नेपाल के भारतीय नोट बैन करने से कौन हैं परेशान? - ग्राउंड रिपोर्ट
पत्रकार अभिषेक पांडेय सरावगी की बातों को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं, "दिक्क़त यही है कि दिल्ली और काठमांडू में बैठकर सरकार के लोग स्थानीय लोगों और उनकी असल समस्याओं के बारे में नहीं समझ रहे हैं. हमारा रिश्ता न सिर्फ व्यापारिक है, बल्कि सामाजिक भी है."
भारत और नेपाल भौगोलिक रूप से भले दो संप्रभु देश हैं, लेकिन दोनों देशों के नागरिकों के बीच भावनात्मक संबंधों में कोई सरहद नहीं है.
दोनों देशों के लोगों के बीच इतनी क़रीबी है तो सरकारें वैसे फ़ैसले क्यों लेती हैं जिनसे लोगों को परेशानी उठानी पड़ती है.
सुबह का वक़्त है. जगह, नेपाल और भारत की सीमा बीरगंज. बिहार के रक्सौल से नेपाल जाने वाले गेट के पास सुबह ट्रकों की लंबी क़तार दूर से दिख रही है.
माल से लदे इन ट्रकों के बीच फूलों से सजी छोटी-छोटी कारें भी हैं. इन कारों में बैठे हैं बीती रात शादी कर एक-दूसरे के हुए दूल्हा और दुल्हन.
सजी हुई कारें इस पार भी थीं और उस पार भी. हर कार में एक देश का दूल्हा बैठा था जबकि दूसरे देश की दुल्हन.
बिहार में रक्सौल सीमा से नेपाल की औद्योगिक राजधानी कहे जाने वाले बीरगंज में मेरे साथ जा रहे स्थानीय पत्रकार अभिषेक पांडे कहते हैं, "दोनों देशों के बीच रोटी और बेटी का संबंध है. यानी, न सिर्फ़ व्यापार बल्कि एक जैसी सामाजिक संरचना, परंपरा, धर्म, रहन-सहन, और बोली के कारण दोनों देशों के बीच शादी-ब्याह का भी संबंध है."
बिहार के रक्सौल और नेपाल के बीरगंज के बीच एकदम सीमा पर स्थित शंकराचार्य द्वार से चाहे भारत से नेपाल जाना हो या नेपाल से भारत आना हो, दोनों में कोई झंझट नहीं है.
यदि आप पैदल यात्री हैं या सवारी गाड़ी से जा रहे हैं तो कहीं रोकटोक नहीं होगी.
नेपाल में भारतीय नोटों पर पाबंदी
अगर आपके पास अपनी गाड़ी है तो बीरगंज भनसार कार्यालय (कस्टम ऑफिस) से एक पर्ची कटानी होगी, जिसमें दिन भर के लिए दूसरे देश में अपनी गाड़ी रखने के अनुमति भी मिल जाती है.
लेकिन पिछले दो-तीन दिनों से लोगों को परेशानी हो रही है. ये परेशानी सीमा पार करने में नहीं, बल्कि सीमा पार पैसे ले जाने में हो रही है.
नेपाल सरकार ने भारत के नए नोटों (दो सौ रुपए, पांच सौ रुपए और दो हज़ार रुपए) को अपने यहां प्रतिबंधित कर दिया है.
हालांकि 100 रुपए तक के भारतीय नोट अब भी नेपाल में लेन-देन में हैं.
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नेपाल में भारतीय मुद्रा
लेकिन नेपाल सरकार के फ़ैसले से दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंधों में कड़वाहट आ रही है.
ख़ासकर नेपाल और भारत के सीमावर्ती इलाक़ों में इस कारण आर्थिक उथल-पुथल मची हुई है.
नेपाल की सीमा से सटे बिहार के क़रीब सात ज़िले सुपौल, मधुबनी, अररिया, सहरसा, किशनगंज, पूर्वी चंपारण और पश्चिमी चंपारण के व्यापारियों और आम लोगों के लिए जिनका काम और व्यापार नेपाल में है उन्हें ख़ीसी मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है.
सीमावर्ती इलाक़ों के व्यापारी और आम लोग भारतीय करेंसी में ही कारोबार करने को प्राथमिकता देते थे क्योंकि भारतीय करेंसी नेपाली करेंसी की तुलना में ज्यादा क़ीमती है.
एक भारतीय रुपए की कीमत 1.60 नेपाली रुपए के बराबर है.
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कारोबारियों की दिक़्क़त
बिहार के रक्सौल के व्यापारी राकेश कुमार जो नेपाल के बीरगंज स्थित आदर्श नगर में नेपाल स्पोर्ट्स सेंटर (खेल के सामानों का स्टोर) चलाते हैं, रोज रक्सौल स्थित अपने घर से नेपाल आते हैं और दिन भर स्टोर चलाने के बाद शाम को अपने घल लौटते हैं.
बीबीसी से बातचीत में राकेश कुमार कहते हैं, "आज (रविवार) सुबह आते हुए उन्हें दिखा की सीमा पर तैनात नेपाल की पुलिस लोगों के पर्स तक चेक कर रही है, कि वे अपने साथ बैन करेंसी नोट लिए हैं या नहीं! अभी तक तो कई लोगों को इस बात की जानकारी भी नहीं है. सरकार तो नोट बैन कर दिया मगर अभी तक ना ही इस तरफ़ और ना ही उस तरफ़ ऐसी कोई सूचना लिखी मिलती है. अगर इसी तरह सख्ती बरती जाने लगी तो आने वाले दिनों में बहुत समस्या आएगी."
ये पूछने पर कि क्या राकेश कुमार के स्टोर पर कोई ग्राहक प्रतिबंधित भारतीय नोट लेकर सामान ख़रीदने आता है तो उस नोट को लेंगे?
जवाब में वे कहते हैं, "नहीं ले सकते, बावजूद इसके कि हम रक्सौल में जाकर उस भारतीय करेंसी को आसानी से चला सकते हैं. मगर यहां प्रतिबंध है इसलिए मजबूर हैं."
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अख़बार में ख़बर
बीरगंज मार्केट में ही नीलांबरी स्टोर के नाम से कपड़ों का स्टोर चला रहे सुशील अग्रवाल कहते हैं, "अभी तो अधिकांश लोगों को इसकी जानकारी ही नहीं है. लोग प्रतिबंधित नोट लेकर आ रहे हैं. मगर हमारी मजबूरी है कि हम उन्हें नहीं ले पा रहे हैं."
चूंकि अभी मौसम जाड़े का है, इसलिए नेपाल से गर्म कपड़ों की ख़रीदारी करने भारी संख्या में लोग भारत से नेपाल आते हैं.
बेतिया से चलकर अपने परिवार के लिए गर्म अथवा ऊनी कपड़े ख़रीदने आए रतन झुनझुनवाला ने सामान ख़रीदने के बाद दुकानदार से पहले ही पूछ लिया कि वे नए भारतीय करेंसी नोट लेंगे कि नहीं.
दुकानदार रेहान मलिक के मना करने के बाद रतन निराश नहीं होते हैं. मुस्कुराने लगते हैं.
जेब से सौ रुपये के भारतीय नोटों की गड्डी निकालते हुए कहते हैं, "मैंने ख़बरों में पढ़ लिया था. इसलिए 100 के नोट का भी प्रबंध करके आया हूं."
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जेल तक जाना पड़ सकता है...
बीरगंज के आदर्श नगर मार्केट में ही वहां के वार्ड कमिश्नर प्रदीप चौरसिया मिल गए. अपने वार्ड का मुआयना करने निकले थे.
बातचीत होने लगी तो उन्होंने बताया, "यहां हर आदमी की जेब में नेपाली करेंसी के साथ-साथ इंडियन करेंसी भी मिलेगी. उसकी वजह है यहां का बाज़ार. बीरगंज का जो ये बाज़ार आप देख रहे हैं, ये आज इंडियन करेंसी की सहज आमद होने से ही टिका है. निश्चित रूप से नेपाल सरकार के इस फ़ैसले से बीरगंज समेत तमाम सीमावर्ती लोगों को कठिनाई का सामना करना पड़ेगा. लेकिन ये मसला केंद्र की सरकारों को तय करना है. ये जानते हुए भी कि नोट बंद करने से भारी आर्थिक नुक़सान उठाना पड़ सकता है, सरकार ने ऐसा किया है. कुछ तो वजह होगी."
हालांकि नेपाली सरकार ने नोट बैन करने की कोई आधिकारिक वजह नहीं बताई है.
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भारत पर टिका बाज़ार
नेपाली सरकार ने भले ही आधिकारिक रूप से अभी तक इसकी कोई वजह नहीं बताई है, मगर दोनों देशों के बीच संबंधों की ज़मीनी हक़ीक़त जानने वाले कहते हैं कि ये इसलिए किया गया है क्योंकि भारत सरकार ने अपने यहां के पुराने बैन नोट जो नेपाल राष्ट्र बैंक के पास अब भी जमा हैं, उसे अब तक नहीं लिया है.
नेपाल राष्ट्र बैंक की ओर से कहा गया है कि उसके पास क़रीब आठ करोड़ रुपए के पुराने करेंसी नोट हैं.
बीरगंज महानगरपालिका के मेयर विजय सरावगी पूरे मसले पर बातचीत में बीबीसी से कहते हैं, "ये मसला दोनों सरकारों को मिलकर तय करना होगा. भारत की तुलना में नेपाल बहुत छोटा देश है. यहां के आर्थिक हालात भी ख़राब है. यहां का आधा से अधिक बाज़ार भारत पर ही टिका है. उसमें भी यहां की सरकार को ऐसा फ़ैसला लेना बताता है कि अंदर नाराज़गी है. ये नाराजगी तमाम बातों के लिए हैं. उसमें भी सबसे बड़ी बात है कि भारत सरकार पुराने नोटों को लेकर कोई विचार क्यों नहीं कर रही है. वे पुराने नोट भले ही भारत के लिए छोटी बात हैं, मगर हमारे यहां उतना पैसा बहुत मायने रखता है."
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करेंसी एक्सचेंज सुविधा
एक समस्या ये भी है कि नेपाल में बिराटनगर से लेकर बीरगंज तक के बाज़ारों में जितने भी भारतीय जाते हैं, उन्हें कभी करेंसी बदलवाने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी.
स्थानीय दुकानदार हमेशा से भारतीय ग्राहकों से उनकी करेंसी स्वीकार करते रहे हैं और बदली हुई परिस्थितियों में करेंसी एक्सचेंज जैसी सुविधाओं की कमी बेहद खल रही है.
अभिषेक पांडेय बताते हैं, "रक्सौल और बीरगंज में करेंसी एक्सचेंज जैसी सुविधाओं का अभाव है. बीरगंज में केवल एक ही ऑफिशियल एक्सचेंजर है लेकिन उस तक पहुंचना इसलिए भी नामुमकिन है क्योंकि आपको इसके लिए भारतीय नोट लेकर बॉर्डर पार करना होगा जिसकी इजाज़त ही नहीं है और सीमा के इस पार रक्सौल में तो ऐसी कोई सुविधा ही नहीं है."
तो क्या नेपाल जाने वाले भारतीयों के पास अब कोई विकल्प नहीं है?
इस सवाल पर अभिषेक ने बताया, "हां, नेपाल में कुछ बैंकों में ये सुविधा है कि भारतीय बैंकों द्वारा जारी एटीएम से आप नेपाली करेंसी में सीमित मात्रा में पैसे निकाले जा सकते हैं. ये सुविधा बीरगंज में भी है."
वैसे यहां, अवैध रूप से नोटों के एक्सचेंज का कारोबार भी फलफूल रहा है. स्थानीय भाषा में इसे सटही काउंटर कहते हैं जहां मनमाने कमिशन पर नोट बदले जाते हैं.
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रिश्ते और भी हैं...
पत्रकार अभिषेक पांडेय सरावगी की बातों को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं, "दिक्क़त यही है कि दिल्ली और काठमांडू में बैठकर सरकार के लोग स्थानीय लोगों और उनकी असल समस्याओं के बारे में नहीं समझ रहे हैं. हमारा रिश्ता न सिर्फ व्यापारिक है, बल्कि सामाजिक भी है."
तो क्या नेपाल और भारत के बीच सालों से चलते आ रहा 'रोटी और बेटी' का इन संबंधों में अब नोटों के कारण दरार आ जाएगा?
जवाब में मेयर सरावगी कहते हैं, "देखिए, लाजिम है कि नोट बंद करने से संबंधों में खटास आएगी. व्यापार सुगमता कम होगी तो दोनों देशों से बीच रोटी के संबंध यानी व्यापार को काफी नुकसान होगा. लेकिन चूंकि, नेपाल और भारत के कई इलाकों की सामाजिक संरचना, परंपरा और रहन-सहन एक जैसे हैं इसलिए दोनों देशों के बीच बेटी का संबध कभी खत्म नहीं हो सकता."