यमन में आ रही मदद आख़िर कहां जा रही है
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि अब मानवाधिकार संगठन एक महीने में 80 लाख लोगों तक मदद पहुंचाने में सक्षम हैं. लेकिन विनाशकारी आकाल की चेतावनी लगातार बढ़ रही हैं.
ऐसे में एक सवाल ये भी है कि हालात में सुधार क्यों नहीं हो रहा है.
इसका जवाब है आसमान से बरसते गोले. इस इलाके में अब भी हवाई हमले हो रहे हैं. जिससे मदद पहुंचाने वाले लोगों पर ख़तरा बना रहता है.
यमन में युद्ध विराम के लिए संयुक्त राष्ट्र की चल रही शांति वार्ताओं को अहम माना जा रहा है.
इन्हें आशा की किरण के रूप में देखा जा रहा है और यह समझा जा रहा है कि ये कोशिशें देश के भीतर पनपी निराशा को कम कर पाएंगी.
गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों की तस्वीर, भुखमरी की कगार पर पूरा समुदाय और हैज़ा के कहर ने इसके कूटनीतिक समाधान को जल्द तलाशने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया है.
यमन की तीन-चौथाई आबादी को मानवीय सहायता की ज़रूरत है और अगर संघर्ष जारी रहा तो स्थिति और बदतर हो सकती है.
यही वजह है कि यमन की मदद के लिए एक बड़ी राशि का वायदा किया गया है.
अभी तक कितनी राशि यमन को मिल पाई है?
साल 2018 में संयुक्त राष्ट्र ने क़रीब तीन अरब डॉलर की मदद की अपील की है. वहीं अगले साल यह सहायता क़रीब चार अरब डॉलर की हो सकती है.
ऐसे में सवाल उठते हैं कि अभी तक कितनी राशि यमन को मिल पाई है? कहां से इतने पैसे आ रहे हैं और आख़िर इन्हें खर्च कहां किया जा रहा है?
मिली अंतरराष्ट्रीय सहायता
मानवीय संकट से जूझ रहे यमन को अंतरराष्ट्रीय सहायता मिल रही है. कई देश बढ़-चढ़कर मदद भी कर रहे हैं.
संयुक्त राष्ट्र की अप्रैल में हुई बैठक में दो अरब डॉलर की मदद की उम्मीद जताई गई थी और यह राशि सहयोगी देशों से मिल चुकी है.
यमन की सहायता के लिए साल 2017 में हुई बैठक भी इस मामले में सफल रही थी.
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि इस साल 1.1 बिलियन डॉलर मदद का लक्ष्य रखा गया था, जिसमें से 94 फीसदी राशि प्राप्त हो गई थी.
इस साल तय राशि का आधा हिस्सा सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात ने दे दिया है. मदद करने वालों में ये दो देश सबसे आगे हैं.
- यमन में आधे लोगों के पास पर्याप्त खाना नहीं- सहायता समूह
- सऊदी अरब और भारत हथियारों के सबसे बड़े ख़रीदार
चार अरब डॉलर की मदद
इसके बाद अमरीका, कुवैत और इंग्लैंड का नंबर आता है.
मदद के नाम पर इकट्ठा हुई बड़ी राशि संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों, अंतरराष्ट्रीय संगठनों और स्थानीय एनजीओ को दी गई है.
इनमें से सबसे अधिक सहायता राशि वर्ल्ड फूड प्रोग्राम, यूनाइटेड नेशंस चिल्ड्रेन फंड, वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन और संयुक्त राष्ट्र की रिफ्यूजी एजेंसी को दी गई है.
यह कुल सहायता राशि का करीब आधा हिस्सा होगा. यह समझा जा रहा है कि इस साल यमन को क़रीब 4 अरब डॉलर की सहायता राशि उपलब्ध कराई गई है.
संयुक्त अरब इमीरात ने निजी तौर पर भी यमन को एक अरब डॉलर की सहायता की है.
अगर इतनी बड़ी राशि यमन की मदद के लिए जुटाई गई है तो फिर ज़रूरतमंदों तक यह क्यों नहीं पहुंच पा रही है?
नज़रिया
नवल अल-मगहाफी, विशेष संवाददाता, बीबीसी अरब
यमन की मौजूदा स्थितियां सहायता के वितरण में सबसे बड़ी रुकावट है. ज़रूरतमंद लोगों तक बहुत कम सहायता पहुंच पा रही है.
एक तरफ सऊदी के नेतृत्व वाली गठबंधन सेनाएं समुद्र और हवाई मार्गों पर वाणिज्यिक नाकाबंदी लगा रही हैं. ये सेनाएं राहत आपूर्ति पर भी प्रतिबंध लगा रही हैं.
आयात हुई सामग्री में 90 फ़ीसद हिस्सा खाना, तेल और दवाइयां शामिल हैं. ऐसे में प्रतिबंध का असर इन सामग्रियों पर सबसे ज़्यादा हो रहा है.
इन सामग्रियों की जांच में लगने वाला वक़्त भी सामान्य से ज़्यादा है. कई मामलों में सामग्रियों को लौटा भी दिया जाता है.
वहीं दूसरी तरफ हूदी विद्रोही भी कई शहरों में पहुंचाई जाने वाली सामग्री में बाधा बनते हैं. तैज़ में बनाए चैक प्वॉइंट्स और मदद पहुंचाने वाली संस्थाओं से अतिरिक्त फीस लिए जाने से भी इस पर असर पड़ रहा है.
इसके अलावा कुछ स्थानीय संगठन भी सामग्री के लिए रुकावट का काम कर रहे हैं.
इस संकट से दोनों तरफ के लोग जानबूझकर भी मुनाफा कमाने के लिए ये सब कर रहे हैं ताकि गैस और तेल की कीमतों में इजाफा होता रहे.
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि अब मानवाधिकार संगठन एक महीने में 80 लाख लोगों तक मदद पहुंचाने में सक्षम हैं. लेकिन विनाशकारी आकाल की चेतावनी लगातार बढ़ रही हैं.
ऐसे में एक सवाल ये भी है कि हालात में सुधार क्यों नहीं हो रहा है.
इसका जवाब है आसमान से बरसते गोले. इस इलाके में अब भी हवाई हमले हो रहे हैं. जिससे मदद पहुंचाने वाले लोगों पर ख़तरा बना रहता है.
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