मध्य एशिया में US के खिलाफ नया फ्रंट खोलेंगे जिनपिंग और पुतिन, नये ब्लॉक से भारत को कितना खतरा?
चीन की सरकारी न्यूज एजेंसी सिन्हुआ न्यूज ने सोमवार 12 सितंबर की शाम प्रकाशित एक लेख में कहा है कि, शी जिनपिंग की दो मध्य एशियाई देशों की यात्रा से पता चलेगा, कि चीन ने एक "नए युग" की शुरुआत की है।
वॉशिंगटन/नई दिल्ली, सितंबर 14: चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए गुरुवार को समरकंद (उज्बेकिस्तान) में उतरने से पहले कजाकिस्तान का दौरा करेंगे, जनवरी 2020 में वैश्विक महामारी कोरोना की शुरुआत के बाद से ये पहला मौका होगा, जब शी जिनपिंग चीन के बाहर कदम रखेंगे। चीन के विदेश मंत्रालय के मुताबिक, चीन, रूस, भारत और मध्य एशियाई नेता गुरुवार और शुक्रवार को उज्बेकिस्तान में एससीओ शिखर सम्मेलन में आमने-सामने की बैठक करेंगे। बैठक का उद्देश्य संगठन के सदस्यों को एक पश्चिमी विरोधी, नए कोल्ड वार ब्लॉक का निर्माण करना है, जिसका मदसक अमेरिका को काउंटर करने होगा। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं, कि क्या भारत ऐसे किसी गुट का गुस्सा बनेगा और चीन की इस गुटबाजी से भारत को कितना नुकसान होगा?
जिनपिंग की गुटबाजी में पुतिन का साथ
रूसी राष्ट्रपति भवन क्रेमलिन ने कहा है कि, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन यूक्रेन की स्थिति पर चर्चा करने के लिए बैठक में शी जिनपिंग से मिलेंगे। यह दोनों नेताओं के बीच यूक्रेन युद्ध के बाद पहली बार आमने-सामने की बैठक होगी। इससे पहले शी जिनपिंग और व्लादिमीर पुतिन यूक्रेन युद्ध से ठीक पहले इस साल 4 फरवरी को बीजिंग में मिले थे, जब चीन की राजधानी में शीतकालीन ओलंपिक खेलों का आयोजन किया गया था और उस बैठक के दौरान शी जिनपिंग और व्लादिमीर पुतिन की तरफ से जो संयुक्त बयान जारी किया गया था, उसमें इस बात की प्रतिज्ञा ली गई थी, कि दोनों देशों की दोस्ती की कोई सीमा रेखा नहीं होगी। लेकिन, इस बार एससीओ शिखर सम्मेलन में, जिसका एक प्रमुख हिस्सा भारत भी है, उसमें ऊर्जा सहयोग पर दृढ़ता से ध्यान केंद्रित करने की उम्मीद है, क्योंकि इस बार पूरी उम्मीद है, कि ईरान को एससीओ को पूर्ण सदस्यता दे दी जाएगी, जो चीन और रूस के साथ साथ भारत का भी करीबी है। वहीं, मिस्र, कतर और सऊदी अरब को भी एससीओ का भागीदार बनाया जाएगा। यानि, तेल उत्पादन करने वाले सभी प्रमुख देश एक छतरी के नीचे होंगे और चीनी मीडिया ने नोट किया है, कि बीजिंग ईरान और रूस से तेल और गैस के आयात को बढ़ावा देना चाहता है, जिनपर अमेरिका और पश्चिमी देश प्रतिबंध लगा चुके हैं। यानि, एससीओ से एक नये गुट का निकलना तय माना जा रहा है, जिसका अगुआ चीन होगा और जो सीधे तौर पर अमेरिका के खिलाफ होगा।
ऊर्जा पर अमेरिका को घेरने की नीति
सऊदी अरब ने अमेरिका के उस प्रस्ताव को बार बार ठुकराया है, जिसमें तेल का उत्पादन बढ़ाने की अपील की गई थी। वहीं, इस साल अगस्त महीने में शी जिनपिंग भी सऊदी अरब का दौरा करने वाले थे, लेकिन चीन में कोविड के बढ़ते मामलों की वजह से उनका दौरा स्थगित हो गया था, लेकिन चीनी मीडिया ने संकेत साफ कर दिया है, कि चीन की नीति ऊर्जा समस्याओं का समाधान करना है, जबकि ईरान के राष्ट्रपति ने भारत से अपील की है, कि वो ईरान के साथ भी रूस वाली नीति का ही पालन करे और जैसे भारत अमेरिकी प्रतिबंधों को दरकिनार कर रूस से तेल खरीदता है, वैसे ही ईरान से भी तेल खरीदना शुरू कर दे। पीएम मोदी और ईरान के राष्ट्रपति की द्विपक्षीय बैठक भी समरकंद में एससीओ शिखर सम्मेलन की बैठक के बाद होनी है, लिहाजा अब भारत को तय करना है, कि वो अपने हितों को ध्यान में रखते हुए ईरान से तेल खरीदना शुरू करता है या नहीं, लेकिन चीन और रूस अब पूरी तरह से एक साथ आ गये हैं।
'नये युग की शुरूआत करेगा चीन'
चीन की सरकारी न्यूज एजेंसी सिन्हुआ न्यूज ने सोमवार 12 सितंबर की शाम प्रकाशित एक लेख में कहा है कि, शी जिनपिंग की दो मध्य एशियाई देशों की यात्रा से पता चलेगा, कि चीन ने एक "नए युग" की शुरुआत की है और एक साझा भविष्य वाले राष्ट्रों के समुदाय के निर्माण में मानवता के लिए "नई यात्रा" शुरू की गई है। इस लेख में कहा गया है कि, शी जिनपिंग और अन्य नेता शिखर सम्मेलन में चर्चा करेंगे, कि कैसे वैश्विक चुनौतियों का संयुक्त रूप से समाधान किया जाए और सुरक्षा और विकास को बढ़ावा दिया जाए। लेख में यह भी कहा गया है कि, इस साल की घटना एससीओ चार्टर पर हस्ताक्षर की 20 वीं वर्षगांठ और एससीओ सदस्य राज्यों के दीर्घकालिक अच्छे-पड़ोसी, मित्रता और सहयोग पर संधि पर हस्ताक्षर की 15 वीं वर्षगांठ का प्रतीक है और चीन विभिन्न बिग-टिकट परियोजनाओं और अन्य पहलों के माध्यम से उन समझौतों पर खरा उतर रहा है जो ऐतिहासिक रूप से रूस के प्रभाव क्षेत्र का हिस्सा रहे हैं।
सेंट्रल एशिया चीन के लिए कितना अहम?
शी जिनपिंग ने इससे पहले साल 2013 और 2016 में उज़्बेकिस्तान का दौरा किया था और 2016 में चीन-उज़्बेकिस्तान संबंधों को एक व्यापक रणनीतिक साझेदारी में अपग्रेड किया था। उसी वर्ष, एंग्रेन-पैप रेलवे लाइन, जो किर्गिस्तान के माध्यम से चीन के काशगर को उज़्बेकिस्तान के ताशकंद से जोड़ती है, उसका परिचालन शुरू किया गया था। यानि, मध्य एशिया में चीन काफी तेजी के साथ अपने पैर पसार रहा है, जो अमेरिका के साथ साथ भारत के लिए भी एक मुसीबत बन सकता है, क्योंकि मध्य एशियाई देशों के साथ भारत भी अपने संबंधों को विस्तार देना चाहता है। इसके साथ ही चीन ने हाल ही में पेंगशेंग औद्योगिक पार्क और मिंग युआन सिलु कॉर्प द्वारा वित्त पोषित प्लेट ग्लास निर्माण और उज्बेकिस्तान में डीप-प्रोसेसिंग सुविधा सहित कई परियोजनाएं शुरू की हैं। एससीओ के महासचिव झांग मिंग ने कहा कि, "एससीओ के ढांचे के भीतर, सदस्य राज्य महत्वपूर्ण आर्थिक विकास, लोगों के जीवन में महान सुधार और एक दूसरे के साथ घनिष्ठ संबंधों को बनता हुआ देख रहे हैं, जिसने संगठन के बाहर के देशों को आकर्षित किया है।"
पश्चिम के खिलाफ बन रहा है एससीओ?
उन्होंने कहा कि, एससीओ हमेशा सच्चे बहुपक्षवाद के लिए प्रतिबद्ध रहा है और आधिपत्य, दबंग और बदमाशी की रणनीति का विरोध करता है, और कभी भी "गुट" बनाने का प्रयास नहीं करेगा। उनका इशारा सीधे तौर पर पश्चिम की तरफ था, जिसने सैन्य संगठन नाटो बना रखा है। पिछले साल, एससीओ ने अपने परमाणु कार्यक्रम पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिबंधित होने के बावजूद ईरान को एक पूर्ण सदस्य राज्य के रूप में स्वीकार करने की प्रक्रिया शुरू की थी। हालांकि, तेहरान अभी भी परमाणु समझौते पर अमेरिका के साथ एक नए डील की उम्मीद कर रहा है, खासकर जब यूरोप रूस के गैस शिपमेंट को रोकने के कारण ऊर्जा संकट का सामना कर रहा है। 24 अगस्त को, ईरानी तेल मंत्री जवाद ओजी ने कहा था कि, तेहरान इस सर्दी में यूरोप को तेल और गैस की आपूर्ति कर सकता है ताकि रूस के रुके हुए शिपमेंट को पूरा किया जा सके। वहीं, 25 अगस्त को एक चीनी लेख में कहा गया था कि, यूरोप को सर्दियों के मौसम से गुजरने के लिए अन्य स्रोतों, शायद ईरान से प्रति माह कम से कम 20 मिलियन बैरल तेल की तलाश करनी होगी। लिहाजा, ये देखना काफी दिलचस्प होगा, कि क्या अमेरिका ईरानी तेल से प्रतिबंध हटाता है या नहीं और दोनों ही सूरत में चीन अपना वर्चस्व दिखाने में कामयाब साबित होगा।
ईरान पर अमेरिका को करना होगा फैसला?
हालांकि, अगर ग्रीस, तुर्की, इटली और स्पेन जैसे देश ईरान से तेल खरीदने को हरी झंडी भी दिखाते हैं, फिर भी ईरान को अपने तेल का प्रोडक्शन शुरू करने में कम से कम 6 महीने का वक्त लगेगा, क्योंकि 2018 में अमेरिका ने जब ईरान पर प्रतिबंध लगाए थे, उसके बाद ईरान को अपनी कई तेल फैसिलिटी को बंद करने के लिए मजबूर होना पड़ा था। वहीं, एक अन्य चीनी मीडिया लेख में कहा गया है कि, चीन ने अमेरिकी प्रतिबंधों की अवहेलना की है और पिछले दो वर्षों में ईरान से तेल खरीदना जारी रखा है।
चीन को हुआ भारी फायदा
इसने कहा कि हाल के वर्षों में डिस्काउंट पर ईरानी तेल खरीदकर चीन को काफी फायदा हुआ है, क्योंकि अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण ईरान की करेंसी की वैल्यू काफी कम हो गई है। लेख में यह भी कहा गया है कि, ईरान का तेल उत्पादन 2018 में 2.5 मिलियन बैरल के शिखर से गिरकर लगभग 1 मिलियन बैरल प्रति दिन हो गया है। और चीन ने मार्च में 30 मिलियन बैरल कच्चे तेल का आयात किया था, जिसका अर्थ है कि ईरान के निर्यात किए गए लगभग सभी तेल चीन को भेज दिए गए थे। यानि, ईरान के साथ साथ चीन ने रूस और मध्य एशियाई देशों के साथ मिलकर एक नई लॉबी बनाने की कोशिश की शुरूआत कर दी है, लिहाजा अमेरिका के खिलाफ इस गुट का होना तय है, लिहाजा भारत की सेन्ट्रल एशिया में चीन को काउंटर करने की विदेश नीति क्या होगी, ये देखने वाली बात होगी।
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