भारत-चीन तेल सस्ता करने के अमेरिकी फ़ैसले के साथ, ओपेक से हो सकता है टकराव
अमेरिका ने ओपेक देशों को तेल का उत्पादन तेज़ी से बढ़ाने के लिए मनाने की कोशिश की पर वो नहीं माने. इसके बाद अमेरिका ने कई देशों के साथ मिलकर अपने रणनीतिक भंडारों का उपयोग करने का फ़ैसला लिया.
अमेरिका ने मंगलवार को घोषणा की कि पेट्रोल के दाम कम करने के लिए वो अपने "रणनीतिक भंडार" से 5 करोड़ बैरल कच्चा तेल जारी करेगा, ताकि इससे अमेरिकी लोगों को राहत मिले.
उसका यह ठोस कदम केवल अमेरिका तक ही सीमित नहीं रहा. बाइडन सरकार चीन, जापान, ब्रिटेन, भारत और दक्षिण कोरिया जैसी दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को भी ऐसा करने के लिए मनाने में कामयाब रही. जाहिर सी बात है कि इससे बाज़ार में तेल की आपूर्ति बढ़ाने में मदद मिली.
पिछले डेढ़ साल से, तेल उत्पादक देशों के संगठन (ओपेक) के सदस्य देशों और रूस (सभी को मिलाकर 'ओपेक प्लस') के बीच एक सहमति बनी हुई है. इसके जरिए कोरोना की वजह से तेल की मांग कम हो जाने के चलते दाम के काफ़ी कम हो जाने के बाद इसका उत्पादन भी घटा दिया गया.
कच्चे तेल के इन प्रमुख उत्पादकों की कोशिश है कि इसके दाम बढ़ाने के लिए बाज़ार को नियंत्रण में रखा जाए.
अमेरिका ने ओपेक के सदस्य देशों को कोरोना का असर कम होने के बाद तेल का उत्पादन तेज़ी से बढ़ाने के लिए मनाने की कोशिश की. लेकिन इन देशों का कहना है कि वो अपने उत्पादन को धीरे-धीरे और सीमित मात्रा में ही बढ़ाएंगे.
विश्लेषकों के अनुसार, अमेरिका की सरकार ने ऐसे हालात से निपटने के लिए जो फ़ैसला लिया है वो अभूतपूर्व है. इन लोगों की राय में, रणनीतिक भंडार के जरिए दाम घटाने की कोशिश से अमेरिका और ओपेक देशों के बीच तनाव पैदा हो सकता है.
तेल के आपातकालीन भंडार
अमेरिका ने अपने रणनीतिक पेट्रोलियम भंडार (एसपीआर) को अरब-इसराइल युद्ध के दो साल बाद 1975 में बनाया था. असल में 'योम किप्पुर युद्ध' में पश्चिमी देशों के इसराइल का समर्थन करने से नाराज़ अरब देशों ने पश्चिमी देशों को तेल बेचने पर रोक लगा दी थी. इससे तब एक आर्थिक संकट पैदा हो गया था.
इस चलते 1974 तक कच्चे तेल के दाम चौगुने हो गए और अमेरिका में तेल की क़िल्लत पैदा हो गई.
उसी दौरान अमेरिका ने दुनिया के तेल बाज़ार के उतार-चढ़ाव और आपूर्ति में होने वाली रुकावट से ख़ुद को बचाने के लिए कच्चे तेल के रणनीतिक भंडार को स्थापित करने का फ़ैसला लिया.
उसके बाद कच्चे तेल के दूसरे बड़े उपभोक्ताओं ने भी यही काम किया. लेकिन अमेरिका का रणनीतिक भंडार दुनिया में सबसे बड़ा है. फिलहाल इसकी क्षमता क़रीब 62 करोड़ बैरल की है. इसे बैटन रूज (लूसियाना) से लेकर फ़्रीपोर्ट (टेक्सास) के बीच खोदी गई कई गुफाओं में बनाया गया है.
अतीत में अमेरिका इस आपातकालीन भंडार का कई बार सहारा ले चुका है. उसने ऐसा 1991 के खाड़ी युद्ध या 2005 में कैटरीना तूफ़ान के समय किया था.
अमेरिका ने दूसरी आपात स्थितियों में अपनी कई रिफ़ाइनरियों को हालात सामान्य होने तक "उधार" में कच्चे तेल की आपूर्ति की. ऐसा तब हुआ जब किसी वजह से कच्चे तेल की आपूर्ति प्रभावित हुई. हालांकि अभी ऐसी कोई परिस्थिति मौजूद नहीं है.
यूरेशिया ग्रुप कंसल्टेंसी में एनर्जी, क्लाइमेट एंड रिसोर्सेज़ के प्रबंध निदेशक राद अल कादिरी ने इस बारे में बीबीसी को बताया, "यह बहुत असामान्य कदम है. अमेरिका ने पहले जब कभी एसपीआर से तेल जारी करने का फ़ैसला किया तब इसकी आपूर्ति में कोई बड़ी रुकावट आई थी. इसने 2011 में ऐसा किया, तब लीबिया में गद्दाफ़ी शासन के अंत के बाद वहां से तेल का निर्यात रूक गया था.''
अल कादिरी कहते हैं, ''अमेरिका ऐसे ही वक़्त पर इन भंडारों का उपयोग करता है. अमेरिका ने अतीत में एसपीआर से कम मात्रा में तेल की निकासी की. उसने हमेशा तेल की आपूर्ति में रुकावट होने पर ही ऐसा किया. दाम घटाने के लिए या इतनी बड़ी मात्रा में उसने तेल की निकासी कभी नहीं की."
महंगाई कम करने का प्रयास
अल कादिरी यह भी बताते हैं कि अमेरिका ने ऐसा कदम 2008 में नहीं उठाया था, जबकि तेल के दाम तब क़रीब 150 डॉलर प्रति बैरल के ऐतिहासिक स्तर तक पहुंच गए थे. अभी तो एक तेल की क़ीमत 80 डॉलर प्रति बैरल से थोड़ा ही अधिक है.
लेकिन बाइडन प्रशासन की नज़र दूसरे आंकड़ों पर है. व्हाइट हाउस ने अपने एक बयान में कहा, "अमेरिकी उपभोक्ता गैस स्टेशनों के साथ अपने घर के हीटिंग बिलों और व्यवसायों पर पड़े तेल के बढ़े दामों का असर महसूस कर रहे हैं, क्योंकि महामारी के बाद बढ़ती मांग के अनुरूप कई बार तेल की आपूर्ति नहीं बढ़ी."
अमेरिका में इस मंगलवार को पेट्रोल की औसत क़ीमत 3.40 अमेरिकी डॉलर प्रति गैलन थी. इस तरह इसकी क़ीमत पिछले एक साल में 62 फ़ीसदी बढ़ गई. साल भर पहले इसका दाम केवल 2.11 डॉलर ही था. अमेरिका जैसे देश में जहां तेल ऊर्जा का मुख्य स्रोत है, बहुत मायने रखता है. अमेरिका की कुल ऊर्जा ज़रूरत का लगभग 35 फ़ीसदी तेल से पूरा होता है.
यदि इसमें महामारी के चलते आपूर्ति में आई बाधाओं को भी जोड़ दें तो अमेरिका में पिछले साल के अक्टूबर से अब तक महंगाई में 6.2 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हो गई है. महंगाई का ये आंकड़ा पिछले 30 सालों में सबसे अधिक है.
बाइडन ने मंगलवार को व्हाइट हाउस से जारी अपने संदेश में कहा, "आज हम तेल के दाम कम करने के लिए एक बड़ा कदम उठाने जा रहे हैं. यह ऐसा प्रयास है जो पूरी दुनिया में फैल जाएगा. इससे गैस स्टेशन तक आपकी पहुंच हो जाएगी."
- रूस-सऊदी का झगड़ा भारत के लिए ख़तरा या फ़ायदे का सौदा?
- कोरोना वायरसः अमरीका में तेल इतना पानी-पानी क्यों हो गया?
बाइडन का फ़ैसला राजनीतिक संकेत भी
यदि अमेरिका के रणनीतिक भंडार से कच्चे तेल की निकासी एक असाधारण कदम है, लेकिन यह तब और भी असाधारण हो जाता है कि इसे कई देशों के साथ मिलकर उठाया जा रहा है. ऐसा 2011 में लीबिया में गद्दाफ़ी की सत्ता के अंत होने के बाद से नहीं हुआ था.
इसके बावजूद, ये स्पष्ट नहीं है कि इस पहल से तेल की क़ीमत में ख़ासी कमी हो पाएगी या यदि ऐसा होता भी तो इसका कितना स्थायी प्रभाव हो पाएगा.
वास्तव में मंगलवार को ब्रेंट क्रूड (कच्चे तेल की यूरोप की मानक दर) और डब्ल्यूटीआई (अमेरिका की मानक दर) के दाम घटना के बजाए बढ़ गए.
विश्लेषकों का मानना है कि बाज़ार को पहले से उम्मीद थी कि अमेरिका अपने रणनीतिक भंडार से तेल की निकासी की घोषणा करने वाला है.
वैसे इस कदम का वास्तविक प्रभाव दो चीज़ों पर निर्भर करेगा. पहला ये कि तेल को बाज़ार मैं कैसे छोड़ा जाता है और दूसरा कि ओपेक प्लस देशों की इसे लेकर कैसी प्रतिक्रिया रहती है.
- सऊदी अरब ने तेल उत्पादन पर ऐसा क्या कह दिया कि भारत चिढ़ गया
- सऊदी अरब के फ़ैसले से क्यों निराश है भारत
अलकादिरी इस बारे में कहते हैं, "असल सवाल समय का है कि ये तेल कब और कितनी जल्दी बाज़ार में आ पाते हैं. यदि इसकी पूरी मात्रा एक ही समय में आ गई तो कच्चे तेल के दाम अहम प्रभाव पड़ेगा. लेकिन जैसी इस योजना को बनाया गया है, उसे देखते हुए इसे आने में कई महीने लगेंगे. और अभी तक ये स्पष्ट नहीं है कि सरकार कितना तेल तुरंत जारी करने में सक्षम हो पाएगी."
हालाँकि वो चेतावनी देते हुए कहते हैं कि बाइडन के इस फ़ैसले का उद्देश्य तेल की दर घटाने की बजाय कुछ और है. वो कहते हैं, "सरकार तेल के दाम कम करने की बजाय ये जताने की कोशिश में है कि वो पूरी कोशिश से महंगाई कम करने की कोशिश कर रहे हैं."
इसे अमेरिका के दूसरे देशों को जोड़ने की कोशिश से भी समझ सकते हैं. असल में बाइडन सरकार अपनी इस पहल से कोशिश कर रही है कि उसकी छवि ऐसी बने कि वो तेल की क़ीमत कम करने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी प्रयास कर रही है.
अल कादिरी बताते हैं कि दूसरे देश भी महंगाई से जूझ रहे हैं, लेकिन अमेरिका के साथ वो इसलिए आ रहे हैं कि उनके संबंध उससे बेहतर हो सकें. वो बताते हैं कि चीन ने अपने रणनीतिक भंडार का पहले ही इस्तेमाल किया है. ऐसा महंगाई ओर दूसरी समस्याओं से निपटने के लिए किया गया था. लेकिन अब वो यदि अमेरिका के साथ आ रहा है तो इसलिए कि वो चाहता के उससे उसका तनाव कम हो जाए.
हालांकि अमेरिका के साथ पहल करने वाले कई देशों का योगदान उसकी तुलना में बहुत कम होगा. उदाहरण के लिए, ब्रिटेन अपने रिज़र्व भंडार से केवल 15 लाख बैरल तो जापान केवल 42 लाख बैरल जारी करेगा.
गेंद अब ओपेक प्लस देशों के पाले में
बाइडन की ताज़ा पहल 'ओपेक प्लस' देशों के साथ तनाव पैदा कर सकती है. ओपेक प्लस ने अमेरिका के इस कदम को उठाने के पहले ही चेतावनी दे दी थी कि यह अनावश्यक कदम है. उसने कहा कि यदि कच्चे तेल के बड़े उपभोक्ताओं ने अपने रणनीतिक भंडार का उपयोग किया तो उनके सदस्य देश भी इस पर कार्रवाई करेंगे.
शिकागो की कंसल्टेंसी फ़र्म 'प्राइस फ़्यूचर्स' के पीटर फ़्लिन जैसे कई विश्लेषकों का मानना है कि ऐसी पहल आमतौर पर नतीज़े नहीं देती.
उन्होंने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया, "इतिहास बताता है कि एसपीआर से कच्चे तेल को निकालने का केवल थोड़े वक़्त तक ही असर होगा. और ये कदम ओपेक प्लस के साथ तेल युद्ध की एक खुली घोषणा है."
अप्रैल 2020 में ओपेक प्लस के सदस्य देशों ने एक समझौता किया. इसके तहत उन्हें बाजार में कच्चे तेल की आपूर्ति को धीरे-धीरे करके ही बढ़ाना है. इसके अनुसार, हर महीने तेल की आपूर्ति में केवल 4 लाख बैरल की ही वृद्धि हो सकती है.
हालांकि ये वृद्धि भी अपने आप नहीं हो जाएगी. ऐसा तभी हो सकता है कि जब होने वाली बढ़ोतरी का मूल्यांकन करने के बाद सरकारें उस पर अपनी मुहर लगा दें.
अल कादिरी कहते हैं, "इसे हर महीने बाजार के प्रबंधन के लिए बतौर उपकरण डिज़ाइन किया गया है. उनका मानना है कि आपूर्ति के कम रहने पर दाम बढ़े रहें, लेकिन बहुत अधिक नहीं."
वो बताते हैं कि ओपेक प्लस देशों की चिंता ये है कि आपूर्ति के अधिक होने से अगले साल तेल का भंडार काफ़ी अधिक हो जाएगा. वैसे ओपेक प्लस देश अगले महीने के शुरू में फिर बैठक करके ये तय करेंगे कि उत्पादन में पहले से तय बढ़ोतरी को करना है या नहीं. यदि ओपेक प्लस ने उत्पादन बढ़ाने का फ़ैसला नहीं लिया तो इससे बाइडन की पहल से कच्चे तेल के दाम में होने वाली गिरावट को थामने में मदद मिलेगी.
अल कादिरी कहते हैं, "गेंद अब ओपेक प्लस के पाले में है."
- तेल निर्यातकों की मनमानी रोकने के लिए भारत चीन साथ-साथ
- कोरोना वायरस कच्चे तेल की बादशाहत को ख़त्म कर देगा?
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)