क्या नेपाल में चीन के खिलाफ बढ़ते जनाक्रोश को दबा पाएगी ओली-जिनपिंग की जोड़ी
नई दिल्ली- पिछले कुछ महीनों में ऐसे कई मौके आए हैं, जब चीन के खिलाफ नेपाली आवाम का आक्रोश फूट पड़ा है। लेकिन, इस बार चीन के खिलाफ नेपाल में नाराजगी जरा ज्यादा ही मुखर है। क्योंकि, चीन ने ना केवल नेपाली जमीन हड़पकर उसपर कई इमारतें बना ली हैं, बल्कि वहां पर नेपाल के अधिकारियों तक को जाने नहीं दे रहा। हर बार की तरह इस बार भी नेपाल की केपी शर्मा ओली की सरकार इस मुद्दे पर अब तक संदिग्ध चुप्पी साधे हुए है। मीडिया को काठमांडू में सिर्फ यही बताया जा रहा है कि जब तक उसके पास जमीनी स्तर के अधिकारियों की रिपोर्ट नहीं मिल जाएगी, नेपाल सरकार अपनी ओर से कुछ नहीं कहेगी। अब सवाल है कि क्या पिछली घटनाओं की तरह ही इस बार भी केपी शर्मा ओली और उनके चाइनीज कूटनीतिक आका शी जिनपिंग की जोड़ी इस जनाक्रोश को भी दबा पाने में सफल होंगे?
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हुम्ला की घटना के बाद नेपाल में चीन के खिलाफ 'हल्ला बोल'
नेपाल के हुम्ला जिले के लाप्चा गांव में चीन ने गैर-कानूनी तरीके से जो 11 इमारतों का निर्माण किया है, उसके खिलाफ अब वहां के लोगों ने सड़कों पर प्रदर्शन शुरू कर दिया है। पहले खबर आई थी कि चीन की सेना ने जो निर्माण किया है, उसमें बिल्डिंगों की संख्या 9 है। बहरहाल, नेपाल में चीन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन तब शुरू हुआ है, जब नेपाल के स्थानीय अधिकारियों ने इस बात की पुष्टि कर दी है कि चीन ने जबरन नेपाली इलाके पर अतिक्रम कर लिया है। काठमांडू की सड़कों पर प्रदर्शनकारी हाथों में 'गो बैक चाइना' और 'बैक ऑफ चाइना' जैसी तख्तियां लगाए हुए। लोग यही मांग कर रहे हैं कि नेपाल सरकार अब चीन का अतिक्रमण बंद कराए। नेपाल की जमीन उससे वापस ले और पुराने संधि को फिर से लागू किया जाए। ये लोग चीन की विस्तारवादी नीतियों के खिलाफ मुर्दावाद के नारे लगा रहे हैं।
चीन की 'चोरी और सीनाजोरी' के खिलाफ प्रदर्शन
हाल में नेपाल की जिस जमीन पर चीन ने कब्जा किया है, वह कैलाश पर्वत का नजदीकी इलाका बताया जा रहा है। नेपाल के नागरिक चीन की इस हरकत से इसलिए इस बार बहुत ज्यादा भड़के हुए हैं, क्योंकि एक तो उसने नेपाल की मौजूदा सरकार की ढिलाई की वजह से उसकी जमीन पर अवैध निर्माण कर लिया है, ऊपर से नेपाल के ही लोगों को उस इलाके में घुसने से रोक दिया गया है। गौरतलब है कि जिस इलाके में अवैध इमारतों के निर्माण के खिलाफ नेपाल में प्रदर्शन हो रहे हैं, चीन ने उसपर अपना दावा जताया है। यही वजह है कि नेपाली प्रदर्शनकारियों ने चीन के दूतावास के बाहर भी जमकर नारेबाजी की है।
पहले 'पिलर गायब' और फिर जमीन पर किया कब्जा
गौरतलब है कि नेपाल के दूर-दराज वाले हुम्ला के लाप्चा इलाके में चीन की पीएलए की ओर से बनाई गई इमारतों की सूचना सबसे पहले स्थानीय लोगों ने ही दी थी। दरअसल, लगता है कि चीन यहां भी वही खेल खेल रहा है, जो तिब्बत से सटे नेपाल के दूसरे इलाकों में वह पहले भी खेल चुका है। यह बात लाप्चा में चीन के स्थानीय सुरक्षा अधिकारियों से पूछताछ करके लौटे नेपाल के नाम्खा रूरल म्युनिसिपलिटी के चेयरमैन बिष्णु बहादुर तमांग की बातों से भी जाहिर होती है। उन्होंने कहा है, 'उन्होंने (चाइनीज) हमसे कहा कि कोविड महामारी के चलते इस बात पर आमने-सामने की चर्चा संभव नहीं हो पाई कि उन 11 इमारतों का निर्माण चीन के इलाके के अंदर किया गया है और उन्होंने हमसे उस जगह से निकल जाने को कहा। तब हम लौट आए। यह इसलिए हो रहा है कि एक पिलर गायब है।' नेपाल के स्थानी अधिकारी के मुताबिक 8 साल पहले सीमा पर मौजूद 11 नंबर का पिलर सड़क निर्माण के दौरान टूट गया था, जिसके बदले नया नहीं लगाया गया और चीन ने उसी का फायदा उठाया है।
रुई और तेइघा गांवों का भी पहले पिलर 'चुराया' गया था
अब आपको बताते हैं कि चीन की मोडस ऑपरेंडी क्या है। पिछले जून महीने में जब नेपाल के गोरखा जिले के रुई और तेइघा गांवों को तिब्बत (यानी चीन) में मिला लिए जाने पर बवाल मचा था, तब भी यही बात सामने आई थी कि सीमा पर मौजूद पिलर की हेरफेर से चीन नेपाल की जमीनों पर कब्जा करता जा रहा है। यह बात नेपाली कांग्रेस वहां की प्रतिनिधि सभा तक पहुंचा चुकी है। नेपाली कांग्रेस के खत में यह बात लिखी गई थी- 'नेपाल के गोरखा में पिलर नंबर 35 को नेपाल की तरफ करके गोरखा के उत्तरी हिस्से में पड़ने वाले रुई गांव पर चीन ने अतिक्रमण कर लिया है और 72 परिवार अब चीन के तिब्बत ऑटोनोमस रीजन के अधीन हो गए हैं। इसी तरह दारचुला जिले के जिउजिउ के 18 घरों पर भी चीन ने कब्जा जमा लिया है। '
ओली-जिनपिंग की जोड़ी इस बार भी जनाक्रोश दबा देगी ?
असल में चीन कूटनीति को समझने वाले लोग जानते हैं कि तिब्बत के बाद चीन एक के बाद एक भारत के कुछ इलाकों समेत नेपाल और भूटान पर भी कब्जा करना चाहता है। यह साम्यवादी चीन के संस्थापक माओत्से तुंग की 'हथेली और पांचों उंगलियां' वाली खौफनाक कूटनीति का हिस्सा है। जिसमें तिब्बत उसके कब्जे में तो है ही, वह भारत के लद्दाख,अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम के अलावा नेपाल और भूटान को भी उसी तरह से हड़पना चाहता है। लेकिन, नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी को सत्ता और पीएम ओली की कुर्सी शी जिनपिंग के आशीर्वाद से ही कायम है। यही वजह है कि लोकल अफसरों से अलर्ट भेजने के बाद ओली सरकार इस बार भी शांत बैठी हुई है। लेकिन, इस बार नेपाली जनता का विरोध जरा ज्यादा है और वह इसे नेपाली सम्मान के साथ जोड़कर देख रहे हैं।
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