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डोनाल्ड ट्रंप के क्यों हरे हो रहे हैं Pearl Harbour और 9/11 के जख्म, तब कितने अमेरिकी मरे थे?

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ट्रंप के क्यों हरे हो रहे हैं Pearl Harbour और 9/11 के जख्म

कोरोना के भयंकर हमले ने अमेरिका के दो पुराने जख्मों को फिर हरा कर दिया है। पर्ल हार्बर और 9/11 की घटना अमेरिका के सीने में आज भी कांटा बन कर चुभती है। कोरोना से अमेरिका में अब तक 70 हजार मौत हो चुकी है। इसकी तुलना में पर्ल हार्बर और 9/11 की घटना में कम ही लोग (ढाई हजार और तीन हजार) मारे गये थे, लेकिन इन दोनों घटनाओं ने अमेरिकी संप्रभुता को सबसे गंभीर चुनौती दी थी। इन दो आघातों को अमेरिका भुलाये नहीं भूलता। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जब बुधवार को कोरोना की भयावहता का जिक्र किया तो ये पुराना दर्द फिर छलक पड़ा।

पर्ल हार्बर- जख्म जो भरा नहीं

पर्ल हार्बर- जख्म जो भरा नहीं

1939 में जब दूसरा विश्वयुद्ध शुरू हुआ था उस समय अमेरिका सबसे शक्तिशाली देश था लेकिन वह इसमें शामिल नहीं था। उसने 1939 में ही एटम बम बनाने की तरफ कदम बढ़ा दिया था। अमेरिकी वैज्ञानिकों ने यूरेनियम से अणुओं को अलग करने में सफलता हासिल कर ली थी। 1941 तक वह इस घातक बम के बहुत करीब पहुंच गया था। उस समय अमेरिकी सैन्य शक्ति की पूरी दुनिया में धाक थी। लेकिन जापान की एक गलती के कारण अमेरिका को इस युद्ध में कूदना पड़ा जो धुरी राष्ट्रों (जापान, जर्मनी, इटली) की हार का सबसे बड़ा कारण बना। इस भूल की वजह से ही जापान का महाविनाश भी हुआ। पर्ल हार्बर अमेरिका का विशालतम और सबसे सुरक्षित नौसैनिक अड्डा है। दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान 7 दिसम्बर 1941 को जापान ने पर्ल हार्बर पर हमला कर दिया था। इस हमले में अमेरिका के ढाई हजार सैनिक मारे गये थे। अमेरिकी बेड़े के 9 जहाज डूब गये थे और 21 बुरी तरह नष्ट हो गये थे। 300 लड़ाकू विमान भी तबाह हो गये थे। अमेरिका ने सपने में भी नहीं सोचा था एक छोटा सा देश जापान उसके घर के पास आ कर इतना बड़ा हमला करने की हिम्मत करेगा। जापान के इस हमले से अमेरिकी गौरव धूल में मिल गयी थी। इसके प्रतिशोध में अमेरिका ने जापान के खिलाफ और मित्र देशों (ब्रिटेन, सोवियत संघ, फ्रांस) के समर्थन में युद्ध की घोषणा कर दी।

कहां है पर्ल हार्बर

कहां है पर्ल हार्बर

हवाई, उत्तर प्रशांत महासागर में अवस्थित अमेरिका का एक द्वीप समूह है। बाद में यह 1959 में अमेरिका का 50 वां राज्य बना था। हवाई की राजधानी होनूलुलू है। पर्ल हार्बर होनूलुलू से करीब 10 किलोमीटर उत्तर पश्चिम में अवस्थित एक बंदरगाह है जो अमेरिका प्रमुख नौसैनिक अड्डा है। इस बंदरगाह पर सैकड़ों जहाज एक साथ रुक सकते हैं। 1900 ईस्वी में ही अमेरिका ने यहां नौसैनिक अड्डा बनाया था। पर्ल हार्बर अमेरिकी की मुख्यभूमि से करीब 2000 किलोमीटर दूर है। 1937 में जापान ने चीन पर हमला कर दिया था और वहां भयंकर कत्लेआम मचाया था। जापान के इस हमले से अमेरिका नाराज हो गया। उसने जापान पर कई आर्थिक प्रतिबंध लगा दिये। लेकिन जापान पर इसका कोई असर नहीं पड़ा। दोनों देशों में टकराव बढ़ गया। तीन साल में हालात इतने खराब हो गये कि जापान और अमेरिका युद्ध के बीच युद्ध की परिस्थितियां बनने लगीं। इस बीच अमेरिका और जापान में युद्ध को टालने के लिए वाशिंगटन में वार्ता शुरू हो गयी। लेकिन जापान इस बात से चिढ़ा हुआ था कि अमेरिका चीन का पक्ष क्यों ले रहा है। जापान ने अमेरिका सबक सिखाने की ठान ली।

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जापान का अमेरिका पर हमला

जापान का अमेरिका पर हमला

पर्ल हार्बर जापान की मुख्यभूमि से करीब 4 हजार किलोमीटर दूर है। अमेरिकी सैन्य अधिकारी यही सोचते थे कि जापान इतनी दूर आ कर हमला नहीं कर सकता। लेकिन जापान पर्ल हार्बर हमले की खुफिया योजना बना चुका था। 7 दिसम्बर 1941 की सुबह करीब 8 बजे जापान के 350 विमानों ने पर्ल हार्बर के लंगर में खड़े अमेरिकी युद्धपोतों पर हमला कर दिया। एरिजोना नाम के युद्ध पोत पर 1800 पौंड का बम गिराया गया जिससे उसमें आग लग गयी। पोत में मौजूद हथियारों का जखीरा स्वाहा हो गया और करीब एक हजार अमेरिकी सैनिक समुद्र में डूब गये। जापान के भी 29 विमान मार गिराये गये। इस हमले के बाद अमेरिका के राष्ट्रपति फ्रैंकलिन रुजवेल्ट ने जापान के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी। अमेरिका 8 दिसम्बर 1941 को दूसरे विश्व य़ुद्ध में शामिल हो गया। महायुद्ध के दौरान ही अमेरिका की एटम बम परियोजना तेजी से चलती रही। 16 जुलाई 1945 को अमेरिका ने जब पहले एटम बम का परीक्षण किया तो 9 किलोमीटर दूर तक इसके झटके महसूस किये गये। बीस दिन बाद ही अमेरिका ने जापान से बदला लेने के लिए 6 अगस्त 1945 को हिरोशिमा पर पहला एटम बम गिराया। फिर 9 अगस्त को नागासाकी पर दूसरा बम गिराया। इस हमले में जापान के करीब एक लाख 40 हजार लोग मारे गये थे। दोनों शहर तबाह हो गये थे। इसके बाद जापान ने आत्मसमर्पण कर दिया था।

वर्ल्ड ट्रेड सेंटर की घटना

वर्ल्ड ट्रेड सेंटर की घटना

11 सितम्बर 2001 की अलसुबह ही अलकायदा के 19 आतंकियों ने अमेरिका के चार यात्री विमानों के अपहरण कर लिया था। ये विमान बोस्टन, नेवार्क और वाशिंगटन से सैन फ्रांसिसको और लास एंजिल्स जा रहे थे। अपहरणकर्ताओं ने इनमें दो यात्री विमानों को न्यूयॉर्क स्थित वर्ल्ड ट्रेंड सेंटर के ट्वीन टावर से टकरा दिया था। तीसरे विमान को अपहरणकर्ताओं ने अमेरिका के रक्षा मुख्यालय पेंटागन से टकरा दिया था। चौथा विमान वाशिंगटन डीसी की तरफ जा रहा था लेकिन नियंत्रण खोने की वजह से एक खेत में जा गिरा था। आतंकियों के इस आत्मघाती हमले में करीब तीन हजार लोग मारे गये थे। वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले में 2752 लोग मारे गये थे जब कि पेंटागन के हमले में 184 लोग मारे गये थे। आतंकियों के साथ सभी विमान यात्रियों को भी जान गंवानी पड़ी थी। इस हमले ने अमेरिका हिला दिया था। पहली बार किसी ने घर में घुस कर अमेरिका को मारा था। दूसरा विश्वयुद्ध चूंकि अमेरिका की भूमि से बहुत दूर यूरोप में लड़ा गया था इसलिए उसकी कोई हानि नहीं हुई थी। जो भी नुकसान हुआ वह हवाई द्वीप में हुआ था। तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने अलकायदा के सरगना ओसामा बिन लादेन को मार गिराने का संकल्प लिया। लादेन को मारने के लिए ढाई करोड़ डॉलर का इनाम रखा गया। बुश के बाद बराक ओबामा अमेरिका के राष्ट्रपति बने। उन्होंने लादेन को मारने की योजना को मूर्त रूप दिया। 2 मई 2011 को अमेरिकी सैनिकों ने एक कोवर्ट ऑपरेशन संचालित कर पाकिस्तान के एबटाबाद में हमला किया और लादेन को मार गिराया। इस तरह अमेरिका ने अपना बदला तो ले लिया लेकिन 9/11 की टीस उसे हमेशा परेशान करती है।

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English summary
Why are Donald Trump's wounds of Pearl Harbor and 9/11 revive, how many Americans died then?
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