ईरान को अचानक जी-7 की बैठक में क्यों बुलाया गया
ईरान के विदेश मंत्री अप्रत्याशित रूप से रविवार को फ़्रांस के बियारिज़ में जी-7 सम्मेलन में शरीक होने पहुंचे.
ऐसा फ़्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की पहल पर हुआ. मैक्रों ने ईरान के साथ हुए परमाणु समझौते को ज़िंदा रखने की कोशिश के लिए ऐसा किया है.
पिछले साल अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने ईरान के साथ परमाणु क़रार तोड़ने की एकतरफ़ा घोषणा कर दी थी.
ईरान के विदेश मंत्री अप्रत्याशित रूप से रविवार को फ़्रांस के बियारिज़ में जी-7 सम्मेलन में शरीक होने पहुंचे.
ऐसा फ़्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की पहल पर हुआ. मैक्रों ने ईरान के साथ हुए परमाणु समझौते को ज़िंदा रखने की कोशिश के लिए ऐसा किया है.
पिछले साल अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने ईरान के साथ परमाणु क़रार तोड़ने की एकतरफ़ा घोषणा कर दी थी.
जी-7 में ईरान और रूस को बुलाने को लेकर ट्रंप पूरी तरह से तैयार नहीं थे. लेकिन इसके बावजूद ईरान के विदेश मंत्री जवाद ज़ारिफ़ फ़्रांस पहुंचे.
फ़ाइनैंशियल टाइम्स से फ़्रांस के एक सीनियर अधिकारी ने कहा है, ''हमलोग पूरी पारदर्शिता के साथ अमरीका के साथ काम कर रहे हैं. इसमें हमारे यूरोप के बाक़ी साझेदार भी शामिल हैं. अभी अमरीका और ईरान के बीच कोई मीटिंग की योजना नहीं है.''
ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने इस प्रगति पर कहा है कि जवाद ज़ारिफ़ का फ़्रांस आना एक राजनयिक क़दम है, जिसके तहत ईरान और यूरोप के देश परमाणु समझौते को ज़िंदा रखने की कोशिश कर रहे हैं. ईरानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि इसे लेकर ईरान और फ़्रांस के बीच बात चल रही है.
Iran's active diplomacy in pursuit of constructive engagement continues.
Met @EmmanuelMacron on sidelines of #G7Biarritz after extensive talks with @JY_LeDrian & Finance Min. followed by a joint briefing for UK/Germany.
Road ahead is difficult. But worth trying. pic.twitter.com/oXdACvt20T
— Javad Zarif (@JZarif) 25 August 2019
इस मसले पर जवाद ज़ारिफ़ ने ट्वीट भी किया है. उन्होंने ट्वीट कर कहा है, ''ईरान सक्रिय डिप्लोमैसी के ज़रिए रचनात्मक सहयोग पर काम कर रहा है. आगे की राह मुश्किल है लेकिन हम कोशिश कर रहे हैं.''
आगे की राह मुश्किल, कोशिश कर रहे हैं
ईरान संकट पर फ़्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों चाह रहे हैं कि परमाणु क़रार टूटे नहीं. मैक्रों को जर्मनी और ब्रिटेन का भी समर्थन मिला हुआ है.
ये देश चाहते हैं कि ईरान और अमरीका के बीच रिश्ते सुधरे जिससे इलाक़े में तनाव कम हो. फ़्रांस चाहता है कि ईरानी पर लगी अमरीकी पाबंदी में ढील दी जाए जिससे वो तेल का आयात कर सके.
हालांकि कई विशेषज्ञों को लग रहा है कि जवाद ज़ारिफ़ का फ़्रांस आना बैकफ़ायर भी कर सकता है. कहा जा रहा है कि ट्रंप इसे फ़्रांस के स्टंट के रूप में ले सकते हैं.
फ़्रांस के कुछ अधिकारियों का ये भी कहना है कि ईरानी विदेश मंत्री की ब्रिटेन और जर्मनी के साथ बैठक होनी है और ट्रंप को पहले बता दिया गया था कि जवाद ज़ारिफ़ फ़्रांस आएंगे. ईरान और रूस के बीच भी बैठक हुई है.
कुछ रिपोर्ट्स में ये भी कहा जा रहा है कि अमरीकी प्रतिनिधिमंडल जी-7 में ईरानी विदेश मंत्री के दौरे से हैरान है. कहा जा रहा है कि फ़्रांस ने ऐसा तब किया जब ईरान और अमरीका में तनाव चरम पर है. हालांकि ये बात भी कही जा रही है कि मैक्रों और ट्रंप इस बात पर सहमत हैं कि तेहरान के साथ तनाव कम होना चाहिए.
इससे पहले ट्रंप ने ईरान पर किसी भी तरह की मध्यस्थता से इनकार कर दिया था. ट्रंप ने कहा था, ''हमलोग ख़ुद से इस मसले पर आगे बढ़ेंगे लेकिन आप जानते हैं कि लोगों को बात करने से नहीं रोक सकते. अगर लोग बात करना चाहते हैं तो वो बात कर सकते हैं. जी-7 के सदस्य देश- ब्रिटेन, कनाडा, फ़्रांस, जर्मनी, इटली, जापान और अमरीका हैं. इसमें भारत को भी विशेष पार्टनर के तौर पर बुलाया गया है और प्रधानमंत्री मोदी इसमें शरीक होने गए हैं.
अमरीका की ईरान पर पाबंदी
अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने जब ईरान पर फिर से प्रतिबंध लगाया था तो ज़ाहिर कर दिया था कि उनकी विदेश नीति में उनके सहयोगी देशों की राय कोई मायने नहीं रखती है.
2015 में तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने ईरान के साथ परमाणु समझौता कर प्रतिबंधों को ख़त्म कर दिया था तो इस रुख़ से यूरोपीय यूनियन और नेटो के देश भी ख़ुश थे. ट्रंप के इस फ़ैसले से अमरीका के सारे सहयोगी असहमत हैं लेकिन ट्रंप पर कोई असर नहीं पड़ा.
Despite US efforts to destroy diplomacy, met with French President @EmmanuelMacron and @JY_LeDriane in Paris today.
— Javad Zarif (@JZarif) 23 August 2019
Interviewed with Euronews, AFP, & France24.
Multilateralism must be preserved.
Next stops Beijing, Tokyo & KL after a day in Tehran. pic.twitter.com/xfBN66SBly
कई विश्लेषकों को लगता है कि ईरान चीन को संकट की स्थिति में गोपनीय हथियार के तौर पर देखता रहा है. ईरान को लगता है कि वो पश्चिम के नुक़सान को चीनी निवेश और उसे तेल बेचकर भरपाई कर लेगा. अमरीका और चीन के बीच जारी ट्रेड वॉर में ऐसा माना जा रहा है कि ईरान को चीन का साथ मिलेगा.
ईरान के पहले उपराष्ट्रपति को सुधारवादी माना नेता माना जाता है. उन्होंने कहा था कि ईरान को सीधे अमरीका से बात करनी चाहिए. इशाक़ ने कहा था कि ईरान गंभीर 'इकनॉमिक वॉर' में जा रहा है और इसका नतीज़ा बहुत बुरा होगा.
उन्होंने कहा था कि ईरान को इस संकट से चीन और रूस भी नहीं निकाल सकते हैं. उनका कहना था कि अमरीका ही इस संकट से ईरान को निकाल सकता है.