क्या कोल्ड वार-2 का कारण बनेगा कोरोना? अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध से अंतर्राष्ट्रीय शांति को खतरा
क्या कोरोना के कारण दुनिया पर कोल्ड वार-2 का खतरा मंडरा रहा है ? क्या चीन को कोरोना की कीमत चुकानी पड़ेगी ? कोरोना को लेकर अमेरिका और चीन का विवाद अब व्यापार युद्ध में बदल गया है। इस व्यापार युद्ध का अंतर्राष्ट्रीय राजनीति पर प्रभाव पड़ना सुनिश्चित है। क्या दुनिया के देशों को 1950 के दशक की तरह एक बार फिर गहरे तनाव में जीना पड़ेगा ? उस समय सोवियत संघ और अमेरिका के बीच छिड़े शीत युद्ध से विकासशील देशों को बहुत नुकसान उठाना पड़ा था। तो क्या अब अमेरिका और चीन के बीच उपजे तनाव की कीमत अन्य देशों को चुकानी होगी ?
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अमेरिका का व्यापारिक हमला
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अब चीन पर व्यापारिक हमला तेज कर दिया है। उन्होंने शुक्रवार को राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देकर चीन की कंपनी हुवावे (Huawei) पर कई नये प्रतिबंध लगा दिये। हुवावे दुनिया की बड़ी इलेक्ट्रोनिक्स और टेलीकॉम उपकरण बनाने वाली कंपनी है। हुवाई के सेमीकंडक्टर डिजाइन करने में अमेरिकी सॉफ्टवेयर के इस्तेमाल पर पूरी तरह से रोक लगा दी गयी है। हालांकि अमेरिका ने हुवावे को 120 दिनों का ग्रेस पीरियड भी दिया है। लेकिन इसके बाद उसे किसी भी चिप को डिजाइन करने के लिए लाइसेंस लेना होगा। सेमीकंडक्टर का उपयोग स्मार्टफोन और टेलीकॉम उपकरणों के निर्माण में होता है। इसके पहले इस साल जनवरी में भी अमेरिका ने हुवावे पर चीन के लिए जासूसी करने और धोखाधड़ी का आरोप लगाया था। उस समय कंपनी पर कई आपराधिक मुकदमे भी दर्ज कराये थे। अब शुक्रवार को नये अमेरिकी हमले से हुवावे की स्थिति बेहद खराब हो जाएगी। दरअसल चीन टेक्नोलॉजी की दुनिया का बादशाह बनने की महत्वाकांक्षा पाले हुए है। लेकिन अब से उसे जोर का झटका लगा है। ट्रंप अब ‘अमेरिकी फर्स्ट' की नीति पर चल कर खुद अपने देश को तकनीक का राजा बनाने चाहते हैं।
चीन में प्रतिक्रिया
इस साल जनवरी में जब हुवावे पर अमेरिका ने मुकदमा दर्ज कराया था उस समय चीनी लोगों में बेहद गुस्सा फूटा था। तब चीन के लोग अमेरिकी सामान के बहिष्कार की मांग करने लगे थे। एप्पल के मोबाइल फोन और टैबलेट उनके निशाने पर थे। अब तो अमेरिका ने हुवावे की एक तरह से कमर ही तोड़ दी है। उस कंपनी का अंतर्राष्ट्रीय बाजार तो खत्म ही हो जाएगा जिस पर चीन के लिए जासूसी करने का आरोप लगे। अमेरिका की वजह से हुवावे आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में भी प्रतिबंधित है। ऐसे में भला कौन सा देश टेक्नोलॉजी के लिए अपनी सुरक्षा को खतरे में डलाना चाहेगा। हुवावे ने दुनिया के कई देशों के साथ 5जी नेटवर्क मुहैया कराने का करार किया हुआ है। अब ये करार खटाई में पड़ सकते हैं। इतना कुछ होने के बाद अब चीन के लोग यह सोच रहे हैं कि अमेरिका ने उनके खिलाफ अघोषित युद्ध छेड़ दिया है। हुवावे पर नये प्रतिबंध के बाद चीन ने टकराव का कोई संकेत नहीं दिया है। फिलहाल चीन अभी वेट एंड वाच की नीति पर चल रहा है।
क्या कोल्ड वार-2 का खतरा है?
कोरोना के कारण अमेरिका और चीन दोनों दबाव में हैं। कोरोना के कारण चीन की मजबूत अर्थ व्यवस्था तबाह हो गयी है। चीन इस बात से भी परेशान है कि उसे कोरोना वायरस फैलाने के लिए जिम्मेवार ठहराया जा रहा है। इसलिए वह अपनी साख और माली हालत सुधारने के लिए बेचैन है। दूसरी तरफ अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप चीन के खिलाफ भावनाएं भड़का कर 2020 का राष्ट्रपति चुनाव जीतना चाहते हैं। इसलिए उन्होंने चीन के खिलाफ आक्रामक रुख अख्तियार कर लिया है। दोनों की इस होड़ में जुबानी जंग शुरू है। अमेरिका ने चीन को घेरने के लिए अब भारत की मदद मांगी है। अमेरिकी सिनेटर थॉम टिलिस ने भारत के साथ मजबूत सैन्य संबंध की वकालत की है। इतना ही नहीं ट्रंप प्रशासन ने अंतर्राष्ट्रीय ओलम्पिक कमेटी से मांग की है कि वह चीन से 2020 शीतकालीन ओलम्पिक की मेजाबनी छीन ले। यानी अब अमेरिकी ने चीन को अंतर्राष्ट्रीय रूप से अलग-थलग करने के लिए मुहिम छेड़ दी है। ये अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक परिस्थितियां उसी तरह से निर्मित हो रही हैं जैसा कि 1950 के दशक में थीं। तब दुनिया के दो ध्रुव थे। एक ध्रुव सोवियत संघ तो दूसरा ध्रुव अमेरिका। साम्यवादी देश सोवियत संघ की तरफ तो लोकतांत्रिक देश अमेरिका की तरफ। बाद में एक तीसरा गुट बना जो किसी ध्रुव में नहीं था। इन्हें गुटनिरपेक्ष देश माना गया। शीत युद्ध का खात्मा तब हुआ जब सोवियत संघ में साम्यवादी शासन का 1990 में अंत हो गया। लेकिन 1950 से 1990 तक इस गुटबाजी ने दुनिया में हथियारों की होड़ को खूब बढ़ावा दिया। मजबूरी में कई देश अपना राष्ट्रीय विकास करने की बजाय हथियार खरीदने में पैसा लुटाने लगे। इससे अंतर्राष्ट्रीय तनाव और भय में बढ़ोतरी हुई। कई बार परमाणु युद्ध का भी खतरा मंडराया। क्या तीस साल बाद दुनिया फिर एक नये शीत युद्ध की आग में जलने वाली है ? अमेरिका और चीन की होड़ ने शांतिप्रिय देशों की नींद उड़ा दी है।
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