कौन हैं तमिलनाडु में जन्मे पहले भारतीय देवसहायम पिल्लई, जिन्हें वेटिकन सिटी ने संत की उपाधि दी है?
वेटिकन सिटी, मई 16: तमिलनाडु के कन्याकुमारी जिले में जन्म लेने वाले और 18वीं शताब्दी में ईसाई धर्म अपनाने वाले देवसहायम पिल्लई को वेटिकन सिटी ने संत घोषित किया है और वो पहले भारतीय आम आदमी बन गये हैं, जिन्हें वेटिकन सिटी ने संत घोषित किया है। रविवार को वेटिकन सिटी ने देवसहायम पिल्लई को संत घोषित किया है।

संत घोषित किए गये देवसहायम पिल्लई
पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, संत पीटर्स बेसिलिका में फादर फ्रांसिस ने देवसहायम पिल्लई को संत घोषित किया है। इस मौके पर दुनियाभर के करीब 50 हजार से ज्यादा लोग मौजूद थे, जो क्रिश्चियन धर्म में विश्वास रखते हैं। इसके साथ ही वेटिकन सिटी के अधिकारियों ने इस कार्यक्रम के दौरान 9 और लोगों को संत घोषित किया है। देवसहायम पिल्लई का जन्म कन्याकुमारी में हुआ था और उनका परिवार हिंदू था, लेकिन जवान होने के बाद देवसहायम पिल्लई ने हिंदू धर्म का त्याग कर दिया और ईसाई धर्म को अपना लिया। देवसहायम के अलावा, पोप फ्रांसिस ने पांच अन्य पुरुषों टाइटस ब्रैंड्स्मा, सीज़र डी बस, लुइगी मारिया पलाज़ोलो, गिउस्टिनो मारिया रसोलिलो, और चार्ल्स डी फौकॉल्ड, और चार महिलाएं, मारिया रिवियर, जीसस रुबाटो की मारिया फ्रांसेस्का, जीसस सैंटोकैनाले की मारिया, और मारिया डोमिनिका मंटोवानी को संत की उपाधि दी।

कन्याकुमारी में हुआ था जन्म
देवसहायम पिल्लई का जन्म 23 अप्रैल 1712 को कन्याकुमारी जिले के नट्टलम गांव में हुआ था और युवा होने पर वो त्रावणकोर के मार्तंडा वर्मा के दरबार में सेवा करने के लिए चले गए। दरबार में एक डच नौसैनिक कमांडर से मिलने के बाद 1745 में देवसहायम ने बपतिस्मा लिया और 'लाजर' नाम ग्रहण किया, जिसका अर्थ है 'भगवान ही मेरी मदद हैं'। वेटिकन ने आरोप लगाते हुए कहा कि, ‘धर्म परिवर्तन के बाद उनके मूल धर्म के प्रमुखों ने उनके साथ अच्छा नहीं किया और उनके खिलाफ राजद्रोह और जासूसी के झूठे आरोप लगाए गए थे और उन्हें शाही प्रशासन में उनके पद से हटा दिया गया था'। वेटिकन ने साल 2020 में इसको लेकर एक नोट जारी किया था। वेटिकन के अनुसार, ‘प्रचार करते समय, उन्होंने विशेष रूप से सभी की समानता पर जोर दिया और जातिवाद के खिलाफ मुहिम चलाने की कोशिश की, जिसने उच्च जातियों के मन में उनके प्रति घृणा जगाई और 1749 उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया"।

गोली मारकर की गई हत्या
14 जनवरी 1752 को अरलवैमोझी जंगल में देवसहाय की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। उन्हें व्यापक रूप से एक शहीद माना जाता है, और उनके नश्वर अवशेषों को कोट्टार, नागरकोइल में सेंट फ्रांसिस जेवियर्स कैथेड्रल के अंदर दफनाया गया था।
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संत का रास्ता
साल 2004 में तमिलनाडु बिशप्स काउंसिल और भारत के कैथोलिक बिशप्स के सम्मेलन के साथ कोट्टार के सूबा ने देवसाहम को धन्य घोषित करने की सिफारिश की गई थी और उनके जन्म के 300 साल बाद साल 2012 में उन्हें कोट्टार सूबा द्वारा ‘धन्य' घोषित किया गया था। उस दिन वेटिकन में दोपहर की 'एंजेलस' प्रार्थना के दौरान, पोप बेनेडिक्ट सोलहवें ने देवसहाय को एक "वफादार आम आदमी" के रूप में वर्णित किया गया था और ईसाइयों से ‘भारतीय लोगों से चर्च की खुशी में शामिल होने का आग्रह किया गया था, कि उस बड़े और महान देश में लोगों का विश्वास चर्च में बना रहे।'
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देवसहायम के नाम से हटाया उपनाम
साल 2014 में पोप फ्रांसिस ने देवसहायम को चमत्कार माना और फिर उनके संत बनने का रास्ता साफ हो गया। वेटिकन के अनुसार, ईसाई धर्म को अपनाने का फैसला करने के बाद फरवरी 2020 में उन्हें "बढ़ती कठिनाइयों को सहन करने" के लिए संत की उपाधि के लिए मंजूरी दी गई थी, जिसकी पिछले नवंबर में समारोह की तारीख के रूप में 15 मई, 2022 की घोषणा की थी। साल 2020 में वेटिकन सिटी ने देवसहायम के उपनाम पिल्लाई को हटा दिया और उसकी जगह पर उन्हें ‘धन्य देवसहायम' के नाम से पुकारना शुरू कर दिया।
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