क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

स्टीफ़न हॉकिंग को क्या बीमारी थी और वो उनसे कैसे हार गई?

21 साल का एक नौजवान जब दुनिया बदलने का ख़्वाब देख रहा था तभी कुदरत ने अचानक ऐसा झटका दिया कि वो अचानक चलते-चलते लड़खड़ा गया.

शुरुआत में लगा कि कोई मामूली दिक्कत होगी लेकिन डॉक्टरों ने जांच के बाद एक ऐसी बीमारी का नाम बताया जिसने इस युवा वैज्ञानिक के होश उड़ा दिए.

ये स्टीफ़न हॉकिंग की कहानी हैं जिन्हें 21 साल की उम्र में कह दिया गया था कि वो दो-तीन साल ही जी पाएंगे.

By BBC News हिन्दी
Google Oneindia News

21 साल का एक नौजवान जब दुनिया बदलने का ख़्वाब देख रहा था तभी कुदरत ने अचानक ऐसा झटका दिया कि वो अचानक चलते-चलते लड़खड़ा गया.

शुरुआत में लगा कि कोई मामूली दिक्कत होगी लेकिन डॉक्टरों ने जांच के बाद एक ऐसी बीमारी का नाम बताया जिसने इस युवा वैज्ञानिक के होश उड़ा दिए.

ये स्टीफ़न हॉकिंग की कहानी हैं जिन्हें 21 साल की उम्र में कह दिया गया था कि वो दो-तीन साल ही जी पाएंगे.

साल 1942 में ऑक्सफ़ोर्ड में जन्मे हॉकिंग के पिता रिसर्च बॉयोलॉजिस्ट थे और जर्मनी की बमबारी से बचने के लिए लंदन से वहां जाकर बस गए थे.

कब पता चला बीमारी का?

हॉकिंग का पालन-पोषण लंदन और सेंट अल्बंस में हुआ और ऑक्सफ़ोर्ड से फ़िजिक्स में फ़र्स्ट क्लास डिग्री लेने के बाद वो कॉस्मोलॉजी में पोस्टग्रेजुएट रिसर्च करने के लिए कैम्ब्रिज चले गए.

साल 1963 में इसी यूनिवर्सिटी में अचानक उन्हें पता चला कि वो मोटर न्यूरॉन बीमारी से पीड़ित हैं.

कॉलेज के दिनों में उन्हें घुड़सवारी और नौका चलाने का शौक़ था लेकिन इस बीमारी ने उनका शरीर का ज़्यादातर हिस्सा लकवे की चपेट में ले लिया.

साल 1964 में वो जब जेन से शादी करने की तैयारी कर रहे थे तो डॉक्टरों ने उन्हें दो या ज़्यादा से ज़्यादा तीन साल का वक़्त दिया था.

लेकिन हॉकिंग की क़िस्मत ने साथ दिया और ये बीमारी धीमी रफ़्तार से बढ़ी. लेकिन ये बीमारी क्या थी और शरीर को किस तरह नुकसान पहुंचा सकती है?

बीमारी का नाम क्या?

इस बीमारी का नाम है मोटर न्यूरॉन डिसीज़ (MND).

एनएचएस के मुताबिक ये एक असाधारण स्थिति है जो दिमाग और तंत्रिका पर असर डालती है. इससे शरीर में कमज़ोरी पैदा होती है जो वक़्त के साथ बढ़ती जाती है.

ये बीमारी हमेशा जानलेवा होती है और जीवनकाल सीमित बना देती है, हालांकि कुछ लोग ज़्यादा जीने में कामयाब हो जाते हैं. हॉकिंग के मामले में ऐसा ही हुआ था.

इस बीमारी का कोई इलाज मौजूद नहीं है लेकिन ऐसे इलाज मौजूद हैं जो रोज़मर्रा के जीवन पर पड़ने वाले इसके असर को सीमित बना सकते हैं.

क्या लक्षण हैं बीमारी के?

इस बीमारी के साथ दिक्कत ये भी कि ये मुमकिन है कि शुरुआत में इसके लक्षण पता ही न चलें और धीरे-धीरे सामने आएं.

इसके शुरुआती लक्षण ये हैं:

  • एड़ी या पैर में कमज़ोरी महसूस होना. आप लड़खड़ा सकते हैं या फिर सीढ़ियां चढ़ने में दिक्कत हो सकती है
  • बोलने में दिक्कत होने लगती है और कुछ तरह का खाना खाने में भी परेशानी होती है
  • पकड़ कमज़़ोर हो सकती है. हाथ से चीज़ें गिर सकती हैं. डब्बों का ढक्कन खोलने या बटन लगाने में भी परेशानी हो सकती है
  • मांसपेशियों में क्रैम्प आ सकते हैं
  • वज़न कम होने लगता है. हाथ और पैरों की मांसपेशी वक़्त के साथ पतले होने लगते हैं.
  • रोने और हंसने को क़ाबू करने में दिक्कत होती है

ये बीमारी किसे हो सकती है?

मोटर न्यूरॉन बीमारी असाधारण स्थिति है जो आम तौर पर 60 और 70 की उम्र में हमला करती है लेकिन ये सभी उम्र के लोगों को हो सकती है.

ये बीमारी दिमाग और तंत्रिका के सेल में परेशानी पैदा होने की वजह से होती है. ये सेल वक़्त के साथ काम करना बंद कर देते हैं. लेकिन ये अब तक पता नहीं चला कि ये कैसे हुआ है.

जिन लोगों को मोटर न्यूरॉन डिसीज़ या उससे जुड़ी परेशानी फ्रंटोटेम्परल डिमेंशिया होती है, उनसे करीबी संबंध रखने वाले लोगों को भी ये हो सकती है. लेकिन ज़्यादातर मामलों में ये परिवार के ज़्यादा सदस्यों को होती नहीं दिखती.

कैसे पता चलता है बीमारी का?

शुरुआती चरणों में इस बीमारी का पता लगाना मुश्किल है. ऐसा कोई एक टेस्ट नहीं है जो इस बीमारी का पता लगा सके और ऐसी कई स्थितियां हैं जिनके चलते इसी तरह के लक्षण हो सकते हैं.

यही बीमारी है और दूसरी कोई दिक्कत नहीं है, ये पता लगाने के लिए ये सब कर सकते हैं:

  • ब्लड टेस्ट
  • दिमाग और रीढ़ की हड्डी का स्कैन
  • मांसपेशियों और तंत्रिका में इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी को आंकने का टेस्ट
  • लम्पर पंक्चर जिसमें रीढ़ की हड्डी में सुई डालकर फ्लूड लिया जाता है

इलाज में क्या किया जा सकता है?

स्टीफ़न हॉकिंग
AFP
स्टीफ़न हॉकिंग

इसमें स्पेशलाइज्ड क्लीनिक या नर्स की ज़रूरत होती है जो ऑक्यूपेशनल थेरेपी अपनाते हैं ताकि रोज़मर्रा के कामकाज करने में कुछ आसानी हो सके

  • फ़िज़ियोथेरेपी और दूसरे व्यायाम ताकि ताक़त बची रहे
  • स्पीच थेरेपी और डाइट का ख़ास ख़्याल
  • रिलुज़ोल नामक दवाई जो इस बीमारी के बढ़ने की रफ़्तार कम रखती है
  • भावनात्मक सहायता

कैसे बढ़ती है ये बीमारी?

स्टीफ़न हॉकिंग
AFP
स्टीफ़न हॉकिंग

मोटन न्यूरॉन बीमारी वक़्त के साथ बिगड़ती जाती है.

समय के साथ चलने-फिरने, खाना निगलने, सांस लेने में मुश्किल होती जाती है. खाने वाली ट्यूब या मास्क के साथ सांस लेने की ज़रूरत पड़ती है.

ये बीमारी आख़िरकार मौत तक ले जाती है लेकिन किसी को अंतिम पड़ाव तक पहुंचने में कितना समय लगता है, ये अलग-अलग हो सकता है.

BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
What was Stephen Hawking and how did he lose to him
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X