याहू मैसेंजर हुआ बंद, आखिर कहां हुई चूक
इंस्टेंट मैसेजिंग की दुनिया से जिसने लोगों को रूबरू कराया और आपके डेस्कटॉप व मोबाइल में ख़ास जगह बना ली, मैसेजिंग की दुनिया में क्रांति लाने वाला वही याहू मैसेंजर अब पूरी तरह बंद हो गया है.
याहू मैसेंजर पहली इंस्टेट मैसेजिंग सर्विस में से एक माना जाता है. एक समय था जब कंप्यूटर और इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों के पास इसके न होने की कल्पना नहीं की जा सकती थी.
इंस्टेंट मैसेजिंग की दुनिया से जिसने लोगों को रूबरू कराया और आपके डेस्कटॉप व मोबाइल में ख़ास जगह बना ली, मैसेजिंग की दुनिया में क्रांति लाने वाला वही याहू मैसेंजर अब पूरी तरह बंद हो गया है.
याहू मैसेंजर पहली इंस्टेट मैसेजिंग सर्विस में से एक माना जाता है. एक समय था जब कंप्यूटर और इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों के पास इसके न होने की कल्पना नहीं की जा सकती थी.
लेकिन, याहू ने 17 जुलाई से अपनी मैसेजिंग सर्विस याहू मैसेंजर को बंद कर दिया है. इससे पहले याहू ने कहा था, ''हमने नया और बेहतर कम्यूनिकेशन टूल लाने के लिए याहू मैसेंजर को बंद किया है जो उपभोक्ताओं की ज़रूरतों के ज़्यादा अनुरूप हो.''
लेकिन जिसने मैसेजिंग की दुनिया में एक समय तक राज किया और दूसरी कंपनियों को इस क्षेत्र में आने की राह दिखाई, आखिर वो ही बदलते वक्त के साथ कैसे पिछड़ गया. आज याहू मैसेंजर को बंद करने की नौबत क्यों आई.
इस बारे में बीबीसी संवददाता कमलेश मठेनी ने टेक गुरु आशुतोष सिन्हा से बात की. पढ़ें उन्होंने क्या कहा उन्हीं के शब्दों में.
कैसे पिछड़ गया याहू
टेक्नोलॉजी की दुनिया में जब तक आप शीर्ष पर रहें, दुनिया में दूसरे क्षेत्रों की कंपनियों के मुक़ाबले बचना बड़ा मुश्किल होता है.
लगातार उपभोक्ताओं की ज़रूरतें और तकनीक बदलती रहती है और आपको उसके साथ चलना होता है.
लेकिन, याहू मैसेंजर लोगों की उम्मीदों से पीछे रह गया. लोगों को सिर्फ़ एक मैसेंजर नहीं चाहिए था बल्कि उन्हें सबकुछ चाहिए था. पूरी ऑनलाइन दुनिया चाहिए थी जो उन्हें गूगल ने और यहां तक कि माइक्रोसॉफ़्ट ने भी याहू से बेहतर दी.
आपको हमेशा आगे सोचना होगा कि ग्राहक क्या चाहता है.
अगर आज वो मुझसे आम ख़रीद रहा है तो मुझे सोचना है कि क्या मैं उसे कुछ और भी दे सकता हूं ताकि उसे लगे कि मैं उसके बारे में सोचता हूं, उसकी ज़रूरतों का ख़्याल रखता हूं.
जिस ढंग से टेक्नोलॉजी उभर रही है और आगे बढ़ रही है, मैसेजिंग अब सिर्फ़ टेक्स्ट के ज़रिए मैसेज देने का जरिया नहीं रहा.
अब यूज़र्स गूगल हैंगआउट, स्काइप जैसी सर्विस का वीडियो कॉलिंग के लिए इस्तेमाल करते हैं. यहां उन्हें वीडियो के साथ टेक्सट भी मिल रहा है.
उनके बढ़ने की रफ़्तार याहू के मुकाबले तेज़ रही है. याहू में भी आप ये सब कर सकते हैं, लेकिन याहू ने जिस तरह इस बदलाव को देखा वो शायद उनके ग्राहकों की उम्मीद से थोड़ा कम था.
दरअसल, ग्राहकों को जब आगे बढ़कर ये सुविधाएं देने की ज़रूरत थी तो वहां याहू चूक गया. दूसरी कंपनी जब बेहतर फ़ीचर दे देती है तो आप बस उसका पीछा कर सकते हैं, उससे आगे नहीं निकल पाते.
कुछ साल पहले माइक्रोसॉफ़्ट का नाम भी सुना जाता था. उसे इस ढंग से बनाया गया था कि अगर आप उस पर लॉग इन कर लेते हैं तो दूसरी किसी भी माइक्रोसॉफ़्ट सर्विस का इस्तेमाल कर सकते हैं.
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लेकिन, जितनी तेज़ी से वो आया क़रीब-क़रीब उतनी ही तेज़ी से ग़ायब भी हो गया. कह सकते हैं कि बड़ी कंपनियां भी ग़लती करती हैं. माइक्रोसॉफ़्ट की कोशिश थी कि वो इंटरनेट को एक ढंग से अपने यूज़र्स के ज़रिए नियंत्रित करे.
याहू जहां पीछे रह गया वहीं, माइक्रोसॉफ़्ट कुछ आगे निकलने की कोशिश कर रहा था. लेकिन दोनों की कोशिशें सही नहीं रहीं और ग्राहकों ने उन्हें नकार दिया. टेक की दुनिया में ये कोई अजूबे वाली बात नहीं है.
बड़ी कंपनियों से ग़लती कैसे
बड़ी-बड़ी कंपनियां भी तकनीक की दुनिया में पिछड़ जाती हैं. समय के साथ न चल पाना इसका कारण बनता है.
उदाहरण के तौर पर जब सबीर भाटिया ने 1996 में हॉटमेल शुरू किया था तो वो नंबर वन ईमेल आईडी था. बाद में उन्होंने माइक्रोसॉफ़्ट को इसे बेच दिया. इसके बाद भी हॉटमेल सबसे आगे था.
साल 2004 के क़रीब जीमेल शुरू हुआ. लेकिन बाज़ार में बाद में आने के बावजूद भी जीमेल हॉटमेल से आगे निकल गया.
सभी को ई-मेल भेजने के क्या हैं फ़ायदे?
आपके बारे में यूँ जानकारी जुटाती हैं कंपनियां
गूगल जैसी कंपनी ने ग्राहक को समझने की कोशिश की. आप उसे जितना बड़ा आसमान देंगे वो उतना ख़ुश होगा. जैसे जीमेल में एक बार आप लॉग इन कर लें तो उसकी कोई भी सर्विस इस्तेमाल कर सकते हैं.
चाहे वो उसका ऑनलाइन स्टोरेज हो, वीडियो कॉलिंग या चैट की सर्विस हो- कुछ भी इस्तेमाल कर सकते हैं. कई कंपनियां ग्राहक को इतनी सुविधाएं नहीं दे पातीं. कुछ यही स्थिति याहू के साथ भी रही है.
हालांकि, कई बार समय की भी बात होती है. जैसे इत्तेफ़ाक ही है कि गूगल ने ऐसे समय में इन सर्विसेज़ की शुरुआत की जब लोगों का इस्तेमाल करने का तरीका भी बदल रहा था. लेकिन तब तक याहू बहुत पीछे छूट चुका था.
वहीं, गूगल ऑपरेटिंग सिस्टम चलाता है. एंड्राइड लगभग दुनिया के 90 फ़ीसदी मोबाइल में चलता है. इसके चलते भी गूगल को काफ़ी फ़ायदा होता है.
टेक की दुनिया की एक ख़ूबी है कि जो सबसे आगे रहता है उसमें और दूसरे व तीसरे नंबर के खिलाड़ियों में काफ़ी बड़ा अंतर होता है जिसे पाट पाना बड़ा मुश्किल होता है.