क्विक अलर्ट के लिए
अभी सब्सक्राइव करें  
क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

चीन और ताइवान के राजनयिकों के बीच फ़िजी में क्यों हो गई मारपीट

चीन और ताइवान के राजनयिकों के बीच पिछले दिनों फ़िजी में हाथापाई हो गई. दोनों देशों के बीच रिश्ते काफ़ी नाज़ुक दौर में हैं.

By प्रवीण शर्मा
Google Oneindia News
ताइवान-चीन
Getty Images
ताइवान-चीन

चीन और ताइवान के बीच लंबे वक्त से जारी तनाव उस वक्त और बढ़ गया जब फ़िजी में दोनों देशों के राजनयिकों के बीच हाथापाई हो गई.

ताइवान ने आरोप लगाया है इसी महीने अपने नेशनल डे के आयोजन के दौरान चीन दूतावास के दो अधिकारी बिन बुलाए वहां पहुंच गए. हालांकि, चीन ने ताइवान के इन दावों को खारिज किया है.

दोनों ही पक्षों का कहना है कि उनके अधिकारियों को इस हाथापाई में चोटें आई हैं. फ़िजी की पुलिस से मामले की जांच करने की मांग की गई है.

ताइवान को चीन अपना एक अलग हुआ प्रांत मानता है, लेकिन ताइवान के नेता तर्क देते हैं कि वे एक संप्रभु देश हैं.

दोनों ही देशों के बीच रिश्ते नाज़ुक बने हुए हैं. दोनों देशों के बीच लड़ाई छिड़ने का खतरा लगातार बना रहता है जिसमें ताइवान के सहयोगी के तौर पर अमरीका को भी शामिल होना पड़ सकता है.

शिव नादर यूनिवर्सिटी में डिपार्टमेंट ऑफ इंटरनेशनल रिलेशंस एंड गवर्नेंस स्टडीज में एसोसिएट प्रोफेसर जबिन थॉमस जैकब कहते हैं, "ये मामला केवल फिजी का नहीं है. जहां भी ताइवान को लेकर कहीं भी कुछ होगा तो उसमें चीनी राजनयिक दखल देंगे."

जैकब कहते हैं कि चीन के राजनयिक पिछले कुछ वक्त से काफी आक्रामक बर्ताव कर रहे हैं.

वे कहते हैं, "इन्हें राजनयिक भी कहना सही नहीं है क्योंकि ये राजनयिक जैसा व्यवहार नहीं कर रहे हैं. मारपीट करना, गालियाँ देना राजनयिकों का काम नहीं है."

ये भी पढ़िएः-

क्या है पूरा मसला?

बताया जा रहा है कि ये घटना 8 अक्टूबर को हुई जब फ़िजी में ताइवान के व्यापार कार्यालय या ट्रेड ऑफ़िस ने फिजी की राजधानी सुवा के आलीशान ग्रैंड पैसिफिक होटल में करीब 100 मेहमानों के लिए एक रिसेप्शन का आयोजन किया था. ये व्यापार कार्यालय एक तरह से ताइवान का दूतावास ही समझा जाता है.

ताइवान के विदेश मंत्रालय का दावा है कि चीन के दो अफ़सरों ने तस्वीरें लेना शुरू कर दिया और वे अतिथियों के बारे में जानकारियां जुटाने लगे. मंत्रालय का कहना है कि ताइवान के राजनयिक ने उनसे चले जाने के लिए कहा, लेकिन उन पर हमला किया गया और उन्हें सिर में चोट के कारण अस्पताल में भर्ती कराना पड़ गया.

ताइवान के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता जोआन ओउ ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है, "हम फ़िजी में चीनी दूतावास के स्टाफ के इस कदम की कड़ी निंदा करते हैं जिन्होंने कानूनों और सभ्यता के आचरण का गंभीर उल्लंघन किया है."

मगर चीन ने इसे कुछ अलग ही मामला बताया है. चीन के फ़िजी स्थित दूतावास ने कहा है कि उसका स्टाफ "कार्यक्रम स्थल के बाहर सार्वजनिक जगह पर था" और अपनी सरकारी ड्यूटी कर रहा था. चीन ने ताइवान के अधिकारियों पर उकसाने वाले ढंग से काम करने और एक चीनी राजनयिक को जख्मी करने और नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाया है.

सोमवार को चीन के विदेश मंत्रालय ने एक ब्रीफ़िंग में बताया कि उसके अधिकारियों को यह पता था कि कार्यक्रम स्थल पर क्या हो रहा है. उन्हें यह भी पता था कि वहां ताइवान के झंडे को दिखाने वाला एक केक था. चीन इसे ग़लत मानता है क्योंकि वह एक देश के तौर पर ताइवान को मान्यता नहीं देता है.

समाचार एजेंसी एएफपी के मुताबिक चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियान ने कहा, "वहां खुलेआम एक झूठा राष्ट्रीय झंडा लगाया गया था. एक केक पर भी एक झूठा राष्ट्रीय झंडा बना हुआ था."

ताइवान
EPA
ताइवान

'आक्रामक हो रहा है चीन'

चीन लंबे वक्त से ताइवान की अंतरराष्ट्रीय गतिविधियों पर लगाम लगाने की कोशिश कर रहा है और दोनों ही देश प्रशांत क्षेत्र में अपना प्रभाव जमाने की हर मुमकिन कोशिश कर रहे हैं.

जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) के सेंटर फॉर चाइनीज़ एंड साउथ ईस्ट एशियन स्टडीज में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. राकेश कुमार कहते हैं, "ऐसी घटनाओं के बारे में पहले कभी सुना नहीं गया, लेकिन चीन जिस तरह से आक्रामक है उसमें कुछ भी मुमकिन है."

हालांकि, ताइवान को आधिकारिक रूप से कुछ देश ही मान्यता देते हैं, लेकिन इसकी लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार के कई देशों के साथ कारोबारी और अनौपचारिक रिश्ते हैं.

डॉ. राकेश कुमार कहते हैं कि चीन और ताइवान के बीच तनाव कोई नया नहीं है. वे कहते हैं, "चीन ताइवान को अपना हिस्सा मानता है, जबकि ताइवान का कहना है कि वो एक स्वतंत्र देश है. 1949 में च्यांग काई-शेक के वक्त से यह तनातनी बनी हुई है."

जैकब कहते हैं कि चीन वन चाइना पॉलिसी पर चलता है और ऐसे में अगर कोई देश ताइवान को ज्यादा तवज्जो देगा तो वे निश्चित तौर पर आपत्ति दर्ज कराएंगे.

उन्होंने कहा, "कोविड-19 के वक्त ताइवान ने डब्ल्यूएचओ की सदस्यता लेने की कोशिश की, लेकिन चीन ने उसे सफल नहीं होने दिया."

ताइवान का इतिहास

ताइवान का ज़िक्र चीनी रिकॉर्ड्स में सबसे पहली बार सन 239 में हुआ. उस वक्त चीन ने एक अभियान दल को खोज करने के लिए इस द्वीप पर भेजा था. चीन इसी तथ्य का सहारा ताइवान पर अपने दावे के लिए करता है.

1624 से 1661 तक डच कॉलोनी रहने के बाद 1683 से 1895 तक ताइवान चीन के क्विंग वंश के अधीन रहा. 1895 में पहले चीन-जापान युद्ध में जापान की जीत हुई और क्विंग सरकार ने ताइवान को जापान को सौंप दिया.

दूसरे विश्व युद्ध में चीन विजेताओं में था. अमरीका और ब्रिटेन की सहमति से चीन ने ताइवान पर शासन शुरू कर दिया. हालांकि, अगले कुछ सालों में ही चीन में एक गृहयुद्ध शुरू हो गया और उस वक्त के नेता चियांग काई-शेक की सेनाओं को माओत्से तुंग की साम्यवादी सेनाओं ने कुचल दिया.

च्यांग और उनकी कुओमिंतांग पार्टी की (केएमटी) सरकार के बचे-खुचे लोग 1949 में ताइवान भाग गए. यह समूह लंबे वक्त तक ताइवान की राजनीति पर काबिज रहा, जबकि इनकी आबादी केवल 14 फीसदी थी.

स्थानीय लोगों के विरोध और लोकतंत्र की मांग के कारण च्यांग के बेटे च्यांग चिंग कुओ ने लोकतंत्रीकरण की प्रक्रिया शुरू की. इसी के चलते 2000 में यहां पहले ग़ैर-केएमटी राष्ट्रपति चेन शुई-बियान ने सत्ता संभाली.

चेन शुई-बैन
AFP
चेन शुई-बैन

मौजूदा स्थितियां

दशकों तक तनाव के बाद 1980 के दशक में चीन और ताइवान के संबंध सुधरने शुरू हुए. चीन ने "एक देश दो सिस्टम" का फॉर्मूला दिया जिसके तहत चीन के साथ एकीकरण को स्वीकार करने पर ताइवान को बड़ी स्वायत्तता दी जानी थी.

ताइवान ने ये पेशकश ठुकरा दी, लेकिन वहां की सरकार ने चीन में आने-जाने और निवेश को लेकर नियमों में ढील दे दी. 1991 में इसने यह भी ऐलान किया कि चीन के साथ लड़ाई खत्म हो गई है.

चीन के कान 2000 में तब खड़े हो गए जब ताइवान ने चेन शुई-बैन को राष्ट्रपति चुना. वे खुलेआम स्वतंत्रता का समर्थन करते थे.

2004 में चेन फिर जीत गए. इसके चलते चीन ने 2005 में एक अलगाव-विरोधी कानून पास किया. इसमें आजादी की कोशिशें करने पर चीन के ताइवान के खिलाफ ग़ैर-शांतिपूर्ण साधनों के इस्तेमाल के अधिकार के बारे में कहा गया था.

जनवरी 2016 में हुए चुनावों में त्साई इंग-वेन की जीत हुई. वे डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (डीपीपी) से आती हैं जिसका रुझान चीन से आजादी पर है.

2020 में त्साई दोबारा जीत गईं. चीन उनसे खासा नाराज है.

त्साई इंग-वेन
Reuters
त्साई इंग-वेन

दूसरी ओर, अमरीका ने ताइवान के साथ मेलजोल को बढ़ा दिया है. सितंबर में यूएस ने अपने एक वरिष्ठ राजनेता को ताइवान भेजा.

चीन ने अमरीका के इस कदम की कड़ी आलोचना की. चीन ने चेतावनी दी कि चीन-अमरीका रिश्तों को बड़े नुकसान से बचाने के लिए अमरीका ताइवान के आजादी समर्थक तत्वों को ग़लत संदेश न दे.

अमरीका-चीन तनाव का असर

इस वक्त अमरीका और चीन में भी काफी तनाव बना हुआ है. इससे भी चीजें जटिल हो रही हैं.

जैकब कहते हैं कि अमरीका में ताइवान रिलेशंस एक्ट नाम का एक कानून है जिसके मुताबिक अगर ताइवान को कोई ख़तरा होता है तो अमरीका उसमें दखल देगा.

गुज़रे कुछ वक्त में चीन और ताइवान के बीच समुद्र और हवाई क्षेत्र के उल्लंघन की घटनाएं बढ़ी हैं.

डॉ. राकेश कुमार कहते हैं, "चीन ताइवान को अपना हिस्सा बनाने के लिए आक्रामक तरीके से काम कर रहा है."

कुमार कहते हैं कि शी जिनपिंग के आने से पहले चीन खुद को दुनिया के मंचों में एक भागीदार के तौर पर शामिल करना चाहता था.

कुमार कहते हैं कि शी जिनपिंग के आने के बाद से चीन की नीति में एक बड़ा बदलाव आया है.

वे कहते हैं, "चीन चाहता था कि दुनिया के अलग-अलग प्लेटफॉर्म्स पर उसे शामिल किया जाए, लेकिन शी जिनपिंग के आने के बाद से चीन अब दुनिया का लीडर बनने की कोशिश कर रहा है."

BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
Why did the fighting between China and Taiwan diplomats in Fiji
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X