टोक्यो ओलंपिक: दर्शकों का ना होना खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर कितना असर डाल रहा है?
टोक्यो ओलंपिक में मैदान है, खेल है, खिलाड़ी हैं, लेकिन देखने वाले दर्शक नहीं हैं. क्या इसका प्रदर्शन पर असर हो रहा है.
टोक्यो ओलंपिक में ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ हाफ़ टाइम तक का मैच होने तक ये अंदाज़ा हो गया था कि भारत की हार होने वाली है. भारतीय टीम 0-4 से पीछे चल रही थी, लेकिन जैसा कि कहते हैं कि प्रशंसक कभी हार नहीं मानते. पहले हाफ़ के तुरंत बाद भारत के दिलप्रीत सिंह ने हरमनप्रीत सिंह के लंबे शॉट को गोल में बदल दिया.
तभी तिरंगा हाथ में लिए एक शख़्स ऊपर से चिल्लाया, "गोल, ग्रेट शॉट, इंडिया."लेकिन, दुख की बात ये थी कि स्टेडियम में वो अकेले शख़्स थे जो भारत का हौसला बढ़ा रहे थे और कुछ ऐसी ही स्थिति ऑस्ट्रेलिया के साथ भी थी. तो यहाँ कुछ ऐसा ही नज़ारा है. चाहे कोई भी ग्राउंड हो या कोई भी खेल, देखने वाला कोई नहीं. सिर्फ़ खिलाड़ी, उनका सपोर्ट स्टाफ़, मीडिया आदि कुछ ही लोगों की मौजूदगी. इसके पीछे वजह ये है कि कोरोना संक्रमण से सावधानी के चलते दर्शकों को ग्राउंड पर आने की इजाज़त नहीं है. इसमें कोई कुछ नहीं कर सकता.
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मैच का जाना-पहचाना माहौल नहीं
तो मैं सोच रहा था कि बिना दर्शक, बिना तालियों और हौसला बढ़ाते शोर के बिना क्या खिलाड़ियों में उतनी एनर्जी आ पाएगी. वहाँ पर ना कोई सॉफ्ट ड्रिंक बेचने वाला था और ना आइसक्रीम ही मिल रही थी. दक्षिणी और उत्तरी पिच के बीच कुछ दुकानें बनाई गई थीं जिन्हें नाम दिया गया था, "आधिकारिक दुकानें टोक्यो 2020". उन्होंने बच्चों की देखभाल के कमरे और प्रार्थना के कमरे भी बनाए हुए थे, लेकिन वहाँ कोई नहीं था. यहाँ तक कि उनके बहुत से शौचालय भी बिना इस्तेमाल के ही रह गए थे.
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'दर्शक होते तो इतनी बुरी हार नहीं होती'
चलिए ओम प्रकाश पर आते हैं, जो स्टेडियम में मौजूद एकमात्र प्रशंसक हैं. ओम प्रकाश महाराष्ट्र में नागपुर के रहने वाले हैं. वह कहते हैं, "मैंने हमेशा सोचा था कि ये अब तक सबसे बेहतरीन ओलंपिक होने वाला है. यह सिर्फ़ इसलिए हो रहा है क्योंकि वो इसके आयोजन को लेकर प्रतिबद्ध थे, लेकिन बिना दर्शकों के कोई मज़ा नहीं है.""भारतीय टीम ऑस्ट्रेलिया से 7-1 से हार गई, लेकिन अगर स्टेडियम में टीम के समर्थक होते तो मुझे लगता है कि इतनी बुरी हार नहीं होती. मैंने देखा है कि खिलाड़ी प्रशंसकों से मिले समर्थन से ग़जब की वापसी करते हैं."यहाँ तक कि खिलाड़ी भी इस कमी को महसूस कर रहे होंगे. मैंने भारतीय हॉकी टीम के कोच ग्राहम रीड से यही सवाल पूछा तो उन्होंने कहा, "ये अजीब है लेकिन ये कोई मसला नहीं है. मुझे लगता है कि आप हज़ारों के सामने भी खेल सकते हैं और बिना दर्शकों के भी. अलग-अलग देशों में कभी-कभी ऐसा होता है, लेकिन हां यह निराशाजनक है."
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