क्या राजस्थान में फिर से होने वाला है गुर्जर आरक्षण आंदोलन? जानिए गुर्जरों की इस बार की रणनीति
जयपुर। राजस्थान को आरक्षण की आग में जलाने, रेल यातायात ठप करने और जान माल को नुकसान पहुंचाने वाले 'गुर्जर आरक्षण आंदोलन' की सुगबुगाहट फिर से होने लगी है। क्या राजस्थान के गुर्जर फिर से आंदोलन की राह पर चलेंगे? यह तो आने वाला वक्त बताएगा, मगर एमबीसी वर्ग को आरक्षण मामले पर गुर्जरों समाज दो धड़ों में बंट गया है। एक धड़ा आंदोलन के मूड में दिखाई दे रहा है।
इस फैसले पर एकमत नहीं गुर्जर समाज
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो तो राजस्थान सरकार ने सरकारी नौकरियों में एमबीसी वर्ग को आरक्षण मामले पर सब कमेटी का पुनर्गठन किया है। सरकार के इसी फैसले पर गुर्जर समाज एकमत नहीं दिख रहा। समाज का एक हिस्सा इसके पक्ष में दूसरा इसके खिलाफ है। ऐसे में राजस्थान में एक बार फिर से गुर्जर आरक्षण आंदोलन के बादल मंडरा रहे हैं।
किरोड़ी सिंह बैंसला धड़े का यह मानना
खबर है कि गुर्जर आरक्षण आंदोलन समिति संयोजक कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला के नेतृत्व वाले धड़े का मानना है कि राजस्थान सरकार सब कमेटी का गठन करके मामले को और ज्यादा लंबा खींचने की मंशा से काम कर रही हैं। जबकि राजस्थान सरकार को 15 दिन का अल्टीमेटम देकर पूर्व में हुए समझौतों की पालना और अन्य मांगे मनवाने के लिए चेता दिया गया था तो अब सब कमेटी के पुनर्गठन का क्या औचित्य रह गया?
|
बैंसला के बेटे का ट्वीट - 'हम कर रहे हैं आंदोलन का टाइम टेबल तय'
ऐसे में यह गुर्जर समाज का यह धड़ा आंदोलन के मूड में है। अपनी मांग मनवाने के लिए राजस्थान सरकार से फिर आर-पार की लड़ाई की रणनीति बनाने में जुट गया है। कर्नल बैंसला के बेटे विजय बैंसला ने ट्वीट करके जानकारी दी है कि 'आज बांदीकुई, नारायणपुरा, दमगीरा की पुलिया (श्यालावास कलां ) में समाज के साथ आंदोलन की रणनीति बनाई और पूर्व में हुए आंदोलन के स्थान के निरीक्षण किए। हम डिस्कशन 'टेबल' नहीं अपितु आंदोलन का टाइम टेबल निश्चित कर रहे हैं। सबको सूचित कर दें। जय देवनारायण भगवान।'
राजस्थान सरकार को दी चेतावनी
मीडिया की खबरों में दावा किया जा रहा है कि बैंसला ने कहा कि सरकार जल्द से जल्द पूर्व में हुए समझौते के बिन्दुओं को लागू करें। साथ ही एमबीसी वर्ग को पूर्व की सरकारी नौकरियों के बैकलॉग भरने और प्रक्रियाधीन भर्तियों में चार फीसदी आरक्षण व्यवस्था सुनिश्चित करें। वहीं, मृतक गुर्जरों को मुआवजा, पुलिस में दर्ज मामलों को वापस लेने सहित अन्य मांगों को पूरा किया जाए। ऐसा जल्द नहीं हुआ तो प्रदेश में बिगड़े हालातों की ज़िम्मेदार सरकार ही होगी।
|
क्या चाहता है गुर्जर समाज का दूसरा धड़ा
आरक्षण को लेकर गुर्जर समाज का एक धड़ा फिर से आंदोलन के मूड में है। वहीं, दूसरा धड़ा राजस्थान सरकार के सब-कमेटी के पुनर्गठन के पक्ष में खड़ा हो गया है। इस धड़े का मानना है कि समाज को धैर्य रखना चाहिए। पहले भी सब-कमेटियों के फैसलों का लाभ समाज को मिला है और इस बार भी ऐसा ही होने का इंतज़ार करना होगा।
|
'बार-बार आंदोलन करने पर केस लगते हैं'
गुर्जर नेता हिम्मत सिंह गुर्जर ने ट्वीट कहा कि सरकार ने एमबीसी आरक्षण सहित अन्य मामलों पर विचार करने के लिए सब कमेटी का पुनर्गठन कर कदम आगे बढाए हैं, जो संतोषजनक है। उन्होंने कहा कि उन्हें पूरा विशवास है कि नई सब कमेटी एमबीसी युवाओं की बात सुनेगी और इस वर्ग के साथ न्याय करेगी। बार-बार आंदोलन करने पर केस लगते हैं। ऐसा करके हम अपने ही समाज के युवाओं को सरकारी नौकरियों से महरूम करते हैं।
'कमेटी के ही निर्णय से एमबीसी वर्ग को लाभ'
हिम्मत सिंह गुर्जर ने यह भी कहा कि ट्वीट करके कहा कि पिछले तेरह साल से तत्कालीन सरकारों द्वारा सब कमेटी का गठन किया गया और कमेटी के ही निर्णय से एमबीसी वर्ग को लाभ मिला है। यदि सब कमेटी के सामने पिछले तेरह साल में हुए समझौते व एमबीसी आरक्षण की जानकारी रखने वाले लोग के द्वारा तर्क संगत, तथ्यात्मक आँकड़ों के साथ वार्ता की जाती है तो लाभ ज़रूर मिलेगा।
गुर्जर आरक्षण आंदोलन का इतिहास
गुर्जर..., आरक्षण... और आंदोलन। ये तीन शब्द राजस्थान के लिए कोई नए नहीं हैं। सुने और पढ़े तो दशकों से जा रहे हैं, मगर पिछले 14 साल के दौरान तीनों ही शब्दों का मतलब गुर्जर Vs सरकार, यातायात ठप्प और जनजीवन पटरी से उतर जाना हो गया है। ताजा आंदोलन 8 फरवरी 2019 में राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले के मलारना रेलवे स्टेशन के पास मकसूदनपुरा गांव से शुरू हुआ था।
सबसे पहला गुर्जर आरक्षण आंदोलन वर्ष 2006 में हुआ
बता दें कि राजस्थान में गुर्जर आरक्षण आंदोलन की शुरुआत वर्ष 2006 से हुई। तब से लेकर अब तक रह-रहकर 6 बार बड़े स्तर गुर्जर आंदोलन हो चुके हैं। इस दौरान भाजपा और कांग्रेस दोनों की सरकार रही, मगर किसी सरकार से गुर्जर आरक्षण आंदोलन की समस्या का स्थायी समाधान नहीं निकला। वर्ष 2006 में एसटी में शामिल करने की मांग को लेकर पहली बार गुर्जर राजस्थान के हिंडौन जिले में सड़कों व रेल पटरियों पर उतरे थे। गुर्जर आंदोलन 2006 के बाद तत्कालीन भाजपा सरकार महज एक कमेटी बना सकी, जिसका भी कोई सकारात्मक नतीजा नहीं निकला।
दूसरी बार के गुर्जर आंदोलन में 28 लोग मारे गए
वर्ष 2006 में हिंडौन में रेल पटरियां उखाड़ने वाले गुर्जर कमेटी बनने के बाद कुछ समय के लिए शांत जरूर हुए थे, मगर चुप नहीं बैठे और 21 मई 2007 फिर आंदोलन का ऐलान कर दिया। वर्ष 2007 में दूसरी बार हुए गुर्जर आंदोलन के लिए पीपलखेड़ा पाटोली को चुना गया। यहां से होकर गुजरने वाले राजमार्ग को जाम कर दिया। इस आंदोलन में 28 लोग मारे गए थे। फिर चौपड़ा कमेटी बनी, जिसने अपनी रिपोर्ट में गुर्जरों को एसटी आरक्षण के दर्ज के लायक ही नहीं माना था।
तीसरा बार वर्ष 2008 में हुआ गुर्जर आंदोलन
पीपलखेड़ा पाटोली में गुर्जर आंदोलन किए जाने के सालभर बाद ही गुर्जरों ने फिर ताल ठोकी। सरकार से आमने-सामने की लड़ाई का ऐलान कर 23 मार्च 2008 को भरतपुर के बयाना में पीलु का पुरा ट्रैक पर ट्रेनें रोकी। सात आंदोलनकारियों को पुलिस फायरिंग में जान गंवानी पड़ी। सात मौतों के बाद गुर्जरों ने दौसा जिले के सिंंकदरा चौराहे पर हाईवे को जाम कर दिया। नतीजा यहां भी 23 लोग मारे गए और गुर्जर आंदोलन 2008 तक मौतों का आंकड़ा 28 से बढ़कर 58 हो गया, जो 72 तक पहुंच चुका है।
गुर्जर आंदोलन 2010 और गुर्जर आंदोलन 2015
वर्ष 2008 के बाद दो बार और गुर्जर आंदोलन हुआ। 24 दिसम्बर 2010 और 21 मई 2015 में है। गुर्जर आंदोलन 2010 और गुर्जर आंदोलन 2015 में मुख्य केन्द्र राजस्थान के भरतपुर जिले की बयाना तहसील का गांव पीलु का पुरा रहा। यहां पर आरक्षण की मांग को लेकर गुर्जरों ने रेल रोकी और महापड़ाव डाला। तब जाकर पांच प्रतिशत आरक्षण का समझौता हुआ। मिला एक प्रतिशत, क्योंकि इससे ज्यादा देने पर कुल आरक्षण 50 फीसदी से ज्यादा हो रहा था।
गुर्जर आरक्षण आंदोलन 2019
वर्ष 2018 तक मसला नहीं सुलझा तो 8 फरवरी 2019 से गुर्जरों ने सवाई माधोपुर के मलारना रेलवे स्टेशन के पास गांव मकसूदनपुरा से छठी बार गुर्जर आंदोलन शुरू किया था। 16 फरवरी को राजस्थान सरकार के पर्यटन मंत्री विश्वेन्द्र सिंह धरना स्थल सवाई माधोपुर के मलारना डूंगर पहुंचे और गुर्जर आरक्षण आंदोलन सघर्ष समिति के नेता कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला को आरक्षण बिल के मसौदे की प्रति सौंपी। इसके बाद गुर्जर नेताओं ने आंदोलन समाप्त कर रेल पटरियों को खाली करने का फैसला लिया।
डूंगरपुर उपद्रव : क्या राजस्थान में उदयपुर-अहमदाबाद हाईवे पर हिंसा के पीछे नक्सलियों का हाथ है?
(गुर्जर आंदोलन की तस्वीरें पुरानी हैं)