औरत मार्च: पाकिस्तानी महिलाओं को क्यों मिल रही हैं हिंसा और बलात्कार की धमकियां?

पाकिस्तान में रुढ़िवादी समूहों के बीच एक कहावत प्रचलित है, "औरत की सही जगह चादर और चार दीवारी में है". यानी नकाब और घर की दहलीज़ के भीतर रहना ही औरत का नसीब है.
लेकिन तमाम हिंसक धमकियों और क़ानूनी याचिकाओं को देखते हुए इस सप्ताहांत पूरे पाकिस्तान की महिलाएं अपने अधिकारों को लेकर इस धारणा के ख़िलाफ़ मोर्चा खोलने वाली हैं.
साल 2018 से पाकिस्तान के कई शहरों में महिला दिवस के मौक़े पर आठ मार्च को 'औरत मार्च' हो रहा है. रुढ़िवादी मुसलमान देश में यह कोई छोटा कदम नहीं है जहां बहुत सी औरतें आम तौर पर सार्वजनिक जगहों पर सुरक्षित नहीं महसूस करतीं क्योंकि उन्हें उत्पीड़न झेलना पड़ता है.
बीते साल जिन महिलाओं ने इसमें हिस्सा लिया उन्हें काफ़ी आलोचना झेलनी पड़ी, ख़ासतौर पर ऑनलाइन. कुछ महिलाओं का कहना है कि उन्हें बलात्कार और हत्या की धमकियां भी मिली हैं.
इस साल दोनों तरफ से हो रही बहस में आवाज़ें बुलंद हो रही हैं.
धार्मिक और दक्षिणपंथी समूहों का मानना है कि यह मार्च इस्लाम के ख़िलाफ़ है. यही नहीं, उदारवादी गुटों का भी कहना है कि मार्च की आवाज़ बुलंद करने वाली महिलाएं उत्तेजक दृष्टिकोण रखती हैं.

कराची में इस मार्च की आयोजक 38 वर्षीय एक महिला ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर कहा, "जिस समाज में हम रहते हैं वहां महिलाओं के अधिकारों और अधिकारों की मांग को लेकर गहरे संघर्ष हैं. बाहर निकलने का अधिकार, सड़कों पर खुलकर घूमने का अधिकार."
औरत मार्च का ख़याल तब आया जब कुछ महिलाओं ने अपने नेटवर्क बढ़ाने और अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर कराची के एक पार्क में जुटने की योजना बनाई थी जिसमें हिंसा और उत्पीड़न से आज़ादी की मांग उठाना एक मुद्दा था.
उसके बाद यह एक बड़े आंदोलन में तब्दील हो गया और इसमें ट्रांसजेंडर भी शामिल हो गए. ये सब महिलाओं की सुरक्षा के लिए बेहतर कानून लाने, मौजूदा कानूनों को लागू करने, जागरूकता बढ़ाने और नज़रिया बदलने की मांग कर रही हैं.
इस मार्च को अमरीका में हुए ऐसे ही एक कार्यक्रम से प्रेरणा मिली लेकिन इसकी वजह घरेलू घटनाएं हैं. सोशल मीडिया स्टार कंदील बलोच की हॉनर किलिंग और दूसरी कई घटनाओं ने बीते वर्षों में महिलाओं के ख़िलाफ़ हो रही हिंसा को उजागर किया है.
औरत मार्च की शुरुआत करने वाले मुख्य समूह से जुड़ी एक आयोजक ने कहा, "युवा नारीवादियों की आवाज़ बुलंद करने की ज़रूरत पहले से थी. हम हालात को चुनौती दे रहे हैं. हम समाज में महिला विरोधी विचारधारा को चुनौती दे रहे हैं.''

'अपना अधिकार छीन लो'
इस साल औरत मार्च की मुख्य मांग महिलाओं को आर्थिक न्याय दिलाना है. उनके घोषणा पत्र में भी इसका ज़िक्र है.
लेकिन यह नारा साल 2019 का है जिसने बड़े स्तर पर लोगों का ध्यान इस मार्च की तरफ खींचा. इसमें हिस्सा लेने वाली महिलाओं को मुख्यधारा की मीडिया की आलोचना और अपशब्द झेलने पड़े, साथ ही ऑनलाइन ट्रोलिंग हुई.
इस मार्च का नारा था, "मेरा जिस्म, मेरी मर्ज़ी", इस पर बीते साल काफ़ी हंगामा हुआ और इस साल भी यह मार्च विवादों में घिरा है.
औरत मार्च के समर्थकों का कहना है कि इस नारे का मतलब है एक महिला का उसके अपने शरीर पर नियंत्रण होना. लेकिन आलोचकों ने इसे अश्लील, यौन संबंध से जुड़ा और एक महिला की बेशकीमती मर्यादा के ख़िलाफ़ बताया.
इसके साथ ही लोगों ने यह भी कहना शुरू कर दिया है कि ये आंदोलन पश्चिम से प्रेरित है.

'मेरा जिस्म, मेरी मर्ज़ी' की कहानी
नूर (बदला हुआ नाम) ने बीते साल औरत मार्च के लिए एक पोस्टर बनाया. उन्होंने यह नारा लिखा क्योंकि वो महिलाओं के अधिकारों और उनकी ख़्वाहिशों को सामने लाना चाहती थीं. बिना उत्पीड़न या बलात्कार के डर के वो ये तय कर सकें कि उन्हें किसके साथ रहना है, क्या पहनना है और अपने शरीर के साथ क्या करना है.
बीबीसी से बातचीत में नूर ने कहा कि लोगों के नकारात्मक रवैये से वो इतनी डर चुकी हैं कि वो अपना असली नाम बताने से भी घबराती हैं.
इसका समर्थन करने वाले लोग इस नारे से इत्तेफ़ाक रखते हैं लेकिन उनका मानना है कि जब आप सामाजिक नियमों को बदलना चाहते हैं तो इसी की ज़रूरत है.
28 साल की एक वॉलंटियर ने कहा, "एक तरीका (मुद्दा उठाने का) है कि आप धीरे-धीरे काम करिए और उम्मीद कीजिए कि कुछ दशकों बाद उसका परिणाम आ ही जाएगा. दूसरा तरीका यह है कि अपने अधिकार छीन लीजिए क्योंकि काफ़ी वक़्त हो चुका है. यह बेहद मुश्किल और तनावपूर्व रहा है."
इस समूह ने लगातार कोशिशें की हैं कि सोशल मीडिया और कुछ कार्यक्रमों के ज़रिए इस मुहिम के प्रति जागरूकता लाई जाए. लेकिन ऐसा लगता नहीं है कि आंदोलन को लेकर इस साल भी वो गहरे होते मतभेद और तनावपूर्ण बातों को रोकने में कामयाब हो पाए हैं.
आयोजकों ने जो पोस्टर और बैनर लगाए थे उन्हें तोड़ दिया गया है. सोशल मीडिया पोस्ट में इसे लेकर तरह-तरह की बातें सामने आई हैं.
एक वॉलंटियर ने कहा, "मुझे लगता है समाज जितना पचा सकता है शायद हम उससे तेज़ जा रहे हैं. लेकिन हम उन्हें यह सिखा रहे हैं कि अपने भीतर के ज़हर को कैसे मारें जो उन्हें समाज, संस्कृति और धर्म ने दिया है. हम उन्हें नई और बेहतर चीज़ें सिखाना चाहते हैं."
यह विवाद लाहौर की एक अदालत में पहुंच चुका है जहां बीते महीने मार्च रोकने के लिए याचिका दी गई थी. याचिका में कहा गया था कि यह मार्च इस्लाम के ख़िलाफ़ है और यह अश्लीलता, ईशनिंदा और अराजकता को बढ़ावा दे रहा है.
हालांकि अदालत ने मार्च की अनुमति दे दी है लेकिन आयोजकों को यह हिदायत भी दी है कि इसमें शामिल होने वाले लोग "शालीनता और नैतिक मूल्यों का पालन करें".
जैसे-जैसे मार्च का वक़्त नजदीक आ रहा है स्थिति और तनावपूर्ण होती नज़र आ रही है.
इन सब के बीच लोग विरोधियों की निंदा भी कर रहे हैं और आयोजकों को सावधानी बरतने की सलाह भी दे रहे हैं.
I’m sure those who have been organizing the Aurat March are experienced, have been working for years for the cause of women..they have a better idea of what should and should not be done. I write out of pure observation. #WhyIMarch pic.twitter.com/D3AUQYM3Re
— Mahira Khan (@TheMahiraKhan) March 4, 2020
पाकिस्तान की जानी-मानी अभिनेत्री माहिरा ख़ान ने एक ट्वीट करके कहा कि वो इस मार्च का समर्थन करती हैं लेकिन आयोजकों को भड़काऊ पोस्टर और प्लेकार्ड इस्तेमाल करने से बचना चाहिए.
अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार समूह भी इस मार्च के समर्थन में उतरे हैं. एमनेस्टी इंटरनेशनल ने आंदोलनकारियों के उत्पीड़न और हिंसक धमकियों की निंदा की है.