सऊदी अरब: क्राउन प्रिंस को लेकर इतने नरम क्यों पड़े राष्ट्रपति बाइडन
तेल के बदले सुरक्षा का समीकरण दोनों के बीच इस क़दर मज़बूत है कि उस पर 9/11 के हमलों का भी असर नहीं पड़ा जबकि विमान हाइजैक करने वाले ज़्यादातर लोग सऊदी अरब के नागरिक थे.
अमेरिका के राष्ट्रपति बनने से पहले जो बाइडन पत्रकार जमाल ख़शोज्जी की हत्या में सऊदी अरब की भूमिका को लेकर काफ़ी सख़्त थे. ऐसा लगा था कि वे राष्ट्रपति बनने के बाद भी इस मामले में सऊदी अरब को लेकर कोई नरमी नहीं दिखाएंगे.
राष्ट्रपति के तौर पर उन्होंने फ़रवरी महीने में उस अमेरिकी खुफ़िया रिपोर्ट को जारी करने की अनुमति दी थी, जिसमें हत्या के मामले में सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन-सलमान पर संदेह जताया गया था.
हालाँकि, क्राउन प्रिंस ने हत्या में किसी भी तरह की भूमिका होने से इनकार कर दिया था.
लेकिन, राष्ट्रपति पद संभालने के छह महीनों से भी कम समय में बाइडन प्रशासन ने क्राउन प्रिंस सलमान के छोटे भाई और उप रक्षा मंत्री प्रिंस ख़ालिद बिन सलमान का ज़ोरदार स्वागत किया है.
अक्टूबर 2018 में ख़ाशोज्जी की हत्या के बाद सऊदी अरब से अमेरिका में ये पहली उच्च स्तरीय यात्रा है.
लंदन के थिंक-टैंक रॉयल यूनाइटेड सर्विसेज इंस्टिट्यूट में असोसिएट फेलो माइकल स्टिफेंस कहते हैं, ''क्राउन प्रिंस सलमान और सऊदी अरब की छवि फिर से बानने के लिए (रॉयल कोर्ट में एमबीएस सर्कल के अंदर) अधिक व्यापक रूप से एक ठोस प्रयास किया गया है. सऊदी अरब आर्थिक अवसरों पर ज़्यादा ध्यान दे रहा है और क्षेत्रीय सुरक्षा को लेकर दिए जाने वाले उग्र बयानों को कम कर दिया गया है.''
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क्या क्राउन प्रिंस को मिल गई माफ़ी?
क्या इसका ये मतलब है कि पश्चिम ने क्राउन प्रिंस सलमान को माफ़ कर दिया है?
नहीं, और खासतौर पर मानवाधिकार संस्थाओं ने तो बिल्कुल नहीं. इसमें संयुक्त राष्ट्र भी शामिल है जो लगातार मोहम्मद बिन सलमान के ख़िलाफ़ पूर्ण स्वतंत्र जाँच की मांग करता रहा है.
2018 में तुर्की के इस्तांबुल स्थिति सऊदी दूतावास में क्राउन प्रिंस सलमान के आलोचक रहे पत्रकार जमाल ख़ाशोज्जी की हत्या कर दी गई थी.
इसके लिए 15 सऊदी अधिकारी दो सरकारी जेट्स में इस्तांबुल पहुँचे थे, जहाँ उन्होंने जमाल ख़ाशोज्जी का इंतज़ार किया.
जैसे ही जमाल ख़ाशोज्जी सऊदी दूतावास में पहुंचे तो दम घोटकर उनकी हत्या कर दी गई और उनके शव के टुकड़े करके उसे नष्ट कर दिया गया.
कठोर हक़ीक़त
प्रिंस खालिद बिन सलमान ख़ाशोज्जी की हत्या के दौरान अमेरिका में सऊदी अरब के राजदूत थे. उन्होंने शुरुआत में इस बात को 'बिल्कुल झूठ और आधारहीन' बताया था कि ख़ाशोज्जी की हत्या सऊदी दूतावास में हुई है.
लेकिन, जब तुर्की ने पूरी दुनिया को बताया कि सऊदी दूतावास में क्या हुआ था तो सऊदी नेतृत्व को पीछे हटना पड़ा. उन्होंने इसे 'एक ग़लत अभियान' बताया और एक ख़ुफ़िया जाँच के बाद छोटे-मोटे अधिकारियों को सज़ा दे दी गई.
लेकिन, अमेरिका की सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी (सीआईए) 'उच्च स्तरीय जाँच के साथ' इस निष्कर्ष पर पहुंची थी कि क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन-सलमान की जानकारी के बिना ये अभियान नहीं चलाया जा सकता था.
इसके बाद अमेरिका ने मानवाधिकार से जुड़े मामलों में 70 सऊदी अधिकारियों पर प्रतिबंध लगा दिए और पश्चिमी देशों के नेताओं ने क्राउन प्रिंस सलमान से सार्वजनिक रूप से दूरी बनानी शुरू कर दी.
लेकिन, अधिकतर पश्चिमी सरकारें सऊदी अरब को अब भी एक महत्वपूर्ण सहयोगी के तौर पर देखती हैं. ईरान के विस्तार के ख़िलाफ़ एक मजबूत दीवार, एक महत्वपूर्ण व्यापारिक भागीदार, हथियारों का एक बड़ा ख़रीदार और तेल बाज़ार पर पकड़ रखने वाला एक अहम सहयोगी.
यही वो मसले हैं जिन पर असल राजनीति होती है.
क्राउन प्रिंस से जुड़े सूत्रों के मुताबिक़ प्रिंस सलमान से दूरी बनाने के पश्चिमी सरकारों के आधिकारिक रुख़ और सऊदी अरब के साथ उनके द्विपक्षीय समझौते की सच्चाई में एक बड़ा अंतर है.
यही वजह है कि क्राउन प्रिंस के सबसे क़रीबी रिश्तेदार का पिछले हफ़्ते अमेरिका में स्वागत किया गया.
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सऊदी अरब से दूरी आसान नहीं
अपनी दो दिवसीय यात्रा के दौरान प्रिंस ख़ालिद बिन सलमान ने अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन, राष्ट्रपति के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सॉलिविन, रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन और चेयरमैन ऑफ़ द ज्वाइंट चीफ़्स जनरल मार्क मिले से मुलाक़ात की.
भले ही प्रिंस खालिद के दौरे की पहले से घोषणा ना की गई हो लेकिन ये सूची ख़ुद इस बात के संकेत देती है कि सऊदी अरब को अमेरिका कितनी अहमियत देता है.
इन बैठकों के दौरान कई मुद्दों पर चर्चा की गई, जैसे- यमन में युद्ध. यमन में ईरान समर्थित हुती विद्रोहियों को हराने में विफल रहने के बाद सऊदी अरब यहाँ से बाहर निकलने की कोशिश कर रहा है.
इसके अलावा, ऊर्जा, तेल बाज़ार और ईरान के परमाणु समझौते का अस्थायी तौर पर फिर से शुरू होना आदि मसलों पर भी बात की गई.
अफ़ग़ानिस्तान भी एक मुद्दा रहा, जहाँ से अमेरिकी सेना वापस आ रही है और अमेरिका को डर है कि कहीं तालिबानी शासन के बीच अल-क़ायदा को मज़बूत होने का मौक़ा ना मिल जाए.
सऊदी अरब को जानने वाले राजनयिकों का मानना है कि कभी-कभी इस देश से निपटना मुश्किल हो सकता है. पश्चिमी देशों में क्राउन प्रिंस को लेकर संदेह शायद आजीवन चलेगा.
माइकल स्टीफन्स कहते हैं, ''एमबीएस के लिए स्थितियां अब भी आसान नहीं हैं. पश्चिमी देशों को पूरी तरह से शामिल होने में और समय लगेगा लेकिन उनके लिए स्थितियां बेहतर हो रही हैं कभी ना कभी वो फिर से पश्चिमी देशों के दौरे पर आ पाएंगे.''
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