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पाकिस्तान के पास अब भी भारत से ज़्यादा परमाणु हथियार

आज दुनिया के नौ देशों के पास कुल 13,000 से ज़्यादा परमाणु हथियार हैं. इतना ही नहीं, परमाणु हथियारों के मामले में भारत के पड़ोसी देश चीन और पाकिस्तान उससे कहीं आगे हैं. ये आँकड़े कितने ख़तरनाक हैं?

By BBC News हिन्दी
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हिरोशिमा में परमाणु हमले के बाद मलबे में बैठकर रोती एक बच्ची. रिपोर्ट्स के मुताबिक़ बम गिरने के बाद करीब 80 हज़ार लोगों की तुरंत मौत हो गई थी और करीब सभी इमारतें तबाह हो गई थीं.
Bettmann/Getty Images
हिरोशिमा में परमाणु हमले के बाद मलबे में बैठकर रोती एक बच्ची. रिपोर्ट्स के मुताबिक़ बम गिरने के बाद करीब 80 हज़ार लोगों की तुरंत मौत हो गई थी और करीब सभी इमारतें तबाह हो गई थीं.

6 अगस्त 1945

9 अगस्त 1945

ये दो वो तारीख़ें हैं, जो परमाणु हथियारों से दुनिया के अस्तित्व को ख़तरे पर ध्यान दिलाती हैं.

आज से लगभग 76 साल पहले साल 1945 में दुनिया में पहली और आख़िरी बार किसी देश पर परमाणु बम गिराया गया था.

अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा पर 6 अगस्त और नागासाकी पर 9 अगस्त को परमाणु बम गिराए थे.

हिरोशिमा बम हमले में घायल एक शख़्स अपनी पीठ के ज़ख़्म दिखाते हुए
Keystone/Hulton Archive/Getty Images
हिरोशिमा बम हमले में घायल एक शख़्स अपनी पीठ के ज़ख़्म दिखाते हुए

शीत युद्ध के बाद पहली बार...

परमाणु बम मानवता को कैसे तहस-नहस कर सकते हैं, हिरोशिमा और नागासाकी आज भी इसकी गवाही देते हैं. वहाँ के लोग आज 76 साल बाद भी परमाणु हमले के असर से उबर नहीं पाए हैं.

दूसरी तरफ़, आज उस तबाही के 76 साल बाद भी दुनिया के नौ देशों के पास 13,000 से ज़्यादा परमाणु हथियार हैं, जो मौजूदा समय में कहीं ज़्यादा तबाही मचाने की क्षमता रखते हैं.

स्वीडन के थिंक टैक 'स्टॉकहोम इंटरनैशनल पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट' (सिप्री) ने सोमवार को अपनी वार्षिक रिपोर्ट जारी की. इसमें परमाणु हथियारों से जुड़ी कई अहम जानकारियाँ सामने आई हैं.

रिपोर्ट के अनुसार, शीत के युद्ध के समापन (1990) के बाद से यह पहली बार है जब दुनिया में परमाणु हथियार बमों में कमी का सिलसिला थम गया है.

रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि परमाणु हथियारों के मामले में भारत के पड़ोसी देश चीन और पाकिस्तान उससे कहीं आगे हैं.

परमाणु शक्ति संपन्न देश
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परमाणु शक्ति संपन्न देश

सिप्री की रिपोर्ट में कुछ और महत्वपूर्ण बातें इस तरह हैं:

•साल 2011 की शुरुआत में परमाणु शक्ति से लैस नौ देशों (अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन, फ़्रांस, इसराइल, पाकिस्तान, भारत और उत्तर कोरिया) के पास कुल मिलाकर लगभग 13,080 परमाणु हथियार थे.

•इनमें से 3,825 परमाणु हथियार तुरंत किसी भी तरह के ऑपरेशन के लिए तैयार रखे गए हैं. पिछले साल इनकी संख्या 3,720 थी.

•इन 3,825 हथियारों में से करीब 2,000 परमाणु हथियार अमेरिका और रूस के हैं, जिन्हें हाई अलर्ट मोड में रखा गया है.

•इसराइल के पास करीब 90 और उत्तरी कोरिया के पास 40-50 परमाणु हथियार हैं.

•उत्तर कोरिया ने पिछले साल के मुकाबले करीब 10 नए परमाणु हथियार बनाए हैं और मौजूदा वक़्त में उसके पास 40-50 परमाणु हथियार हैं.

•चीन ने पिछले साल की तुलना में 30 नए परमाणु हथियार बनाए हैं और अब पास करीब 350 परमाणु हथियार हो गए हैं.

•पाकिस्तान ने पिछले साल के मुकाबले पाँच नए परमाणु हथियार बनाए है और उसके पास अब करीब 165 परमाणु हथियार हैं.

•भारत ने पिछले साल छह नए परमाणु हथियार बनाए और अब उसके पास करीब 156 परमाणु हथियार हो गए हैं.

परमाणु हथियार: भारत, पाकिस्तान और चीन की स्थिति
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परमाणु हथियार: भारत, पाकिस्तान और चीन की स्थिति

चीन का ख़तरा

यह रिपोर्ट जारी होने के बाद सबसे ज़्यादा चर्चा चीन की हो रही है. भारतीय संदर्भ में भी और वैश्विक संदर्भ में भी.

भारतीय परिप्रेक्ष्य में देखें तो चीन से सीमा विवाद अब भी जारी है और संयोगवश सिप्री की यह रिपोर्ट गलवान घाटी में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच हुई हिंसक संघर्ष के एक साल पूरे होने पर आई है.

इस संघर्ष में भारत के 20 सुरक्षाबलों की जान गई थी. तब से लेकर अब तक दोनों देशों के रिश्ते सामान्य नहीं हो पाए हैं.

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देखें तो दुनिया के कई ताकतवर देश चीन को चौतरफ़ा घेरने की कोशिश कर रहे हैं.

चाहे जी-7 सम्मेलन हो, नेटो नेताओं की बैठक हो या फिर क्वाड देशों की मीटिंग. हर मंच पर चीन के लगातार बढ़ते दबदबे से पैदा होने वाले ख़तरों पर बात की जा रही है.

वहीं, चीन सबका आक्रामक होकर जवाब दे रहा है. फिर चाहे जी-7 देशों को उसका जवाब कि 'वो दौर अब बीत गया जब छोटे समूह दुनिया की किस्मत का फ़ैसला करते थे' या फिर नेटो के सदस्य देशों से यह कहना कि उसकी नीति 'सुरक्षात्मक प्रकृति' की है.

भारत के लिए चुनौतियाँ पड़ोसी देश पाकिस्तान को लेकर भी कम नहीं हैं.

पाकिस्तान के साथ भले ही नियंत्रण रेखा पर अभी सीज़फ़ायर चल रहा हो लेकिन तनाव अचानक कब बढ़ जाएगा, इस बारे में कुछ नहीं जा सकता.

यह भी पढ़ें: जब इसराइली लड़ाकू विमानों ने इराक़ का परमाणु रिएक्टर तबाह किया

चीन के परमाणु हथियार
GREG BAKER/AFP via Getty Images
चीन के परमाणु हथियार

भारत के लिए ख़तरे

ऐसे में सिप्री की रिपोर्ट आने के बाद ये सवाल लगातार उठ रहे हैं कि परमाणु हथियारों की संख्या बढ़ाने की ऐसी होड़ क्यों मची हुई है और इसके क्या ख़तरे हो सकते हैं?

रक्षा विश्लेषक राहुल बेदी का मानना है कि परमाणु हथियारों की संख्या बढ़ने को 'होड़ या रेस' कहना पूरी तरह उचित नहीं है.

उन्होंने बीबीसी से बातचीत में कहा, "हमें यह समझना होगा कि परमाणु हथियारों का उत्पादन एक सतत प्रक्रिया है. ऐसा मुमकिन नहीं है कि कोई देश अचानक परमाणु हथियार बनाना बंद कर दे और कुछ समय बाद फिर शुरू कर दे."

बेदी कहते हैं, "अगर हथियार बनने एक बार बंद हो गए तो फिर सारी प्रक्रिया बिल्कुल शुरू से शुरू करनी पड़ेगी. इसलिए मेरी राय में इसे होड़ कहना ठीक नहीं होगा."

अगर भारत, पाकिस्तान और चीन की बात करें तो तीनों पड़ोसी देश हैं और तीनों ही परमाणु शक्ति से संपन्न हैं. दूसरी तरफ़, भारत का पाकिस्तान और चीन दोनों के साथ ही सीमा विवाद चलता रहता है.

राहुल बेदी कहते हैं, "भारत, पाकिस्तान और चीन की स्थिति बहुत ही अनोखी है. दुनिया में परमाणु शक्ति से लैस बहुत कम ऐसे देश हैं जिनकी सीमा पर लगभग हर समय संघर्ष चलता हो. फिर चाहे वो गोलीबारी के ज़रिए हो या किसी अन्य माध्यम से."

बेदी कहते हैं कि हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि पाकिस्तान और चीन दो ऐसे देश हैं जहाँ परमाणु हथियारों का कंट्रोल मूल रूप से सेना के ही हाथ में हैं. ऐसे में भारत के लिए यह स्थिति और भी ज़्यादा ख़तरनाक हो जाती है.

वो कहते हैं, "एक और बात जो ध्यान देने वाली है वो यह कि पाकिस्तान और चीन न सिर्फ़ सैन्य सहयोगी हैं बल्कि कहीं न कहीं परमाणु सहयोगी भी हैं."

राहुल बेदी यह भी कहते हैं कि ऐसी संवेदनशील स्थिति में परमाणु निरस्त्रीकरण की बात महज एक 'वैचारिक स्वप्न' लगती है.

यह भी पढ़ें: भारत-पाकिस्तान संबंध: क्या परमाणु हथियार ने दोनों देशों के बीच पारंपरिक युद्ध का ख़तरा टाल दिया है?

परमाणु हथियारों पर बेतहाशा खर्च
BBC
परमाणु हथियारों पर बेतहाशा खर्च

परमाणु हथियारों पर बेतहाशा खर्च

ध्यान देने वाली बात यह भी है कि एक तरफ़ जहाँ दुनिया पिछले दो वर्षों से जानलेवा कोरोना महामारी से जूझ रही है, वहीं दूसरी तरफ़ परमाणु हथियारों पर बेतहाशा खर्च किया जा रहा है.

अभी पिछले हफ़्ते ही शांति के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित संस्था 'इंटरनेशनल कैंपेन टु एबॉलिश न्यूक्लियर वेपन्स' (ICAN) की एक रिपोर्ट आई थी.

इस रिपोर्ट में बताया गया था कि साल 2020 में परमाणु शक्ति से संपन्न देशों ने 72.6 बिलियन डॉलर की राशि सिर्फ़ परमाणु हथियारों पर खर्च की. साल 2019 के मुकाबले यह खर्च 1.4 बिलियन डॉलर ज़्यादा है.

'कॉम्प्लिसिट: 2020 ग्लोबल न्यूक्लियर वेपन्स स्पेडिंग' नाम से प्रकाशित इस रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे महामारी के दौरान बिखरती अर्थव्यवस्था और जर्जर होते स्वास्थ्य तंत्र के बावजूद सरकारें लोगों के टैक्स का पैसा डिफ़ेंस कॉन्ट्रैक्टर्स तक पहुँचा रही थीं ताकि लॉबिंग के ज़रिए वो परमाणु हथियारों पर अपना खर्च बढ़ा सकें.

ICAN के मुताबिक़ महामारी के दौरान परमाणु हथियारों पर सबसे ज़्यादा खर्च करने वाले देशों में अमेरिका पहले नंबर पर रहा और चीन दूसरे. इस सूची में भारत छठें और पाकिस्तान सातवें नंबर पर रहा:

अमेरिका: 37.4 बिलियन डॉलर

चीन: 10.1 बिलियन डॉलर

रूस: 8 बिलियन डॉलर

ब्रिटेन: 6.2 बिलियन डॉलर

फ़्रांस: 5.7 बिलियन डॉलर

भारत: 2.4 बिलियन डॉलर

पाकिस्तान: 1 बिलियन डॉलर

उत्तर कोरिया: 667 मिलियन डॉलर

परमाणु शक्ति संपन्न देश
JOHN MACDOUGALL/AFP via Getty Images
परमाणु शक्ति संपन्न देश

परमाणु हथियार: शांति के हथियार?

भारत को परमाणु क्षमता से लैस बनाने में अहम भूमिका निभाने वाले और भारत के मिसाइल मैन कहे जाने वाले वैज्ञानिक और पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम ने कहा था कि परमाणु हथियार दूसरे देशों को हम पर हमला करने से रोकते हैं इसलिए ये 'शांति के हथियार' हैं.

परमाणु हथियारों को अक्सर 'वेपन ऑफ़ डेटरेंस' यानी 'युद्ध रोकने वाले हथियार' भी कहा जाता है.

रक्षा मामलों पर आधारित न्यूज़ वेबसाइट 'एविएशन ऐंड डिफ़ेस यूनिवर्स' की संपादक संगीता सक्सेना का भी ऐसा ही मानना है.

उन्होंने बीबीसी से बातचीत में कहा, "परमाणु हथियार असल में कभी हमले के लिए नहीं होते बल्कि इनका मक़सद रक्षात्मक होता है."

संगीता कहती हैं, "अगर हम भारत, पाकिस्तान और चीन की ही बात करें तो मुझे नहीं लगता कि ये देश कभी एक-दूसरे पर परमाणु हमला करेंगे क्योंकि इन तीनों के पास परमाणु हथियार हैं. यही वजह है सीमा पर तनाव या संघर्ष के बावजूद परमाणु हमलों तक की स्थिति आती ही नहीं और यही कारण है कि परमाणु हथियारों को वेपन ऑफ़ डेटरेंस कहते हैं."

डिफ़ेंस पत्रिका 'फ़ोर्स' की एग्ज़िक्युटिव एडिटर ग़ज़ाला वहाब भी संगीता से सहमति जताती हैं.

वो कहती हैं, "मुझे नहीं लगता कि भारत की पाकिस्तान या चीन के साथ कभी परमाणु युद्ध की नौबत आएगी. परमाणु हथियारों को युद्ध में इस्तेमाल करने के मक़सद से बनाया ही नहीं जाता."

'फ़ोर्स' मैगज़ीन के एडिटर प्रवीण साहनी का मानना है कि चूँकि भारत और चीन की परमाणु हथियारों को लेकर 'नो फ़र्स्ट यूज़ पॉलिसी' है, इसलिए ये चिंताएं अपने आप काफ़ी हद तक कम हो जाती हैं. हालाँकि इस पॉलिसी को लेकर पाकिस्तान का रुख स्पष्ट नहीं है.

'नो फ़र्स्ट यूज़ पॉलिसी' का मतलब है अपनी तरफ़ से पहले परमाणु हमला न करने की नीति.

हालाँकि अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ़्रांस और उत्तर कोरिया जैसे देश 'नो फ़र्स्ट यूज़' पॉलिसी का हिस्सा नहीं हैं. वहीं, इसराइल का रुख इस पर अस्पष्ट है.

प्रवीण साहनी कहते हैं कि परमाणु हथियारों की बढ़ती संख्या को लेकर चिंता ख़ासकर इसलिए जताई जाती है क्योंकि पश्चिमी देश 'नो फ़र्स्ट यूज़' पॉलिसी को नहीं मानते.

साथ ही प्रवीण यह भी कहते हैं कि किस देश के पास कितने परमाणु हथियार हैं, इसे लेकर बहुत चिंता करने की ज़रूरत नहीं है.

उन्होंने कहा, "सिप्री की रिपोर्ट हर साल आती है और इसमें बहुत ज़्यादा अंतर देखने को नहीं मिलता. कभी किसी देश के पास कुछ ज़्यादा हथियार हो जाते हैं तो कभी किसी के पास कुछ कम."

वो कहते हैं, ''परमाणु बमों की कम या ज़्यादा संख्या मायने नहीं रखती क्योंकि विनाश के लिए एक ही बम काफ़ी होता है. इसलिए ये संख्याएं कुछ ख़ास मायने नहीं रखतीं.''

यह भी पढ़ें: भारत-पाकिस्तान ने एक-दूसरे को परमाणु प्रतिष्ठानों की लिस्ट क्यों सौंपी

परमाणु शक्ति संपन्न देश
Chung Sung-Jun/Getty Images
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तो क्या परमाणु बमों से दुनिया को कोई ख़तरा नहीं है?

परमाणु हथियारों को 'वेपन ऑफ़ डेटरेंस' और 'शांति के हथियार' बताए जाने के बाद भी विशेषज्ञ दुनिया पर परमाणु बमों के कारण मँडराते ख़तरे को सिरे से नकार नहीं सकते.

वक़्त के साथ 'डेटरेंस' वाली थ्योरी को भी जानकारों से चुनौती मिलती रही है.

ग्लोबल सिक्योरिटी के मुद्दे पर काम करने वाली संस्था 'बुलेटिन ऑफ़ एटॉमिक साइंटिस्ट्स' में छपे एक लेख के मुताबिक़ परमाणु हथियारों को लेकर डेटरेंस का सिद्धांत अब अप्रासंगिक हो गया है.

इसकी वेबसाइट पर जापानी नेता और हिरोशिमा के गवर्नर हिदेयिको यूज़ाकी ने 'A message from Hiroshima on the reality of the atomic bombing' (ए मेसेज फ़्रॉम हिरोशिमा ऑन द रियलिटी ऑफ़ एटॉमिक बॉम्बिंग) शीर्षक से एक लेख लिखा है.

वो लिखते हैं कि डेटरेंस वाला सिद्धांत शीत युद्ध के समय का है जब अमेरिका और सोवियत संघ में विचारधाराओं की लड़ाई चल रही थी.

यूज़ाकी के मुताबिक़, "न्यूक्लियर डेटरेंस का सिद्धांत अनिश्चित पूर्वानुमानों पर आधारिता है. मौजूदा वक़्त में लगातार विकसित होती तकनीक और भौगोलिक-राजनीतिक परिस्थितियों को देखते हुए ऐसा नहीं लगता कि न्यूक्लियर डेटरेंस के सिद्धांत से भविष्य में परमाणु युद्ध की आशंका पूरी तरह ख़त्म हो जाती है."

अभी पिछले महीने ही ब्रिटेन के थिंक टैंक 'इंटरनैशनल इंस्टिट्यूट फ़ॉर स्ट्रैटेजिक स्टडीज़' (आईआईएएस) ने 'न्यूक्लियर डेटरेंस ऐंड स्टेबिलिटी इन साउथ एशिया: परसेप्शन्स ऐंड रियलिटीज़' नाम से एक रिपोर्टप्रकाशित की थी.

इस रिपोर्ट में कहा गया था कि फ़रवरी 2019 में पुलवामा हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव जिस स्तर तक पहुँच गया था, उस स्थिति में अगर दोनों देशों के बीच किसी तरह का बड़ा 'मिसकैलकुलेशन' होता तो परमाणु हथियारों के इस्तेमाल के आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता था.

इस रिपोर्ट के प्रमुख लेखक और आईआईएसएस में रिसर्च फ़ेलो एन्टोनियो लेवेस्क्स के मुताबिक़, "भारत और पाकिस्तान लगातार अपनी तकनीक और क्षमताओं को विकसित कर रहे हैं. इसकी वजह से दोनों ही एक दूसरे को परमाणु डिफ़ेंस को ख़तरनाक ढंग से कमतर आँक रहे हैं."

इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि परमाणु शक्ति संपन्न देश के तौर पर चीन की बढ़ती ताकत भारत की सुरक्षा के लिए चुनौतियाँ पैदा कर रही है.

इन सारे तर्कों के संदर्भ में संगीता सक्सेना मानती हैं कि चीन, भारत के लिए निश्चित तौर पर ख़तरा साबित हो सकता है क्योंकि उसकी सैन्य और परमाणु क्षमता भारत के मुकाबले कहीं ज़्यादा बेहतर है. हालाँकि वो इस बारे में पाकिस्तान को लेकर उतनी चिंतित नहीं हैं.

वहीं, प्रवीण साहनी का मानना है कि चीन के मामले में न्यूक्लियर डेटरेंस के सिद्धांत को पूरी तरह कामयाब नहीं माना जा सकता.

वो कहते हैं, "भारत ने 1998 में वाजपेयी सरकार के शासन काल में जब पहली बार परमाणु परीक्षण किया तो कहा गया कि यह चीन से सुरक्षा के लिए है. लेकिन आज 2020 और 2021 में भी एलएसी पर भारतीय और चीन के बीच तनाव बरकरार है. यानी ज़ाहिर है कि चीन के ख़िलाफ़ भारत का डेटरेंस मज़बूत नहीं है."

परमाणु हथियारों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन
PUNIT PARANJPE/AFP via Getty Images
परमाणु हथियारों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन

परमाणु हथियारों का ख़तरा कम कैसे होगा?

परमाणु हथियारों के ख़तरों को कम करने के लिए और परमाणु निरस्त्रीकरण को बढ़ावा देने के लिए युनाइटेड नेशन्स इंस्टिट्यूट फ़ॉर डिसआर्ममेंट रिसर्च (UNIDIR), स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट (SIPRI), इंटरनेशनल कैंपेन टु एबॉलिश न्यूक्लियर वेपन्स (ICAN) और रॉयल इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंटरनेशनल अफ़ेयर्स जैसे थिंक टैंक और संस्थाएं लगातार काम कर रही हैं.

इसके अलावा, परमाणु हथियारों को सीमित के लिए समय-समय कई समझौते भी होते रहे हैं. मसलन:

•पार्शियल टेस्ट बैन ट्रीटी (PTBT)

•न्यूक्लियर नॉन प्रोलिफ़ेरेशन ट्रीटी (NPT)

•ऐंटी-बैलिस्टिक मिसाइल ट्रीटी (ABMT)

•कंप्रिहेंसिव टेस्ट बैन ट्रीटी (CTBT)

हालाँकि यह बिल्कुल भी ज़रूरी नहीं है परमाणु शक्ति संपन्न सभी देश इन समझौतों पर सहमत होते हैं या इन पर हस्ताक्षर के लिए तैयार होते हैं.

इंटरनैशनल इंस्टिट्यूट फ़ॉर स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ ने परमाणु ख़तरों को कम करने के सुझाव में कहा था कि इसके लिए परमाणु शक्ति संपन्न देशों के नेताओं को मिलकर आपस में भरोसा पैदा करना होगा, नेतृत्व को कूटनीतिक समाधान के रास्ते निकालने होंगे और व्यावहारिक रुख अपनाना होगा.

रक्षा विशेषज्ञ राहुल बेदी का सुझाव भी इससे मिलता-जुलता ही है.

वो कहते हैं, ''परमाणु ख़तरे को कम करने का एक ही रास्ता है-हिंसक संघर्ष के बजाय कूटनीतिक संवाद से विवादित मसलों का हल निकाला जाए क्योंकि हिंसक संघर्ष कब ख़तरनाक रूप ले लेगा, इसकी कल्पना करना मुश्किल है."

वैसे, परमाणु हथियार जब तक दुनिया में हैं, उनसे जुड़ा डर भी बना रहेगा.

जैसा कि नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अमेरिकी वैज्ञानिक जॉर्ज वाल्ड ने कहा था- परमाणु हथियार हमें कुछ और नहीं बल्कि पारस्परिक विनाश का डर दिखाते हैं और पारस्परिक विनाश का डर भी डर ही होता है.

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English summary
world pakistan have more nuclear warheads than India
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