ग़ज़ा के ज़ख़्म न जाने कब और कैसे भरेंगे, मलबा हटाने में ही लगेंगे महीनों
इसराइली मिसाइल हमलों से तबाह ग़ज़ा पट्टी के लोग मलबे के ढेर और गहरी मानसिक पीड़ा में घिरे हैं, उनकी तकलीफ़ों का जायज़ा लेती बीबीसी की एक ख़ास रिपोर्ट.
हमास और इसराइल के बीच मई में 11 दिनों तक हुई भीषण हिंसा के बाद पहले से ही बदहाली और निराशा में घिरा ग़ज़ा का इलाक़ा तबाह और बर्बाद हो चुका है. एक खुली जेल कहे जाने वाले ग़ज़ा के लोग अपने जीवन को दोबारा संभालने के कठिन संघर्ष में लगे हैं.
इसराइल के हवाई हमलों में नष्ट हुए स्कूल, सड़कें, आवासीय इमारतें और बुनियादी सुविधाओं को दोबारा बनाने की तत्काल ज़रुरत है लेकिन सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि ग़ज़ा को अपने 20 लाख निवासियों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी तत्काल ध्यान देना होगा क्योंकि वे बुरी तरह आहत महसूस कर रहे हैं.
फ़लीस्तीनी शरणार्थियों के लिए काम करने वाली संयुक्त राष्ट्र की राहत एजेंसी यूएनआरडब्ल्यूए की प्रवक्ता तमारा अलरिफ़ाई का मानना है कि ग़ज़ा की जनता में मानसिक तनाव अपने चरम पर है.
जॉर्डन की राजधानी अम्मान से बीबीसी हिंदी से बातचीत में वो कहती हैं, "संघर्षविराम के बाद ग़ज़ा में मैंने जिस किसी से भी बात की, वही मुझे बहुत आहत लगा. हमें याद रखने की ज़रुरत है कि इस बार की लड़ाई पिछली कई जंगों से ज़्यादा गंभीर थी, यह महामारी के दरमियान हुआ है. इस लड़ाई से पहले ही ग़ज़ा कई वर्षों की नाकेबंदी झेल चुका है इसलिए लोग बर्दाश्त करने की आखिरी हद तक पहुँच चुके हैं. ग़ज़ा में लोग बहुत लंबे समय से कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं."
यूएनआरडब्ल्यूए फ़लीस्तीनी शरणार्थियों के पुनर्वास और ग़ज़ा क्षेत्र में पुनर्निर्माण के काम में लगा है. ग़ज़ा की 20 लाख की आबादी में से 14 लाख फ़लस्तीनी शरणार्थी हैं, ये लोग 1948 में इसराइल के निर्माण के समय अपने घरों से विस्थापित हो गए थे.
सामूहिक पीड़ा का चेहरा
28 वर्षीय ताहिर अलमदून ग़ज़ा के एक अस्पताल में डॉक्टर हैं. वास्तव में वो ग़ज़ा के लोगों की पीड़ाओं का सही मायने में प्रतिनिधित्व करते हैं, चाहे वो पीड़ा मानसिक हो या शारीरिक.
13 मई को ग़ज़ा पर इसराइल के हवाई हमलों के दौरान उन्हें मौत के मुंह से बाहर निकाला गया था. पहले रॉकेट हमले ने उनके घर का एक हिस्सा ध्वस्त कर दिया था.
बीबीसी से एक लंबी बातचीत में ताहिर कहते हैं, "गुरुवार 13 मई की शाम थी जो एक सामान्य क़िस्म का दिन था. अँधेरा हो गया था, हमले से पहले हम बैठे बातें कर रहे थे- मेरे पिता, मेरी आंटी और मैं", हम ईद मनाने की तैयारी कर रहे थे."
लेकिन कुछ ही मिनटों में उनकी इमारत पर रॉकेटों की बारिश शुरू हो गई. उस हमले को याद करते हुए ताहिर कहते हैं, "मेरे हाथ को छोड़कर मेरा पूरा शरीर मलबे के नीचे था इसलिए मैंने शोर करने के लिए अपने फोन का इस्तेमाल किया ताकि वे मेरी लोकेशन को देखें और मुझे ढूंढ सकें."
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ताहिर को दमकल कर्मियों ने मलबे से बाहर निकला लेकिन उनके पिता और बुआ को बचाया नहीं जा सका. ''हमले के दौरान मैंने कभी होश नहीं खोया, मैंने अपने पिता और आंटी को प्रार्थना करते सुना, इससे पहले कि दमकल कर्मी मुझे बचाने आते, मैंने उन्हें कुछ मिनटों के लिए दुआ करते सुना, फिर वे चुप हो गए, इसलिए मुझे पता था कि वे मर चुके हैं."
एक पल वे जीवित थे, ईद मनाने की बात कर रहे थे, अगले ही पल उनमें से दो चल बसे और तीसरा मौत के मुंह से निकाला गया. ये है ग़ज़ा की ज़िन्दगी. सौभाग्य से डॉ. ताहिर की मां और अन्य भाई-बहन घर में नहीं थे, वो ईद ख़रीदारी करने बाहर गए हुए थे. उनका तीन मंज़िला घर पूरी तरह से नष्ट हो गया है.
डॉ. ताहिर अपने पिता और बुआ के अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हो सके क्योंकि उन्होंने अगले दो सप्ताह आईसीयू में बिताए, वह कई टूटी हुई पसलियों और फेफड़ों में बुरी चोट से पीड़ित हैं, अब वो एक सर्जरी करवाने का इंतज़ार कर रहे हैं.
लेकिन उनका कहना है कि उनकी पीड़ा शारीरिक चोटों और संपत्ति के नुकसान से परे है, "शुरू के दिनों में हमारे पिताजी और बुआ को लेकर मुझे, माँ और भाई, बहनों को नियमित रूप से बुरे सपने आ रहे थे और हमारा मनोवैज्ञानिक तनाव बढ़ा हुआ था."
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युवा डॉक्टर अपने परिवार की मदद करना चाहते हैं, भले ही उनके पास अपनी टूटी हड्डियों पर सोचने के लिए बहुत कम समय हो, वे कहते हैं कि वह अपने पिता की मृत्यु के बाद नई पारिवारिक जिम्मेदारियों का बोझ महसूस करते हैं और चाहते हैं कि चीजें जल्दी से ठीक हो जाएँ, लेकिन वे मानते हैं कि कोई चीज़ जल्दी से ठीक नहीं होने वाली नहीं.
वे कहते हैं, "मुझे अपनी नौकरी पर वापस आने में एक या दो साल लग सकते हैं. मुझे रहने के लिए जगह मिल सकती है लेकिन मेरी शारीरिक, मानसिक चोटों से उबरकर मैं सामान्य महसूस करूँ, इसमें साल-दो साल लग सकते हैं."
व्यक्तिगत त्रासदी से पहले डॉक्टर ताहिर अपनी शादी की तैयारी में लगे थे. उनके पिता ने परिवार के लिए तीन-मंज़िला घर ग़ज़ा के एक बेहतर इलाक़े में बनवाया था. डॉक्टर ताहिर ने तीसरी मंज़िल में अपने घर को सजा लिया था.
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ग़ज़ा में कितनी मुश्किल है ज़िंदगी
ग़ज़ा में सामान्य ज़िन्दगी गुज़ारना काफ़ी कठिन है, चाहे जंग हो रही हो या शांति हो. सामाजिक कार्यकर्ता नोअल आक़िल ने ग़ज़ा से बीबीसी हिंदी से बात करते हुए इन शब्दों में अपनी समस्याओं के बारे में बताया, "अगर आप मुझे और मेरे परिवार को देखें तो मैं एक महिला हूँ जिसे अपनी माँ, छह बहनों, बेटे, तलाकशुदा बहन, अल्जीरिया और जॉर्डन में पढ़ रहे भाइयों की चिंता है. हम एक सामान्य जीवन के लिए तरसते हैं. हम अपना जीवन जीना चाहते हैं."
नोअल के सहयोगी तामेर अजरमी भी पीड़ित लोगों के बीच काम करते हैं, वे कहते हैं, "फ़लीस्तीनियों को जो मानसिक आघात लगा है, वो केवल इस हमले से नहीं आया है, वह वर्षों से लगातार चलता रहा है, लोगों ने पहले से मौजूद आघात पर एक और आघात झेला है."
अब जबकि ग़ज़ा में एक नाजुक-सा युद्धविराम लागू है, मृत्यु और विनाश की छवियां सामने आ रही हैं. ताहिर के पिता और उनकी बुआ इसराइल के हवाई हमलों में मारे गए 243 ग़ज़ा वासियों में शामिल थे. हमास के मिसाइल हमलों में 12 इसराइली नागरिक भी मारे गए. ग़ज़ा में दो हज़ार से अधिक इमारतें या तो पूरी तरह से नष्ट हो गई हैं या आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हुई हैं.
हमास और इसराइल के बीच युद्धविराम की घोषणा के कुछ हफ़्ते बाद बीबीसी हिंदी ने ग़ज़ा में कुछ प्रभावित लोगों से बात की, उनकी सामूहिक भावना यह थी कि "युद्ध के दौरान होने वाली वास्तविक बमबारी की तुलना में जंग के बाद की तकलीफ़ सहन करना अधिक कठिन है."
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सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि नष्ट हुए घरों को दोबारा बनाया जा सकता है लेकिन पीड़ित परिवारों और उनकी मानसिक हालत को फिर से सामान्य करना अधिक मुश्किल है. सईद अल-मंसूर ग़ज़ा में आईटी क्षेत्र के एक साधारण पेशेवर हैं. वो लड़ाई से पहले तक एक छोटे से फ़्लैट के मालिक थे, लेकिन 16 मई को इसराइली हमले में इसके नष्ट होने के बाद से वो अपने परिवार समेत अपनी पत्नी के घर पर रह रहे हैं जिसे अरब समाज में एक अपमान के रूप में देखा जाता है.
ग़ज़ा के निवासियों को इसराइल ने हमले से पहले चेतावनी दी थी इसलिए सईद दूसरों की तरह इतने कम समय में जो भी कीमती सामान और दस्तावेज़ इकट्ठा कर सकते थे, उसे हटाने में कामयाब रहे.
उनका अपार्टमेंट उनकी आंखों के सामने हमले के बाद राख का ढेर बन गया. सईद कहते हैं कि मिसाइल हमला बमुश्किल कुछ सेकंड तक चला, एक क्षण में हमारा अपार्टमेंट मलबे का ढेर बन गया, लेकिन जिस आघात, मानसिक तनाव से हम अभी गुजर रहे हैं, उसे सहन करना मुश्किल है.
वे कहते हैं, "हमारे समाज में परिवार के लिए सब कुछ इंतज़ाम करना मर्दों की ज़िम्मेदारी है. मुझे अपने परिवार के लिए भोजन और आश्रय का इंतज़ाम खुद करना होगा. लेकिन आज मैं उसके लिए अपनी पत्नी के परिवार पर निर्भर हूँ, मुझे बहुत शर्म आती है. हर दिन नरक में रहने जैसा है. जब आप बाहर जाते हैं तो आप नष्ट इमारतों की क़तारें देखते हैं, ये भुतहा शहर जैसा दिखता है."
डॉक्टर ताहिर बताते हैं कि उनके पिता ग़ज़ा में कॉफी बीन्स के इम्पोर्टर थे, वे चाहते थे कि उनके सभी बच्चे डॉक्टर बनें और उनके मरने से पहले उनका सपना सच में पूरा हो गया. ताहिर की तीन बहनें डॉक्टर हैं और उनके दो छोटे भाई डॉक्टरी की पढ़ाई कर रहे हैं. उनके पिता ने अपने बच्चों के लिए एक तीन मंजिला कोठी बनवाई. वे यह देखने के लिए जीवित नहीं रहे कि उनके बच्चे अब किस स्थिति में हैं.
'ग़ज़ा एक खुली जेल की तरह है'
ग़ज़ा के कई निवासियों का कहना है कि उन्हें ऐसा लगता है कि वे एक खुली जेल में रह रहे हैं. कुछ सालों से जारी इसराइली नाकाबंदी इसका एक मुख्य कारण है.
ग़ज़ा ज़मीन की एक छोटी, तंग-सी पट्टी है, जो इसराइल और मिस्र के बीच स्थित है. ग़ज़ा पर हमास की राजनीतिक इकाई का शासन है. हमास को इसराइल और अमेरिका एक आतंकवादी संगठन मानते हैं, वेस्ट बैंक यानी पश्चिमी तट पर राष्ट्रपति महबूब अब्बास के नेतृत्व वाले प्राधिकरण का शासन है, जिसे इसराइल वैध सरकार के रूप में मान्यता देता है.
जंग अक्सर ग़ज़ा में रहने वाले हमास के हथियारबंद लड़ाकों और इसराइली सशस्त्र बलों के बीच होती है. पहला घातक संघर्ष 2006 में हुआ, फिर 2007 में हुआ, सबसे घातक इसराइली हवाई हमले 2014 में हुए, जो 51 दिनों तक चले, मई में हुए हमले 11 दिनों तक चले.
जैसा कि संयुक्त राष्ट्र की तमारा अलरिफाई ने कहा, "यह याद रखने की बात है कि यह 15 वर्षों से कम समय में चौथा युद्ध है, यह एक छोटे से इलाक़े के सहने के लिए बहुत बड़ी यातनाएँ हैं. ग़ज़ा एक ऐसी जगह है जो एक सख्त नाकेबंदी के तहत है इसलिए इसकी अर्थव्यवस्था चौपट है, और दुनिया के बाकी हिस्सों की तरह ग़ज़ा भी महामारी का असर झेल रहा है. ऐसे में कई चीज़ें हैं जो ग़ज़ा की कठिनाई को बढ़ा रही हैं."
इसराइल के साथ हर संघर्ष ने इसे अधिक कमज़ोर किया, इसने और ज़्यादा जान-माल का नुक़सान उठाया. डॉक्टर ताहिर जैसे कई लोगों ने अपना घर पूरी तरह से खो दिया है. ताजा हमले के बाद हज़ारों परिवार बेघर हो गए हैं, उनमें से कई लोगों के लिए यह नया अनुभव नहीं है. 2014 में लंबे अरसे तक चले हमलों में जिन हज़ारों लोगों के घर तबाह हुए उनमें से कई अब भी मदद के इंतज़ार में हैं.
तबाही का वायरल वीडियो
ग़ज़ा में रिहाइशी मकानों के अलावा कई कमर्शियल इमारतें भी तबाह हुई हैं. इन इमारतों में कई ग़ैर सरकारी संस्थाओं और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के दफ्तर थे, हमलों के कई वीडियो वायरल हुए थे जिनमें से एक वाणिज्यिक क्षेत्र के मध्य में प्रसिद्ध 14-मंजिला अल-शोरोक टॉवर पर इसराइली हमला था जिसकी फुटेज काफी डरावनी थी.
इस इमारत की दो अलग-अलग मंजिलों पर नोअल आक़िल और उनके साथी तामिर अजरमी के दफ़्तर हैं. बसमा सोसाइटी फॉर कल्चर एंड आर्ट्स नाम की ग़ैर-सरकारी संस्था में काम करने वाले ये दोनों कार्यकर्ता अब अपने दफ़्तर से काम नहीं कर सकते. बसमा एक ग़ैर-सरकारी संस्था है जो ग़ज़ा में युवाओं को सशक्त बनाने के लिए थिएटर कार्यक्रम और अन्य सांस्कृतिक गतिविधियाँ चलाती है.
ग़ज़ा के लोगों के लिए वाणिज्यिक क्षेत्रों पर हमला हैरानी वाली बात थी. तामेर अजरमी कहते हैं, "हमने नहीं सोचा था कि ऐसा भी होगा, क्योंकि सभी को लगा कि यह एक सुरक्षित क्षेत्र है क्योंकि वहां कई गैर-सरकारी संगठनों के कार्यालय हैं और फिर पड़ोस में सबसे प्रसिद्ध अल-शिफा अस्पताल है."
नोअल और तामेर ने कहा कि चेतावनी का समय कम था इसलिए 13वीं मंजिल पर वापस जाने का कोई मतलब नहीं था, जहां उनका कार्यालय स्थित था जिसमें दफ़्तर के सारे दस्तावेज रखे थे. नोअल आक़िल और तामेर अजरमी कहते हैं, "मिनटों में मिसाइलों ने ऊंची इमारत को नष्ट कर दिया. हमने सभी दस्तावेज, वर्षों के आर्काइव मटेरियल और अन्य सामान खो दिए, हमने सब कुछ खो दिया."
पहले मलबा साफ किया जाएगा
हालांकि, फ़िलहाल ग़ज़ा में रॉकेट और बमों के फटने की आवाज़ें बंद चुकी हैं और युद्धविराम किसी तरह से जारी है, ग़ज़ा को हुए जानी और माली नुकसान का जायज़ा लेने और पुनर्निर्माण और पुनर्वास की योजना बनाने का समय आ गया है. यह ग़ज़ा के पीड़ित नागरिकों के ज़ख्मों पर मरहम लगाने का समय है.
ग़ज़ा के पुनर्वास की ज़िम्मेदारी कई संस्थाएं और एजेंसियां ले रही हैं. मिस्र भी इसमें मदद कर रहा है. यूएनआरडब्ल्यूए इसमें सब से आगे है. इसने तीन प्राथमिकताएँ तय की हैं, जैसा कि इसकी प्रवक्ता तमारा अलरिफाई ने बताया, "हम तीन प्राथमिकताओं को देख रहे हैं: पहली, हम यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि युद्ध में बेघर हुए सभी लोगों के पास घर हो, इसका मतलब यह कि यूएनआरडब्ल्यूए लोगों के घरों के पुनर्निर्माण में मदद करेगा या जिनके घरों को नुकसान हुआ है उनका पुनर्वास करेगा.
"हमारी दूसरी प्राथमिकता लोगों पर हुए युद्ध के मानसिक असर से निपटना है, ग़ज़ा में मेरे सहयोगी मौजूदा हालात को एक विशाल मनोवैज्ञानिक संकट मान रहे हैं, ऐसा लगता है ग़ज़ा में सभी लोग मानसिक रूप से पीड़ित हैं. हमारी तीसरी प्राथमिकता यह है कि हम अपनी सुविधाओं का पुनर्निर्माण करें. ग़ज़ा में हमारी 113 सुविधाएं हैं, जिनमें 28 स्कूल और छह स्वास्थ्य केंद्र शामिल हैं जो जंग में क्षतिग्रस्त हो गए हैं."
तमारा का कहना है कि बुनियादी ग्राउंडवर्क तैयार किया जा चुका है. वो कहती हैं कि सभी प्राथमिकताओं पर अनुमानित लागत 152 मिलियन डॉलर आएगी, क़तर और मिस्र ने मिलकर एक अरब डॉलर की सहायता देने का वादा किया है, कई अन्य देशों ने भी मदद की घोषणा की है.
लोगों ने सहायता के लिए दावों का पंजीकरण शुरू कर दिया है, डॉ ताहिर उनमें से एक हैं लेकिन उन्हें मालूम नहीं है कि उन तक मदद पहुंचने में कितना समय लगेगा. वह कहते हैं, "पंजीकरण के बाद हम इंतज़ार ही कर सकते हैं लेकिन नष्ट हुए घरों के पुनर्निर्माण के लिए पिछले संघर्ष (2014) की लिस्ट में शामिल लोगों में कई अब भी मदद का इंतज़ार कर रहे हैं."
मलबे के ढेर चारों तरफ़ हैं, स्थानीय प्रशासन का अनुमान है कि कोई भी पुनर्निर्माण कार्य शुरू होने से पहले मलबे को साफ करने में एक महीने का समय लगेगा. तमारा कहती हैं, "यह सिर्फ़ एक इमारत के पुनर्निर्माण का सवाल नहीं है, हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हम सुरक्षित तरीके से मलबे को हटा दें." अधिकारियों का मानना है कि पुनर्निर्माण कार्य सितंबर से पहले शुरू नहीं हो सकेगा.
क्या सब कुछ हो सकता है सामान्य?
युद्धविराम के बाद इसराइल सरकार और ग़ज़ा की सत्ताधारी पार्टी हमास दोनों ने जीत की घोषणा की. प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू और उनकी सरकार अब सत्ता से बाहर है. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि हमास को ग़ज़ा के सभी नागरिकों का सम्मान और समर्थन पूरी तरह से कभी भी नहीं मिल पाया है. लेकिन अनुमान है कि इस बार के झगड़े के बाद से हमास के लिए स्थानीय समर्थन में और कमी आई है.
ग़ज़ा की अधिकतर आबादी मुस्लिम है, वहाँ एक छोटा ईसाई अल्पसंख्यक तबका भी आबाद है लेकिन ग़ज़ा में कोई फलीस्तीनी यहूदी नहीं रहता. ग़ज़ा में और इसराइल के अंदर यहूदी-मुसलमान मेल-जोल की बात करना भी कल्पना के बाहर है.
दोनों पक्षों के राजनीतिक वर्ग दो-राज्य सिद्धांत पर सहमत हों इसमें कई दशक लगे और कई और दशक भी लग सकते हैं. क्या ग़ज़ा के मुसलमान इसराइल के यहूदियों से व्यक्तिगत रूप से ही सही बातचीत को तैयार हैं? क्या दोनों में नज़दीकियां बन सकती हैं?
डॉ. ताहेर को यहूदी लोगों से समस्या नहीं है लेकिन वह 'इसराइली राज्य की नस्लभेद की नीति के ख़िलाफ़ हैं और ज़रुरत से ज़्यादा बल प्रयोग के खिलाफ हैं. वे कहते हैं, "मैं चाहता हूं कि आप भारतीय लोगों और भारत सरकार को मेरा संदेश दें कि इस त्रासदी को समाप्त करने के लिए इसराइल की सरकार का बहिष्कार करें और प्रतिबंध लगाएं. हम उनके ज़ुल्म को 1948 से सह रहे हैं.''
आक़िल का केवल एक यहूदी मित्र है जो अमेरिका में रहता है, वह निश्चित रूप से दोनों समुदायों के बीच दोस्ती के विचार के ख़िलाफ़ नहीं हैं, "हम मुस्लिम या ईसाई या यहूदी या फ़लीस्तीनी या इसराइली होने से पहले इंसान हैं, चूंकि हम इंसान हैं इसलिए हमें एक-दूसरे की रक्षा करनी चाहिए और हमें एक-दूसरे के साथ संवाद करना चाहिए."
उनके सहयोगी तामेर अजरमी भी सकारात्मक नज़रिया रखते हैं. वे कहते हैं, "इसराइल के साथ समस्या उसके लोग नहीं हैं, बल्कि सरकार है, हम फ़लीस्तीनी मुसलमानों और ईसाइयों को किसी यहूदी व्यक्ति से कोई समस्या नहीं है, हम विभिन्न धर्मों के लोगों का सम्मान करते हैं.
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