कौन हैं कर्नल जहीर, जिन्हें 50 सालों से खोज रहा है पाकिस्तान, आज भारत में मिला है पद्मश्री सम्मान
कौन हैं कर्नल काजी सज्जाद अली जहीर, जिन्हें आज भारत में पद्मश्री सम्मान दिया गया है, और जिनकी खोज पिछले 50 सालों से पाकिस्तान कर रहा है।
नई दिल्ली'/इस्लामाबाद/ढाका, नवंबर 09: आज भारत के राष्ट्र्पति रामनाथ कोविंद जब देश के धुरंधरों को सम्मान दे रहे थे, उस वक्त एक ऐसा चेहरा दुनिया के सामने आया, जिसे देखकर पाकिस्तान जल भुनकर राख गया हो गया होगा। इमरान खान को मिर्च लग गई होगी और पाकिस्तान के लोग आज से ठीक पचास साल पीछे चले गये होगे, जब भारत ने पाकिस्तान को दो हिस्सों में बांट दिया था। ये शख्स कोई और नहीं, बल्कि इनका नाम है कर्नल काजी सज्जाद अली जहीर, जिन्होंन 1971 में पाकिस्तानी सेना को परास्त कर दिया था।
भारत में मिला पद्मश्री सम्मान
भारतीय राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने आज बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम के दिग्गज रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल काजी सज्जाद अली जहीर को सार्वजनिक मामलों में उनके योगदान को सराहने के लिए भारत के सबसे प्रतिष्ठित नागरिक पुरस्कारों में से एक पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया है। कर्नल काजी सज्जाद के साथ साथ भारत में बांग्लादेश के पूर्व उच्चायुक्त रहे मुअज्जम अली को भी भारत के तीसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म भूषण से सम्मानित किया गया है। लेकिन, कर्नल काली सज्जाज अली जहीर वो शख्स हैं, जिनकी तलाश पिछले 50 सालों से पाकिस्तान को है और इनका चेहरा देखते ही पाकिस्तानी हुक्मरानों और पाकिस्तान की सेना के तन-बदन में आग लग जाती है।
पाकिस्तान की तोड़ी थी कमर
1971 में भारत और पाकिस्तान की लड़ाई से पहले पाकिस्तान के सैनिक बांग्लादेश में भीषण उपद्रव मचा रहे थे और वहां हजारों लोगों की हत्या कर चुके थे, उस वक्त बांग्लादेश में पाकिस्तान के खिलाफ भारी गुस्सा पनप उठा था। पाकिस्तानी सैनिकों ने हजारों बांग्लादेशी महिलाओं से बलात्कार किया था, जिसके बाद बांग्लादेश में पाकिस्तान के खिलाफ विद्रोह भड़क उठा। उस वक्त कर्नल जहीर ने भारतीय सैनिकों के साथ मिलकर पाकिस्तान के खिलाफ बड़ा ऑपरेशन चलाया था। बांग्लादेश की आजादी से पहले कर्नल जहीर पाकिस्तानी सेना के बड़े अधिकारी थे, लेकिन पाकिस्तानी सेना ने बांग्लादेश के लोगों पर इतने जुल्म किए, कि कर्नल जहीर जैसे लोग उसे बर्दाश्त नहीं कर पाए और उन्होंने बांग्लादेश के खिलाफ हल्ला बोल दिया।
भारतीय सैनिकों के साथ मिले
रिपोर्ट के मुताबिक, कर्नल जहीर ने उस वक्त पाकिस्तानी सैनिकों के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए भारतीय सेना को कई गोपनीय दस्तावेज सौंपे थे, जिसकी वजह से पाकिस्तानी सैनिकों की कमर तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में टूट गई। इतना ही नहीं, बांग्लादेश को नया मुल्क बनाने के लिए कर्नल जहीर ने ही भारतीय सैनिकों के साथ मिलकर मुक्ति वाहिनी के हजारों लड़ाकों को सैन्य अभ्यास के जरिए ट्रेनिंग देनी शुरू की थी, जिसके बाद पाकिस्तान इस कदर आग-बबूला हुआ था, कि कर्नल जहीर को मारने का वारंट जारी कर दिया। लेकिन, कर्नल जहीन ने हार नहीं मानी। अपने मिशन के बारे में बात करते हुए कर्नल जहीर ने एक बार 'द हिंदू को बताया था कि ''मुझे मौत की सजा सुना दी गई थी, लेकिन मैं भागकर भारत पहुंचने में कामयाब रहा। जिसके बाद भारतीय सेना ने मेरी जान बचाई और फिर बाद में मैं मुक्ति वाहिनी का ट्रेनर बन गया''।
पाकिस्तान के खिलाफ चलाया गोरिल्ला ऑपरेशन
पाकिस्तान के खिलाफ 1971 की लड़ाई में कर्नल जहीर ने भारतीय सैनिकों के साथ आपसी समन्वय बनाते हुए काम किया है और फिर उन्होंने मुक्ति वाहिनी के सैनिकों के साथ मिलकर पाकिस्तान के खिलाफ गुरिल्ला वार शुरू कर दिया। उन्होंने कहा कि, "हमने सितंबर 1971 से गुरिल्ला ऑपरेशन शुरू किया और पाकिस्तानी सेना को अधिकतम नुकसान पहुंचाने के लिए जल्दी से एक तोपखाने की बैटरी उठाई, क्योंकि उन्हें मानवाधिकारों का उल्लंघन करने से रोकना जरूरी था।" उन्होंने कहा कि, "एक जगह पर पाकिस्तानी सैनिकों ने एक सरकारी दफ्तर में महिलाओं को बंधक बना रखा था, जहां उनके साथ 'घिनौना' काम किया जा रहा था, जिसके बाद हमने उन महिलाओं को पाकिस्तानी सैनिकों से आजाद करवाया।''
रत्ना की दर्दनाक कहानी
कर्नल जहीर 1971 की लड़ाई को याद करते हुए बताते हैं कि, भारत-पाकिस्तान युद्ध तो 16 दिसंबर को ढाका में पाकिस्तानी सेना के आत्मसमर्पण के साथ ही समाप्त हो गया था, लेकिन कर्नल जहीर को एक लड़की की याद आती है, जिसने मरने से पहले एक श्रमिक शिविर की दीवार पर अपना नाम रत्ना लिखा था। उन्होंने उस घटना को याद करते हुए कहा कि, ''हमें कुरीग्राम के पास एक गांव में बताया गया कि रत्ना नाम की एक लड़की का पाकिस्तानी सेना ने अपहरण कर लिया है। वह कभी नहीं मिली, लेकिन जब हमने उस इलाके में एक शिविर को पाकिस्तानी सैनिकों के हाथों मुक्त कराया, तब हमने देखा कि दीवार पर खून से उसका नाम लिखा हुआ था''।
घर में लगा दी गई थी आग
कर्नल जहीर उस वक्त की पाकिस्तानी सेना के जुल्म की कहानी सुनाते हुए बताते हैं कि, पाकिस्तानी सेना ने उन्हें मारने का हुक्म जारी कर दिया था और वो अपनी जान बचाने के लिए भारत भागकर आ गये। जिसके बाद पाकिस्तानी सेना हद से नीचे गिर गई और उनकी मां और बहन को टार्गेट करने लगी। लेकिन, किसी तरह वो दोनों भी भागने में कामयाब रहे थे। उन्होंने बताया कि, पाकिस्तानी सैनिकों ने उनके घर को पूरी तरह से जला दिया। कर्नल जहीर बताते हैं कि, वो पाकिस्तान की सेना में 1969 में शामिल हुए थे और उन्हें ट्रेनिंग के दौरान पाकिस्तान के अलग अलग हिस्सों में भेजा गया था।
पाकिस्तान में होता था भेदभाव
कर्नल जहीर ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा था कि, पाकिस्तान में उन्हें भले ही ट्रेनिंग के लिए भेजा गया था, लेकिन उनकी ट्रेनिंग पाकिस्तानी सैनिकों के ट्रेनिंग से काफी अलग थी। उन्होंने कहा कि, जो भी सैनिक बांग्लादेश (तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान) के रहने वाले थे, उनकी हमेशा जासूसी की जाती थी, उनपर हमेशा नजर रखी जाती थी, उन्हें जबरदस्ती ऊर्दू बोलने के लिए कहा जाता था, उन्हें गालियां दी जाती थीं। उन्होंने कहा कि, पाकिस्तानियों का मानना था कि, पाकिस्तान की सेना जो पूर्वी पाकिस्तान में बड़े पैमाने पर नरसंहार कर रही है, उसके खिलाफ पूर्वी पाकिस्तान के सैनिक खड़े हो सकते हैं।
कट्टरपंथ के खिलाफ
'द हिंदू' की रिपोर्ट के मुताबिक, आज के वक्त कर्नल जहीर बांग्लादेश में कट्टरपंथ के खिलाफ मुहिम चलाते हैं, लिहाजा वो कई कट्टरवादी संगठनों के निशाने पर रहते हैं। 2016 में जब आतंकी संगठन आईएसआईएस में शामिल होने के लिए कई बांग्लादेशी जाने लगे, तो उन्होंने बड़े स्तर पर उसके खिलाफ मुहिम चलाई और उनके मुहिम को बांग्लादेश में युवाओं का काफी साथ मिला था। कर्नल जहीर आज भी कहते हैं, कि हमारा देश तब तक सुरक्षित है जब तक हम अपने लोकाचार को कट्टरपंथी और बांग्लादेश विरोधी ताकतों से सुरक्षित नहीं रखते हैं और पाकिस्तान मॉडल को अपनाने की चाहत रखने वाले लोगों को हमें दूर ही रखना होगा''।
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