पाकिस्तान: शहबाज़ शरीफ़ की कैबिनेट में क्यों नहीं शामिल हुए बिलावल भुट्टो
पाकिस्तान में नई सरकार बन गई है. लेकिन गठबंधन की बड़ी साझीदार पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के अध्यक्ष बिलावल भुट्टो मंत्रिमंडल में शामिल नहीं हैं. उनकी कैबिनेट में ना होने के क्या मायने हैं और इसका सियासी असर क्या हो सकता है.
पाकिस्तान में प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ की नई सरकार के मंत्रिमंडल के गठन में हफ़्ते भर का वक़्त लग गया.
ऐसे क़यास लगाए जा रहे थे कि पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के चेयरमैन बिलावल भुट्टो ज़रदारी को शहबाज़ शरीफ़ के मंत्रिमंडल में विदेश मंत्रालय की कमान सौंपी जा सकती है.
लेकिन जब कैबिनेट मंत्रियों ने मंगलवार को शपथ लिया तो बिलावट भुट्टो उनमें शामिल नहीं थे.
हालांकि वो राष्ट्रपति भवन में हुए शपथ ग्रहण समारोह में शामिल थे.
यहां तक कि विदेश मंत्रालय की ज़िम्मेदारी किसी और नेता को देने का एलान भी नहीं हुआ.
ऐसे हालात में पहले ख़बर आई कि बिलावल भुट्टो कैबिनेट के अन्य सदस्यों के साथ शपथ लेने की बजाए अलग से शपथ लेंगे.
लेकिन बुधवार को शपथ लिए बिना वो पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़) के पूर्व अध्यक्ष नवाज़ शरीफ़ को बधाई देने लंदन चले गए.
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बिलावल भुट्टो के शपथ नहीं लेने और लंदन जाने की वजह क्या है
ऐसा कहा जा रहा है कि सत्ताधारी गठबंधन में शामिल बड़ी पार्टियों पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एन) और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के बीच कुछ पदों पर नियुक्ति को लेकर मतभेद थे और संभवत: उसे ही सुलझाने के लिए बिलावल भुट्टो लंदन गए हैं.
पीपीपी के वरिष्ठ नेता फ़रहतुल्ला बाबर ने इस बात की पुष्टि की है कि कुछ मुद्दे हैं जिनपर गठबंधन में मतभेद हैं.
उन्होंने कहा कि कुछ ऐसी बातें हैं जिनके बारे में नवाज़ शरीफ़ को फ़ैसला लेना पड़ सकता है.
हालांकि सार्वजनिक रूप से यही कहा गया है कि बिलावल भुट्टो नवाज़ शरीफ़ को मुबारकबाद देने गए हैं, लेकिन जानकारों का कहना है कि बिलावल उनसे मतभेद के उन मुद्दों पर बात करेंगे.
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मतभेद के मुद्दे
लेकिन मतभेद के वो मुद्दे क्या हैं जिन पर बात करने के लिए बिलावल लंदन गए हैं?
पत्रकार और विश्लेषक असमा शिराज़ी का कहना है कि दोनों दलों के बीच कुछ अहम संवैधानिक पदों को लेकर मतभेद हैं.
मसलन, पीपीपी राष्ट्रपति, सीनेट चेयरमैन और पंजाब के गवर्नर के पदों पर अपने उम्मीदवार नियुक्त करवाना चाहती है, जबकि मियां नवाज़ शरीफ़ ने इन तीन अहम पदों को पीपीपी को दिए जाने का विरोध किया है.
पाकिस्तान की सियासत को अच्छी तरह समझने वाले वरिष्ठ पत्रकार सोहेल वराइक को लगता है कुछ मंत्रालयों को लेकर दोनों दलों में मतभेद हैं और उसके बारे में पर्दे के पीछे बातचीत चल रही है.
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वो कहते हैं, "पहली बात ये है कि पीपीपी मानवाधिकार मंत्रालय की जगह कोई और मंत्रालय चाहती है. मोहसिन डावर के मंत्रालय को लेकर भी बातचीत चल रही है. साथ ही क़ानून मंत्रालय को लेकर पहले मतभेद थे, लेकिन अब उस पर सहमति बन गई है और अब ये मंत्रालय नवाज़ शरीफ़ की पार्टी को दे दिया गया है."
ये बात भी ध्यान रखने की है कि मानवाधिकार मंत्रालय एहसान-उर-रहमान को दिया गया है जो कि पीपीपी के सांसद हैं और क़ानून मंत्रालय राना सनाउल्लाह को दिया गया है जो पीएमएल (एन) से हैं.
हालांकि, पाकिस्तान के कबायली क्षेत्र उत्तरी वज़ीरिस्तान से सांसद मोहसिन डावर को कयासों के बावजूद कोई मंत्रालय नहीं दिया गया है.
वो पहले के विपक्ष में शामिल थे जिसने इमरान ख़ान को प्रधानमंत्री की कुर्सी से हटाया. मोहसिन डावर अपने कड़े तेवर और अफ़ग़ान सीमा से सटे कबायली इलाकों में सेना के अभियान की आलोचना के लिए जाने जाते हैं.
लेकिन पीपीपी का नेतृत्व इस मसले पर विचार के लिए प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ की बजाए नवाज़ शरीफ़ से क्यों मिल रहा है?
इस पर असमा शिराज़ी कहती हैं, "ये सारे फ़ैसले लेना शहबाज़ शरीफ़ के हाथ में नहीं है क्योंकि सारे फ़ैसले नवाज़ शरीफ़ ही लेते हैं."
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बिलावल को कैबिनेट में शामिल करने को लेकर अलग-अलग नज़रिया
शहबाज़ शरीफ़ जैसे ही पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने तो अफ़वाहों का बाज़ार गर्म हो गया कि बिलावल भुट्टो ज़रदारी को विदेश मंत्रालय दिया जा सकता है.
उसी समय इस पर भी चर्चा छिड़ गई कि कभी एक-दूसरे की विरोधी रही इन दोनों ही पार्टियों में एक का अध्यक्ष क्या दूसरे दल के अध्यक्ष का मातहत बन कर काम कर पाएगा?
पीपीपी के रुख़ का ज़िक्र करते हुए वरिष्ठ नेता फ़रहतुल्ला बाबर कहते हैं, "पहले और आज भी बिलावल भुट्टो को दिए जाने वाले पद को लेकर दो तरह के विचार रहे हैं. सवाल ये नहीं है कि एक पार्टी के अध्यक्ष को दूसरी पार्टी के अध्यक्ष के अंतर्गत काम करना चाहिए या नहीं क्योंकि गठबंधन सरकारों में ऐसा होता है कि ज़्यादा सीटों वाली पार्टी अहम महकमे अपने पास रखती है."
लेकिन विरोधियों का कहना है कि "पीपीपी के संगठन का काम इतना बड़ा है कि चेयरमैन बिलावल को उस पर ही ध्यान देना चाहिए."
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इस सवाल पर कि बिलावल जब लंदन से लौटेंगे तो क्या उन्हें विदेश मंत्री के तौर पर शपथ दिलाई जा सकती है? फ़रहतुल्ला बाबर कहते हैं, "ये फ़ैसला उनके लौटने के बाद ही लिया जाएगा."
पत्रकार और विश्लेषक सोहेल वराइक मानते हैं कि "बिलावल को मंत्रालय ले लेना चाहिए. बिलावल विदेश मंत्रालय ले लेंगे तो ये एक अच्छा मौका होगा और इस तरह उन्हें अपनी काबिलियत को दिखाने का मौका मिलेगा. वो बेनज़ीर भुट्टो के बेटे और ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो के नाती हैं. ऐसे मौके पर उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुना जाएगा."
असमा शिराज़ी को लगता है कि व्यवस्था को मज़बूत बनाने के लिए इस तरह के प्रयोग किए जाने चाहिए जिसमें सभी बड़ी और छोटी पार्टियां मिलकर काम करें.
वो कहती हैं, "इन सभी दलों के एक साथ आने का एकमात्र मक़सद तानाशाही और फ़ासीवादी सरकार को हटाना और चुनाव करवाना था. अब इन दोनों लक्ष्यों के पूरे होने के बाद आपस में तालमेल बिठाने की व्यवस्था पर काम हो रहा है. मोहसिन डावर को कैबिनेट में शामिल नहीं किया गया है जो कि परेशान करने वाली बात है. अगर वो शामिल होते तो सरकार मज़बूत होती."
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क्या हिना रब्बानी का क़द छोटा हुआ है?
नई कैबिनेट में पीपीपी की सांसद हिना रब्बानी खार को विदेश मंत्रालय में राज्य मंत्री की ज़िम्मेदारी दी गई है.
पिछली पीपीपी सरकार में वो विदेश मंत्री रह चुकी हैं.
पर्यवेक्षकों का कहना है कि अगर बिलावल विदेश मंत्री बनते हैं तो ये उनके लिए अच्छा होगा.
हालांकि, हिना रब्बानी खार को विदेश मंत्रालय में राज्य मंत्री बनाना उनके क़द के हिसाब से पदावनति है.
सोहेल वराइक इस बात से सहमत हैं. वो कहते हैं, "ये डिमोशन है लेकिन बिलावल और हिना रब्बानी टीम के रूप में अच्छे होंगे."
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पाकिस्तान की नई कैबिनेट
शहबाज़ शरीफ़ की कैबिनेट में 12 केंद्रीय मंत्री हैं, दो राज्य मंत्री हैं और दो सलाहकार उनकी पार्टी के हैं जबकि पीपीपी के नौ केंद्रीय मंत्री हैं, दो राज्य मंत्री और एक सलाहकार हैं.
नेशनल असेंबली में इन दोनों दलों की सबसे ज़्यादा सीटें हैं.
सत्ताधारी गठबंधन में शामिल जमीयत उलेमा ए इस्लाम के चार मंत्री हैं और एमक्यूएम के दो मंत्री हैं.
बीएनपी मेंगल और जम्हूरी वतन पार्टी से एक-एक मंत्री शामिल हैं और पीएमएल (क्यू) के तारिक़ बशीर चीमा को भी एक मंत्रालय दिया गया है.
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