चीन में अंतिम संस्कार के वक़्त क्यों बुलाए जाते हैं स्ट्रिपर्स?
चीन के कुछ हिस्सों में शवयात्रा के दौरान ऐसे दृश्य दिखते हैं जो कई लोगों को हैरान कर सकते हैं.
लाउडस्पीकर पर तेज़ आवाज़ में बजता संगीत. धुन पर थिरकती स्ट्रिपर्स और सीटियां बजाते लोग.
ये रस्म चीन के शहरों के बाहरी हिस्सों और गांवों में ज़्यादा दिखाई देती है.
चीन के कुछ हिस्सों में शवयात्रा के दौरान ऐसे दृश्य दिखते हैं जो कई लोगों को हैरान कर सकते हैं.
लाउडस्पीकर पर तेज़ आवाज़ में बजता संगीत. धुन पर थिरकती स्ट्रिपर्स और सीटियां बजाते लोग.
ये रस्म चीन के शहरों के बाहरी हिस्सों और गांवों में ज़्यादा दिखाई देती है.
चीन में इस साल की शुरुआत में स्ट्रिपर्स की प्रस्तुति को 'अश्लील और भद्दा' बताते हुए उनके शवयात्राओं, शादियों और धर्मस्थलों में नाचने पर रोक लगा दी गई.
ये पहला मौका नहीं है जबकि प्रशासन ने इस रस्म को बंद कराने की कोशिश की हो लेकिन अब तक इसमें ज़्यादा कामयाबी नहीं मिल सकी है.
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संपन्नता का प्रदर्शन
लेकिन शवयात्राओं में स्ट्रिपर्स को क्यों बुलाया जाता है?
एक दलील ये है कि अंतिम संस्कार के वक्त ज़्यादा लोगों की मौजूदगी को मरने वाले के लिए सम्मान की तरह देखा जाता है. स्ट्रिपर्स की वजह से शवयात्राओं और अंतिम संस्कार में लोगों की भीड़ बढ़ जाती है.
इस रस्म को 'प्रजनन की पूजा' से भी जोड़कर देखा जाता है. फुजियान नॉर्मल यूनिवर्सिटी के प्रोसेसर ख्वांग जेएनशिंग ने ग्लोबल टाइम्स को बताया, "कुछ स्थानीय परंपराओं में उत्तेजक नृत्य को मरने वाले उस तमन्ना से जोड़कर देखा जाता है, जहां वे वंश बढ़ाने का आशीर्वाद चाहते हैं."
ज़्यादा व्यावाहरिक तर्क ये है कि स्ट्रिपर्स को भाड़े पर बुलाने को संपन्नता से जोड़कर देखा जाता है.
ग्लोबल टाइम्स के मुताबिक, "चीन के देहाती इलाक़ों में शोक जताने आए लोगों के मनोरंजन के लिए कलाकारों, गायकों, कॉमेडियन और स्ट्रिपर्स को भाड़े पर बुलाकर ख़र्च करने की परंपरा ज़्यादा है."
ये परंपरा चीन के देहाती हिस्सों में ज़्यादा दिखती है.
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ताइवान से हुई शुरुआत
हालांकि, इस परंपरा की शुरुआत ताइवान से हुई है. वहां ये परंपरा आम है.
यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ कैरोलिना के मार्क मोस्कोवित्ज़ ने बीबीसी को बताया, "ताइवान में 1980 के दौरान अंतिम संस्कार के वक़्त स्ट्रिपर्स की मौजूदगी ने पहली लोगों का ध्यान खींचा."
उन्होंने बताया, "ताइवान में ये चलन आम हो गया लेकिन चीन में सरकार की इस पर इतनी सख़्ती रही है कि कई लोगों ने इस रस्म के बारे में सुना भी नहीं है."
ताइवान के बड़े शहरों में ये भी ये रस्म दिखाई नहीं देती है. मार्क मोस्कोवित्ज़ कहते हैं, "अंतिम संस्कार के वक्त स्ट्रिपर्स को बुलाने का मामला कानूनी और गैरकानूनी गतिविधि के बीच है. शहरी इलाकों में स्ट्रिपर्स का इस्तेमाल कम ही होता है हालांकि ज़्यादातर शहरों के बाहरी हिस्सों में ये रस्म दिखाई दे जाती है."
बीते साल ताइवान के दक्षिणी शहर जियायी में हुए एक अंतिम संस्कार में 50 पोल डांसर्स ने हिस्सा लिया. ये एक जीप की छत पर सवार थीं.
तब एक स्थानीय नेता का अंतिम संस्कार हुआ था. उनके परिवार के मुताबिक वो रंगारंग अंतिम संस्कार चाहते थे.
ताइवानी नेता के अंतिम संस्कार में पोल डांसर
सरकार की सख्ती
इस परंपरा के ख़िलाफॉ हालिया सख़्ती हैरान करने वाली नहीं है. ये इस रस्म को ख़त्म कराने के लिए चीन की सरकार सालों से जारी कोशिश की नई कड़ी है.
चीन के संस्कृति मंत्रालय ने इस रस्म को 'असभ्य' क़रार देते हुए ऐलान किया है कि अगर कोई अंतिम संस्कार के वक्त लोगों के मनोरंजन के लिए स्ट्रिपर्स को किराए पर बुलाएगा तो उसे 'कठोर दंड' दिया जाएगा.
मार्क मोस्कोवित्ज़ कहते हैं, "चीन की सरकार ख़ुद को नागरिकों को राह दिखाने वाले की भूमिका में देखती है."
वो ये भी कहते हैं कि इस रस्म को पूरी तरह ख़त्म करना आसान नहीं होगा. साल 2006 में जियांगसू प्रांत में एक किसान के अंतिम संस्कार में सैंकड़ों लोग जुटे थे. इसमें स्ट्रिपर्स ने भी प्रस्तुति दी थी. इसके बाद पांच लोगों को हिरासत में लिया गया था.
साल 2015 में भी सोशल मीडिया के जरिए अंतिम संस्कार के वक़्त 'अश्लील प्रस्तुति' की बात सामने आने पर सरकार ने आयोजकों और कलाकारों को दंडित किया.
संस्कृति मंत्रालय के नए अभियान में हेनन, एनख्वे, जियांगसू और खबे प्रांतों में ख़ास तौर पर नज़र रखी जाएगी.
ये साफ़ नहीं है कि ये रस्म कभी पूरी तरह ख़त्म होगी या नहीं लेकिन इतना स्पष्ट है कि चीन की सरकार इसके ख़त्म होने तक अपनी कोशिशें जारी रखेगी.