पाकिस्तान में हिंदू संत की समाधि पर दो बार क्यों हुआ हमला?
ख़ैबर पख़्तूनख़्वा प्रांत में हिंदू संत की समाधि पर इससे पहले भी हमला हो चुका है और तब भी पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने पुनर्निर्माण का आदेश दिया था.
पाकिस्तान में दिसंबर में एक हिंदू संत की एक सदी पुरानी समाधि को मुसलमानों की दंगाई भीड़ ने तहस-नहस कर दिया था. इस पवित्र स्थल पर ऐसा दूसरी बार हुआ है.
पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय ने देश के उत्तर-पश्चिम में स्थित करक ज़िले के अधिकारियों को आदेश दिया है कि वे श्री परमहंसजी महाराज की समाधि का पुनर्निर्माण का रास्ता साफ़ करें. लेकिन इस हमले से देश का हिंदू समाज असुरक्षित महसूस कर रहा है और सरकार पर आरोप लग रहे हैं कि वह देश के धार्मिक अल्पसंख्यकों को सुरक्षा देने में नाकाम रहा है.
पाकिस्तान में हिंदुओं की आबादी 2 फ़ीसदी से कम है. देश में हिंदुओं के लिए पूर्वाग्रह बहुत गहरी जड़ें जमाए हुए है.
1997 में श्री परमहंसजी महाराज की समाधि पर पहला हमला हुआ था जिसके बाद 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे दोबारा बनाने का आदेश दिया था. इसके बाद से हिंदू समाज के लोग इसके पुनर्निर्माण में लगे हुए थे.
इसी प्रक्रिया में इस समुदाय ने समाधि से जुड़े घर को ख़रीदा था और हिंदू श्रद्धालुओं के विश्राम स्थल के रूप में इस जगह का मरम्मत का काम चल रहा था.
इससे स्थानीय मुसलमानों में ग़ुस्सा था कि हिंदू समाज इस 'मंदिर' का विस्तार कर रहा है.
इसके ख़िलाफ़ दिसंबर में निकाली गई एक रैली अचानक दंगाई भीड़ में तब्दील हो गई.
हमला कैसे हुआ?
यह रैली 30 दिसंबर को आयोजित की गई थी और इसका नेतृत्व स्थानीय मौलवी मोहम्मद शरीफ़ कर रहे थे जिनका संबंध धार्मिक पार्टी जमीयत उलेमा ए इस्लाम से है. यह वही मौलवी हैं जिन्होंने 1997 में हुए हमले का नेतृत्व किया था.
चश्मदीदों का कहना है कि मौलवी ने रैली में शामिल होने वाले लोगों को उकसाया और फिर भीड़ ने हथौड़ों से समाधि की दीवार को तोड़ दिया और उसमें आग लगा दी.
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पाकिस्तान के अल्पसंख्यक आयोग ने जो रिपोर्ट बनाई है उसमें बताया गया है कि इस दौरान क़ीमती चीज़ों को नुक़सान पहुंचाया गया, इनमें बर्मा की सागवान की लकड़ी के सुंदर दरवाज़े और खिड़कियां शामिल थीं, साथ ही हिंदू संत की समाधि के सफ़ेद संगमरमर के पत्थरों को नुक़सान पहुंचाया गया.
रिपोर्ट कहती है, "पूरी तस्वीर... एक बड़ी तबाही को दिखाती है."
A hindu temple was demolished by religious extremists in karak today. It is very shameful moment for us because it reflects the way of how we treat minorities in our country.
— Ihtesham Afghan (@IhteshamAfghan) December 30, 2020
You can't run a federation unless and until the rights of minorities are protected. Strongly condemnable. pic.twitter.com/PJOKZA3a1l
हालांकि, इस रैली के दौरान समाधि के पास पुलिस और सुरक्षा गार्ड भी थे लेकिन वे दंगाई भीड़ को रोकने में नाकामयाब रहे. हमले के बाद पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश गुलज़ार अहमद ने कहा, "वे दंड के भाव से बचकर चले गए." साथ ही उन्होंने कहा यह घटना 'पाकिस्तान के लिए अंतरराष्ट्रीय शर्म' का कारण बनी है.
इस मामले में मौलवी मोहम्मद शरीफ़ समेत 109 लोगों को गिरफ़्तार किया गया है. इसके अलावा 92 पुलिस कर्मियों को सस्पेंड किया गया है जिनमें ड्यूटी पर रहे एसपी और डीएसपी भी शामिल हैं.
स्थानीय पुलिस इंस्पेक्टर जनरल सनाउल्लाह अब्बासी ने कहा, "घटनास्थल पर 92 पुलिस कर्मी मौजूद थे लेकिन उन्होंने कायरता और लापरवाही दिखाई."
समाधि पर उस समय कोई भी हिंदू व्यक्ति नहीं था क्योंकि उस जगह पर धार्मिक यात्रा के दौरान ही श्रद्धालु आते हैं और वहां कोई रहता नहीं है. इस वजह से इस घटना में न कोई घायल हुआ और न ही किसी की जान गई.
विवाद आख़िर क्यों है?
ख़ैबर पख़्तूनख़्वा के टेरी गांव में इस समाधि का निर्माण 1919 में किया गया था.
श्री परमहंसजी महाराज के भक्त पाकिस्तान के साथ-साथ भारत और दुनिया के कई हिस्सों में हैं.
गांव में रहने वाले एक शिक्षक, पत्रकार और शोधार्थी वसीम खटक कहते हैं कि इस इलाक़े में हिंदुओं की बड़ी आबादी रहा करती थी जो व्यापार करती थी और क़र्ज़ दिया करती थी. इस इलाक़े में हिंदू और मुसलमान एक मिली-जुली संस्कृति में रहा करते थे.
खटक बताते हैं कि श्री परमहंसजी महाराज 'दिल से क़ुरान को जानते थे और अपने मुस्लिम अनुयायियों को किताब से आध्यामिक मार्गदर्शन देते थे.'
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हिंदुओं ने ही इस समाधि का निर्माण कराया था लेकिन 1947 में भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद टेरी गांव से हिंदू आबादी अपनी संपत्तियां छोड़कर भारत चली गई.
सरकार ने एक ट्रस्ट का गठन किया जिसने इन संपत्तियों का रख-रखाव किया और कभी-कभार श्रद्धालु इस समाधि के दर्शन के लिए आते रहे. समाधि से जुड़ी संपत्ति का रख-रखाव हिंदू संत के अनुयायियों ने किया जिन्होंने बाद में इस्लाम धर्म अपना लिया लेकिन यहां का रख-रखाव जारी रखा.
1960 में इस समाधि की देखभाल करने वाले शख़्स की मौत हो गई और उसके बेटों ने इस जगह को दो स्थानीय मुस्लिम परिवारों को बेच दिया. इसके बाद इस समाधि तक श्रद्धालुओं का आना काफ़ी मुश्किल भरा हो गया क्योंकि उन्हें यहां तक आने के लिए दो घरों से आना होता था जो कि एक परिवार की निजता का भी मामला था.
1990 के मध्य में हिंदू समुदाय ने समाधि तक जाने के लिए एक घर को ख़रीद लिया लेकिन यह ख़रीद ऐसे समय हुए थी जब पाकिस्तानी सरकार में स्थानीय मुस्लिम मौलवियों की पकड़ थी.
1996 में जब मौलवियों को घर ख़रीदने की ख़बर का पता लगा तो मौलवी मोहम्मद शरीफ़ ने हिंदू समुदाय को 'अमेरिका और भारत का एजेंट' घोषित कर दिया और मंदिर को तोड़ने के लिए एक भीड़ का नेतृत्व किया.
इस तबाही के बाद कई कोर्ट केस हुए जो 2015 तक चलते रहे जिसमें आख़िरकार सुप्रीम कोर्ट ने अपना अंतिम फ़ैसला सुनाया और समाधि के पुनर्निर्माण के लिए कहा. हालांकि, यह दो घरों के बीच बहुत छोटा ज़मीन का टुकड़ा था.
इसके बाद स्थानीय सरकार पुनर्निर्माण के लिए फ़ंड देने में लगातार देरी करती रही. आख़िरकार हताश होकर पाकिस्तान हिंदू काउंसिल ने अपने ख़र्चे से समाधि को दोबारा बनवाया और वहां तक जाने के लिए सड़क को चौड़ा करवाया.
अब आगे क्या होगा?
समाधि को दोबारा बनाने के आदेश के साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने स्थानीय प्रशासन को हमले के दौरान ड्यूटी पर मौजूद रहे पुलिस कर्मियों पर कड़ी कार्रवाई के आदेश दिए हैं.
नाम न सार्वजनिक करने की शर्त पर एक सस्पेंड पुलिसकर्मी ने बीबीसी से कहा कि स्थानीय पुलिस के पास ख़ुफ़िया रिपोर्ट थी कि हमला होने की आशंका है लेकिन किसी ने भी मौलवी के ख़िलाफ़ जाना ठीक नहीं समझा.
उन्होंने कहा, "इस इलाक़े में विकास के बावजूद हमारे राज्य की नीति में मौलवी अभी भी प्रासंगिक हैं.
"अगर हम उनके रास्ते में आते हैं तो हमारी नौकरी ख़तरे में पड़ सकती है. इसलिए हमें जब तक कि साफ़ निर्देश न हों हम कुछ नहीं करते. इसी वजह से वे बड़ा क़दम उठाते हैं."
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हिंदू समुदाय के सदस्यों का कहना है कि सिर्फ़ समाधि को दोबारा बना देने से सद्भाव क़ायम नहीं हो जाएगा. शैक्षिक पाठ्यक्रम में बदलाव से इसकी शुरुआत होगी क्योंकि वर्तमान पाठ्यक्रम ग़ैर-मुस्लिमों के प्रति निष्ठुर बनाता है.
पेशावर में हिंदू समुदाय के एक नेता हारून सरब दयाल कहते हैं, "यह सिस्टम की नाकामी है कि एक स्थानीय मुद्दा जिसे क़ानून और संविधान के ज़रिए आसानी से सुलझाया जा सकता था लेकिन वह राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सुर्ख़ी बन गया."
दिसंबर में समाधि पर हमले से एक सप्ताह पहले पाकिस्तान के अल्पसंख्यक अधिकार आयोग की एक बैठक हुई जिसमें कहा गया कि पाकिस्तान में 'अल्पसंख्यकों के साथ व्यवहार में सुधार' की ज़रूरत है.
हमले के बाद आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि अभी भी लंबा रास्ता तय किए जाने की ज़रूरत है.