World Bicycle Day: ये है दुनिया की सबसे महंगी साइकिल, कीमत 3.77 करोड़ से भी ज्यादा
नई दिल्ली: मौजूदा वक्त में साइकिल का इस्तेमाल बहुत ही कम हो गया है। अब लोग कार और बाइक से ज्यादा चलना पसंद करते हैं। इससे पर्यावरण प्रदूषण तो बढ़ता ही है, साथ ही लोगों की सेहत पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। लोगों को जागरुक करने के लिए हर साल तीन जून को विश्व साइकिल दिवस मनाया जाता है। इस दिन को मनाने की शुरूआत संयुक्त राष्ट्र ने 2018 में की थी। विश्व साइकिल दिवस पर दुनियाभर में कई जगहों पर साइकिल रेस का आयोजन किया जाता है, लेकिन इस बार लॉकडाउन की वजह से कोई कार्यक्रम आयोजित नहीं होगा। आइए जानते हैं साइकिल से जुड़े कुछ रोचक तथ्य-
ये है दुनिया की सबसे महंगी साइकिल
दुनिया की सबसे महंगी साइकिल की बात करें तो सबसे पहला नंबर ट्रेक बटरफ्लाई मैडोन (Trek Butterfly Madone) का है। जिसकी कीमत 5 लाख अमेरिकी डॉलर है। अगर भारत के हिसाब से देखा जाए तो इसकी कीमत 3 करोड़ 77 लाख के आसपास आएगी। इस साइकिल पर डेमियन हेयरस्ट ने डिजाइन बनाई है। लांस आर्मस्टॉन्ग फाउंडेशन को अपने लिए फंड जुटाना था, जिस वजह से इतनी ज्यादा कीमत पर इसकी नीलामी हुई थी। वहीं दूसरे नंबर पर ट्रेक योशिमोतो नारा है। इसकी कीमत दो लाख अमेरिकी डॉलर यानी 1.51 करोड़ रुपये है।
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सबसे तेज साइकिल का रिकॉर्ड
सबसे महंगी साइकिल के बाद अब बात करते हैं, सबसे तेज साइकिल की। ब्रिटेन के आर्किटेक्ट नील कैंपबेल ने अगस्त 2019 में सबसे तेज साइकिल चलाने का रिकॉर्ड बनाया था। उस दौरान उन्होंने 280 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से साइकिल चलाई थी। इतनी ज्यादा रफ्तार हासिल करने के लिए उन्होंने साइकिल को मॉडिफाई किया था और एक खास पैंडल लगाई थी। तेज रफ्तार साइकिल पर हवा का दबाव ज्यादा न पड़े इसलिए एक कार का इस्तेमाल किया गया था, जो उनके बगल चल रही थी। शुरूआत में कार ने उन्हें वेब (गति) देने में मदद की थी, उसके बाद कैंपबेल खुद साइकिल चलाने लगे थे। कैंपबेल के मुताबिक उन्होंने पहिये छोटे रखे थे। इसके साथ ही रीम और बाकी कई पुर्जों को मॉडिफाई किया था, जिस पर करीब 13 लाख रुपये खर्च हुए थे।
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18वीं शताब्दी में हुआ साइकिल का अविष्कार
साइकिल के इस्तेमाल का विचार 18वीं शताब्दी में यूरोपीय देशों में शुरू हो गया था। इस बीच 1816 में एक कारीगर ने साइकिल का डिजाइन तैयार कर डाला। उस दौरान उसे हॉबी हॉर्स या काठ का घोड़ा कहते थे। इसके बाद 1865 में पेरिस में साइकिल का नया मॉडल आया, जिसमें पैर से घुमाए जाने वाले पहिए लगे थे। धीरे-धीरे इसकी मांग तेजी से बढ़ती गई। इसके बाद इंग्लैंड, फ्रांस और अमेरिका जैसे देशों ने इसमें कई सुधार करते हुए 1872 में लोहे की साइकिल बनाई, जो काफी आरामदायक थी।
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