इंडोनेशिया में मोदी: पहली बार दौरे पर गए पीएम को क्या हो गया अपनी गलती का अहसास!
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहली बार इंडोनेशिया के दौरे पर गए हैं। पीएम बनने के चार वर्ष बाद इंडोनेशिया का यह दौरा बतौर मोदी काफी अहम है। पीएम मोदी ने पिछले चार वर्षों में विदेश नीति को हमेशा सबसे ऊपर रखा है। मोदी अब तक एशिया के कई देशों सिंगापुर, विएतनाम, मलेशिया और म्यांमार आदि का दौरा कर चुके हैं।
जकार्ता। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहली बार इंडोनेशिया के दौरे पर गए हैं। पीएम बनने के चार वर्ष बाद इंडोनेशिया का यह दौरा बतौर मोदी काफी अहम है। पीएम मोदी ने पिछले चार वर्षों में विदेश नीति को हमेशा सबसे ऊपर रखा है। मोदी अब तक एशिया के कई देशों सिंगापुर, विएतनाम, मलेशिया और म्यांमार आदि का दौरा कर चुके हैं। इंडानेशिया साउथ ईस्ट एशिया का सांतवा सबसे बड़ा देश है। ऐसे में कई लोग इस बात पर हैरानी भी जता रहे हैं कि आखिर मोदी ने इस देश को अब तक क्यों नजरअंदाज किया। दौरे पर रवाना होने से पहले मोदी ने कहा कि वह एक्ट ईस्ट एशिया पॉलिसी को आगे बढ़ाने के मकसद से एशियाई देशों के दौरे पर जा रहे हैं। इंडोनेशिया के अलावा मोदी, मलेशिया और सिंगापुर भी जाएंगे। यह भी पढ़ें-इंडोनेशिया में पीएम मोदी- मीडिया ने कहा दौरे से रणनीतिक संबंध होंगे मजबूत
अभी तक नहीं बन सका भारत का करीबी
अंडमान निकोबार से करीब इंडोनेशिया अभी तक भारत का करीबी नहीं बन सका है। भारत और इंडोनेशिया ने अक्टूबर 2016 में 28वीं ज्वॉइन्ट पेट्रोल और दूसरी द्विपक्षीय मैरिटाइम ड्रिल में हिस्सा लिया था। लेकिन मीडिया ने इसे पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया। एक्ट ईस्ट पॉलिसी के तहत भारत ने अभी तक जापान, ऑस्ट्रेलिया और विएतनाम को जो तवज्जो दी है, वह इंडोनेशिया को नहीं मिल सकी है। भारत और इंडोनेशिया में कई तरह की सांस्कृतिक और राजनीतिक समानताएं हैं। दोनों देश एक ही जैसा इतिहास भी साझा करते हैं।
युद्ध ने दूरी और बढ़ा दी
आजादी के कुछ वर्षों बाद भारत और इंडोनेशिया दोनों देशों ने एशिया पर आधारित कूटनीति को बढ़ावा देने वाले राजनीतिक मंच की नींच रखी। 1962 में भारत-चीन के बीच जंग और फिर शीत युद्ध ने दोनों देशों के बीच राजनीति तनाव को बढ़ाया। सन् 1961 इंडोनेशिया और चीन के बीच हुई एक संधि की वजह से इंडोनेशिया का रवैया भारत के लिए दुश्मनी वाला हो गया था। इसके बाद सन् 1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध में इंडोनेशिया ने पाकिस्तान को समर्थन दिया। भारत और मलेशिया के बीच अच्छे संबंध भी इंडोनेशिया के साथ रिश्तों में गर्माहट नहीं ला सके थे। बावजूद इसके कि अंडमान निकोबार में भारत और इंडोनेशिया की मिलिट्री के बीच सहयोग को बढ़ाया जा सकता है, दोनों देश हमेशा दूर ही रहे।
80 के दशक में रिश्ते पटरी पर
80 के दशक में इंडोनेशिया, अंडमान में इंडियन नेवी की बढ़ती महत्वकांक्षाओं को लेकर काफी चिंतित था। लेकिन भारत की ओर से कई बार भरोसा दिलाए जाने के बाद वह कुछ शांत हुआ और यहीं से दोनों देशों के बीच बेहतर रिश्तों की शुरुआत हुई। 20वीं सदी के अंत और 21वीं सदी की शुरुआत में दोनों देशों ने द्विपक्षीय समझौतों की शुरुआत की और बेहतर रणनीतिक सहयोग की दिशा में काम किया। वर्तमान समय में इंडोनेशिया साउथ ईस्ट एशिया में भारत का दूसरा सबसे बड़ा साझीदार है। यह बात हैरान करने वाली है कि पीएम मोदी जो कि चीन को काउंटर करने के लिए छोटे से द्वीप फिजी तक हो आए, वह भला इंडोनेशिया को कैसे नजरअंदाज कर सकते हैं। विडोडो साल 2016 भारत का दौरा कर चुके हैं। इंडोनेशिया भारत के लिए चीन को जवाब देने के मकसद से बनाई गई विदेश नीति का एक अहम हिस्सा बन सकता है।
बन सकता है विदेश नीति का अहम हिस्सा
इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विडोडो ने भी मोदी की हर तरह साल 2014 में सत्ता संभाली थी। उन्हें एक ऐसे नेता के तौर पर जाना जाता है जिसने इंडोनेशिया के हितों की रक्षा करने में किसी तरह की कोई हिचक नहीं दिखाई है। चीन और अमेरिका से आर्थिक फायदे को ध्यान में रखने के बाद भी विडोडो ने मैरिटाइम ताकत के तौर पर इंडोनेशिया की स्थिति को मजबूत करने और देश की मैरिटाइम सिक्योरिटी को बेहतर करने का काम किया है। इंडोनेशिया अपनी मैरिटाइम सिक्योरिटी को लेकर इस समय बहुत सख्त हो गया है। भारत ने भी पिछले कुछ वर्षों में चीन की गतिविधियों को देखते हुए मैरिटाइम सिक्योरिटी पर खासा ध्यान दिया है। मैरिटाइम सिक्योरिटी भारत और इंडोनेशिया को एक ही प्लेटफॉर्म पर लाती है।