मलाला से क्यों नफ़रत करते हैं कुछ पाकिस्तानी?
नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मलाला यूसुफ़ज़ई तालिबान चरमपंथियों द्वारा गोली मारे जाने के बाद पहली बार पाकिस्तान लौटी हैं.
साल 2012 में महिला शिक्षा के प्रचार में जुटीं मलाला को तालिबान के चरमपंथियों ने निशाना बनाया था.
मलाला अब 20 वर्ष की हो गई हैं और एक मुखर मानवाधिकार कार्यकर्ता के तौर पर उन्होंने अपनी एक मज़बूत पहचान बना ली है.
नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मलाला यूसुफ़ज़ई तालिबान चरमपंथियों द्वारा गोली मारे जाने के बाद पहली बार पाकिस्तान लौटी हैं.
साल 2012 में महिला शिक्षा के प्रचार में जुटीं मलाला को तालिबान के चरमपंथियों ने निशाना बनाया था.
मलाला अब 20 वर्ष की हो गई हैं और एक मुखर मानवाधिकार कार्यकर्ता के तौर पर उन्होंने अपनी एक मज़बूत पहचान बना ली है. साढ़े पांच साल बाद मलाला अपने वतन वापस तो आईं, लेकिन क्या पाकिस्तान उनके दौरे से ख़ुश है?
बीबीसी उर्दू के संपादक हारून रशीद बताते हैं, "पाकिस्तान के बहुत से लोग मलाला को पसंद करते हैं लेकिन कुछ पितृसत्तात्मक सोच वाले लोगों को मलाला से परेशानी है क्योंकि वे बच्चियों की तालीम पर बात करती हैं. ऐसे बहुत से दकियानूसी सोच वाले आदमी मलाला को इंटरनेट पर भी निशाना बनाते रहते हैं."
हमले के बाद पहली बार पाकिस्तान लौटीं मलाला यूसुफ़ज़ई
वो कहते हैं, "उन्हें मलाला से नफ़रत है क्योंकि उन्हें लगता है कि वे पश्चिमी देशों के औरतों की आज़ादी के एजेंडे को बढ़ावा दे रही हैं. उन लोगों को औरतों को तालीम से डर लगता है. उन्हें लगता है कि इसमें ख़तरा है. ख़ासकर ग्रामीण इलाकों में जहां लाखों लड़कियां पढ़ाई छोड़कर घर के काम करती हैं. इसका सीधा सा मतलब है कि मलाला बहुत मुश्किल पुरुषवादी सोच से लड़ रही हैं."
ये सोच समय-समय पर नज़र भी आती है.
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2014 में मलाला को मिला था नोबेल पुरस्कार
2014 में जब मलाला को नोबेल मिला तब भी इसके विरोध में आवाज़ सुनाई दी थीं. सोशल मीडिया पर अपमानजनक और व्यंग्यात्मक लहजे वाली टिप्पणियां देखने को मिली थीं और पाकिस्तानी टीवी चैनलों में भी उस ख़बर को लेकर कोई ख़ास उत्साह नहीं नज़र आया था.
आलम ये था कि काफ़ी समय तक तो पाकिस्तान के बहुत से लोगों को ये ख़बर तक नहीं मिली कि मलाला को नोबेल पुरस्कार देने की घोषणा हो गई थी.
'पाकिस्तान ऑब्ज़र्वर' अख़बार के उस वक़्त के संपादक तारिक़ खटाक़ ने इस फ़ैसले की आलोचना करते हुए बीबीसी से कहा था, "यह एक राजनीतिक फ़ैसला है और एक साजिश है."
उन्होंने मलाला के बारे में कहा था कि "वो एक साधारण और बेकार सी लड़की है. उसमें कुछ भी ख़ास नहीं है वह वो काम कर रही है जो पश्चिम के देश चाहते हैं."
मलाला युसूफ़ज़ई 1999 में पैदा हुई. वे पहली बार सुर्खियों में 2009 में आईं जब उन्होंने 10 साल की उम्र में गुल मकई के नाम से बीबीसी उर्दू के लिए डायरी लिखना शुरू किया. ये डायरी बाहरी दुनिया के लिए एक खिड़की थी जिससे उन्हें पता चला कि स्वात घाटी में तालिबान के साए में ज़िंदगी कैसे बीत रही थी.
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2012 में मलाला के सिर में मारी थी गोली
मलाला से नाराज़ चरमपंथियों ने 2012 में उनके सिर में गोली मार दी. ब्रिटेन में लंबे समय तक इलाज कराने के बाद वे ठीक हो पाईं और तब से पाकिस्तान से बाहर रह रही हैं.
मलाला की खोज करने वाले बीबीसी पत्रकार अब्दुल हई काकड़ ने तफ़्सील से बताया था कि वे मलाला तक कैसे पहुंचे और उनसे डायरी लिखवाने का आइडिया कैसे आया.
"ये 2008 की बात है. तब मैं पेशावर में बीबीसी उर्दू सेवा के लिए काम करता था. पाकिस्तान का क़बायली इलाक़ा चरमपंथ से जूझ रहा था और वहां धार्मिक नेता मौलाना फ़ज़लुल्लाह शरिया क़ानून लागू करवाने की मुहिम चला रहे थे."
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पाकिस्तान के स्वात की रहने वाली हैं मलाला
फ़ज़लुल्लाह की शुरुआती पहचान एक मौलवी की थी. आगे चलकर वे 'गैरइस्लामी' चीज़ों की मुख़ालिफ़त करने लगे. इन गैरइस्लामी चीज़ों में निजी स्कूल, गीत-संगीत सब शामिल थे."
अब्दुल आगे बताते हैं, "एक वक़्त तालिबान ने स्वात को पूरी तरह अपने क़ब्ज़े में ले लिया. बस कुछ सरकारी इमारतें छोड़ी गई थीं जिन पर उनका क़ब्ज़ा नहीं था. हालात लगातार बदतर होते गए और 2008 में तालिबान ने लड़कियों की पढ़ाई पर रोक लगा दी."
वो कहते हैं, "मुझे लगा कि जिन पर यह सब गुज़र रहा है, उनकी आवाज़ को सामने लाया जाना चाहिए. बीबीसी उर्दू ने मुझे इसकी इजाज़त दे दी. मलाला के पिता ज़ियाउद्दीन मेरे परिचित थे. वे स्वात में एक स्कूल चलाते थे. मैंने उनसे बात की और फिर उन्होंने मुझे एक बच्ची का नंबर दिया."
वो आगे कहते हैं, "वह बच्ची पहले बीबीसी के लिए लिखने को राज़ी हो गई, फिर कहा कि उसके मां-बाप तालिबान के डर से मना कर रहे हैं. मैंने ज़ियाउद्दीन साहब से फिर बात की. उन्होंने थोड़ा सकुचाते हुए कहा कि मेरी बेटी भी तालिबान के प्रतिबंध से दुखी है और वह लिख सकती है. मैंने कहा कि मुझे कोई एतराज़ नहीं. फिर मलाला से बात हुई और सिलसिला शुरू हो गया."
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मलाला की डायरी
"उन दिनों फ़ैक्स, इंटरनेट जैसी सुविधाएं वहां न के बराबर थीं. मैं फ़ोन पर उनसे डिक्टेशन लेता था और उसे उर्दू में ट्रांसक्राइब करता था. इस दौरान कई दिक़्क़तें पेश आ रही थीं. मेरा फ़ोन ख़ुफ़िया एजेंसियों की निगरानी में था और मैं उस फ़ोन से मलाला से बात नहीं करता था क्योंकि इससे उसके लिए ख़तरा हो सकता था. मलाला से बात करने के लिए मैं अपनी पत्नी का फ़ोन इस्तेमाल कर रहा था."
"मलाला पर कोई मुश्किल न आए, इसलिए मैंने उसे 'गुल मकई' का नाम दिया. पश्तो में इसे मक्का का फूल कहते हैं और स्थानीय लोक संगीत में इस नाम का एक किरदार भी है. मलाला को इस बारे में काफ़ी देर से पता चला. उसे अपना यह नया नाम पसंद भी आया. हालांकि मलाला ने कभी नहीं कहा कि उसका नाम ज़ाहिर न किया जाए."
"मलाला की डायरी के लिए मेरी रोज़ उससे बात होती थी. ट्रांसक्रिप्शन का काम मैं उसी वक़्त कर लेता था ताकि वह जैसा बता रही हैं, वह उसी रूप में रहे. यह डायरी हर हफ़्ते बीबीसी उर्दू में पब्लिश होती थी, वहां से यह बीबीसी साउथ एशिया और रेडियो के लिए जारी होती थी."
"यह सिलसिला दो तीन महीने चला. फ़ौज की कार्रवाई के बाद स्वात में पाकिस्तानी नियंत्रण फिर से बहाल हो गया और स्कूल फिर से खुल गए. इसके बाद मलाला के साथ जो कुछ हुआ, वह दुनिया जानती है."
पाकिस्तान लौटी मलाला
उस घटना के बाद मलाला पहली बार पाकिस्तान लौटी हैं. हालांकि इस बार भी वे वहां कुछ दिन ही गुजारेंगी. मलाला को पाकिस्तान में अब भी ख़तरा हो सकता है इसलिए उनके दौरे की जानकारी सार्वजनिक नहीं की जा रही.
गुरुवार को पाकिस्तान पहुंचकर मलाला ने एक भावुक भाषण दिया जिसमें उन्होंने बताया कि वे वतन लौटकर कितनी ख़ुश हैं. भाषण के दौरान वे कई बार आंसू पोंछती नज़र आईं.
मलाला ने कहा, "मुझे अभी भी यक़ीन नहीं आ रहा कि ये वाक़ई में हो रहा है. मैंने पिछले पांच साल में यही ख़्वाब देखा है कि मैं अपने मुल्क में क़दम रख सकूं. आज जब देख रही हूं तो बहुत ख़ुश हूं. अगर बस में होता तो अपना मुल्क कभी नहीं छोड़ती लेकिन मुझे इलाज के लिए बाहर जाना पड़ा."
उन्होंने कहा, "हमेशा से ये ख़्वाब था कि पाकिस्तान जाऊं और वहां अमन से, बिना किसी ख़ौफ़ के सड़क पर निकल सकूं, लोगों से बात कर सकूं, सब कुछ वैसा ही हो जाए जैसा मेरे पुराने घर में था. आख़िरकार ये हो रहा है और मैं आपकी शुक्रगुज़ार हूं."