कश्मीर पर भारत के फ़ैसले से चीन क्यों है नाराज़?
भारत सरकार के कश्मीर का ख़ास दर्जा ख़त्म करने के फ़ैसले को लेकर चीन की भवें तनीं. बीते करीब चार हफ़्ते के दौरान अलग-अलग बयानों के जरिए चीन ने अपना विरोध जाहिर किया है. बीती पांच अगस्त को भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार ने तब के जम्मू कश्मीर राज्य को अर्ध स्वायत्ता देने वाले अनुच्छेद 370 को ख़त्म कर दिया.
भारत सरकार के कश्मीर का ख़ास दर्जा ख़त्म करने के फ़ैसले को लेकर चीन की भवें तनीं. बीते करीब चार हफ़्ते के दौरान अलग-अलग बयानों के जरिए चीन ने अपना विरोध जाहिर किया है.
बीती पांच अगस्त को भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार ने तब के जम्मू कश्मीर राज्य को अर्ध स्वायत्ता देने वाले अनुच्छेद 370 को ख़त्म कर दिया.
इसके बाद एक कानून पारित कर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया गया.
इनमें से एक केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख है. चीन का इसके एक हिस्से पर नियंत्रण है और वो इस पूरे इलाके पर दावा करता है.
चीन की प्रतिक्रिया क्या रही?
चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता ख्वा चूनयिंग ने भारत के फ़ैसले को लेकर कड़े शब्दों का इस्तेमाल किया.
उन्होंने कहा, "चीन-भारत सीमा के पश्चिमी सेक्टर में चीन के क्षेत्र पर भारतीय अधिग्रहण का चीन ने हमेशा विरोध किया है. हमारी इस पुख्ता और निरंतर स्थिति में कोई बदलाव नहीं हुआ है."
ख्वा चूनयिंग ने आगे कहा, "अपने कानून में बदलाव करके भारत ने हाल में भी चीन की क्षेत्रीय संप्रभुता को अनदेखा करने का सिलसिला जारी रखा है. ये तरीका स्वीकार्य नहीं है और ये अमल में नहीं आएगा."
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इस बीच भारत में राष्ट्रवादी बयानों के साथ बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं ने इस कदम का स्वागत किया. कुछ नेताओं ने उम्मीद जाहिर की कि क्षेत्र का जो हिस्सा चीन और पाकिस्तान के नियमंत्रण में है, वो भी भारत के पास आ जाएगा.
इन नेताओं इसमें चीन के नियंत्रण वाले लद्दाख के इलाके अक्साई चिन और पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर, जिसे भारत "पाकिस्तान के कब्ज़े वाला कश्मीर" या "पीओके" बताता है, को शामिल किया.
इंडिया टुडे मैगज़ीन ने केंद्रीय मंत्री और भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता गिरिराज सिंह के हवाले से लिखा, "200 प्रतिशत यकीन है कि पीओके और अक्साई चिन भी बहुत जल्दी देश के साथ मिल जाएंगे."
लद्दाख को लेकर चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने कहा, "भारत सरकार की लद्दाख (जिसमें चीन का क्षेत्र शामिल है) को केंद्र शासित प्रदेश बनाने की घोषणा ने चीन की संप्रभुता को चुनौती दी है और सीमा क्षेत्र में शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए दो देशों के बीच हुए समझौते का उल्लंघन किया है. "
भारत सरकार की लद्दाख (जिसमें चीन का क्षेत्र शामिल है) को केंद्र शासित प्रदेश बनाने की घोषणा ने चीन की संप्रभुता को चुनौती दी है और सीमा क्षेत्र में शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए दो देशों के बीच हुए समझौते का उल्लंघन किया है.
कश्मीर के मुद्दे पर ख्वा चूनयिंग ने कहा, "कश्मीर मुद्दे पर चीन की स्थिति साफ और एक जैसी है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इसे लेकर सहमति है कि भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर का मुद्दा अतीत से लंबित है."
लद्दाख पर चीन का दावा क्या है?
चीन कहता रहा है कि अक्साई चिन समेत लद्दाख इलाक़ा ऐसे सीमाई विवाद का हिस्सा है, जो अभी तय नहीं हुआ है.
फिलहाल, अक्साई चिन को चीन ने अपने शिनजियांग क्षेत्र में शामिल करता है और इसे बेहद अहम मानता है. वजह ये है कि इसके जरिए शिनजियांग और तिब्बत के बीच सैनिकों की आवाजाही हो सकती है.
चीन शिमला समझौते को मान्यता नहीं देता है. ये समझौता साल 1914 में तिब्बत और भारत के ब्रिटिश प्रशासन के बीच हुआ था. जिसमें लद्दाख के भारत का हिस्सा होने को मान्यता दी गई है.
चीन का कहना है कि ये संधि उस वक्त की चीन सरकार के साथ नहीं की गई थी और इसलिए ये अमान्य है.
वांग यी ने कहा, "भारत का कदम चीन को मान्य नहीं है और इससे इस क्षेत्र की संप्रभुता और प्रशासनिक ज्यूरिडिक्शन में चीन की स्थिति में भी कोई बदलाव नहीं होगा."
सरकार के नियंत्रण वाले अख़बार ग्लोबल टाइम्स ने लिखा, "जब भारत के गृह मंत्री अमित शाह जोर से दावा करते हैं कि भारत उत्तर पश्चिम चीन के शिनजियांग वीगर स्वायत्त क्षेत्र पर शासन स्थापित करना चाहता है तो ये चीन के ख़िलाफ शत्रुता का भाव दिखाता है."
शंघाई इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल स्टडीज़ के रिसर्च फेलो झाओ गानचेंग के हवाले से ग्लोबल टाइम्स ने लिखा, "अगर भारत अपने अतार्किक दावों को आगे बढ़ाता है और सैन्य कार्रवाई से हमें उकसाता है तो चीन मजबूती के साथ पलटवार करेगा."
भारत का क्या कहना है?
भारत के विदेश मंत्रालय ने चीन की आलोचनाओं का जवाब दिया है. विदेश मंत्रालय का कहना है, "नए केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख का गठन भारत का आंतरिक मामला है."
भारत के गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में कहा, "लद्दाख के लोगों की बहुत लंबे वक्त से मांग रही है, इस क्षेत्र को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा देने की, अब वो अपनी आकांक्षाओं को पूरा कर सकेंगे."
भारत ये भी कहता रहा है कि अक्साई चिन पर चीन का दावा अवैध है और ये शिमला समझौते का उल्लंघन है.
इस विवाद को चीन के करीबी सहयोगी और भारत के प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान ने और उलझा दिया है. पाकिस्तान ने साल 1963 में ट्रांस कराकोरम का एक हिस्सा चीन के सुपुर्द कर दिया था. ये क्षेत्र अक्साई चिन के करीब है. पाकिस्तान के कदम को भारत अवैध बताता है.
लंबे समय से इस मामले पर भारत का जो रुख है, उसे दोहराते हुए शाह ने संसद में कहा, "कश्मीर भारत का अविभाज्य हिस्सा है. इसे लेकर कोई संदेह नहीं है. जब मैं जम्मू कश्मीर की बात करता हूं तो पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर और अक्साई चिन भी इसमें आते हैं."
चीन ने क्या कदम उठाए हैं?
चीन ने जो कहा है, वो उस पर अमल भी कर रहा है. पाकिस्तान की गुजारिश पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बंद कमरे में बैठक हुई. पाकिस्तान का कश्मीर को लेकर भारत के साथ विवाद है.
इस बैठक के कुछ ही दिन पहले विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बीजिंग का दौरा किया था. ग्लोबल टाइम्स के मुताबिक उन्होंने समझौते वाली भाषा का इस्तेमाल करते हुए कहा था, "भारत के संविधान में संशोधन से संप्रभुता के नए दावे की स्थिति नहीं बनेगी. इससे (पाकिस्तान सीमा पर) कश्मीर क्षेत्र में नियंत्रण रेखा पर बदलाव नहीं आएगा और चीन-भारत सीमा पर कंट्रोल लाइन नहीं बदलेगी."
पाकिस्तान लंबे वक्त से कश्मीर विवाद के अंतरराष्ट्रीयकरण की कोशिश में लगा है. संयुक्त राष्ट्र की बैठक उसी दिशा में प्रयास दिखती है. भारत इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मामला बनाए जाने का विरोध करता है.
लेकिन इस बैठक में राय बंटी हुई रही. रिपोर्टों के मुताबिक रूस ने भारत का समर्थन किया. वहीं ब्रिटेन ने इस मांग में चीन का समर्थन किया कि बैठक के बाद एक सार्वजनिक बयान जारी किया जाए.
चीन के अलावा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के बाकी चार स्थायी सदस्यों ने भारत और पाकिस्तान से अपने विवादों को दोतरफा तरीके से सुलझाने के लिए कहा.
आखिरकार, ये बैठक बिना कोई बयान जारी किए हुए ख़त्म हो गई. हालांकि, चीन और पाकिस्तान ने बाद में अपनी ओर से बयान जारी किए. इसके बाद भारत ने भी बयान जारी किया और कहा कि चीन और पाकिस्तान के बयान सुरक्षा परिषद के विचारों को जाहिर नहीं करते हैं.
भारत के बयान का किसी और सदस्य देश ने खंडन नहीं किया. बाद के दिनों में ज़्यादातर देशों ने भारत और पाकिस्तान से कहा कि कश्मीर को लेकर वो अपने मतभेदों को दोतरफा तरीके से सुलझा लें.