ट्रंप और मोदी के राष्ट्रवाद आपस में क्यों टकराने लगे
भारत और अमरीका नौवें बड़े कारोबारी साझेदार हैं. भारत को जीएसपी यानी जेनर्लाइज्ड सिस्टम ऑफ़ प्रीफ्रेंस के तहत अमरीका में निर्यात पर जो छूट मिली थी उसका काफ़ी फ़ायदा था.जीएसपी के दायरे से भारत को हटाने के बाद अमरीका में केमिकल, ऑटो पार्ट्स और बर्तनों के निर्यात पर भारत को सात फ़ीसदी से ज़्यादा टैक्स देने होंगे.
अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप भारत पर लगातार दबाव बना रहे हैं कि मोदी सरकार अपने बाज़ार को और खोले. प्रधानमंत्री मोदी नए जनादेश के साथ दूसरी बार प्रधानमंत्री बने हैं और वो ट्रंप प्रशासन से अच्छे संबंधों में कोई कमी नहीं आने देना चाहते हैं.
लेकिन राष्ट्रपति ट्रंप के रुख़ को देखते हुए साफ़ हो गया है कि मोदी के लिए ट्रंप प्रशासन के क़रीब रहने की क़ीमत और दूर होने की चुनौतियों से भी दो चार होना पड़ेगा.
शुक्रवार को डोनल्ड ट्रंप ने भारत को विशेष कारोबार पार्टनर की श्रेणी से हटाने की घोषणा की थी. भारत दशकों से अमरीका की इस कारोबार श्रेणी में था.
अमरीका ने कुछ विकाशील देशों को अपने साथ कारोबार में टैक्स को लेकर छूट दे रखी थी. इसमें भारत भी शामिल था जिसे अमरीका के कुछ ख़ास निर्यात में टैक्स पर छूट मिलती थी. अमरीका की तरफ़ से मिली यह छूट भारत के साथ घनिष्ठ व्यापारिक संबंधों को प्रोत्साहित करने के लिए था.
मार्च महीने की शुरुआत में ही राष्ट्रपति ट्रंप ने अमरीकी कांग्रेस और भारत को सूचित कर दिया था कि वो विशेष कारोबारी दर्जा छीनने जा रहे हैं. ट्रंप के इस रुख़ को भारत पर दबाव बनाने की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी अपने मुल्क के बाज़ार को और खोलें.
अमरीका भारतीय बाज़ार में अपने मेडिकल डिवाइस और डेयरी उत्पाद को लेकर ख़ासी दिलचस्पी रखता है लेकिन मोदी सरकार ने कई शर्तें लगा रखी हैं. पिछले हफ़्ते शुक्रवार को ट्रंप ने कहा, ''मैं इस बात को लेकर आश्वस्त नहीं हूं कि भारत अपने बाज़ार में अमरीका को उचित और पर्याप्त पहुंच देगा.''
ट्रंप अमरीकी मोटरसाइकिल हार्ली डेविडसन पर भारत में भारी टैक्स का उल्लेख कई बार कर चुके हैं और उन्होंने इसे लेकर अपनी निराशा भी कई बार ज़ाहिर की है.
अमरीका की टेक्नॉलजी कंपनियां भारत में विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियों के संचालन पर लगी कई तरह की पाबंदियों को लेकर ख़फ़ा हैं. भारत ने विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियों के लिए भारत में ही डेटा स्टोर रखने की शर्त रखी है और इसे प्रशासन को भी मुहैया कराने का आदेश दिया है.
भारत और अमरीका नौवें बड़े कारोबारी साझेदार हैं. भारत को जीएसपी यानी जेनर्लाइज्ड सिस्टम ऑफ़ प्रीफ्रेंस के तहत अमरीका में निर्यात पर जो छूट मिली थी उसका काफ़ी फ़ायदा था.
जीएसपी के दायरे से भारत को हटाने के बाद अमरीका में केमिकल, ऑटो पार्ट्स और बर्तनों के निर्यात पर भारत को सात फ़ीसदी से ज़्यादा टैक्स देने होंगे.
अमरीकी कांग्रेस की रिसर्च एजेंसी कांग्रेसनल रिसर्च सर्विस के अनुसार 2018 में भारत के कुल 54 अरब डॉलर के गुड्स निर्यात में अमरीका से 11 फ़ीसदी यानी 6.3 अरब डॉलर का निर्यात हुआ था.
ट्रंप के इस फ़ैसले पर भारत की प्रतिक्रिया बहुत ही सधी और सतर्क थी. भारत के वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने अपने बयान में कहा कि भारत अमरीका के साथ कारोबारी संवाद जारी रखेगा लेकिन वो अपने हितों का भी ख़्याल रखेगा.
नरेंद्र मोदी मज़बूत जनादेश के साथ सत्ता में लौटे हैं और बीजेपी राष्ट्रवादी नीतियों को लेकर अपनी प्रतिबद्धता जता रही है. मोदी सरकार चाहती है कि वो अमरीका के क़रीब रहे क्योंकि चीन और अमरीका में जारी ट्रेड वॉर से ख़ुद को अलग रखना चाहती है.
जीएसपी के दायरे से भारत का हटना बड़े झटके की तरह है और यह वैसा ही है जैसे अमरीका चीन के ख़िलाफ़ एक के बाद एक टैक्स लगा रहा है. यह भारत के लिए चिंता की बात है और अब मोदी सरकार नहीं चाहेगी कि अमरीका इसी तरह का कोई अगला क़दम उठाए.
भारत कोशिश कर रहा है कि अमरीका का कारोबारी घाटा उसके साथ कम हो. कई विशेषज्ञ मानते हैं कि जीएसपी के दायरे से हटने के बाद भारत का अमरीका के साथ कारोबारी संवाद में रुख़ नरम रहेगा. टैक्स नीतियों के कारण हाल के वर्षों में अमरीका और भारत में तनाव बढ़े हैं. भारत का कहना है कि उसका टैक्स अनुचित नहीं है.
ट्रंप भारत को झटके तब दे रहे हैं जब भारत की अर्थव्यवस्था काफ़ी संकट में है. भारत की जीडीपी वृद्धि दर छह फ़ीसदी से भी नीचे आ गई है. इसके साथ ही भारत की अर्थव्यवस्था को दुनिया में सबसे तेज़ गति से बढ़ती अर्थव्यवस्था का दर्जा भी छीन गया.
एशिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 5.8% पर पहुंच गई है जो कि चीन के 6.4% से नीचे है. भारत में बेरोज़गारी की दर भी पिछले 45 सालों में सबसे ऊपर पहुंच गई है.
न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा है कि भारत को जीएसपी के दायरे से हटाने का फ़ैसला ट्रंप के ट्रेड वॉर का वैश्विक विस्तार है. प्रधानमंत्री मोदी के लिए इस चुनौती से निपटना इतना आसान नहीं है.
ट्रंप और मोदी दोनों की पहचान एक राष्ट्रवादी नेता की है और दोनों की राष्ट्रवादी नीतियां ही एक दूसरे के गहरे संबंधों में आड़े आ रही है. एक तरफ़ ट्रंप कह रहे हैं को वो कारोबार में भारत कोई छूट नहीं देंगे तो दूसरी तरफ़ मोदी कह रहे हैं कि भारत अपने हितों से समझौता नहीं करेगा.
कहा जा रहा है कि ट्रंप ने ट्रेड वॉर का वैश्विक विस्तार किया है और भारत के ख़िलाफ़ कार्रवाई भी इसी का हिस्सा है. ट्रंप प्रशासन ने 10 जून से मेक्सिको से आयात होने वाली वस्तुओं पर भी पाँच फ़ीसदी अतिरिक्त कर लगाने की घोषणा की है. मेक्सिको के लिए ट्रंप का यह क़दम हैरान करने वाला है मगर भारत को इसकी आशंका पिछले एक साल से थी.
कई विशेषज्ञ मानते हैं कि ट्रंप ट्रेड वॉर के तहत सभी बॉक्स को टिक करने में लगे हैं. चीन के साथ सब कुछ कर चुके हैं, जापान के भी पर छोटे किए गए हैं और अब भारत के साथ भी अब आक्रामक हो गए हैं.
2018 में अमरीका का भारत के साथ व्यापार घाटा 24.2 अरब डॉलर का रहा था. जानकारों का मानना है कि अब चुनाव ख़त्म हो गया है और मोदी कुछ ठोस करें. दूसरी तरफ़ ट्रंप चुनाव में जा रहे हैं और उन्हें अपने मतदाताओं को हिसाब देना है कि जो वादे किए थे वो कितने पूरे हुए.
जीएसपी स्कीम के बाबत विभिन्न देशों की योग्यता को लेकर अप्रैल 2018 में ही अमरीकी व्यापार प्रतिनिधि दफ़्तर ने समीक्षा शुरू कर दी थी. भारत को मिल रहे जीएसपी लाभ को रद्द करने का निर्णय उसी का परिणाम है.
अमरीकी डेयरी और चिकित्सा उपकरणों का बाज़ार इस समीक्षा के महत्वपूर्ण बिंदुओं में से था. अगले 10 महीनों के दौरान दोनों देशों ने आपसी सहमति से व्यापार समझौते पर बातचीत करने का प्रयास किया.
अन्य मुद्दे जैसे कि स्थानीय उत्पाद नियम, मूल्य नियंत्रण, डेटा लोकलाइजेशन को लेकर नियम और ई-कॉमर्स को लेकर एफडीआई नियमों में बदलाव भी इस एजेंडा के हिस्सा बन गए.
हालांकि, नए नीति विवाद ने इस तथ्य को नज़रअंदाज किया कि बीते वर्ष की तुलना में अमरीका-भारत व्यापार में वृद्धि हुई थी.
दिसंबर 2017 और नवंबर 2018 के बीच भारत से अमरीकी निर्यात में 16.7 फ़ीसदी की वृद्धि हुई जबकि इसी दरम्यान भारत के लिए अमरीकी निर्यात में 27 फ़ीसदी की वृद्धि देखी गई.
ऐसे वक़्त में जब दोनों देशों के बीच व्यापार में वृद्धि हुई हुई, जीएसपी को रद्द करना व्यापार पर प्रतिकूल असर डाल सकता है.
1990 के दशक के बाद से अमरीका और भारत के रिश्तों में गर्मजोशी बढ़ती गई. अमरीकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन और भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के बाद से दोनों देशों के राष्ट्र प्रमुखों ने एक दूसरे को स्वाभाविक साझेदार माना.
भारत को अमरीका के क़रीब आने में लंबा वक़्त लगा क्योंकि भारत और रूस में रणनीतिक साझेदारी ऐतिहासिक रूप से रही है. राष्ट्रपति ट्रंप के कारण एक बार फिर से दोनों देशों के रिश्तों में अविश्वास बढ़ा है.
ट्रंप भारत को एचबी-1 वीज़ा और मेटल्स टैरिफ़ पर पहले ही झटका दे चुके हैं. अमरीका और भारत की दोस्ती को लेकर कहा जाता है कि अमरीका एक ऐसी शक्ति है जिस पर भरोसा करना मुश्किल होता है और भारत इसी वजह से इस दोस्ती को लेकर अनिच्छुक रहता है.
अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप के भारत को 'जीएसपी स्कीम' (जनरल सिस्टम ऑफ़ प्रिफरेंसेज़) से बाहर करने के फ़ैसले से न केवल भारत के साथ रणनीतिक रिश्ते पर इसका प्रतिकूल असर पड़ रहा है बल्कि इससे चीनी निर्यात को भी बढ़ावा मिल सकता है.
भारत की अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर आंकड़ों की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठ रहे हैं. सरकार के डेटा के अनुसार पिछले साल भारत की अर्थव्यवस्था में वृद्धि दर सात से आठ फ़ीसदी रही, जो कि चीन से आगे थी. लेकिन वीदेशी मीडिया में भारत के आंकड़ों पर शक भी किया जा रहा है. ख़ास कर रोज़गार के मामले में कि लोगों की नौकरियां गई हैं या नई नौकरियां पैदा हुई हैं. कहा जा रहा है डेटा में राजनीतिक हस्तक्षेप बढ़ा है.
नया राष्ट्रीय रोज़गार सर्वे पिछले साल जारी होना था और इस आधार पर आर्थिक वृद्ध दर का आकलन होता. लेकिन आरोप है कि डेटा को जारी करने में जानबूझकर देरी की गई. जनवरी महीने में इसी विवाद को लेकर दो सीनियर अधिकारियों ने इस्तीफ़ा भी दे दिया था. कुछ डेटा बिज़नेस स्टैंडर्ड अख़बार के ज़रिए लीक हुआ था जिसमें बताया गया कि बेरोज़गारी की दर 6.1 फ़ीसदी पहुंच गई है.
जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र की प्रोफ़ेसर जयती घोष ने न्यूयॉर्क टाइम्स से कहा है कि मोदी सरकार ने डेट संग्रह प्रक्रिया का पूरी तरह से राजनीतिकरण कर दिया है और अब कोई इन आंकड़ों पर भरोसा नहीं करता है. कई लोग मानते हैं कि डेटा के प्रति बढ़ते अविश्वास से भारतीय अर्थव्यवस्था की साख कमज़ोर होगी.