पृथ्वी के बेहद पास से गुजर रहे उल्का पिंड से क्या धरती को होगा कोई नुकसान, पढ़ें NASA की ये रिपोर्ट
पृथ्वी के पास से गुजर रहे उल्का पिंड से क्या धरती को होगा कोई नुकसान, पढ़े NASA की ये रिपोर्ट
बेंगलुरु। दुनिया भर पर छाए कोरोनासंकट के बीच एक के बाद एक प्राकृतिक आपदा के बारे में खबरें आ रही हैं। इसी बीच वैज्ञानिकों ने 29 अप्रैल यानी बुधवार को एक उल्कापिंड के पृथ्वी के काफी करीब से गुजरने का दावा किया हैं।अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी के करीब से कल गुजरने वाला पर्वत समान उल्कापिंड, जिसकी गति 19000 किलोमीटर प्रति घंटा होगी। ऐसे में कोरोना महामारी के संकट के बीच लोगों के मन में बार-बार ये सवाल आ रहा हैं कि क्या इस उल्का पिंड से धरती को कोई नुकसान होगा। जानिए सच क्या कहती हैं नासा की इस बारें में खास रिपोर्ट?
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नासा के वैज्ञानिकों ने कही ये बात
बता दें नासा के सेंटर फॉर नियर-अर्थ स्टडीज के अनुसार, बुधवार 29 अप्रैल को सुबह 5:56 बजे ईस्टर्न टाइम में उल्कापिंड के पृथ्वी के पास से होकर गुजरेगा। वैज्ञानिकों के अनुसार, यह उल्कापिंड पृथ्वी पर वैश्विक प्रभाव पैदा करने के लिए पर्याप्त बड़ा है, लेकिन इससे अभी लोगों घबराने की जरूरत नहीं है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के अनुसार, इसकी गति 19000 किलोमीटर प्रति घंटा तो होगी लेकिन इससे हमारी पृथ्वी को कोई भी नुकसान नहीं होगा। इससे लोगों को बिलकुल भी पैनिक होने की जरूरत नहीं है, वैज्ञानिकों के मुताबिक, इस उल्कापिंड के धरती से टकराने की संभावना बेहद कम है।
डेढ़ महीने पहले नासा ने किया था खुलासा
मालूम हो कि इस उल्कापिंड के बारे में अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने आज से डेढ़ महीने पहले ही सूचना दी थी । वैज्ञानिकों ने तब दावा किया था कि इस उल्कापिंड का आकार किसी पर्वत के जितना है। साथ ही यह आशंका जताई गई थी कि जिस रफ्तार से यह उल्कापिंड बढ़ रहा है, अगर पृथ्वी की सतह से जरा-सा भी टकराया, तो बड़ी सुनामी आ सकती है। लेकिन अब अंतरिक्ष वैज्ञानिक कह रहे हैं कि इससे घबराने की जरुरत नहीं हैं क्योंकि इसके धरती से टकराने की संभावना बहुत ही कम है या न के बराबर हैं।
इसलिए दुनिया भर के वैज्ञानिक पल- पल रखें हैं नजर
बता दें इस उल्का पिंड का नाम 1998 OR2 बताया गया है। जो 29 अप्रैल को यानी बुधवार को कल यह धरती के बेहद करीब से गुजरेगा। अब इसके पृथ्वी के करीब से गुजरने में कुछ ही घंटे शेष हैं। लेकिन वैज्ञानिकों को ये भी भय सता रहा हैं कि अगर इतनी तेजी से पृथ्वी से पास से गुजरते वाले उल्का पिंड ने थोड़ा भी अपना स्थाना परिवर्तन किया तो पृथ्वी के लिए बड़ा संकट होगा। यहीं कारण हैं कि भारत ही नहीं पूरी दुनिया के वैज्ञानिक इस उल्कापिंड की दिशा पर लगातार नजर गड़ाए बैठे हुए हैं।
धरती के पास से गुजरते समय इतनी होगी दूरी
नासा के वैज्ञानिकों के मुताबिक जिस समय यह पृथ्वी के निकट से गुजरेगा तब उसकी यहां से दूरी करीब 4 मिलियन किमी यानी 40 लाख किमी होगी। इस Asteroid की गति पृथ्वी के पास से गुजरते समय 20 हजार मील प्रति घंटा हो जाएगी। CNEOS और नासा के मुताबिक यह खगोलीय घटना 29 अप्रैल को होगी, जिसमें 1998 OR2 सुबह के 5 बजकर 56 मिनट पर यह क्षुद्रग्रह धरती के करीब से गुजरेगा। नासा के मुताबिक यह क्षुद्रग्रह 1.8 किमी से 4.1 किमी के अनुमानित व्यास वाला है। जिस वक्त यह धरती के करीब से गुजरेगा, उस वक्त इसकी गति करीब 20,000 मील प्रति घंटे अनुमानित की गई है।
अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने अपने शोध के आधार पर कर रहे ये दावा
वहीं अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने अपने शोध में पाया हैं कि उल्कापिंड की हर सौ साल में धरती से टकराने की 50 हजार संभावनाएं रहती हैं। लेकिन हुत कम बार ऐसा हुआ है कि इतना बड़ा उल्कापिंड धरती से टकराया हो। हालांकि, कुछ मीटर व्यास के उल्कापिंड जैसे ही पृथ्वी के वायुमंडल में आते हैं, तो जल जाते हैं। इसके कुछ छोटे-छोटे टुकड़े ही धरती की सतह पर पहुंचते हैं, जिनसे किसी प्रकार का कोई नुकसान नहीं होता है।
जानें उल्का पिंड होते क्या हैं?
आकाश में कभी-कभी एक ओर से दूसरी ओर अत्यंत वेग से जाते हुए या पृथ्वी पर गिरते हुए जो पिंड दिखाई देते हैं उन्हें उल्का यानी कि meteor कहा जाता है और उल्काओं का जो अंश वायुमंडल में जलने से बचकर पृथ्वी तक पहुंचता है उसे उल्कापिंड यानी कि meteorite कहा जाता है, हर रात को उल्काएं अनगिनत संख्या में देखी जा सकती हैं लेकिन इनमें से पृथ्वी पर गिरने वाले पिंडों की संख्या बेहद कम होती है।
वैज्ञानिकों के लिए क्या है इसका महत्व
वैज्ञानिकों के लिए इसका बहुत महत्व होता है, चूंकि बहुत दुर्लभ होते हैं, दूसरा इनका महत्व इसलिए भी वैज्ञानिकों के अधिक क्योंकि ये आकाश में विचरते हुए विभिन्न ग्रहों के संरचना के ज्ञान के प्रत्यक्ष स्रोत केवल ये ही पिंड ही है। मालूम हो कि उल्कापिंडों का मुख्य वर्गीकरण उनके संगठन के आधार पर किया जाता है, कुछ तो पिंड लोहे, निकल या मिश्रधातुओं से बने होते हैं और कुछ सिलिकेट खनिजों से बने पत्थर सदृश होते हैं, लोहे, निकल या मिश्रधातुओं को 'धात्विक' और सिलिकेट खनिजों से बने पत्थर को 'आश्मिक उल्कापिंड' कहते हैं।