शी जिनपिंगः एक खेतिहर कैसे पहुंचा चीन की सत्ता के शिखर पर?
इक्कीसवीं सदी में ऐसे बहुत कम नेता हैं जो गुफा में रहे हों. जिन्होंने खेतों में मेहनत की हो. फिर वो सत्ता के शिखर पर पहुंचे हों. पांच दशक पहले जब चीन में सांस्कृतिक क्रांति का तूफ़ान आया हुआ था, उस वक्त पंद्रह बरस के लड़के शी जिनपिंग ने देहात में मुश्किल भरी ज़िंदगी की शुरुआत की थी. चीन के अंदरूनी इलाक़े में जहां चारों तरफ पीली खाइयां थीं
इक्कीसवीं सदी में ऐसे बहुत कम नेता हैं जो गुफा में रहे हों. जिन्होंने खेतों में मेहनत की हो. फिर वो सत्ता के शिखर पर पहुंचे हों.
पांच दशक पहले जब चीन में सांस्कृतिक क्रांति का तूफ़ान आया हुआ था, उस वक्त पंद्रह बरस के लड़के शी जिनपिंग ने देहात में मुश्किल भरी ज़िंदगी की शुरुआत की थी.
चीन के अंदरूनी इलाक़े में जहां चारों तरफ पीली खाइयां थीं, ऊंचे पहाड़ थे. वहां से जिनपिंग की ज़िंदगी की जंग शुरू हुई थी.
जिस इलाके में जिनपिंग ने खेती-किसानी की शुरुआत की थी, वो गृह युद्ध के दौरान चीन के कम्युनिस्टों का गढ़ था.
येनान के लोग अपने इलाक़े को चीन की लाल क्रांति की पवित्र भूमि कहते थे.
चीन की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी ने राष्ट्रपति के कार्यकाल पर लगी सीमा को हटाने का प्रस्ताव रखा है.
ये ऐसा कदम है जो मौजूदा नेता शी जिनपिंग को सत्ता में बनाए रखेगा. चीन की राजनीति में इसे एक निर्णायक घड़ी के तौर पर देखा जा रहा है.
वो आज एक ऐसे देश की अगुवाई कर रहे हैं, जो बड़ी तेज़ी से दुनिया की सुपरपावर के तौर पर उभर रहा है.
लेकिन चीन ऐसा देश है जो इस बात पर कड़ी निगाह रखता है कि उसके नेता के बारे में क्या कहा जाता है.
शी जिनपिंग की अपनी कहानी को काफ़ी हद तक काट-छांटकर पेश किया जाता है.
दिलचस्प बात ये है कि जहां चीन के तमाम अंदरूनी इलाक़ों का तेज़ी से शहरीकरण हो रहा है, वहीं राष्ट्रपति शी के गांव को जस का तस रखा गया है.
कम्युनिस्ट पार्टी के भक्तों के लिए वो एक तीर्थस्थल है.
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जमीनी जुड़ाव
1968 में चेयरमैन माओ ने फ़रमान जारी किया था कि लाखों युवा लोग शहर छोड़कर गांवों में जाएं.
वहां वो ज़िंदगी की मुश्किलात का सामना करके, आगे बढ़ने के सबक़ किसानों और मज़दूरों से सीखें. शी जिनपिंग कहते हैं कि उस तजुर्बे से उन्होंने भी बहुत कुछ सीखा.
शी का कहना है कि आज वो जो कुछ भी हैं, वो उसी दौर की वजह से हैं. उनका किरदार उसी गुफा वाले दौर ने गढ़ा.
जिनपिंग अक्सर कहा करते हैं, "मैं पीली मिट्टी का बेटा हूं. मैंने अपना दिल लियांगजिआहे में छोड़ दिया था. उसी जगह ने मुझे बनाया."
जिनपिंग कहते हैं, "जब मैं लियांगजिआहे पहुंचा तो पंद्रह बरस का लड़का था. मैं फिक्रमंद था. मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था."
"लेकिन 22 बरस का होते-होते मेरी सारी शंकाएं दूर हो गई थीं. मैं आत्मविश्वास से लबरेज़ था. मेरी ज़िंदगी का मक़सद पूरी तरह साफ़ हो चुका था."
उस दौर में हर शख़्स चेयरमैन माओ की मशहूर छोटी लाल क़िताब पढ़ा करता था. आज चेयरमैन शी के ख़यालात बड़ी-बड़ी लाल होर्डिंग पर लिखे दिखाई देते हैं.
उनके सम्मान में एक म्यूज़ियम भी बनाया गया. इस म्यूज़ियम में इस बात का ज़िक्र मिलता है कि उन्होंने अपने साथी किसानों-मज़दूरों के लिए क्या-क्या अच्छे काम किए.
लेकिन इन क़िस्सों को इस तरह काट-छांटकर पेश किया गया है कि उसमें शी जिनपिंग की ज़िंदगी की असली कहानी का पता लगाना बेहद मुश्किल है.
राष्ट्रपति के तौर पर अपने पहले पांच साल के कार्यकाल में शी जिनपिंग ने अपना एक महान इंसान का किरदार गढ़ा है.
वो ख़ुद को एक ऐसे शख़्स के तौर पर पेश करते हैं, जो जननेता है. वो अक्सर गली-कूचों की सैर पर जाते हैं. ग़रीबों के घर जाया करते हैं. वो जनता की ज़ुबान में बात करते हैं.
वो अक्सर छात्रों को बताते हैं कि ज़िंदगी एक बटन वाली कमीज़ है, जिसके शुरू के बटन सही तरीक़े से लगाने चाहिए, वरना सारे बटन ग़लत बंद होते हैं.
वो कई बार लंच के लिए क़तार में खड़े हुए हैं. वो अपने खाने का बिल ख़ुद भरते हैं.
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तजुर्बा
लेकिन एक मिथक के तौर पर शी जिनपिंग की कहानी का केंद्र है उनका गुफा में बिताया हुआ शुरुआती जीवन. जहां वो सियासत से अलग कर दिए गए थे.
जिनपिंग कहते हैं, "जिनको सत्ता का तजुर्बा कम है, वो इसे नया और राज़दाराना तजुर्बा समझते हैं. लेकिन मैं इन पर्दों के पार, बड़ी गहराई से सियासत को देखता हूं."
"मैं फूलों के हार और तालियों की गड़गड़ाहट से परे हटकर देखता हूं. मैं नज़रबंदी वाले घर देखता हूं. मैं इंसानी रिश्तों की कमज़ोरी देखता हूं."
"मैं राजनीति को गहराई से समझता हूं."
बचपन से जवानी के बीच शी जिनपिंग दोनों तरह की ज़िंदगी का तजुर्बा कर चुके थे. उनके पिता भी कम्युनिस्ट क्रांति के हीरो थे.
ऐसे में शी ने एक राजकुमार वाली ज़िंदगी का तजुर्बा भी किया था.
2009 के एक ख़ुफ़िया अमरीकी केबल के मुताबिक़ शी के एक क़रीबी दोस्त ने बताया था कि उनके शुरुआती दस सालों ने उनके किरदार की बुनियाद रखी थी.
इसके बाद कम्युनिस्ट क्रांति के दौरान जब वो किसानों के बीच रहे, तो उस तजुर्बे ने भी उनकी आगे की ज़िंदगी पर गहरा असर डाला था.
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जान का ख़तरा
लेकिन साठ के दशक में चेयरमैन माओ ने अपनी ही पार्टी के नेताओं पर जो ज़ुल्म ढाए, उसका सितम शी जिनपिंग को भी उठाना पड़ा था.
पहले तो शी के पिता को पार्टी से बाहर कर दिया गया. फिर उन्हें जेल भेज दिया गया. शी के परिवार को बहुत शर्मिंदगी उठानी पड़ी थी. उनकी एक बहन की मौत हो गई.
शायद उन्होंने ख़ुदकुशी कर ली थी.13 साल की उम्र में ही शी जिनपिंग की पढ़ाई बंद हो गई थी. क्योंकि बीजिंग के सारे स्कूल बंद कर दिए गए थे.
ऐसा इसलिए ताकि छात्र अपने अध्यापकों की निंदा कर सकें. उन्हें पीट सकें. या फिर उन्हें जान से मार सकें.
परिवार और दोस्तों के बग़ैर, शी जिनपिंग काफ़ी दिनों तक माओ के बदनाम रेड गार्ड्स से बचते-छुपते फिरे थे.
एक बार उन्होंने एक रिपोर्टर से एक एनकाउंटर का भी ज़िक्र किया था.
शी जिनपिंग ने बताया था, "मैं केवल 14 बरस का था. रेड गार्ड्स ने मुझसे पूछा कि तुम अपने जुर्म को कितना गंभीर मानते हो?"
"मैंने कहा कि तुम खुद अंदाज़ा लगा लो, क्या ये मुझे मारने के लिए काफ़ी है? रेड गार्ड्स ने कहा कि हम तुम्हें सैकड़ों बार मार सकते हैं."
"मेरे हिसाब से एक बार मरने या बार-बार मारे जाने में कोई फ़र्क़ नहीं."
शी की पीढ़ी के बहुत से चीनी लोग ये मानते हैं कि उस दौर में जब स्कूल बंद हो गए थे, जब वो जान बचाकर छुपते फिर रहे थे.
तब की मुश्किलों ने उनके ज़हन पर गहरा असर डाला था. उन्हें मज़बूत बनाया था.
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पढ़ाई का शौक
ख़ुद शी जिनपिंग कहते हैं कि मुझे अपनी ग़लतियां बताए जाने में लुत्फ़ आने लगा था. हालांकि वो ये भी कहते हैं कि हर किसी की बात को वो गंभीरता से नहीं लेते थे.
साठ के दशक में चीन के गांवों की ज़िंदगी बहुत कठिन थी. बिजली नहीं हुआ करती थी. गांवों तक जाने का रास्ता भी पक्का नहीं होता था.
खेती के लिए मशीनें भी नहीं थीं. उस दौर में शी ने खाद ढोने, बांध बनाने और सड़कों की मरम्मत का काम सीखा था.
वो जिस गुफा में रहते थे, वहां कीड़े-मकोड़ों का डेरा होता था. उस में वो ईंटों वाले बिस्तर पर तीन और लोगों के साथ सोया करते थे.
उस वक्त खाने के लिए उन्हें दलिया, बन और कुछ सब्ज़ियां मिला करते थे.
उनके एक किसान साथी लू होउशेंग ने बताया था कि भूख लगने पर ये कोई नहीं देखता था कि खाने में मिल क्या रहा है.
रात में शी जिनपिंग अपनी गुफा में ढिबरी की रौशनी में पढ़ा करते थे. उन्हें पढ़ने का शौक़ था वो सिगरेट भी बहुत पीते थे.
वो अक्सर माओ के भाषण और अख़बार पढ़ा करते थे. क्योंकि पढ़ने के लिए इसके सिवा कुछ और था ही नहीं.
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शी की महत्वकांक्षा
शी के दोस्त लू ने बताया कि शी बहुत संजीदा रहा करते थे. हंसी-मज़ाक़ उन्हें नहीं पसंद था. वो न तो दोस्तों के साथ खेला कूदा करते थे.
न ही उनकी दिलचस्पी गर्लफ्रैंड बनाने में थी. 18 की उम्र में वो अपना सियासी सफर शुरू करने के लिए तैयार थे. वो कम्यूनिस्ट यूथ लीग में शामिल हो गए.
21 साल की उम्र में वो बार-बार ठुकराए जाने के बावजूद कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य बन गए. शुरुआत से ही वो ज़मीनी हक़ीक़त से वाबस्ता थे.
उनकी निगाह हमेशा लक्ष्य पर होती थी. जब उनके दोस्त खेलने-कूदने में मसरूफ़ होते थे, तब वो काम में लगे रहते थे. वो बेहद महत्वाकांक्षी थे.
कम्युनिस्ट क्रांति के बाद वो कट्टर कम्युनिस्ट बन गए थे. जब शी 25 साल के थे, तो उनके पिता की पार्टी में दोबारा वापसी हो गई थी.
उन्हें गुआंगडॉन्ग सूबे में काम करने के लिए भेजा गया था. चीन का ये बड़ा सूबा हांगकांग के बेहद क़रीब था. ये चीन की आर्थिक तरक़्क़ी का पावरहाउस बन गया.
पिता की मदद से शी जिनपिंग ने अपना करियर तेज़ी से आगे बढ़ाया. धीरे-धीरे पार्टी में उनके अपने दोस्तों की भी बड़ी जमात हो गई थी.
सत्तर के दशक में वो चीन की सेना में शामिल हो गए थे. उन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी के टॉप के नेताओ में पहुंचने का पक्का इरादा कर लिया था.
ज़िंदगी का हर क़दम वो इसी मक़सद से उठा रहे थे. सेना में वो पहले ही दिन से तरक़्क़ी का लक्ष्य लेकर चले थे.
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जिनपिंग का व्यक्तित्व
शी अपने आप में व्यस्त रहने वाले शख़्स थे. वो बहुत अंतर्मुखी थे. शायद यही वजह थी कि एक राजनयिक की बेटी से उनकी पहली शादी नाकाम रही थी.
हां, इसका फ़ायदा उन्हें सियासी करियर आगे बढ़ाने में ज़रूर मिला था. जब वो सत्ता के शिखर पर पहुंचे तो सब को पता चल गया.
मगर इससे पहले शी जिनपिंग ने तरक़्क़ी की सीढ़ियां बेहद ख़ामोशी से, दबे पांव चढ़ीं.
शी ने उस वक़्त सुर्ख़ियां ज़रूर बटोरी थीं, जब उन्होंने अपनी मौजूदा पत्नी पेंग लियुआन से शादी की. पेंग एक मशहूर गायिका थीं.
बरसों तक शी की पहचान उनके पति के तौर पर रही थी. शी जिनपिंग को शुरुआती दौर में कवर करने वाले एक सरकारी पत्रकार ने बताया था कि वो बेहद बोर इंसान थे.
उन्हें लोग आसानी से भुला देते थे. वो अपने दामन पर दाग लगने से बचने के लिए हमेशा बेहद रिजर्व और सतर्क रहा करते थे.
शी ने देखा था कि उनके पिता को माओ ने किस तरह सताया था. इसीलिए वो बेहद ख़ामोश रहा करते थे.
40-50 की उम्र में एक सीनियर नेता बनने के बावजूद वो सिर्फ़ काम से काम रखा करते थे.
एक क़रीबी शख़्स ने कहा कि शी जिनपिंग एक ऐसी सुई हैं, जो रेशम के कवर में बंद हैं.
अंदाजा
अमरीका में शी जिनपिंग 1985 में कुछ दिन एलेनोर ड्वोरचाक के घर में कुछ दिन रहे थे.
वो उनके बेटे के साथ उसके कमरे में सोते थे, जहां दीवार पर 'स्टारट्रेक' फिल्म के पोस्टर चिपके हुए थे. एलेनोर का घर अमरीका के आयोवा सूबे के मस्कैटिन शहर में है.
जब 2012 में जिनपिंग आयोवा के दौरे पर आए थे, तो एलेनोर ने बताया था कि किसी को ये अंदा़ज़ा भी नहीं हो सकता कि उनके घर आया शख़्स एक दिन किसी देश का राष्ट्रपति बन जाएगा.
2012 में शी जिनपिंग चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के नेता बने. वो कम्युनिस्ट पार्टी के तमाम खेमों के आम सहमति से चुने गए नेता थे.
लेकिन किसी को भी ये अंदाज़ा नहीं था कि अगले पांच सालों में वो कैसे नेता बनकर उभरने वाले हैं.
सबक़ सिखाया
11 जून 2015 को सफेद बालों वाला एक शख़्स एक अदालत के कठघरे में खड़ा दिखा था.
वो उन सुरक्षाकर्मियों से घिरा था, जो कभी उसके हुक्म के फरमाबरदार हुआ करते थे. बरसों तक ये शख़्स चीन में डर का दूसरा नाम था.
चीन की पुलिस पर उसका नियंत्रण था. वो अर्धसैनिक बलों का, जेल का और खुफिया ऑपरेशन का अगुवा था.
लेकिन डेढ़ साल में ही क़िस्मत ने पलटी मारी और वो क़ानून के उसी कोर्ट में मुजरिम के तौर पर खड़ा था, जिस सिस्टम को कभी वो चलाता था.
अदालत में उस शख़्स ने अपना जुर्म कबूला और कहा कि वो सज़ा के ख़िलाफ़ अपील नहीं करेगा.
उस शख़्स का नाम था चाऊ योंगकांग. चीन में कम्युनिस्ट शासन के इतिहास में क़ानून का सामना करने वाले वो सबसे सीनियर नेता थे.
चाऊ के अलावा बो शीलाई नाम के एक नेता को भी इसी तरह से जिनपिंग ने क़ानून का सबक़ सिखाया.
आरोप था कि बो, चाऊ और दो फौजी नेता मिलकर पार्टी की एकता को नुक़सान पहुंचाने की साज़िश रच रहे थे.
सरकार में फैसले
सरकार की शाहखर्ची रोकने के लिए शी जिनपिंग ने बड़े-बड़े भोज आयोजित करने पर रोक लगा दी. वो कारों के काफिले में चलने के बजाय कई बार वैन से चलते थे.
जब शी जिनपिंग सत्ता में आए तो उन्होंने जनता से एक साफ-सुथरी सरकार का वादा किया. शी ने भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई का भरोसा दिया था.
वो हर छोटे-बड़े भ्रष्ट नेता को सबक़ सिखाना चाहते थे. उन्होंने इस वादे पर सख़्ती से अमल किया था.
शी जिनपिंग ने साफ कर दिया कि जो पैसा कमाना चाहता है, वो कम्युनिस्ट पार्टी में न आए.
लेकिन पार्टी के क़रीब 9 करोड़ कार्यकर्ताओं में से ज़्यादातर का मक़सद तो पैसा बनाना ही है.
कम्युनिस्ट पार्टी, बरसों से घूसखोरी, भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद से ही चलती रही है.
इस सिस्टम को साफ करने के लिए कुछ बड़ी मछलियों पर कार्रवाई भर से काम नहीं चलने वाला था. शी जिनपिंग ने कई फरमान जारी किए.
पार्टी के हर नेता के दफ्तर के साइज़ से लेकर नेताओं के लंच या डिनर में इस्तेमाल होने वाले बर्तनों की संख्या को लेकर भी शी ने नियम बना दिए.
वो अक्सर गांव के लोगों से मिलने जाते रहे हैं. वो खुद को कम्युनिस्ट पार्टी के रईस और भ्रष्ट नेताओं से अलग रखकर पेश करते हैं.
भ्रष्टाचार पर वार
पर तमाम कोशिशों के बावजूद शी, ख़ुद को पार्टी के रईस नेताओं की जमात से अलग नहीं कर सकते.
शी के राष्ट्रपति बनने से पहले ही उनके कई रिश्तेदार करोड़पति हो चुके थे. हालांकि इस में शी का कोई योगदान रहा हो, इसके सबूत नहीं मिलते.
शी को पता है कि चीन का समाज कितना भ्रष्ट हो चुका है. रईसों के लालच ने पूरे सिस्टम को जकड़ रखा है.
जैसे चाऊ योंगकांग को ही लीजिए. उनक परिवार किसानी करता था. आमदनी बढ़ाने के लिए वो मछलियां पकड़ा करते थे.
उनके परिवार का सबसे बड़ा बेटा इंजीनियर बना तो परिवार की शोहरत बढ़ गई.
फिर तो तरक़्क़ी और भ्रष्टाचार का ऐसा कॉकटेल बना कि चाऊ बेहद ताक़तवर शख़्स बन गए.
इस नेटवर्क को शी जिनपिंग ने बहुत मुश्किलों से तोड़ा है. चाऊ की कोर्ट में पेशी से पहले उनके एक कारोबारी साझीदार को मौत की सज़ा दी गई थी.
हालांकि चाऊ के गांव के लोग मानते हैं कि उसे ग़लत सज़ा दी गई. उसने पार्टी और देश के लिए बहुत काम किया था. मगर शी जिनपिंग ने उस पर झूठे आरोप लगाए.
चाऊ के बारे में ये भी कहा जाता है कि वो कम्युनिस्ट पार्टी में शी जिनपिंग के विरोधी खेमे से ताल्लुक़ रखते थे.
अभियान
पिछले पांच सालों में बहुत से बड़े नेता और कारोबारी अचानक लापता हो गए.
कहा जाता है कि इनमें से ज़्यादातर चीन में नज़रबंद हैं. संदेश साफ है कि शी जिनपिंग से उलझोगे तो मरोगे.
भ्रष्टाचार के आरोप में शी जिनपिंग ने बहुत से नेताओं को पार्टी से बाहर कर दिया.
शी के विरोधी और बाग़ी नेता गुओ वेंगुई कहते हैं कि शी के बेहद क़रीबी वांग क़िशान ख़ुद बेहद भ्रष्ट हैं. वांग की भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ एक्शन लेने वाली संस्था के प्रमुख भी हैं.
गुओ वेंगुई, न्यूयॉर्क में रहते हैं. वो यू-ट्यूब पर अक्सर शी के क़रीबी नेताओं पर हमला बोलते रहते हैं.
मगर उन्होंने अब तक शी जिनपिंग पर सीधा कोई आरोप नहीं लगाया है.
साफ-सफाई के अभियान के बावजूद कम्युनिस्ट पार्टी में भ्रष्टाचार कम नहीं हुआ है. जो भी कार्रवाई हुई है, वो भी साफ़-सुथरी नहीं दिखती.
लेकिन सिस्टम को साफ़ करने के शी जिनपिंग के इरादों में ज़रा भी कमी नहीं आई है.
इंटरनेट पर नियंत्रण
बराक ओबामा और शी जिनपिंग की एक तस्वीर ने चीन में काफ़ी बवाल मचाया था.
जिनपिंग और ओबामा की चहलक़दमी की तुलना, कार्टून कैरेक्टर विनी द पू से की गई थी.
तब से इंटरनेट पर चीन से बेहद सख्ती से सेंसर किया हुआ है. चीन ने इंटरनेट पर हमेशा कड़ी नज़र रखी है. इसका विरोध भी होता है. और मज़ाक़ भी उड़ाया जाता है.
चीन में 75 करोड़ लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं. ये तादाद यूरोप और अमरीका में मिलकर इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों से ज़्यादा है.
शी जिनपिंग चीन को साइबर सुपरपावर बनाना चाहते हैं.
शी जिनपिंग एक तरफ पार्टी पर नियंत्रण की लड़ाई लड़ रहे हैं, तो दूसरी तरफ वो इंटरनेट पर भी क़ाबू पाना चाहते हैं.
क़ानून और तकनीक की मदद से उन्होंने इंटरनेट पर काफ़ी पाबंदी लागू कर दी है. साइबर सुरक्षा को शी जिनपिंग देश की सुरक्षा का मुद्दा मानते हैं.
इंटरनेट की सुविधा देने वाले और सोशल मीडिया साइट पर सख्ती से सेंसर लागू किया जाता है.
कोई भी फर्जी खाता बनाकर चीन में सोशल मीडिया का इस्तेमाल नहीं कर सकता.
वैसे तो चीन में संवेदनशील मुद्दों पर हमेशा से ही सख़्ती बरती जाती रही है. मगर फ़ैसले लेने की प्रक्रिया काफ़ी हद तक विकेंद्रीकृत थी.
निगरानी
लेकिन शी जिनपिंग चाहते हैं कि चीन एक अमीर मुल्क हो. देश एकजुट और मज़बूत हो. देश में सिर्फ़ एक पार्टी का राज हो. लोग अनुशासन में रहें.
वो लोगों को पूरी तरह से वफ़ादार बनाना चाहते हैं. यूनिवर्सिटी में पार्टी की पहुंच बढ़ाई जा रही है. क़िताबों में से पश्चिमी सभ्यता के निशान मिटाए जा रहे हैं.
निजी कंपनियों में भी कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्यता की शाखाएं खोली जा रही हैं. साइबर दुनिया पर चीन की सरकार की सख़्ती बहुत ज़्यादा है.
विदेश जाने वाले चीन के नागरिकों पर भी साइबर सुरक्षा एजेंसियों की निगाह रहती है.
शी जिनपिंग उस वक़्त चीन के राष्ट्रपति बने थे, जब अरब देशों में इंक़लाब आया हुआ था. वो किसी भी क़ीमत पर चीन में ऐसा नहीं होने देना चाहते.
इंटरनेट पर सख़्त निगरानी के लिए शी जिनपिंग की सरकार बड़े पैमाने पर निवेश कर रही है. नई-नई तकनीक से आंतरिक सुरक्षा की दीवार मज़बूत बनाई जा रही है.
ताक़त
शी जिनपिंग की ताक़त का एहसास सिर्फ़ चीन के लोगों को नहीं है.
साल 2014 में ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री टोनी एबट ने जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल को अपनी चीन नीति के बारे में बताया था. एबट ने कहा था कि ऑस्ट्रेलिया का चीन से रिश्ता डर और लालच का है.
पूरी दुनिया को ये बताने की कोशिश की जा रही है कि चीन कितना महान है.
शी जिनपिंग चीनी मूल के लोगों से अपील करते रहते हैं कि वो अपने-अपने देशों में चीन के महान इतिहास और इसकी ताक़त के बारे में लोगों को बताएं.
चीन के पैसे की ताक़त का लोहा दुनिया मानती है.
2015 में जब वो अमरीका के दौरे पर गए तो एपल, माइक्रोसॉफ्ट, सिस्को, एमेज़न जैसी कंपनी के बॉस लाइन लगाकर शी से मिलने के लिए इंतज़ार करते दिखे.
वो फ़ेसबुक जिस पर चीन में पाबंदी है, उसके प्रमुख ज़ुकरबर्ग भी जिनपिंग से मिले थे. गूगल पर भी चीन में पाबंदी है.
उनके अधिकारियों को तो शी से मिलने का न्यौता ही नहीं दिया गया.
शी जिनपिंग इंटरनेट और साइबर स्पेस पर कड़ा नियंत्रण रखना चाहते हैं. इसलिए उनके लिए ऐसी बड़ी साइबर कंपनियों पर क़ाबू पाना ज़रूरी हो जाता है.
जैसे फ़ेसबुक के चैटिंग ऐप व्हाट्सऐप पर कई बार चीन में पाबंदी लग चुकी है.
इसी तरह एपल ने भी चीन में अपने ऐप स्टोर में चीन की नीतियों के हिसाब से कई बदलाव किए हैं.
ज़मीर की आवाज़
चीन में बहुत से ऐसे लोग हैं, जो शी जिनपिंग के क़रीबी रहे हैं. उनकी नीतियों पर अमल करते रहे हैं. फिर भी उन्हें सरकारी चाबुक का सामना करना पड़ा है.
ऐसे ही एक शख़्स हैं शू झियोंग. वो पहले रिसर्च स्कॉलर थे. बाद में शू झियोंग ने चीन की आर्थिक तरक़्क़ी में पिछड़ गए लोगों की नुमाइंदगी शुरू कर दी.
वो लोग जिन्हें देश की तरक़्क़ी से कोई फ़ायदा नहीं हुआ. जैसे मज़दूर, बेघर लोग वग़ैरह.
शू झियोंग ने बोलने की आज़ादी की मांग करते हुए नागरिकों का एक मंच खड़ा किया. उन्हें देशहित के ख़िलाफ़ काम करने के जुर्म में गिरफ़्तार कर लिया गया.
अदालत में शू ने कहा कि देश का संविधान उन्हें बोलने की आज़ादी देता है. आज़ादी, इंसाफ़ और मोहब्बत हमारे बुनियादी मूल्य हैं.
जज ने उन्हें बोलने नहीं दिया. कहा कि शू की बातें बेमतलब की हैं.
ये उन शू झियोंग का हाल है, जो सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी के शी के मिशन से जुड़े रहे थे. उन्हें जेल जाना पड़ा था.
शी जिनपिंग के राज में कम्युनिस्ट क्रांति या इसके नेताओं पर सवाल उठाना जुर्म है. भले ही वो और उनका परिवार माओ के ज़ुल्म के शिकार रहे हों.
भले ही माओ की नीतियों की वजह से तीन करोड़ चीनी नागरिक भूख से मर गए हों. मगर इन कड़वी सच्चाईयों को उजागर करने पर जेल जाना तय है.
कैसी सियासत
शी जिनपिंग माओ की परंपरा को ही आगे बढ़ाना चाहते हैं. वो ख़ुद को माओ का वारिस समझते हैं.
उन्होंने देश के लोगों से वादा किया है कि वो चीन को अमीर और ताक़तवर बनाएंगे. वो जानते हैं कि जनता की सियासत में दिलचस्पी कितनी ख़तरनाक हो सकती है.
इसलिए वो नागरिकों को अभिव्यक्ति की ज़्यादा आज़ादी देने के हक़ में नहीं हैं.
शी जिनपिंग ने सोवियत संघ के विघटन से भी ज़िंदगी का सबक़ सीखा है. वो मानते हैं कि सोवियत संघ का पतन इसलिए हुआ क्योंकि वो अपना मक़सद ही भूल गया था.
वो अपने लक्ष्य से भटक गया था. उन्होंने एक भाषण में कहा भी था कि सोवियत कम्युनिस्ट पार्टी में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी से ज़्यादा सदस्य थे.
फिर भी किसी ने विघटन को रोकने की कोशिश नहीं की. वो खुलेपन के सख़्त ख़िलाफ़ हैं. शी जिनपिंग अक्सर ग्यारहवीं सदी के चीनी विचारक सू शी का ज़िक्र करते हैं.
जो अंदरूनी ख़तरे से आगाह किया करते थे. जो ये कहा करते थे कि हालात पर सख़्त निगरानी की ज़रूरत है. वरना भीतरी ख़तरा तबाह कर देगा.
शी जिनपिंग अक्सर अपने नागरिकों को सीख देते हैं कि वो चीन के अपने जीवन मूल्य को अपनाएं. पश्चिमी सोच ने प्रभावित न हों.
क्योंकि अगर हम दूसरों की नक़ल करेंगे, तो अपनी पहचान खो बैठेंगे.
शी जिनपिंग के राज में मुसलमान, ईसाई, मज़दूर कार्यकर्ता, ब्लॉगर, पत्रकार, महिलावादी और वक़ील, सब को जेल भेजा गया है.
वो आंदोलन करने वालों को सख़्त नापसंद करते हैं. वो खुलकर सरकार और पार्टी के ख़िलाफ़ बोलने वालों को क़तई बर्दाश्त नहीं करते.
कैसा देश हो
कई बार तो ऐसे लोगों को सज़ा सुनाने से पहले टीवी पर सीधा प्रसारण करके दिखाया गया. उनके विचारों को नीचा दिखाने के लिए मुक़दमों का सीधा प्रसारण हुआ.
जहां ऐसे लोगों ने अपनी ग़लतियां पूरे देश के सामने मानीं. पार्टी के आगे अपना सिर झुकाया. ऐसे लोगों ने कई बार टीवी पर ये माना कि वो दुश्मन की चाल में फंस गए थे.
मोहरा बन गए थे. ऐसे लोगों को बार-बार देश के लिए ख़तरा बताया गया. बाग़ी नेता शू झियोंग की गिरफ़्तारी से पहले पार्टी के नेताओं के बीच एक दस्तावेज़ बांटा गया था.
इसमें बताया गया था कि प्रेस की आज़ादी, आम लोगों के अधिकारों और स्वतंत्र अदालतों जैसे मुद्दों पर कुछ नहीं बोलना है.
शी जिनपिंग अक्सर अपने देश के लोगों को सलाह देते हैं कि वो देश से प्यार करें. अपनी मातृभूमि से मोहब्बत करें. चीन के कम्युनिस्ट इंकलाब का सम्मान करें.
चीन की संस्कृति और जीवन मूल्यों को जानें-समझें.
वो लोगों को दो बातें हमेशा याद रखने को कहते हैं पहला तो चीन के गौरव की दोबारा वापसी और दूसरा चीन के सपनों की.
चीन में ये बातें आपको रेलवे स्टेशनों से लेकर सड़कों पर लगे बैनर-पोस्टर पर लिखी देखने को मिल सकती हैं.
इन्हें टीवी सिरीज़, ऑनलाइन एनिमेशन और मोबाइल ऐप के ज़रिए भी लोगों तक पहुंचाया जाता है. ये नारे सब जगह हैं.
खतरा
सदियों तक चीन के बादशाहों ने देश की ताक़त को दो तरीक़े से पेश करने की कोशिश की है. एक तरफ़ तो चीन की सामरिक ताक़त. दूसरी तरफ़ उसकी सॉफ्ट पावर.
वो दोनों के बीच संतुलन बनाने की कोशिश करते आए थे. चीन के कम्युनिस्ट इतिहास का जश्न मनाते वक़्त शी जिनपिंग भी यही करते हैं.
एक तरफ़ तो वो चेयरमैन माओ की ख़ूनी कम्युनिस्ट क्रांति के सामने सिर झुकाते हैं. वहीं दूसरी तरफ़ वो देंग शियाओ पिंग की आर्थिक क्रांति के आगे भी शीश नवाते हैं.
यानी वो मार्क्सवाद का सम्मान करते हैं. साथ ही आर्थिक खुलेपन का भी जश्न मनाते हैं. उनके चीनी ख़्वाब का मतलब है-एक मज़बूत चीन.
लेकिन इस ख़्वाब से इतर शू झियोंग की आज़ादी का ख़्वाब, देश के लिए ख़तरा माना जाता है. शू को चार साल की क़ैद के बाद रिहा कर दिया गया था.
उनका तब से कोई अता-पता नहीं है.
चुनौतियां
चीन के बारे में सिंगापुर के महान नेता ली कुआन यू ने कहा था कि, 'वो दुनिया के इतिहास के सबसे बड़े खिलाड़ी हैं'.
2012 में सत्ता में आने के साथ ही शी ने चीन को सबसे बड़ा खिलाड़ी बनाने की ठान ली थी.
चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की सौवीं सालगिरह यानी 2021 तक चीन आर्थिक तरक़्क़ी के मामले में औसत देश हो जाएगा.
वहीं चीन में कम्युनिस्टों के सत्ता में आने के सौ साल पूरे होने पर यानी 2049 तक चीन पूरी तरह से विकसित, अमीर और ताक़तवर देश बन जाएगा.
जल्द ही चीन की अर्थव्यवस्था अमरीका से 40 फ़ीसद ज़्यादा बड़ी हो जाएगी.
2049 तक ख़रीदने की ताक़त के मामले में चीन की अर्थव्यवस्था, अमरीका से तीन गुना बड़ी होगी. चीन और शी जिनपिंग के लिए पिछले चार दशक एकदम अनूठे रहे हैं.
जब 1972 में अमरीका के राष्ट्रपति चेयरमैन माओ से मिले थे, तो उस वक़्त शी जिनपिंग एक गुफा में रहा करते थे. वो ढिबरी की रौशनी में पढ़ाई किया करते थे.
उस वक़्त रिचर्ड निक्सन ने कहा था कि, 'भविष्य को देखते हुए हम चीन को बाक़ी देशों से अलग करके नहीं रख सकते.
वरना वो अलग थलग होकर अपने ख्वाब अपने आप में बुनता रहेगा. दूसरों से नफ़रत को दिल में बैठाता रहेगा. अपने पड़ोसियों को धमकाता रहेगा'.
मौका
जब पश्चिम ने अपने दरवाज़े चीन के लिए खोले तो शी की पीढ़ी के कई लोगों ने अपना देश छोड़ने का फ़ैसला किया था.
लेकिन शी को इस बात का एहसास था कि अपना देश छोड़कर जाने पर वो कुछ ख़ास नहीं कर पाएंगे.
वो विदेशियों से बड़े आत्मविश्वास से मिलते हैं. वो कहते हैं कि, 'चीन क्रांति का निर्यात नहीं करता.
भुखमरी और ग़रीबी का निर्यात नहीं करता. चीन आप को कोई सिरदर्द नहीं देता. आपको और क्या चाहिए.'
शी को विरासत में जो चीन मिला, वो ताकतवर था. वो दुनिया के मंच पर अपनी ताक़त का मुजाहिरा करना चाहता था. चीन को शी जिनपिंग ने वो मौक़ा दिया है.
विवादित दक्षिणी चीन सागर में बनावटी द्वीप बनाने से लेकर बेल्ट ऐंड रोड प्रोजेक्ट तक उन्होंने अपने देश को ये मौक़े दिए हैं.
वो उस कहावत पर अमल कर रहे हैं कि जब तक आप के पास अच्छा मौक़ा न हो, आप को अपनी ताक़त छुपाकर रखनी चाहिए.
चीन ने ट्रंप के पेरिस जलवायु समझौते और व्यापार समझौतों से हटने का भी फ़ायदा उठाया है.
शी ने इस समझौतों को लेकर ख़ुद को दुनिया के बड़े नेता के तौर पर पेश किया है.
हाल ही में एक टीवी डॉक्यूमेंट्री में उनकी विदेश नीति को करिश्मा बताकर पेश किया गया था.
एक और टीवी सिरीज़ में उनके भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ अभियान का बखान किया गया है. लेकिन शी के सामने और भी बड़ी चुनौतियां हैं.
चमक-दमक के पर्दे के पीछे बड़ी आर्थिक दिक़्कतें हैं. चीन की विकास की रफ़्तार धीमी हो रही है. सरकार पर क़र्ज़ बढ़ रहा है.
बहुत से अर्थशास्त्री चेतावनी दे रहे हैं कि चीन के लिए सुधारों का वक़्त तेज़ी से ख़त्म हो रहा है.
वैचारिक एकता की लोहे की दीवार के पीछे चीन को लेकर तमाम अलग-अलग ख़यालत भी आवाज़ उठा रहे हैं.
अच्छी बात ये है कि शी से पहले भी चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने बहुत सी चुनौतियों का सामना किया है. उन पर जीत हासिल की है.
माओ के दौर में अकाल से लेकर सांस्कृतिक क्रांति तक की चुनौतियां झेलीं. तो, 1989 में लोकतांत्रिक आंदोलन को झेला.
शी जिनपिंग के राज में ज़ोर-ज़ुल्म पर आर्थिक तरक़्क़ी का मुलम्मा चढ़ाया गया है. उन्होंने बहुत से नेताओं को जेल भेजा. भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ कार्रवाई की.
विरोधियों के सुर दबाए. चेयरमैन माओ के बाद ऐसा पहली बार देखा जा रहा है कि चीन का भविष्य किसी एक शख़्स पर इस तरह निर्भर है.