डब्लूएचओ ने जारी की खतना से महिलाओं पर होने वाले असर की चौंकाने वाली रिपोर्ट, जानें सच
The World Health Organization has released a shocking report on 'female genital mutilation' or genital circumcision (FGM). Health and health of women and girls are being put at risk due to circumcision.
बेंगलुरु। हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 'फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन'या जननांगों का खतना (एफजीएम) पर एक चौंकाने वाली रिपोर्ट जारी की है। ये रिपोर्ट महिलाओं और बच्चियों के लिए खतरे की घंटी से कुछ कम नही है। डब्लूएचओ रिपोर्ट के अनुसार खतना के चलते महिलाओं और बच्चियों की सेहत पर गंभीर बीमारियां पैदा कर उनकी जान जोखिम में डाली जा रही है।
इतना ही नहीं रिपोर्ट में जननांगों का खतना को लेकर गहरी चिंता प्रकट की गई है। रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं के खतना के कारण उनके स्वास्थ पर दुष्प्रभावों के इलाज पर लंबा खर्चा पड़ रहा है। आंकड़ों के अनुसार हर साल 20 करोड़ से अधिक महिलाओं और बच्चियों को सांस्कृतिक और गैर-चिकित्सकीय कारणों से खतने का सामना करना पड़ता है।
स्वास्थ पर पड़ रहा ये असर
गौरतलब है कि आमतौर पर खतना जन्म से 15 वर्ष की अंदर की उम्र में ही कर दिया जाता हैं। इसका उनके स्वास्थ्य पर गहरा असर होता है। इसकी वजह से उन्हें सक्रमण, रक्तस्राव समेत अन्य स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा हैं। इतना ही कई बच्चियों के इसके कारण सदमा भी लग जाता हैं। इससे ऐसी असाध्य बीमारी हो रही है जिसका बोझ उन्हें जिंदगी भर उठाना पड़ रहा है।
इससे होने वाली बीमारियों पर 1.4 अरब अमेरिकी डॉलर खर्च हो रहा है
बता दें पिछली 7 फरवरी को संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी ने 'जननांगों का खतना के प्रति पूर्ण असहिष्णुता दिवस'के रुप में मनाया था। इसमें जारी आंकड़ों के अनुसार दुनिया भर में हर साल एफजीएम से सेहत पर होने वाले दुष्प्रभावों के इलाज के 1.4 अरब अमेरिकी डॉलर का बोझ पड़ता है। आंकड़ों के अनुसार कई देश अपने कुल स्वास्थ्य व्यय का करीब 10 प्रतिशत हर साल एफजीएम के इलाज पर खर्च करते हैं। कुछ देशों में तो ये आंकड़ा 30 प्रतिशत तक है।
मानवाधिकारों का हो रहा भयानक दुरुपयोग
डब्ल्यूएचओ के यौन और प्रजनन स्वास्थ्य तथा अनुसंधान विभाग के निदेशक इयान आस्क्यू इस पर बहुत चिंतित हैं। उनके अनुसार एफजीएम न सिर्फ मानवाधिकारों का भयानक दुरुपयोग है, बल्कि इससे लाखों लड़कियों और महिलाओं के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बहुत नुकसान पहुंच रहा है।
प्रतिबंध के बावजूद प्रचलित है प्रथा
गौरतलब है कि यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार एफजीएम को मिश्र देश ने बिलकुल प्रतिबंधित कर दिया था लेकिन अभी भी ये प्रथा मिश्र और सूडान में प्रचलित है1 संयुक्त राष्ट्र बाल कोष ने बताया है कि इससे करीब एक-चौथाई पीड़ितों या करीब 5.2 करोड़ महिलाओं और बच्चियों को स्वास्थ्य देखभाल नहीं मिल पाती है। मिस्र में पिछले महीने 12 साल की एक लड़की की मौत ने एफजीएम के खतरों को एक बार फिर उजागर किया। संगठन ने कहा कि इसको रोकने और इसके होने वाली तकलीफ को खत्म करने के लिए और अधिक प्रयास की जरूरत है।
क्यों किया जाता है महिलाओं का खतना
महिला खतने का चलन मुस्लिम और ईसाई समुदायों के अलावा कुछ स्थानीय धार्मिक समुदायों में भी है। आम तौर पर लोग समझते हैं कि धर्म के मुताबिक यह खतना जरूरी है लेकिन रिपोर्ट के अनुसार इसका किसी भी धार्मिक पुस्तकों में उल्लेख नही हैं। लेकिन इसके लिए धर्म, परंपरा या फिर साफ सफाई जैसे कई और कारण भी गिनाए जाते हैं। बहुत से लोग मानते हैं कि खतने के जरिए महिला की यौन इच्छा नियंत्रित होती है, महिलाएं पवित्र होती हैं, इससे समुदाय में उनका मान बढ़ता है और ज्यादा कामेच्छा नहीं जगती। जो लड़कियां खतना नहीं करातीं, उन्हें समुदाय से बहिष्कृत कर दिया जाता है।
पीएम मोदी से महिलाओं ने इसे गैरकानूनी घोषित करने की मांग की थी
दाऊदी बोहरा समुदाय की बच्चियों को कम उम्र में ही खतना का शिकार होना पड़ता है। भारत में भी यह प्रथा प्रचलित हैं। खतना में बच्चियों के वजाइना को काट दिया जाता है। महिलाओं के हक में काम करने वाले संस्थान इस प्रथा को बंद कराने के लिए सालों से लड़ रहे हैं। दाऊदी बोहरा समाज की महिलाओं ने 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेटर लिखकर इसे गैरकानूनी घोषित करने की मांग की थी। इसके लिए महिलाओं ने एक अभियान जारी किया था।
इन देशों में है अधिक प्रचलन
समझा जाता है कि तीस अफ्रीकी देशों, यमन, इराकी कुर्दिस्तान और इंडोनेशिया में महिला खतना ज्यादा चलन में है। वैसे भारत समेत कुछ अन्य एशियाई देशों में भी इसके मामले मिले हैं। औद्योगिक देशों में बसी प्रवासी आबादी के बीच भी महिला खतना के मामले देखे गए हैं। यानि नए देश और समाज का हिस्सा बनने के बावजूद कुछ लोग अपनी पुरानी रीतियों को जारी रखे हुए हैं। जिन देशों में लगभग सभी महिलाओं को खतना कराना पड़ता है, उनमें सोमालिया, जिबूती और गिनी शामिल हैं। ये तीनों ही देश अफ्रीकी महाद्वीप में हैं। लड़कियों का खतना शिशु अवस्था से लेकर 15 साल तक की उम्र के बीच होता है। आम तौर पर परिवार की महिलाएं ही इस काम को अंजाम देती हैं।
26 देशों ने इस प्रथा के खिलाफ कानून बनाया
डब्लूएचओ की वैज्ञानिक डॉ क्रिस्टीना पेलिटो ने मीडिया को दिए साक्षात्कार में बताया कि कई मुल्कों ने इस विकृति को समाप्त करने के लिए कानून भी बनाया है। 1997 में अफ्रीका और मध्य पूर्व के 26 देशों ने इस प्रथा कानूनी रूप से प्रतिबंधित किया। पेलिटो ने कहा कि 33 मुल्कों में यह प्रथा धड़ल्ले से चल रही है। यूनिसेफ का कहना है कि यह चिंताजनक है कि पिछले दो दशकों में FGM की संख्या में बेहद इजाफा हुआ है। यह करीब-करीब दोगुना हो गया है।