क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

दुनिया के लिए दावोस इतना ज़रूरी क्यों?

पूरी दुनिया के दिग्गज नेता बार-बार इस शहर में क्यों जुटते हैं? भारतीय प्रधानमंत्री 17 साल बाद वहां मौजूद होंगे, क्यों?

By BBC News हिन्दी
Google Oneindia News
दावोस
Getty Images
दावोस

स्विट्ज़रलैंड को हम उसकी बर्फ़बारी और ख़ूबसूरत वादियों के लिए जानते हैं. कई हिंदी फ़िल्मों में इन्हीं वादियों के बीच हीरो-हीरोइन का रोमांस परवान चढ़ता और उतरता रहा है.

लेकिन इसी देश के एक छोटे से शहर में दुनिया के बड़े-बड़े सियासी और कारोबारी फ़ैसले परवान चढ़ते हैं.

इस शहर का नाम है दावोस, जो फ़िलहाल भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरे की वजह से चर्चा में है. वो वहां वर्ल्ड इकॉनॉमिक फ़ोरम में हिस्सा लेने जा रहे हैं.

साल 1997 के बाद कोई भारतीय प्रधानमंत्री पहली बार यहां जा रहे हैं. इसकी वजह पूछी गई तो मोदी ने कहा, ''दुनिया भली-भांति जानती है कि दावोस अर्थजगत की पंचायत बन गया है.''

दावोस दुनिया के लिए इतना ख़ास क्यों है? क्यों पूरी दुनिया की अर्थनीति वहां से प्रभावित होती है? क्यों ऑस्ट्रेलिया से अमरीका तक के दिग्गज नेता यहां क्यों पहुंचते हैं?

पहले इस शहर के बारे में जान लीजिए. ये प्राटिगाउ ज़िले में है, वासर नदी के तट पर, स्विस आल्प्स पर्वत की प्लेसूर शृंखला और अल्बूला शृंखला के बीच मौजूद है.

समंदर के स्तर से 5120 फ़ुट पर स्थित दावोस यूरोप का सबसे ऊंचा शहर कहा जाता है.

ये पूर्व अल्पाइन रिज़ॉर्ट दो हिस्सों से मिलकर बना है. दावोस डॉर्फ़ (गांव) और दावोस प्लाट्ज़. दावोस इसलिए ख़ास है क्योंकि ये वर्ल्ड इकॉनॉमिक फ़ोरम की मेज़बानी करता है.

यहां दुनिया भर के राजनीतिक और कारोबारी दिग्गज साल में एकबार ज़रूर जुटते हैं और सरल भाषा में इस अहम बैठक को 'दावोस' ही कहा जाता है.

इसके अलावा ये स्विट्ज़रलैंड का सबसे बड़ा स्की रिज़ॉर्ट भी है. हर साल के अंत में यहां सालाना स्पेंगलर कप आइस हॉकी टूर्नामेंट आयोजन होता है जिसकी मेज़बानी एचसी दावोस लोकल हॉकी टीम करती है.

दावोस यूं तो बेहद ख़ूबसूरत है लेकिन उसे दुनिया के नक्शे पर पहचान मिली है वर्ल्ड इकॉनॉमिक फ़ोरम की वजह से. अब इसके बारे में कुछ जाना जाए.

नरेंद्र मोदी
Getty Images
नरेंद्र मोदी

फ़ोरम की वेबसाइट के मुताबिक उसे दावोस-क्लोस्टर्स की सालाना बैठक के लिए जाना जाता है. बीते कई साल से कारोबारी, सरकारें और सिविल सोसाइटी के नुमाइंदे वैश्विक मुद्दों पर चर्चा के लिए यहां जुटते हैं और चुनौतियों से निपटने के लिए समाधानों पर विचार करते हैं.

अब इसके इतिहास पर नज़र. प्रोफ़ेसर क्लॉज़ श्वॉब ने जब इसकी नींव रखी थी तो इसे यूरोपियन मैनेजमेंट फ़ोरम कहा जाता था. ये फ़ोरम स्विट्ज़रलैंड के जिनेवा शहर का गैर-लाभकारी फ़ाउंडेशन हुआ करता था.

हर साल जनवरी में इसकी सालाना बैठक होती थी और दुनिया भर के जाने-माने लोग यहां पहुंचते थे.

वेबसाइट के मुताबिक शुरुआत में प्रोफ़ेसर श्वाब इन बैठकों में इस बात पर चर्चा करते थे किस तरह यूरोपीय कंपनियां, अमरीकी मैनेजमेंट कंपनियों की कार्यप्रणाली को टक्कर दे सकती हैं.

प्रोफ़ेसर श्वाब का विज़न 'मील के पत्थर' तक पहुंचने के साथ-साथ बड़ा होता गया और बाद में जाकर वर्ल्ड इकॉनॉमिक फ़ोरम में बदल गया.

साल 1973 में ब्रेटन वुड्स फ़िक्स्ड एक्सेंज रेट मैकेनिज़्म का ढहना हो या फिर अरब-इसराइल युद्ध, ऐसी घटनाओं ने इस सालाना बैठक को मैनेजमेंट से आगे ले जाते हुए आर्थिक और सामाजिक मुद्दों तक विस्तार दिया.

नरेंद्र मोदी का दावोस जाना इतनी बड़ी ख़बर बन रहा है. लेकिन जनवरी 1974 में पहली बार इस बैठक में राजनीतिक नेता शामिल हुए थे.

इसके दो साल बाद फ़ोरम ने 'दुनिया की 1000 प्रमुख कंपनियों' के लिए सदस्यता देने का सिस्टम शुरू किया.

यूरोपियन मैनेजमेंट फ़ोरम पहला गैर-सरकारी संस्थान है जिसने चीन के इकॉनॉमिक डेवलपमेंट कमिशन के साथ साझेदारी की पहल की.

ये वही साल था जब क्षेत्रीय बैठकों को भी जगह दी गई और साल 1979 में 'ग्लोबल कम्पीटीटिव रिपोर्ट' छपने के साथ ही ये नॉलेज हब भी बन गया.

साल 1987 में यूरोपियन मैनेजमेंट फ़ोरम वर्ल्ड इकॉनॉमिक फ़ोरम बना और विज़न को बढ़ाते हुए विमर्श के मंच में तब्दील हुआ.

दावोस में प्रदर्शन
Getty Images
दावोस में प्रदर्शन

वर्ल्ड इकॉनॉमिक फ़ोरम की सालाना बैठक के अहम पड़ावों में साल 1988 में दावोस घोषणापत्र पर यूनान और तुर्की के दस्तख़त करना शामिल है, जो उस वक़्त जंग के मुहाने पर खड़े थे.

इसके अगले साल दावोस में उत्तर और दक्षिण कोरिया की पहली मंत्री-स्तर की बैठक हुई थी.

दावोस इसके अलावा भी कई अहम घटनाक्रम देख चुका है. वहां हुई एक बैठक में पूर्वी जर्मनी के प्रधानमंत्री हांस मोडरो और जर्मन चांसलर हेलमुत कोह्ल दोनों जर्मनी के मिलने पर चर्चा के लिए मिले थे.

साल 1992 में दक्षिण अफ़्रीका के राष्ट्रपति डे क्लर्क ने सालाना मीटिंग ने नेल्सन मंडेला और चीफ़ मैंगोसुथु बुथलेज़ी से मुलाक़ात की. ये दक्षिण अफ़्रीका के बाहर उनकी पहली बैठक थी और देश के राजनीतिक बदलाव में मील का पत्थर माना जाता है.

साल 2015 में फ़ोरम को औपचारिक रूप से अंतरराष्ट्रीय संस्थान का दर्जा मिला.

BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
Why is Davos so important for the world
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X