नेपाल में प्रचंड क्या ओली पर पड़ेंगे भारी, जानिए अभी क्या हो रहा
ओली को भारतीय मीडिया में चीन समर्थक कहा जा रहा था. लेकिन संसद को भंग करना क्या उनके हक़ में जाएगा?
नेपाल में सियासी घमासान थमने का नाम नहीं ले रहा है. प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने संसद भंग कर मुल्क में राजनीतिक अस्थिरता ला दी है.
सत्ताधारी नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहाल प्रचंड और केपी शर्मा ओली के खेमों में बँट गई है. दोनों खेमे के नेता दावा कर रहे हैं कि असली नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी उनके साथ है.
दोनों धड़ों की अलग-अलग बैठकें हो रही हैं और एक दूसरे के ख़िलाफ़ तीखे हमले बोल रहे हैं.
अभी तक किसी को पता नहीं है कि किस धड़े के नेतृत्व वाली नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी को प्रासंगिकता मिलेगी. दोनों धड़ों ने चुनाव आयोग के सामने पार्टी पर नियंत्रण रखने के लिए बहुमत होने का दावा किया है.
लेकिन इस बीच गुरुवार को नेपाल में एक अहम घटनाक्रम हुआ. राम बहादुर थापा अचानक से ओली खेमे में चले गए. वो लंबे समय से प्रचंड के सहयोगी रहे हैं. थापा अभी ओली कैबिनेट में गृह मंत्री हैं.
— ☭ Comrade Prachanda (@cmprachanda) December 25, 2020
राजशाही के ख़िलाफ़ आंदोलन में भी थापा प्रचंड के अहम साथी के रूप में रहे थे. थापा के ओली खेमे में जाने को प्रचंड के लिए बड़े झटके के तौर पर देखा जा रहा है. हालाँकि थापा के बाक़ी के ज़्यादातर क़रीबी अब भी प्रचंड के साथ बने हुए हैं.
थापा ने गुरुवार को अपना रुख़ स्पष्ट किया और ओली खेमे वाली सेंट्रल कमिटी की बैठक में शामिल हुए. थापा ने संसद भंग करने के क़दम का समर्थन किया है. थापा ने कहा कि फिर से चुनाव कराने का फ़ैसला एक क्रांतिकारी क़दम है.
नेपाली अख़बार नया पत्रिका के पत्रकार नरेश ज्ञवाली मानते हैं कि अभी प्रचंड का खेमा ओली खेमे पर भारी पड़ता दिख रहा है. वो कहते हैं, ''ओली स्वेच्छाचारी हो गए हैं. वो कभी भारत के पक्ष में दिखाई देते हैं तो कभी भारत के विरोधी. महाकाली संधि में ओली भारत के साथ थे तो पिछले कुछ सालों से वो भारत विरोधी दिख रहे थे. नेपाल में एक धारणा ये भी है कि पूरे राजनीतिक घटनाक्रम में भारत का ओली को समर्थन है.''
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नरेश ज्ञवाली कहते हैं, ''नेपाल की आम जनता ओली के संसद भंग करने से बहुत ख़ुश नहीं है. आम लोगों में सोच है कि प्रचंड और ओली सत्ता के लिए आपस में लड़ रहे हैं. ओली को लगता है कि वो नया जनादेश ले लेंगे पर ऐसा लगता नहीं है. अगर फिर से चुनाव होता है तो नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी का नुक़सान होना तय है.''
प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के प्रेस सलाहकार सूर्य थापा ने गृह मंत्री राम बहादुर थापा और केपी शर्मा ओली की मुलाक़ात की तस्वीर ट्विटर पर पोस्ट की है.
प्रचंड और ओली खेमे की ओर से एक दूसरे पर वार-प्रतिवार हो रहे हैं. नेपाल के अंग्रेज़ी अख़बार काठमांडू पोस्ट के अनुसार प्रधानमंत्री ओली ने प्रचंड पर निशाना साधते हुए कहा है, ''सुनने में आया है कि उन्होंने मुझे पार्टी से निकाल दिया है. यह कोई शतरंज का खेल नहीं है. यह राजनीति है. हमारे पास पूरा अधिकार है कि हम भी कार्रवाई करें. प्रचंड और माधव कुमार नेपाल कम्युनिस्ट आंदोलन को नष्ट करने पर तुले हैं. ये राष्ट्र हित के ख़िलाफ़ हैं.''
प्रचंड ने ओली पर आरोप लगाया है कि वे 1960 की तरह तख्तापलट करना चाहते हैं. प्रचंड ने कहा है, ''1960 में जो कुछ हुआ था उससे बड़ा करने की कोशिश की गई है. किंग महेंद्र ने भी तब लोकतंत्र को ऐसे ही किनारे कर दिया था. नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी उनके पास है.''
कौन-किस पर भारी पड़ेगा?
नेपाल की संसद को प्रतिनिधि सभा कहते हैं. नरेश ज्ञवाली कहते हैं कि नेपाली कांग्रेस पार्टी के ज़्यादातर सांसद प्रचंड के साथ हैं. वो कहते हैं, ''प्रतिनिधि सभा में नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी के कुल 173 सांसद हैं. 88 सांसदों ने ओली के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए कहा था. इसके अलावा 93 सांसदों ने निर्वाचन आयोग से संपर्क कर ओली को संसदीय दल के नेता से हटाने की अर्जी दी थी.''
''इसके साथ ही केंद्रीय समिति में भी 287 सदस्यों ने ओली को हटाने के लिए हस्ताक्षर किए हैं. प्रचंड खेमे का दावा है कि ओली के ख़िलाफ़ केंद्रीय समिति में कुल 310 सदस्य हैं. ओली ने अलग से केंद्रीय समिति का गठन कर लिया है. उनके साथ केंद्रीय समिति में कुल 113 सदस्य थे लेकिन उन्होंने नए 1199 लोगों को सदस्य के तौर पर शामिल किया है.''
प्रचंड खेमे ने ओली को पार्टी अध्यक्ष से हटा दिया है. नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के प्रचंड और ओली दोनों अध्यक्ष थे. प्रचंड ने ओली की जगह माधव नेपाल को दी है. अब पार्टी में प्रचंड के बराबर ही माधव नेपाल का भी क़द होगा.
दूसरी तरफ़ ओली खेमे ने गुरुवार को निर्वाचन आयोग में पार्टी के संविधान के संशोधन के लिए पंजीकरण कराया है. इस संशोधन के अनुसार प्रचंड को शक्तिविहीन कर दिया गया है.
2018 के पार्टी संविधान के अनुसार ओली और प्रचंड दोनों की पार्टी में बराबर की हैसियत थी. ओली के खेमे के प्रवक्ता और नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप ज्ञवाली ने कहा है कि अब पार्टी की सारी शक्ति केंद्रीकृत कर दी गई है. उन्होंने कहा है कि पार्टी में अब कोई दूसरा अध्यक्ष नहीं है.
दोनों खेमों ने गुरुवार को अपनी-अपनी केंद्रीय समिति की बैठक की और दोनों ने एक-दूसरे के ख़िलाफ़ फ़ैसले लिए. हालाँकि दोनों धड़े पार्टी नेताओं और कैडरों को आकर्षित करने में लगे हैं.
दोनों खेमे पार्टी के चुनाव चिह्न सूर्य और पार्टी नाम को लेकर अपना दावा कर रहे हैं. बुधवार को प्रचंड खेमे ने निर्वाचन आयोग को केंद्रीय समिति के 315 सदस्यों के हस्ताक्षर सौंपे थे.
जब ओली और प्रचंड ने अपनी-अपनी पार्टी का विलय कर नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी बनाई थी तब चुनाव आयोग को केंद्रीय समिति में 441 सदस्यों की लिस्ट सौंपी गई थी.
बाद में पाँच और सदस्य जोड़े गए थे. पॉलिटिकल पार्टी एक्ट के अनुसार पार्टी के चुनाव चिह्न और नाम हासिल करने के लिए केंद्रीय समिति में बहुमत की ज़रूरत पड़ती है.
प्रचंड के खेमे ने 29 दिसंबर से संसद भंग करने के ख़िलाफ़ देशव्यापी प्रदर्शन करने की घोषणा की है.