जब हाथ लगाने से खुल जाएंगे मेट्रो के दरवाज़े
मेट्रो स्टेशन में दाख़िल होते हुए या फिर बाहर निकलते हुए हम अक्सर मेट्रो कार्ड या फिर मेट्रो टोकन का इस्तेमाल करते हैं. लेकिन सोचिए कि मेट्रो के दरवाज़े हमारे हाथ के स्पर्श से ही खुल जाएं तो कैसा हो?
शरीर के भीतर छोटी सी चिप लगाने से यह काम संभव हो सकता है. इतना ही नहीं इसकी मदद से घर के दरवाज़े, फोन का नियंत्रण और अन्य उपकरण हमारे इशारों पर काम करने लगेंगे.
मेट्रो स्टेशन में दाख़िल होते हुए या फिर बाहर निकलते हुए हम अक्सर मेट्रो कार्ड या फिर मेट्रो टोकन का इस्तेमाल करते हैं. लेकिन सोचिए कि मेट्रो के दरवाज़े हमारे हाथ के स्पर्श से ही खुल जाएं तो कैसा हो?
शरीर के भीतर छोटी सी चिप लगाने से यह काम संभव हो सकता है. इतना ही नहीं इसकी मदद से घर के दरवाज़े, फोन का नियंत्रण और अन्य उपकरण हमारे इशारों पर काम करने लगेंगे.
पूर्वी लंदन के एक बार में बैठे बॉडी हैकर्स समूह के एक सदस्य का कहना है कि, ''क्या आपने अपने शरीर में कभी टैटू बनवाया है या फिर पियरिसंग (छिद्र करवाना) करवाई है. जितना दर्द टैटू और पियरसिंग करवाने में होता है उतना ही दर्द होता है शरीर के भीतर एक चिप डालने में भी.''
तकनीक की मदद से मनुष्य अपने शरीर और मानसिक क्षमताओं को कई गुना आगे बढ़ा सकता है.
एक बायो हैकर लिफ्ट एनोनिम ने अपने शरीर में लगभग 9 चिप लगाई हैं और वे मानती हैं कि इससे वे मानवजाति का कुछ भला कर पाएंगी.
हालांकि वे यह भी स्वीकार करती हैं कि ये चिप लगाते हुए उन्हें बहुत दर्द हुआ था.
वे कहती हैं, ''मेरी उंगलियों में जो चुंबक लगाया गया है उसमें बहुत दर्द होता है. यह दर्द इतना ज़्यादा होता है कि कुछ देर के लिए तो उन्हें कुछ दिखाई ही नहीं देता.''
उंगलियों में लगे चुंबक की मदद से वे इलैक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन को महसूस कर पाती हैं, उन्हें मालूम लग जाता है कि कौन सा उपकरण ऑन है और कौन सा ऑफ. वे माइक्रोवेव के चलने और बंद होने का भी पता लगा लेती हैं साथ ही कहां-कहां पावर लाइन हैं इसका पता भी उन्हें चल जाता है.
शरीर में लगी चिप से ग्राहकों के नंबर डाउनलोड
इसके अलावा उन्होंने अपनी त्वचा में एक चिप भी लगा रखी है, जिसकी मदद से वो अपने फोन का इस्तेमाल कर लेती हैं. साथ ही अपने घर का दवाराज़ा खोल लेती हैं.
उन्हें उम्मीद है कि जो प्राथमिक परिणाम उन्हें प्राप्त हुए हैं. बाकी लोग उनका और अच्छे तरीके से प्रयोग कर सकते हैं.
यह ज़रूरी नहीं कि सभी लोग इस ट्रेंड को पसंद करते हों. एंड्रियस जोस्ट्रोम ने 2015 में एक चिप अपने शरीर में लगाई थी. इसकी मदद से वे अपने ग्राहकों के नंबर डाउनलोड कर पाते थे और साथ ही सिक्योरिटी गेटों पर अपना हाथ स्वाइप कर उसे खोल देते थे.
लेकिन एयरपोर्ट सिक्योरिटी गेट पर ऐसा करते हुए उन्हें गार्ड ने देख लिया और उनसे कई सवाल जवाब किए. एंड्रियस इसके बाद इस तकनीक को ज्यादा पसंद नहीं करते.
वे कहते हैं, ''अभी इस तकनीक को और अधिक विकसित करने की ज़रूरत है, जिस हार्डवेयर में यह चिप संपर्क में आती है वे आमतौर पर सपाट होती है. जैसे किसी कार्ड को स्वाइप करने के लिए चाहिए. अगर सभी लोग अपने हाथों को स्वाइप करने लगे तो वह स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं रहेगा.''
ऐसा माना जा रहा है कि दुनिया भर में 10 हज़ार से ज्यादा लोग अपने शरीर में चिप लगवा चुके हैं और धीरे-धीरे ये ट्रेंड बढ़ता जा रहा है.
अभी जिन चीजों को लोग शरीर में लगा रहे हैं, उनमें प्रमुख रूप से चुंबक जिसे उंगलियों में लगाया जाता है, रेडियो फ्रीक्वेंसी पहचानने वाली चिप (आरएफआईडी) को हाथों में लगाया जाता है और एलईडी लाइट जिसे त्वचा के नीचे लगाया जाता है जिससे वह चमक सके.
कैसे खुलते हैं दरवाज़े
दरवाजों को खोलने के लिए जिस चिप का इस्तेमाल किया जाता है उसमें एक विशिष्ट नंबर होता है, इस नंबर को उससे जुड़ी डिवाइस पहचान लेती है.
एक चिप के भीतर कई सारे नंबर रखे जा सकते हैं इसलिए कोई जरूरी नहीं कि अलग-अलग जरूरतों के लिए अलग-अलग चिप लगवाई जाए.
अमल ग्राफस्ट्रा की फर्म 'डेनजरस थिंग्स' इस तरह की चिप लगाने का काम करती है, अमल का इसके तीन प्रमुख फायदे इस तरह गिनाते हैं.
वे कहते हैं, ''हम चाबियां, बटुआ और फोन लेकर चलते रहते हैं, ये सभी बेहद जरूरी चीजें हैं लेकिन इनका वजन बहुत ज़्यादा होता है और कोई भी इन्हें ढोना नहीं चाहता.
- एक छोटे से इम्प्लांट यानी प्रत्यारोपण के ज़रिए हम इस भार से बच सकते हैं, इसमें महज कान छिदवाने जितना ही दर्द होता है.
- इसकी मदद से कोई भी व्यक्ति अपने घर ही नहीं बल्कि कार के दरवाजे को भी आसानी से खोल सकता है.''
हालांकि वे मानते हैं कि कार के साथ इसे जोड़ने के लिए थोड़ी बहुत हैकिंग की ज़रूरत भी पड़ती है.
रोज़मर्रा के काम होंगे आसान?
अमल एक ऐसी दुनिया की कल्पना करते हैं, जहां रोज़मर्रा की बहुत सी चीजें शरीर में लगी इन्हीं चिप की मदद से होने लगेंगी.
वे कहते हैं, ''शायद आने वाले वक्त में अपनी ट्रेन का स्टेटस जानने, कॉफी खरीदने, कम्प्यूटर और डाटा को सुरक्षित रखने, घर में प्रवेश करने से लेकर कार चलाने तक में इन चिप का इस्तेमाल आम हो जाए.''
मैट ईगल ने अपने दिमाग में एक चिप लगाई थी, वे बचपन से ही पार्किनसन बीमारी से पीड़ित थे लेकिन इस चिप को लगाने का उन्हें ज़्यादा फायदा नहीं मिला.
उनके दिमाग में 15 सेंटीमीटर के दो इलैक्ट्रोड लगाए गए थे, जिस वजह से उनके सिर पर दो उभार निकल आए. वे हंसते हुए इन उभारों को जिराफ के बच्चों के सींग कहते हैं.
सिर में लगे इलैक्ट्रोड को उनकी छाती में एक पल्स जेनरेटर के साथ जोड़ा गया था, इसकी मदद से वे चल पाने में सक्षम हुए.
काफ़ी आगे निकल चुके हैं बायो हैकर
मैट बताते हैं, ''इसकी मदद से मुझे मेरी पहचान मिल गई, जब मैं रात को अपने बिस्तर पर हिल भी नहीं पाता था और बाथरूम तक नहीं जा पाता था उस स्थिति से निकलकर आज मैं चल पा रहा हूं, यह मेरे लिए बहुत बड़ी बात है.''
इसकी मदद से मैट फोटोग्राफी के अपने शौक को दोबारा जी रहे हैं, वे 2012 ओलंपिक खेलों में फुटबॉल के मान्यता प्राप्त फोटोग्राफर थे. इससे भी बड़ी बात मैट ने शादी भी कर ली है.
कुछ बायो हैकर तो इस मामले में कई कदम आगे बढ़ चुके हैं. शिकागो यूनिवर्सिटी से बायोकैमिस्ट्री और मोलिक्यूलर बायोफिजिक्स में डॉकट्रेट कर रहे जोसिआ ज़ेनर ने पिछले साल अक्टूबर में अपने हाथ में जीन को प्रभावित करने वाली डिवाइस लगा दी थी, इसे क्रिस्पर कहते हैं.
हालांकि बाद में उन्हें अपने इस काम के लिए अफसोस भी हुआ. वे अपने जीन को प्रभावित कर शरीर में जेनेटिक बदलाव लाना चाहते थे और शरीर की ताकत बढ़ाना चाहते थे. इस कृत्य के लिए उन्हें काफी आलोचना का सामना भी करना पड़ा था.
मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी के नैतिकतावादी प्रोफेसर जॉन हैरिस का कहना है, ''कहां तक दवाइयों का प्रयोग किया जाए और कहां से नई तकनीक को इस्तेमाल किया जाए, इनके बीच एक बहुत महीन सा अंतर है.
जहां तक जीन में परिवर्तन करने की बात है तो इसकी तकनीक विकसित हो चुकी है और यह आसान और सस्ती भी है लेकिन लोगों को इसका प्रयोग करने से बचना चाहिए.''