South China Sea: अगर यह हाथ से गया तो पूरी तरह बिखर जाएगा जिनपिंग का साम्राज्य, जानिए इसके बारे में
नई दिल्ली। भारत ने गुरुवार को असाधारण तौर पर साउथ चाइना सी का जिक्र किया। भारत की तरफ से कहा गया है कि इस हिस्से पर सबका अधिकार है। ऐसे समय में जब इस हिस्से को लेकर अमेरिका और चीन के बीच एक अप्रत्यक्ष जंग जारी है तो भारत सरकार का यह बयान काफी अहम माना जा रहा है। भारत ने इस हिस्से की स्वतंत्रता की बात करके चीन को चुनौती देने का काम किया है। आखिर ऐसा क्या है यहां पर जो चीन से लेकर अमेरिका तक की नजरें इस पर गड़ी हैं।
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द्वितीय विश्व युद्ध से जुड़ा इतिहास
साउथ चाइना का विवाद द्वितीय विश्व युद्ध के साथ शुरू होता है। उस समय जापान में राजशाही थी और जापान ने इस साउथ चाइना सी पर स्थित द्वीपों को अपने सैन्य मकसद के लिए प्रयोग किया। जापान को यह पता लग चुका था कि इन द्वीपों पर अभी तक किसी ने भी अपना अधिकार नहीं जताया है। इसी समय जापान की नेवी ने इनका नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि फ्रांस ने सन् 1930 में इस जगह के कुछ क्षेत्रों को अपने नियंत्रण में ले लिया था। जापान को द्वितीय विश्व युद्ध में हार का मुंह देखना पड़ा था।
1951 में हुई सैन फ्रांसिस्को संधि
युद्ध खत्म होने के बाद सन् 1951 में एक संधि हुई और इसे सैन फ्रांसिस्को संधि के नाम से जानते हैं। इस संधि में यहां पर स्थित द्वीपों की नई स्थिति के बारे में कोई बात नहीं कही गई थी। इस संधि के दौरान हुई वाता र्में चीन की तरफ से अलग-अलग दावे किए गए और 1958 में पहला संकट पैदा हुआ। साउथ चाइना सी पर आज ब्रुनेई, चीन, मलेशिया, फिलीपींस के साथ ही वियतनाम और ताइवान भी अपना अधिकार जताते हैं। ताइवान और चीन दोनों ही इस पूरे हिस्से को अपना मानते हैं। साउथ चाइना सी पर स्थित नौ बिंदुओं वाली रेखा के साथ चीन और ताइवान अपने-अपने दावे करते हैं। यह रेखा दावा करने वाले हर देश के हिस्से में पड़ती है और इस वजह से ही सारा विवाद है।
चीन का बैंक है साउथ चाइना सी
साउथ चाइना सी रणनीतिक तौर पर काफी अहमियत रखता है। यहां से दुनिया के एक तिहाई जहाज गुजरते हैं और हर वर्ष तीन खरब डॉलर से ज्यादा का व्यापार यहां से होता है। यहां पर मत्स्य पालन के अलावा दक्षिण पूर्व एशिया के लिए जरूरी खाद्य सुरक्षा का सारा प्रबंध है। इसके अलावा यह जगह गैस और तेल का भंडार है। चीन की 80 प्रतिशत ऊर्जा जरूरतें साउथ चाइना सी से ही पूरी होती हैं। इसके अलावा चीन के कुल व्यापार का 39.5 प्रतिशत साउथ चाइना सी से ही होता है। इस विवादित जगह पर कई द्वीपों के अलावा कई चट्टानें, किनारे और ऐसे कई तत्व हैं जो खनिज और अनमोल खजाने का भंडार कहे जा सकते हैं। यहां पर स्पार्टली आईलैंड, पार्सल आईलैंड, स्क्ररबोरोघ शोआल और कई सीमाएं हैं जो तोनकिन की खाड़ी से सटी हैं।
2011 में हुआ था एक समझौता
20 जुलाई 2011 को चीन, ब्रुनेई, मलेशिया, फिलीपींस, ताइवान और वियतनाम के बीच एक समझौता हुआ था। इस समझौते के तहत सभी देश DOC यानी डिक्लेयरेशन ऑफ कंडक्ट ऑफ पार्टीज इन द साउथ चाइना सी की कुछ गाइडलाइंस को लागू करने पर राजी हुए थे। इसका मकसद विवादों को सुलझाना था। इस समझौते को तत्कालीन चीनी विदेश मंत्री ल्यू झेनमिन ने चीन और आसियान देशों के बीच एक मील का पत्थर करार दिया था। डॉक के बाद COC यानी साउथ चाइना सी में कोड ऑफ कंडक्ट भी लाया गया। कहा गया था कि साल 2021 तक COC को पूरी तरह से लागू कर दिया जाएगा।
जब चीन ने इंडियन नेवी पर लगाया आरोप
22 जुलाई 2011 को इंडियन नेवी का असॉल्ट जहाज आईएनएस एरावत एक फ्रेंडली मिशन पर वियतनाम गया। उस समय आईएनएस एरावत के वियतनाम के तट से विवादित साउथ चाइना सी में करीब 45 नॉटिकल मील पार करने की खबरें आई थीं। चीनी मीडिया के मुताबिक पीएलए नेवी ने आईएनएस एरावत को देखा और कहा कि इंडियन नेवी का जहाज चीन की समुद्र सीमा में आ गया है। इंडियन नेवी की तरफ से इस बात को सिरे से नकार दिया गया। भारतीय नौसेना ने कहा कि आईएनएस एरावत अपनी यात्रा से वापस लौट रहा था और उसे इा दौरान न तो कोई जहाज नजर आया और न ही एयरक्राफ्ट। नौसेना ने उस समय कहा था, 'भारत हमेशा से अंतरराष्ट्रीय जल सीमा में नेविगेशन की आजादी का समर्थन करता है जिसमें साउथ चाइना सी भी शामिल है और मान्य अंतरराष्ट्रीय कानूनों के सिद्धांत का पालन करते हुए यहां से गुजरने का अधिकार रखता है। इन सिद्धांतों का पालन सभी को करना होगा।'
भारत की मौजूदगी से हुआ परेशान
सितंबर 2011 में चीन और वियतनाम के बीच एक समझौता हुआ था जिसमें एक विवादित हिस्से पर हर प्रकार के विरोध को खत्म करना शामिल था। इसी साल भारतीय फर्म ऑयल एंड नैचुरल गैस कॉरपोरेशन (ओएनजीसी) की मदद से निवेश की तैयारी की गई थी। ओएनजीसी ने वियतनाम की फर्म पेट्रो वियतनाम के साथ तीन साल का समझौता साइन किया था जिसें ऑयल सेक्टर में साथ मिलकर साउथ चाइना सी पर तेल की संभावनाओं को तलाशना था। लेकिन चीन ने इसमें रोड़ा अटका दिया। चीन ने कहा कि भारत का यहां पर आना उसकी संप्रभुताक का उल्लंघन है। भारत की तरफ से कहा गया, 'चीन परेशान था लेकिन हम वहीं कर रहे थे जो वियतनाम की अथॉरिटीज ने हमसे करने को कहा था और हमनें यही बात चीनी समकक्षों को बता दी थी।' इसके साथ ही चीन ने वियतनाम के साथ हुए समझौते को भी खत्म कर दिया।