुर्जर आंदोलन 2019 का (Gurjar Aandolan 2019) दूसरा दिन है। गुर्जर रेल पटरियों पर डटे हुए हैं। राजस्थान में ट्रेनों का संचालन गड़बड़ाने के साथ-साथ बसों का परिवहन भी प्रभावित होने लगा है। दिल्ली-मुम्बई ट्रैक तो आंदोलन शुरू होने के कुछ समय बाद से ही जाम है। पटरियों पर तंबू गाड़ कर बैठे गुर्जरों ने शुक्रवार की रात भी ट्रैक पर ही गुजारी थी। आईए डालते हैं राजस्थान के गुर्जर आंदोलन के इतिहास पर एक नजर।
(Gurjar Aandolan 2006) : गुर्जर आंदोलन की शुरुआत वर्ष 2006 से
देश में आरक्षण की चिंगारी तो आजादी के बाद से ही सुलग रही है, मगर राजस्थान में गुर्जर आंदोलन की चिंगारी सबसे पहले वर्ष 2006 में भड़की। तब से लेकर अब तक रह-रहकर छह बार बड़े आंदोलन हो चुके हैं। इस दौरान भाजपा और कांग्रेस दोनों की सरकार रही, मगर किसी सरकार से गुर्जर आरक्षण आंदोलन की समस्या का स्थायी समाधान नहीं निकला। वर्ष 2006 में एसटी में शामिल करने की मांग को लेकर पहली बार गुर्जर राजस्थान के हिंडौन में सड़कों व रेल पटरियों पर उतरे थे। गुर्जर आंदोलन 2006 के बाद तत्कालीन भाजपा सरकार महज एक कमेटी बना सकी, जिसका भी कोई सकारात्मक नतीजा नहीं निकला।
(Gurjar Aandolan 2007) : दूसरी बार में 28 लोग मारे गए
वर्ष 2006 में हिंडौन में रेल पटरियां उखाड़ने वाले गुर्जर कमेटी बनने के बाद कुछ समय के लिए शांत जरूर हुए थे, मगर चुप नहीं बैठे और 21 मई 2007 फिर आंदोलन का ऐलान कर दिया। गुर्जर आंदोलन 2007 के लिए पीपलखेड़ा पाटोली को चुना गया। यहां से होकर गुजरने वाले राजमार्ग को जाम कर दिया। इस आंदोलन में 28 लोग मारे गए थे। फिर चौपड़ा कमेटी बनी, जिसने अपनी रिपोर्ट में गुर्जरों को एसटी आरक्षण के दर्ज के लायक ही नहीं माना था।
(Gurjar Aandolan 2008) : तीसरा बार में बढ़ा मौतों का आकड़ा
पीपलखेड़ा पाटोली में गुर्जर आंदोलन किए जाने के सालभर बाद ही गुर्जरों ने फिर ताल ठोकी। सरकार से आमने-सामने की लड़ाई का ऐलान कर 23 मार्च 2008 को भरतपुर के बयाना में पीलु का पुरा ट्रैक पर ट्रेनें रोकी। सात आंदोलनकारियों को पुलिस फायरिंग में जान गंवानी पड़ी। सात मौतों के बाद गुर्जरों ने दौसा जिले के सिंंकदरा चौराहे पर हाईवे को जाम कर दिया। नतीजा यहां भी 23 लोग मारे गए और गुर्जर आंदोलन 2008 तक मौतों का आंकड़ा 28 से बढ़कर 58 हो गया, जो अब तक 72 तक पहुंच चुका है।
पीलु का पुरा के बाद मकसूदनपुरा में पड़ाव
वर्ष 2008 के बाद दो बार और गुर्जर आंदोलन हुआ। 24 दिसम्बर 2010 और 21 मई 2015 में है। गुर्जर आंदोलन 2010 (Gurjar Aandolan 2010) और गुर्जर आंदोलन 2015 (Gurjar Aandolan 2015) हुआ। दोनों ही बार में मुख्य केन्द्र राजस्थान के भरतपुर जिले की बयाना तहसील का गांव पीलु का पुरा रहा। यहां पर आरक्षण की मांग को लेकर गुर्जरों ने रेल रोकी और महापड़ाव डाला। तब जाकर पांच प्रतिशत आरक्षण का समझौता हुआ। मिला एक प्रतिशत, क्योंकि इससे ज्यादा देने पर कुल आरक्षण 50 फीसदी से ज्यादा हो रहा था। वर्ष 2018 तक मसला नहीं सुलझा और अब 8 फरवरी से गुर्जरों ने सवाई माधोपुर के मलारना रेलवे स्टेशन के पास गांव मकसूदनपुरा से गुर्जर आंदोलन शुरू कर रखा है।