क्या चीन व्यापार के बहाने पाकिस्तान पर कर लेगा कब्जा?
पाकिस्तान में चीन के खिलाफ उठने वाली आवाज अब और तेज हो गयी है। पाकिस्तान के बलूचिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर (गुलाम कश्मीर) में चीन का तो पहले से विरोध हो रहा था। अब लंदन में भी प्रवासी पाकिस्तानियों ने चीन के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन किया है। लंदन में चीनी दूतावास के बाहर प्रदर्शन करने के लिए अमेरिका से भी पाकिस्तानी वहां पहुंचे। गुलाम कश्मीर से ताल्लुक रखने वाले प्रवासियों ने खुल कर अपने गुस्से का इजहार किया। उन्होंने कहा कि चीन सीपेक (चाइना पाकिस्तान इकॉनोमिक कॉरिडोर) के जरिये गिलगित-बाल्टिस्तान में कब से तबाही मचा रहा है लेकिन पाकिस्तान, उसकी हां में हां मिला रहा है। चीन का जो रवैया है उससे एक दिन सीपेक पाकिस्तान के लिए खतरा बन जाएगा। एक संप्रभु देश के रूप में रहना पाकिस्तान के लिए मुश्किल हो जाएगा। कुछ साल पहले पाकिस्तान के सिनेटर ताहिर मशहदी ने संसद (उच्च सदन सीनेट) में कहा था कि चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा के जरिये चीन धीरे-धीरे ईस्ट इंडिया कंपनी की शक्ल अख्तियार करते जा रहा है। जैसे ईस्ट इंडिया कंपनी ने व्यापार के बहाने हिन्दुस्तान पर कब्जा कर लिया था उसी तरह चीन भी पाकिस्तान के साथ कर सकता है।
क्या है सीपेक?
‘चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा' एक विशाल व्यापारिक परियोजना है। चीन और पाकिस्तान मिल कर इस परियोजना पर काम कर रहे हैं। इसके तहत पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह को चीन के शिनजियांग प्रांत के काशगर शहर को जोड़ा जाना है। इसके लिए रेल और सड़क मार्ग का विस्तार किया जा रहा है। ग्वादर से शिनजियांग जाने वाली सड़क करीब 2442 लंबी है। यह सड़क पाकिस्तान के सभी चार राज्यों से गुजरते हुए पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के गिलगित-बाल्टिस्तान के पास चीन के शिनजियांग सीमा में प्रवेश करती है। फिर यह चीन के काशगर शहर तक जाती है। ग्वादर पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत का समुद्रतटीय शहर है। ग्वादर अरब सागर के किनारे स्थित है। यहां से ईरान, ओमान, संयुक्त अरब अमिरात और फारस की खाड़ी नजदीक है। समुद्री व्यापार के लिए ग्वादर एक प्रमुख बंदरगाह साबित होगा। इसलिए चीन अपने फायदे के लिए ग्वादर बंदरगाह को विकसित कर रहा है। इसके जरिये चीन में सीधे 19 मिलियन टन कच्चा तेल भेजना मुमकिन हो जाएगा। चीन को मध्य एशिया और तेल उत्पाद देशों से समुद्री व्यापार के लिए सबसे छोटा मार्ग उपलब्ध हो जाएगा। दूसरी तरफ चीन ने सीपेक के माध्यम से पाकिस्तान को सड़क और रेल यातायात की आधुनिक सुविधा मुहैया कराने का भरोसा दिलाया है। उसने पाकिस्तान को बिजली के मामले में भी आत्मनिर्भर बनाने का वायदा किया है। चीन पाकिस्तान में साढ़े दस हजार मेगावाट बिजली बनाने के प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है।
क्यों है पाकिस्तान को खतरा?
चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा पर 46 विलियन डॉलर खर्च होना है। इस मामले में स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान का कहना है कि उसे यह नहीं मालूम कि 46 विलियन डॉलर में से पाकिस्तान को कितना कर्ज दिया गया है, कितनी एक्विटी है और कितना सामान के रूप में रूप में आना है। पाकिस्तान के सांसद सदन में यह मामला उठा चुके हैं। विरोधी दलों का कहना है कि पाकिस्तान ने इस प्रोजेक्ट के लिए चीन से बहुत बड़ी रकम कर्ज के रूप में ले रखी है। इतना ही नहीं पाकिस्तान ने बिजली की जो नयी दरें निर्धारित की हैं वह चीन के हितों को पूरा करने वाली हैं। सीपेक परियोजना की शर्तें पारदर्शी नहीं होने से पाकिस्तान को बहुत बड़ा नुकसान उठान पड़ सकता है। चीन पाकिस्तान की जमीन और संसाधन से अपने फायदे का ख्याल ज्यादा रखा रहा है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा कोष ने भी सीपेक को पाकिस्तान के लिए नुकसानदेह बताया है। पाकिस्तान की माली हालत खराब है और वह इस परियोजना पर शर्तों के हिसाब से पैसा नहीं खर्च कर पा रहा है। इससे प्रोजेक्ट पूरा होने में अधिक समय लगा रहा है। प्रोजेक्ट में विलंब को लेकर चीन कई बार पाकिस्तान से नाराजगी जता चुका है। अक्टूबर 2019 में जब पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान चीन गये थे तब शि जिनपिंग ने परियोजना की धीमी गति पर सवाल उठाया था। इस समय पाकिस्तान चीन पर इतना आश्रित हो गया है कि वह देश हित में कोई कठोर कदम नहीं उठा सकता।
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पाकिस्तान में चीनी सेना
चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा परियोजना को लेकर चीन के हजारों इंजीनियर, अधिकारी और मजदूर पाकिस्तान में रहते हैं। इनकी सुरक्षा के लिए चीन ने पाकिस्तान में करीब पांच हजार सैनिक तैनात कर रखे हैं। ये सैनिक आधुनिक हथियारों और उपकरणों से लैस हैं। जानकारों का कहना है कि ये चीनी सैनिक कमांडो यूनिट के सदस्य हैं जिनका पाकिस्तानी पुलिस या सेना मुकाबला नहीं कर सकती। पाकिस्तान की जमीन पर विदेशी सौनिकों की उपस्थिति एक दिन बड़ा खतरा बन सकती है। अगर सीपेक के मुद्दे पर कभी विवाद होता है तो चीन पाकिस्तान पर चढ़ बैठेगा। चीनी सैनिक या अधिकारी पाकिस्तानी लोगों को हिकारत की नजर से देखते हैं। ठीक वैसे ही जैसे अंग्रेज अपने शासन के दौरान हिन्दुस्तानियों के देखते थे। पाकिस्तानी नागरिक चीनी अफसरों के इस रवैये से खफा रहते हैं। चूंकि ग्वादर बंदरगाह बलूचिस्तान में है इसलिए वहां चीनियों के खिलाफ आमलोगों में बहुत गुस्सा है। बलूचिस्तान के लोग सीपेक का विरोध कर रहे हैं। बलूचिस्तान को आजाद करने के लिए सशस्त्र संघर्ष भी चल रहा है। चीन इंजीनियरों और मजदूरों पर बलूच विद्रोही कई हमले भी कर चुके हैं। गुलाम कश्मीर में भी चीनियों के खिलाफ गुस्सा है। अगर खुदा ना खास्ता अगर चीनी सैनिकों ने विद्रोहियों के कारण हथियार उठा लिया तो वे भी एक दिन ईस्ट इंडिया कंपनी की तरह पाकिस्तान पर कब्जा कर लेंगे। पाकिस्तान के लोग इसी बात को लेकर चीन का विरोध कर रहे हैं। जब कि पाकिस्तान की सरकार अपने देश हित को भुला कर चीन की कठपुतली बनी हुई है।