जानिए कैसे श्रीलंका समेत भारत के पड़ोसी देशों को अपने प्रभाव में ले रहा है चीन
श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे ने देश के नए प्रधानमंत्री पद की शपथ ले ली है। राजपक्षे को चीन के लिए नरम रवैया रखने वाला नेता माना जाता है। यह राजपक्षे का ही कार्यकाल था जब चीन की परमाणु पनडुब्बी श्रीलंका पहुंची और फिर हंबनटोटा पोर्ट को लीज पर दे दिया गया।
कोलंबो। श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे ने देश के नए प्रधानमंत्री पद की शपथ ले ली है। राजपक्षे को चीन के लिए नरम रवैया रखने वाला नेता माना जाता है। यह राजपक्षे का ही कार्यकाल था जब चीन की परमाणु पनडुब्बी श्रीलंका पहुंची और फिर हंबनटोटा पोर्ट को लीज पर दे दिया गया। अब एक बार फिर से राजपक्षे सत्ता में हैं तो उम्मीद जताई जा रही है कि चीन भी आक्रामक तरीके से श्रीलंका में वापसी करेगा। श्रीलंका के पूर्व प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे जो भारत की चिंताओं को समझ रहे थे, हमेशा इस बात से इनकार कर देते थे कि उनका देश चीन के जाल में फंस रहा है। अगर भूटान को हटा दें तो मालदीव, नेपाल और एशिया के कई देश ऐसे हैं जहां पर चीनी प्रभाव को साफ देखा जा सकता है। यह भी पढ़ें-महिंदा राजपक्षे की वापसी, चीन के लिए गुड न्यूज और भारत का सिरदर्द
किस देश में चीन का कितना निवेश
चीन का सबसे बड़ा असर अगर किसी देश पर देखा जा सकता है तो वह है नेपाल। नेपाल और भूटान में चीनी प्रभाव को रोकने के लिए मोदी सरकार की ओर से इन देशों के लिए साल 2018-19 में आर्थिक मदद को बढ़ा दिया गया था। चीन, श्रीलंका समेत भारत के पड़ोस में मिलिट्री बेस बना रहा है। पाकिस्तान पर तो चीन के प्रभाव को इनकार किया ही नहीं जा सकता है। चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरीडोर (सीपीईसी) के जरिए चीन पूरी तरह से पाकिस्तान में दाखिल हो चुका है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि जल्द ही पाक में चीन की कॉलोनी नजर आएगी। चीन ने अफगानिस्तान में 210 मिलियन डॉलर, म्यांमार में 2.52 बिलियन डॉलर, बांग्लादेश में 13.87 बिलियन डॉलर, श्रीलंका में 3.11 बिलियन डॉलर, नेपाल में 1.34 बिलियन डॉलर, मालदीव में 970 मिलियन डॉलर और पाकिस्तान में 12.79 बिलियन डॉलर का निवेश किया हुआ है।
नेपाल पर चीन का असर सबसे ज्यादा
नेपाल में इन दिनों प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की सरकार है और राजपक्षे की ही तरह वह भी चीन के लिए नरम रवैया रखने वाले पीएम हैं। नेपाल को चीन के झांसे से बचाने के लिए भारत सरकार ने आर्थिक मदद में 73 प्रतिशत का इजाफा किया। साल 2017-18 के लिए नेपाल को मिलने वाली आर्थिक मदद 375 करोड़ थी तो साल 2018-19 के लिए यह 650 करोड़ पर पहुंच गईं। भूटान के लिए भारत की ओर से 1,813 करोड़ रुपए की मदद जारी की गई। साल 2017-18 में यह रकम 1,779 करोड़ थी। भारत भूटान की सरकार के साथ मिलकर यहां पर हाइड्रो-इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट्स को आगे बढ़ा रहे हैं। इसके अलावा कुछ इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स भी भारत की देखरेख में चल रहे हैं। नेपाल के पीएम ने चीन की मदद से तैयार हो रहे 2 .5 बिलियन डॉलर वाले हाइड्रो पावर प्लांट को फिर से शुरू करने का भी ऐलान किया था। नेपाल में अब तक चीन की मदद वाले 22 प्रोजेक्ट्स को शुरू किया जा चुका है।
संसदीय समिति की रिपोर्ट में भी जताई गई चिंता
इस वर्ष विदेश मामलों पर बनी संसदीय समिति की रिपोर्ट पेश की गई थी। इस रिपोर्ट में इस बात पर ध्यान दिलाया गया था कि चीन, भारत के पड़ोस में कुछ इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स का जाल बिछा रहा है और यह प्रोजेक्ट्स काफी गंभीर हैं। रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत को एक ऐसी रणनीति तैयार करनी होगी जिससे भारत के आसपास चीन के प्रभाव का सामना किया जा सके। कमेटी के मुताबिक भारत को नेपाल और भूटान के साथ साझेदारी को और मजबूत करने की जरूरत है। रिपोर्ट की मानें तो नेपाल और भूटान के लिए सरकार की तरफ से जो फंड्स जारी किए गए हैं, वह चीन का सामना करने की रणनीति का ही प्रदर्शन करते हैं। इस रिपोर्ट में ही भारत-नेपाल बॉर्डर पर सुरक्षा से जुड़ी चिंताओं को फंड में इजाफे की वजह बताया जा रहा था।
भूटान, भारत के पक्ष में लेकिन बांग्लादेश में हाल कुछ और
भूटान एक ऐसा देश है जो भारत की तरफ है। हालांकि भूटान में कई लोग ऐसे हैं जो मानते हैं कि अब चीन के साथ आपसी सहयोग को बढ़ाया जाना चाहिए। साल 2017 में जब डोकलाम विवाद हुआ था तो उस समय भूटान मजबूती से भारत के साथ खड़ा था। डोकलाम पर दरअसल चीन और भूटान का तनाव है। वहीं चीन अब बांग्लादेश में भी अपनी पैठ बना रहा है। चीन की ओर से बांग्लादेश को 24 बिलियन डॉलर का कर्ज दिया गया है। यह कर्ज यहां पर पावर प्लांट्स, सी-पोर्ट्स और रेल नेटवर्क के लिए दिया गया है। चीन ने बांग्लादेश में एक ऐसे समय में निवेश किया है जब भारत ने यहां पर अपने कुछ प्रोजेक्ट्स पहले से लॉन्च कर रखे हैं। चीन की योजना बांग्लादेश में करीब 25 प्रोजेक्ट्स को मदद करने की है। साथ ही चीन ने नौ बिलियन डॉलर का कर्ज भी बांग्लादेश को दिया जो कम ब्याज दरों पर है।