भारत से कितना अलग होते हैं अमेरिकी चुनाव और कैसे चुना जाता है राष्ट्रपति
जानिए कैसे और किस प्रक्रिया के तहत आज अमेरिका चुनेगा अपना 45वां राष्ट्रपति और कितने अलग होते हैं अमेरिका में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव।
वाशिंगटन। आज अमेरिका में 45वें राष्ट्रपति के लिए वोट डाले जाएंगे। डेमोक्रेट पार्टी की हिलेरी क्लिंटन या फिर रिपलिब्कन पार्टी के डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के नए राष्ट्रपति होंगे, यह राज 24 घंटे बाद ही खुल जाएगा।
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अमेरिका में होने वाले चुनाव दुनिया के कुछ देशों खासकर भारत में होने वाले चुनावों से पूरी तरह से अलग होते हैं। हर चार वर्षों में होने वाले ये चुनाव नवंबर में एक से आठ नवंबर के बीच चुनाव करा लिए जाते हैं।
जिस दिन राष्ट्रपति के लिए फाइनल वोटिंग होती है उसे 'इलेक्शन डे' कहते हैं। आइए आपको बताते हैं कि अमेरिका में राष्ट्रपति चुनावों की प्रक्रिया भारत से कितनी अलग होती है।
50 राज्य और वाशिंगटन चुनते राष्ट्रपति
अमेरिका के 50 राज्यों और राजधानी वाशिंगटन में मौजूद वोटर्स राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति के लिए वोट डालते हैं। हर राज्य में मौजूद पॉपुलर वोट यह तय करते हैं कि इलेक्टोरल में कितने सदस्य होंगे। ये सदस्य ही उम्मीदवार को अपना समर्थन देते हैं। इलेक्टोरल में 538 सदस्य होते हैं और इनकी संख्या हर राज्य की आबादी और इसके आकार पर निर्भर करती है।
क्या होता है इलेक्टर
हर राज्य के पास एक इलेक्टर होता है जो हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव्स से आता है। वहीं हर राज्य में दो सीनेटर्स होते हैं। सीनेटर्स की संख्या पर राज्य के आकार को कोई फर्क नहीं पड़ता है।
270 वोट्स की दरकार
उम्मीदवार को अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव जीतने के लिए 270 इलेक्टोरल वोट्स की जरूरत होती है। 538 इलेक्टेरर्स की संख्या में 270 स्पष्ट बहुमत माना जाता है।
किस राज्य की कितनी अहमियत
अमेरिका का कैलिफोर्निया राज्य सबसे आबादी वाला राज्य है यहां पर 55 इलेक्टोर्स हैं। वहीं टेक्सास में 38, न्यूयॉर्क और फ्लोरिडा में 29-29 इलेक्टोर्स हैं। वहीं अलास्का, डेलावेर, वेरमॉन्ट और वाइओमिंग में सिर्फ 3-3 इलेक्टोर्स ही हैं।
19 दिसंबर को मिलते हैं इलेक्टोरल के सदस्य
इलेक्टोरल समूह के सदस्यों की आधिकारिक मीटिंग 19 दिसंबर को होती है और इस मीटिंग में इलेक्टर्स आधिकारिक तौर पर अपना राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति चुनते हैं। यह सिर्फ एक औपचारिकता मात्र होती है। हर पार्टी के पास हर राज्य में मौजूद इलेक्टोरल की एक लिस्ट होती है। कैलिफोर्निया में डेमोक्रेट और रिपब्लिकन दोनों ही अपने 55 सदस्यों की लिस्ट देते हैं। यह इलेक्टर्स असल में पार्टी के अधिकारी ही होते हैं। ज्यादातर राज्यों में इन्हें अपने राज्यों में वोट करना होता है।
बहुत अलग होते हैं अमेरिकी चुनाव
अमेरिका में चुनावों की प्रक्रिया भारत से बिल्कुल ही अलग होती है। अमेरिका में उम्मीदवार पॉपुलर वोट जीतने के बावजूद हो सकता है कि चुनाव हार जाएं। वर्ष 2000 में अल गोर के साथ यही हुआ था। अल गोर पॉपुलर वोट जीत चुके थे लेकिन जॉज बुश के हाथों उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। जहां गोर को 50.99 मिलियन पॉपुलर वोट्स मिले थे तो वहीं बुश को सिर्फ 50.46 मिलियन पॉपुलर वोट्स ही हासिल हुए थे। बुश ने फ्लोरिडा पॉपुलर वोट सिर्फ 537 वोट्स से जीता था। लेकिन उन्हें 25 इलेक्टोरल वोट हासिल हुए थे। इसकी वजह से उन्हें गोर के 265 वोट्स की तुलना में 271 वोट्स हासिल हुए थे।
क्या होगा अगर हिलेरी ने जीता कैलिफोर्निया
अगर उम्मीदवार को सबसे ज्यादा वोट्स मिलते हैं तो उसे सभी राज्यों में विजेता घोषित किया जाता है और उसे राज्यों के सभी इलेक्टोरल वोट्स हासिल होते हैं। ऐसे में अगर हिलेरी क्लिंटन को कैलिफोर्निया में जीत मिलती है तो फिर उन्हें 55 इलेक्टोरल वोट्स का फायदा मिलेगा। कैलिफोर्निया हमेशा से ही डेमोक्रेट्स का गढ़ रहा है।
डेमोक्रेटिक पार्टी और रिपब्लिकन के गढ़
अमेरिका के कुछ राज्य सदियों से चुनावों के बाद डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार का समर्थन करते आए हैं जबकि कुछ राज्य रिपब्लिकन के पक्ष में रहते हैं। उम्मीदवारों को ऐसे में राज्यों और पार्टी के सदस्यों के बीच में तालमेल बिठाना पड़ता है। जो राज्य चुनावों में सबसे अहम या फिर स्विंग स्टेट्स साबित हो सकते हैं उनमें फ्लोरिडा, पेंसिलवेनिया और ओहियो शामिल हैं।
वोटिंग के बाद ही गिनती शुरू
अमेरिका में चुनावों तुरंत बाद ही वोट्स की गिनती शुरू हो जाती है। भारत की तरह जनता को महीनों या हफ्तों तक चुनावी नतीजों को इंतजार करना पड़ता है। नतीजों का ऐलान सार्वजनिक तौर पर किया जाता रहता है। इसका मतलब होता है कि अमेरिका के ईस्ट कोस्ट में जहां गिनती शुरू हो चुकी होती है तो वहीं वेस्ट कोस्ट में शायद वोटिंग भी पूरी न हो पाई हो।
टीवी चैनल्स कैसे देते जानकारी
भारत में कई टीवी चैनल सभी सीट्स पर आने वाले रूझानों का ऐलान करते रहते हैं। वहीं अमेरिका में चैनल्स उन सभी राज्यों के बारे में वोटिंग के तुरंत बाद ऐलान करते हैं जो उम्मीदवार के पक्ष में होते हैं। यह ऐलान पूर्व के वोटिंग पैटर्न और एग्जिट पोल के आधार पर किया जाता है। जहां पर वोटों की गणना काफी करीब होती हैं उन राज्यों में वास्तविक नतीजों के आने का इंतजार होता है।