यरूशलम पर अमरीका क्यों पूरी दुनिया से पंगा ले रहा है?
यरूशलम मसले पर संयुक्त राष्ट्र में अमरीका पूरी तरह अलग-थलग पड़ा, लेकिन ट्रंप और निकी हेली के तेवर और सख्त हुए.
साल बदलता है, निज़ाम बदलता है और कितना कुछ बदल जाता है.
न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र के हेडक्वॉर्टर में अमरीकी राजदूत के तौर पर निकी हेली ने अपनी शुरुआत में ही चेता दिया था, "जिन्हें हमारा समर्थन हासिल नहीं है, हम उनका नाम ले रहे हैं."
नए ट्रंप प्रशासन ने इसराइल को लेकर इस अंतरराष्ट्रीय संस्था के 'बर्ताव' को लेकर अपना विरोध खुलकर जाहिर किया. अमरीका का आरोप है कि यूएन इसराइल के साथ भेदभाव करता है.
ट्रंप प्रशासन ने राष्ट्रपति बराक ओबामा के दौर में पारित किए गए सुरक्षा परिषद के उस प्रस्ताव का भी विरोध किया है जिसमें इसराइली बस्तियों को अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों का उल्लंघन बताया गया था.
भारत ने इसराइल का साथ क्यों नहीं दिया?
क्या मुसलमान देशों को वाकई सज़ा देंगे ट्रंप?
संयुक्त राष्ट्र में वोटिंग
अब निकी हेली ने ये साफ कर दिया है कि चीज़ें अलग तरह से होने जा रही हैं. तकरीबन एक साल बाद संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देशों को ये बात समझ में आने लगी है जो निकी हेली ने पहले ही दिन साफ़ कर दी थी.
यरूशलम को इसराइल की राजधानी के तौर पर मान्यता देने के अमरीकी फैसले के ख़िलाफ़ संयुक्त राष्ट्र महासभा में वोटिंग और अमरीकी दूतावास को वहां स्थानांतरित करने के बाद निकी हेली ने दर्जनों देशों को एक कड़ी चिट्ठी लिखी है.
चिट्ठी में निकी हेली ने लिखा है, "राष्ट्रपति और अमरीका ने इस वोटिंग को निजी तौर पर लिया है और डोनल्ड ट्रंप ने हमारे ख़िलाफ़ वोटिंग करने वाले देशों के बारे में रिपोर्ट करने के लिए कहा है."
यरूशलम पर 'हार' क्या अमरीका की साख पर बट्टा है?
यरूशलम: भारत का वोट अमरीका के ख़िलाफ़
ट्रंप प्रशासन का रवैया
निकी हेली यहीं नहीं रुकीं. उन्होंने ट्विटर पर लिखा, "संयुक्त राष्ट्र में हमें हमेशा ही ज़्यादा करने और देने के लिए कहा गया है. इसलिए जब हम अमरीकी लोगों की इच्छा के मुताबिक़ अपने दूतावास को स्थानांतरित करने के बारे में कोई फ़ैसला करते हैं तो हम ये उम्मीद नहीं करते जिनकी हमने मदद की है, वही हमें निशाना बनाएं."
राष्ट्रपति ट्रंप अपने मुखर राजदूत के कामकाज से खुश दिखते हैं. ट्रंप प्रशासन ने ये साफ़ किया है कि संयुक्त राष्ट्र महासभा में अमरीका के ख़िलाफ़ प्रस्ताव को समर्थन देने वाले देशों को अमरीकी मदद में कटौती की जाएगी.
यरूशलम पर किसी भी तरह का बहस हमेशा ही तल्ख और शोरशराबे वाली हो जाती है लेकिन ऐसे किसी प्रस्ताव के पारित हो जाने से क्या बदल जाएगा जिसे लागू करने का कोई बंधन न हो. लेकिन ट्रंप और राजदूत निकी हेली की धमकी ने अमरीका फ़र्स्ट की विदेश नीति के आलोचकों को एक और मौका दे दिया है.
यरूशलम विवाद: अकेले पड़े ट्रंप ने दी धमकी
'मिशन सीरिया' से पुतिन बने मध्य पूर्व के 'दबंग'!
प्रस्ताव का विरोध
संयुक्त राष्ट्र मामलों के जानकार रिचर्ड गोवान कहते हैं, "राजनयिकों के लिए क्रिसमस से पहले खुद को दिलासा देने का ये एक अच्छा मौका था. ट्रंप प्रशासन को संयुक्त राष्ट्र के प्रति अपना तिरस्कार दिखाने का मौका मिला है तो कई देशों को ट्रंप के प्रति अपनी नापसंदगी जताने का."
संयुक्त राष्ट्र महासभा में कई देशों ने अमरीका की कार्रवाई को ब्लैकमेल की हरकत करार दिया है. आख़िर में निकी हेली के हाथ में एक लंबी फेहरिस्त रह गई जिसमें 128 देशों के नाम थे. इन देशों ने अमरीका और इसराइल के ख़िलाफ़ प्रस्ताव का समर्थन किया था. केवल नौ देशों ने प्रस्ताव का विरोध किया था.
केवल ग्वाटेमाला, होंडुरास, मार्शल आइलैंड, माइक्रोनेशिया, नाउरो, टोगो और पलाउ ने अमरीका और इसराइल का साथ दिया. लेकिन ब्रिटेन, जापान और फ्रांस जैसे अमरीका के सहयोगी देशों ने भी ट्रंप प्रशासन की चेतावनी को नज़रअंदाज़ कर दिया और प्रस्ताव का समर्थन किया.
सऊदी-इसराइल नज़दीकियों से क्यों उड़ी ईरान की नींद?
अमरीकी कूटनीति
फ्रांस के राजदूत फ्रैंकोएस डिलाटेर ने कहा कि ये प्रस्ताव केवल अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों और यरूशलम पर मौजूदा प्रावधानों की पुष्टि करता है.
एक वरिष्ठ राजनयिक के मुताबिक़ कुछ देशों के मामले में ये प्रस्ताव उलटा पड़ गया. जैसे कनाडा का उदाहरण है. कनाडा शुरू में इस प्रस्ताव के विरोध में वोट करने वाला था लेकिन अमरीकी रवैये से नाखुश होकर उसने अपना वोट बदल लिया.
रिचर्ड गोवान कहते हैं, "अमरीका ने कूटनीति से काम नहीं लिया. दूसरे राजदूतों के साथ निकी हेली के अच्छे ताल्लुकात थे. इस वोटिंग को वफादारी के तराजू पर तौलने की उनकी कोशिश नाकाम रहीं. अमरीका बुरी तरह से हारने जा रहा था. हेली समझदारी से काम ले सकती थीं. लेकिन शायद उन पर व्हाइट हाउस का दबाव रहा होगा."
यरुशलम को इसराइल की राजधानी नहीं मानेंगे: यूरोपीय संघ
'3000 साल से इसराइल की राजधानी है यरूशलम'
यूरोपीय संघ का दावा
लेकिन एक अमरीकी प्रवक्ता ने वोटिंग में हुई किरकिरी की एल अलग कहानी बताई. उन्होंने कहा, "ये साफ़ है कि अमरीका को दरकिनार करने की एक ग़ैरज़रूरी कोशिश के मुद्दे पर कई देशों ने हमारे साथ अपने संबंधों की प्राथमिकता तय की. और वो भी एक ऐसे फ़ैसले पर जो हमारा संप्रभु अधिकार है."
दूसरी तरफ, अमरीकी दबाव का बहुत कम नतीज़ा देखने को मिला.
एक सीनियर यूरोपीय राजनयिक ने चिंता जताई कि यूरोपीय संघ ने एक सुर में गुरुवार की बहस में अपना पक्ष नहीं रखा. यूरोपीय संघ खुद को एक राजनीतिक इकाई के तौर पर दिखाना चाहता है लेकिन हंगरी और चेक रिपब्लिक जैसे कुछ यूरोपीय देश वोटिंग से दूर रहे.
यरूशलम पर ट्रंप के ख़िलाफ़ एकजुट हुए अरब देश
'बेने' इसराइलियों के दिल में बसता है भारत