क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

आख़िर पुतिन को कोई चुनौती क्यों नहीं दे पाता?

''पुतिन नहीं तो रूस नहीं'', ये मानना है क्रेमलिन के डेप्युटी चीफ़ ऑफ स्टाफ का. व्लादिमीर पुतिन को चौथी बार रूस का राष्ट्रपति चुनने वाले लाखों रूसी भी यही दोहराते हैं.

पुतिन ने एक बार फिर से लोगों का भरोसा जीता है. उन्होंने लोगों को यक़ीन दिला दिया है कि उनकी जगह कोई और नहीं ले सकता.

अधिकारिक नतीजों के मुताबिक उन्हें 76 प्र​तिशत से ज्यादा वोट मिले हैं 

By BBC News हिन्दी
Google Oneindia News
व्लादिमीर पुतिन, रूस
Getty Images
व्लादिमीर पुतिन, रूस

''पुतिन नहीं तो रूस नहीं'', ये मानना है क्रेमलिन के डेप्युटी चीफ़ ऑफ स्टाफ का. व्लादिमीर पुतिन को चौथी बार रूस का राष्ट्रपति चुनने वाले लाखों रूसी भी यही दोहराते हैं.

पुतिन ने एक बार फिर से लोगों का भरोसा जीता है. उन्होंने लोगों को यक़ीन दिला दिया है कि उनकी जगह कोई और नहीं ले सकता.

अधिकारिक नतीजों के मुताबिक उन्हें 76 प्र​तिशत से ज्यादा वोट मिले हैं और ये प्रतिशत साल 2012 के चुनावों से भी ज़्यादा है.

पुतिन एक ऐसा 'माचो मैन' जो किसी से डरता नहीं!

वो सात कारण जिससे रूस में पुतिन बने सबसे ताक़तवर

21वीं सदी के रूस में लोग देश के शीर्ष व्यक्ति के तौर पर सिर्फ़ व्लादिमीर पुतिन को जानते हैं.

अपने शासनकाल के दौरान पुतिन प्रधानमंत्री (1999) से लेकर राष्ट्रपति बने (2000-2008) और फिर से प्रधानमंत्री बने (2008-2012, इस दौरान उन्होंने संविधान में बदलाव करके राष्ट्रपति के कार्यकाल को चार से बढ़कार छह साल कर दिया था). इसके बाद पुतिन साल 2012 में फिर से राष्ट्रपति बने.

व्लादिमीर पुतिन, रूस
Getty Images
व्लादिमीर पुतिन, रूस

अब पुतिन को फिर से राष्ट्रपति के तौर पर चुना गया है. यह उनका चौथा कार्यकाल होगा जो साल 2024 तक चलेगा.

लेकिन, एक केजीबी एजेंट से वो देश के सबसे शक्तिशाली व्यक्ति कैसे बने ये ज़रूर दिलचस्पी का विषय है. उनके इस राजनीतिक सफर में कौन से महत्वपूर्ण पड़ाव रहे हम यहां बता रहे हैं.

कैसी है पुतिन के रूस में लोगों की जिंदगी?

1. ''मॉस्को में ख़ामोशी''

शीत युद्ध की समाप्ति का अंतिम दौर व्लादिमीर पुतिन के उठने के शुरुआती साल थे.

1989 क्रां​ति के समय वह तत्कालीन साम्यवादी पूर्वी जर्मनी में केजीबी के एजेंट थे. तब उनकी स्थिति ज़्यादा अच्छी नहीं थी.

पुतिन ख़ुद बताते हैं कि कैसे द्रेसदेन में केजीबी के मुख्यालय को भीड़ के घेर लेने पर वो मदद के लिए चिल्लाये थे.

व्लादिमीर पुतिन, रूस
Getty Images
व्लादिमीर पुतिन, रूस

उन्हें मदद के लिए रेड आर्मी टैंक को फ़ोन किया, लेकिन मिखाइल गोर्बाचोव के तहत मॉस्को चुप रहा.

तब उन्होंने ख़ुद मॉस्को की तरफ़ से फ़ैसला ले लिया और कई रिपोर्ट्स जलाने शुरू कर दिए.

उन्होंने एक किताब में ख़ुद बताया, ''मैंने ख़ुद बड़ी संख्या में​ रिपोर्ट्स जलाए. इतने की वहां आग भभक उठी.''

जब पुतिन ने यात्री विमान गिराने का हुक्म दिया

2. रूस के दूसरे बड़े शहर में

वह अपने गृहनगर लेनिनग्राद (बाद में इसका पुराना नाम सेंट पीटसबर्ग रख दिया गया) में लौटने पर पुतिन रातोरात नए मेयर एनातोली सोबचाक के ख़ास बन गए.

मेयर अपने पुरानी स्टूडेंट को याद करते हैं. उन्होंने पुतिन को राजनीति में पहली नौकरी 1990 में दी थी.

साम्यवादी पूर्वी जर्मनी के विघटन के बाद पुतिन ऐसे नेटवर्क का हिस्सा थे जो अपनी भूमिका खो चुका था, लेकिन उन्हें नए रूस में व्यक्तिगत और राजनीतिक तौर पर आगे बढ़ने के लिए अच्छा मौक़ा दिया गया था.

नया रूस बनने के बाद पुतिन का अनुभव काम अया. उन्होंने पुरानी दोस्ती का फ़ायदा उठाया, नए संपर्क बनाए और नए नियमों के साथ खेलना सीखा. लंबे समय तक वह एनातोली सोबचाक के डेप्युटी रहे.

3. मॉस्को की नज़र में आना

पुतिन के करियर का ग्राफ चढ़ना शुरू हो गया था. अपने केजीबी के समय से ही पुतिन जानते थे कि कैसे संभ्रांत लोगों में संपर्क बनाना है.

वह अपने गुरू सोबचाक के निधन के बाद मॉस्को चले गए. जहां वह केजीबी के बाद बनी एजेंसी एफएसबी से जुड़ गए.

बोरिस येल्तसिन रूस के राष्ट्रपति बने और बाद में पुतिन की उनसे क़रीबी बढ़ गई. पुतिन अपने संपर्कों और कुशल संचालन क्षमता के कारण बोरिस के नजदीक आते गए

4. अचानक बने राष्ट्रपति

येल्तसिन का व्यवहार अस्थिर होता जा रहा था और उन्होंने 31 दिसंबर 1999 को इस्तीफ़ा दे दिया. पुतिन को बर्जोवेस्की और अन्य ऑलीगार्क (व्यवसायियों का समूह ) का साथ मिल गया.

उनकी मदद से पुतिन कार्यकारी राष्ट्रपति बन गए और फिर मार्च 2000 में राष्ट्रपति पद का चुनाव जीत गए.

कारोबारी और येल्तसिन के राजनीतिक परिवार के सुधारक पुतिन के राष्ट्रपति बनने से ख़ुश थे और इसलिए उनकी कुर्सी सुरक्षित थी.

व्लादिमीर पुतिन, रूस
Getty Images
व्लादिमीर पुतिन, रूस

5. मीडिया पर नियंत्रण

पुतिन ने सत्ता में आते ही मीडिया पर नियंत्रण कर लिया. ऐसा होना ऑलीगार्क के लिए झटका था क्योंकि उन्हें पुतिन से ऐसी उम्मीद नहीं थी.

इससे ये भी साफ़ हो गया कि पुतिन आगे किस तरह काम करने वाले हैं.

मीडिया पर नियंत्रण करने से पुतिन को दो फ़ायदे हुए. इससे जहां आलोचकों पर नियंत्रण करने में मदद मिली वहीं रूस और पुतिन से जुड़ी ख़बरें भी उसी तरह सामने आईं जैसा पुतिन चाहते थे.

रूसी वही देखते थे जो पुतिन चाहते थे. कुछ लोगों ने स्वतंत्र पत्रकारिता करने की कोशिश की, लेकिन उन्हें बंद कर दिया या ऑनलाइन में ​शिफ्ट कर दिया गया. इस तरह एक मामला टीवी रेन के साथ हुआ था.

6. ऑलीगोर्की को हटाना

पुतिन ने सबसे पहले सत्ता पर नियंत्रण रखने वाले ऑलीगोर्की को हटाया.

रूस की बड़ी कंपनियां और कारोबारी धीरे-धीरे पुतिन के सहयोगियों के क़रीब आते गए और उसी तरह उनकी निष्ठा बदल गई.

व्लादिमीर पुतिन, रूस
Getty Images
व्लादिमीर पुतिन, रूस

7. 'मुझसे न उलझें'

अपने पैटर्न पर चलते हुए पुतिन ने धीरे-धीरे अपने भरोसेमंद नेताओं को गवर्नर बनाकर रूस के 83 क्षेत्रों पर अपने नियंत्रण कर लिया.

उन्हें साल 2004 में क्षेत्रीय चुनावों को ख़त्म कर दिया. इसके बदले उन्होंने तीन उम्मीदवारों और क्षेत्रीय विधायकों की एक सूची बनाई जो अगला गवर्नर चुन सकते हैं.

लोकतंत्र को लेकर हुए विरोध के बाद साल 2012 में क्षेत्रीय चुनाव होने शुरू हुए लेकिन फिर भी पुतिन का दबदबा बना रहा.

8. उदारवाद के साथ छेड़खानी

2011 से 2013 के बीच मॉस्को के बोलोश्निगा प्रदर्शनों से लेकर पूरे रूस में कई सामूहिक प्रदर्शन हुए जिसमें स्वच्छ चुनावों और लोकतांत्रिक सुधार की मांग की गई.

व्लादिमीर पुतिन, रूस
Getty Images
व्लादिमीर पुतिन, रूस

90 के दशक के बाद यह रूस में सबसे बड़े प्रदर्शन थे.

2000 में पड़ोसी राष्ट्रों में हुई 'रंग-बिरंगी क्रांतियों' और बाद में अरब स्प्रिंग के बाद पुतिन ने देखा कि यह लोगों की राय में बदलाव ला सकता है.

उनकी इस बात पर नज़र थी कि कैसे सत्तावादी नेता हर जगह से अपनी ताक़त खोते जा रहे हैं.

पुतिन ने देखा कि इन चर्चित प्रदर्शनों से पश्चिमी सरकारें रूस में पीछे के दरवाज़े से दाख़िल हो सकती हैं.

इसके अलावा क्रांति के बाद अराजकता और उत्तरी कॉकसस में इस्लामवादियों को एक उर्वरक ज़मीन मिलती. पुतिन इसे अनुमति नहीं देंगे इसलिए शैली में एक परिवर्तन आवश्यक है.

पुतिन ने बहुत कम समय के लिए उदारवाद का प्रयोग किया. उन्होंने राजनीतिक विकेंद्रीकरण की बात की और कहा कि क्षेत्र की अर्थव्यवस्था पर एक बड़ा नियंत्रण होना चाहिए. पुतिन अपने हर भाषण में 'सुधार' शब्द का प्रयोग करते हैं.

जब तक ख़तरा बन रहा था यह क़दम काफ़ी छोटा था. बाद में रणनीति को छोड़ दिया गया.

व्लादिमीर पुतिन, रूस
Getty Images
व्लादिमीर पुतिन, रूस

9. क्रीमिया पर क़ब्ज़े से दिखाई ताक़त

यूक्रेन में क्रांति के बाद खाली हुई सत्ता ने पुतिन को एक मौक़ा दे दिया. साल 2014 में क्रीमिया पर रूस का क़ब्ज़ा पुतिन की सबसे बड़ी जीत थी और पश्चिम के लिए अपमानजनक झटका था.

पुतिन जानते हैं कि रूस अकेले विश्व में अपनी जगह नहीं बना सकता. लेकिन, वह ये भी जानते हैं कि उन्हें शीत युद्ध के समय की तरह सुपरपावर बनने की ज़रूरत नहीं है.

उनके पास पश्चिमी देशों और नेटो को रूस का कद दिखाने के लिए पर्याप्त ताक़त है.

व्लादिमीर पुतिन, रूस
Getty Images
व्लादिमीर पुतिन, रूस

10. पश्चिम की कमज़ोर का शोषण

पुतिन जानते हैं कि पश्चिम में सामंजस्य का अभाव है. रूस का सीरिया में दख़ल और असद की सेनाओं के समर्थन से उन्होंने पश्चिम को जाल में फांस लिया. उन्होंने संघर्ष क्षेत्र में की गई पहल पर जीत भी हासिल की.

पुतिन की क्षेत्र में भागेदारी ने उन्हें कई गुना फ़ायदे भी दिए. इसने मध्य पूर्व में किसी एक देश के नियंत्रण को समाप्त कर दिया.

इसने उन्हें नए हथियार और सैन्य रणनीति अपनाने का मौक़ा दिया. साथ ही यह कड़ा संदेश दिया कि रूस अपने ऐतिहासिक गठबंधनों को नहीं भूलता है. असद वंश रूस का बेहद पुराना दोस्त रहा है.

रूस में अभी व्लादिमीर पुतिन की स्थिति अभेद्य लगती है, लेकिन 2024 में क्या होगा जब उनका कार्यकाल समाप्त होगा. वह 70 साल के हो चुके होंगे और रिटायरमेंट का उनका कोई इरादा नहीं दिखता है.

कोई नहीं जानता कि 2024 के बाद उनकी क्या योजना है और वह कब तक सत्ता पर अपनी पकड़ बनाए रख सकते हैं.

BBC Hindi
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
Why can not Putin challenge anymore
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X