क्या अमेरिकी जासूस तिब्बत के जरिए चीन को करेंगे बर्बाद?
अमेरिका ने कहा है, चीन के खिलाफ एक्शन का इंतजार कीजिए। यानी इस बार आर या पार। अमेरिका ने लद्दाख मसले पर भारत का पक्ष लेकर जिस तरह चीन को चेतावनी दी है, उससे दक्षिण पूर्व एशिया का शक्ति संतुलन भारत के पक्ष में झुक गया है। अमेरिका दो तरफ से चीन को घेर सकता है। पहला,दक्षिण चीन सागर में नौसैनिक क्षमता से और दूसरा, तिब्बत में अमेरिकी जासूसों के कवर्ट ऑपरेशन से। भारत-चीन सीमा विवाद को सुलझाने में भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल भी सक्रिय हैं। डोभाल की सबझबूझ और साहस के कारण के उन्हें भारत जेम्स बॉन्ड कहा जाता है। अमेरिका की चीन नीति में तिब्बत एक डिसाइडिंग फैक्टर है। अमेरिकी कांग्रेस (संसद) ने 2018 में एक कानून पारित किया है जिसे रेसिप्रोकल एक्सेस टू तिब्बत एक्ट 2018 कहा जाता है। इस कानून के मुताबिक अगर चीन ने अमेरिका के किसी अधिकारी, नागरिक या पत्रकार को तिब्बत जाने से रोका तो वह भी पारस्परिक रूप से चीनी लोगों के अमेरिका आने पर रोक लगा देगा। इसके बाद चीन मे अमेरिका के राजदूत टेरी ब्रांस्टेड को तिब्बत दौरा के लिए अनुमति दी थी। अब अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने तिब्बत की सार्थक स्वायत्तता का समर्थन कर चीन को बौखला दिया है।
तिब्बत के विद्रहियों से कनेक्शन
मौजूदा समय में किसी विदेशी का तिब्बत में जाना बहुत मुश्किल है। इसके लिए वीजा के साथ-साथ एक स्पेशल टूर परमिट भी लेना पड़ता है। ये परमिट बहुत जांच परख के बाद दी जाती है। तिब्बत चीन का सबसे पिछड़ा और गरीब इलाका है। इसे स्वायत्त क्षेत्र का दर्जा हासिल है लेकिन यहां चीन की मुख्य भूमि की तरह विकास नहीं हुआ है। चीन इस बात को छिपाना चहता है। करीब 27 लाख की आबादी में से अधिकतर लोग किसान या गड़ेरिये हैं। तिब्बती लोगों ने 10 मार्च 1959 को अमेरिकी खुफिया संगठन सीआइए के जासूसों की मदद से आजादी के लिए विद्रोह किया था। तिब्बत की खंबा जनजाति का मुख्य पेशा खेती है। ये लोग बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं। चीन ने तिब्बत में भी भूमि सुधार कार्यक्रम लागू कर दिया जिसका खंबा किसानों ने विरोध किया। 1954 में खंबा किसानों ने चीन के खिलाफ पहला विद्रोह किया जो असफल हो गया। इसके बाद सीआइए ने खंबा विद्रोहियों को समर्थन दिया। खंबा विद्रोही भी आजाद हिंद फौज की तरह युद्ध लड़कर आजादी लेना चाहते थे। तब अमेरिका ने भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से लद्दाख में खंबा विद्रोहियों को प्रशिक्षण देने के लिए जगह की मांग की। नेहरू चीन के प्रभाव में थे। उन्होंने भारतीय हितों की कुर्बानी दे कर तिब्बत पर चीन का अधिकार मान लिया था। भारत के इंकार के बाद अमेरिका ने नेपाल को इस बात के लिए राजी कर लिया। नेपाल के मुस्तांग में तिब्बती विद्रोहियों का प्रशिक्षण शुरू हो गया।
तिब्बती विद्रोहियों का मददगार सीआइए!
दलाई लामा के दो भाई ग्यालो थोंडप और थूस्टन नॉर्बू सीआइए से जुड़ गये। ग्यालो थोडप ने विद्रोहियों का नेतृत्व संभाल लिया। सीआइए ने उन्हें गोरिल्ला युद्ध का प्रशिक्षण दिया। आधुनिक हथियार दिये। तिब्बती लड़ाकों ने छापामार युद्ध से चीनियों को परेशान कर दिया। इसके बाद चीन ने इस इलाके में सेना बढ़ी दी। तिब्बती विद्रोही चीन को छोटे-मोटे नुकसान तो पहुंचाते रहे लेकिन आजादी का सपना पूरा नहीं हो पा रहा था। इस बीच 1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण कर दिया। करीब एक महीने तक लड़ाई चली। 21 नवम्बर 1962 को जब चीन ने भारत से अपनी सेना वापस बुलायी तो अमेरिका ने एक बार फिर भारत को सहयोग के लिए प्रस्ताव दिया। अमेरिका चीन को नीचा दिखाने तिब्बत और लद्दाख के मौजूदा स्वरूप को बदलना चाहता था। भारत इस समय अपने खोये हुए स्मामन को वापस पा सकता था लेकिन पंडित नेहरू इसके लिए राजी नहीं हुए। मजबूर हो कर अमेरिका नेपाल के मुस्तांग से तिब्बती विद्रोहियों को ऑपरेट करता रहा।
अगर अमेरिका और भारत मिल गये तो...
1971 में जब अमेरिका ने चीन से राजनयिक रिश्ते जोड़ लिये तो सीआइए ने तिब्बती विद्रोहियों की मदद बंद कर दी। 10 मार्च 2008 को जब तिब्बत के बौद्ध भिक्षु 1959 क्रांति की वर्षगांठ पर सभा कर रहे थे चीन सैनिकों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। उस समय करीब छह सौ भिक्षु पकड़े गये थे। इनमें एक भिक्षु गोलोक जिग्मे भी थे। दो साल बाद यानी 2010 में गोलोक इलाज के दौरान अस्पताल से भागने में कामयाब रहे थे। गोलोक 2014 से भारत के धर्मशाला में रहते हैं। चीन अक्सर ये आरोप लगाता रहा है कि बोद्ध भिक्षुओं के रूप में अमेरिका के कई जासूस तिब्बत में आते रहे हैं। अमेरिका इससे इंकार करता रहा है। लेकिन अमेरिका कोवर्ट ऑपरेशन के लिए विख्यात है। वह कब कौन सी योजना को अंजाम देगा, कोई सोच भी नहीं पाता। गलवान में बीस सौनिकों की शहादत के बाद भारत में भी चीन के खिलाफ गुस्सा चरम पर है। अगर दोनों मिल गये तो चीन का बचना मुश्किल हो जाएगा।
दक्षिण चीन सागर में शिकंजा
पश्चिमी प्रशांत महासागर में अमेरिका का एक द्वीप है गुआम। गुआम की अवस्थिति चीन, जापान और आस्ट्रेलिया के लगभग बीच में है। यहां से चीन की दूरी करीब चार हजार किलोमीटर है। गुआम अमेरिका का सबसे बड़ा नौसैनिक अड्डा तो है ही, उसके हथियारों का भंडार भी यहीं है। उसके अधिकतर गोला-बारुद और एटम बम यहीं हैं। यहां अमेरिका के कई युद्धपोत और एयरक्राफ्ट कैरियर तैनात रहते हैं। यहां से अमेरिका दक्षिण चीन सागर को नियंत्रित कर सकता है। चार-पांच दिन पहले अमेरिका के 11 बी-52एच लड़ाकू विमानों ने दक्षिण चीन सागर में उड़ान भर कर चीन को आतंकित कर दिया था। ये बमवर्षक विमान एटम बम से लैस हैं। इन लड़ाकू विमानों ने गुआम में तैनात एयरक्राफ्ट कैरियर ‘निमित्ज' से उड़ान भरी थी। इसके अलावा अमेरिका का एक और युद्धपोत ‘यूएसएस रोनाल्ड रीगन' भी इस इलाके में गश्त करते रहता है। अमेरिका के पास 6185 एटम बम हैं। इस मामले में चीन बहुत पीछे है। उसके पास केवल 290 एटम बम हैं। दक्षिण चीन सागर में अमेरिका ने अपने युद्धाभ्यास से चीन को डरा दिया है।
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