ईरान पर अमरीकी प्रतिबंधों का असर क्या होगा?
यूरोपीय संघ विदेश परिषद में वरिष्ठ पॉलिसी फेलो एली गेरान्मेह कहती हैं, "इस बात को लेकर परेशान मत हों कि यह कितना तक़लीफ़देह होगा, लेकिन ईरान पहले भी प्रतिबंध के कई दौर झेल चुका है."
हां, इतना तो तय है कि ईरान को अपने तेल बेचने के लिए पहले के अनुभवों का इस्तेमाल करते हुए रचनात्मक तरीक़ों को ईजाद करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा.
आज यानी पांच नवंबर से ईरान पर अमरीकी प्रतिबंध (अमरीकी समयानुसार चार नवंबर की मध्यरात्रि से) लागू हो गया है. अमरीकी प्रतिबंधों पर ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है.
रूहानी ने कहा, "इसमें कोई संदेह नहीं है कि ईरान के ख़िलाफ़ इस नई साज़िश में अमरीका सफल नहीं हो सकेगा.''
ईरान की अर्थव्यवस्था तेल के निर्यात पर निर्भर है और इस प्रतिबंध के बाद ईरान तेल नहीं बेच पाएगा.
हालांकि यूरोपियन यूनियन ने ईरान के साथ व्यापार करने वाली कंपनियों को अपना समर्थन देने की बात कही है.
लेकिन क्या ये कंपनियां इन प्रतिबंधों से प्रभावित होंगी क्योंकि यदि उन्होंने ईरान के साथ व्यापार जारी रखा तो अमरीका के साथ उनके व्यापार पर सीधा असर पड़ सकता है.
आख़िर अमरीका ईरान पर प्रतिबंध क्यों लगा रहा है?
अमरीका इस साल की शुरुआत में ईरान समेत छह देशों के साथ 2015 में हुई परमाणु संधि से बाहर निकल गया था.
2015 में तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने ईरान के साथ जो परमाणु संधि की थी उसके तहत 2016 में अमरीका और अन्य पांच देशों से ईरान को तेल बेचने और उसके केंद्रीय बैंक को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कारोबार की अनुमति मिली थी.
इस परमाणु संधि से बाहर आने की घोषणा के बाद अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के एक संबोधन में कहा था कि दुनिया के सभी देश ईरान से संबंध तोड़ दें.
लेकिन यूरोपीय देशों समेत अन्य देशों का मानना है कि ईरान परमाणु सौदे पर टिका हुआ है जबकि यूरोप के देशों का मानना है कि अमरीका ने परमाणु समझौते पर एकतरफ़ा रुख़ दिखाते हुए इसे तोड़ दिया.
विश्व व्यापार में अमरीका का ऐसा प्रभुत्व है कि इस घोषणा मात्र से अंतरराष्ट्रीय कंपनियों ने ईरान के साथ अपने व्यापार से हाथ खींचने शुरू कर दिए हैं और इसकी वजह से ईरान के तेल निर्यात में गिरावट आई है.
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अमरीकी प्रतिबंध कितना प्रभावी
अमरीका की इस घोषणा के तहत जो कंपनियां ईरान के साथ व्यापार जारी रखेंगी उन्हें अमरीका में व्यापार करने की अनुमति नहीं होगी.
इसके अलावा, उन अमरीकी कंपनियों को भी दंड भोगना पड़ेगा जो ईरान के साथ व्यापार करने वाली कंपनियों के साथ बिज़नेस करती हैं.
सोमवार को बैंकिंग क्षेत्र पर भी प्रतिबंध लगाए जाएंगे. अगस्त में सोने, बहुमूल्य धातु और मोटर वाहन क्षेत्र (ऑटोमोटिव सेक्टर) समेत कई उद्योगों को इस प्रतिबंध के घेरे में लिया गया था.
अमरीका ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वो ईरान के तेल व्यापार को पूरी तरह से ख़त्म करना चाहता है, लेकिन साथ ही उसने आठ देशों को अस्थायी रूप से ईरान से तेल आयात करने के लिए कुछ समय की इजाज़त दे दी है.
एसोसिएटेड प्रेस के मुताबिक अमरीकी सहयोगी इटली, भारत, जापान और दक्षिण अफ्रीका इन आठ देशों में शामिल हैं.
यूरोपीय संघ अपनी कंपनियों के लिए ईरान के साथ व्यापार करते रहने और कड़े अमरीकी हर्जाने के भुगतान से बचने के लिए एक पेमेंट व्यवस्था लागू करने की योजना बना रहा है. इसका नाम है स्पेशल पर्पस वीईकल (एसपीवी). इस व्यवस्था में कंपनियों को अमरीकी वित्तीय प्रणाली से नहीं गुजरना पड़ेगा.
बैंक की तरह, एसपीवी, ईरान और इसके साथ व्यापार करने वाली कंपनियों के बीच लेनदेन को संभालेगा.
जब ईरान यूरोपीय यूनियन के देशों में तेल निर्यात करेगा तो तेल आयात करने वाली कंपनियां उसे एसपीवी में भुगतान करेंगी.
ईरान एसपीवी को क्रेडिट के तौर पर रखेगा और यूरोपियन यूनियन के अन्य देशों से सामान ख़रीदने के लिए इसी एसपीवी के ज़रिए उन्हें भुगतान करेगा.
यूरोपिय यूनियन ने इसे लेकर अपने क़ानून में भी बदलाव किए हैं, जो यूरोपीय यूनियन की कंपनियों को इस प्रतिबंध के मद्देनज़र अमरीका से क्षतिपूर्ति मांगने की अनुमति देता है.
हालांकि यूरोपीय यूनियन ने इस प्रतिबंध से निपटने की अपनी योजना तैयार कर ली है, बावजूद इसके कई कंपनियों पर इन प्रतिबंधों का व्यापक असर पड़ेगा.
उदाहरण के लिए, शिपिंग ऑपरेटर्स एसपीवी व्यवस्था के माध्यम से तेल ख़रीदना चाहेंगे लेकिन उसकी ढुलाई करने वाली कंपनियां जो अमरीका में अपना बिजनेस चला रही हैं, उन पर प्रतिबंध लगा दिया गया तो उन्हें बहुत घाटा हो सकता है.
कोलंबिया यूनिवर्सिटी में वरिष्ठ शोधकर्ता और प्रतिबंध मामलों के जानकार रिचर्ड नेफ्यू कहते हैं, "ईरानी अर्थव्यवस्था सीधे तौर पर अमरीकी वित्त प्रणाली पर निर्भर नहीं है."
"लेकिन मुद्दा यह है कि ईरान के साथ बड़े स्तर पर व्यापार करने वाले कई देश यह ख़तरा मोल भी लेना चाहते हैं."
वो कहते हैं कि बड़ी कंपनियों की तुलना में छोटी और मझोली कंपनियां के इस एसपीवी व्यवस्था के ज़्यादा इस्तेमाल करने के आसार हैं.
रीड स्मिथ में अतंरराष्ट्रीय व्यापार और राष्ट्रीय सुरक्षा प्रमुख ली हैंनसन कहते हैं, "एक और समस्या यह है कि जिन उत्पादों को एसपीवी के जरिए ईरान को बेचा जाएगा उन पर भी दूसरे स्तर का प्रतिबंध लगाया जा सकता है."
वो कहते हैं कि यह लेनदेन समस्याओं से घिर जाएगा.
तो क्या क्या कर सकता है ईरान?
बर्मिंघम यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय राजनीति के प्रोफ़ेसर स्कॉट लूकस कहते हैं, "हालांकि अमरीका ने तेल के निर्यात को ख़त्म करने की बात की है, लेकिन यह संभव नहीं हो पाएगा क्योंकि इससे तेल की क़ीमतों में बहुत वृद्धि हो जाएगी."
इसके अलावा जिन देशों को ईरान के तेल ख़रीदने में छूट मिली है, यदि उन्हें चीन का साथ मिल गया जो ईरान का सबसे बड़ा तेल ख़रीदार है, तो यह भी बेहद महत्वपूर्ण साबित हो सकता है.
पिछली बार जब 2010 और 2016 में तेल व्यापार पर प्रतिबंध लगाए जाने पर ईरान के निर्यात में लगभग 50 फ़ीसदी गिरावट आई थी.
इसमें कोई शक नहीं कि इस बार भी निर्यात प्रभावित होगा, लेकिन यह भी स्पष्ट है कि ईरान और उसके बिज़नेस पार्टनर ट्रेड लिंक को बरकरार रखने की पुरजोर कोशिश करेंगे.
यूरोपीय संघ विदेश परिषद में वरिष्ठ पॉलिसी फेलो एली गेरान्मेह कहती हैं, "इस बात को लेकर परेशान मत हों कि यह कितना तक़लीफ़देह होगा, लेकिन ईरान पहले भी प्रतिबंध के कई दौर झेल चुका है."
हां, इतना तो तय है कि ईरान को अपने तेल बेचने के लिए पहले के अनुभवों का इस्तेमाल करते हुए रचनात्मक तरीक़ों को ईजाद करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा.
और बहुत संभव है कि इसके लिए वो रूस और चीन के साथ नए संबंध स्थापित करने कि दिशा की ओर अपना रुख़ करे.
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