कौन हैं जो बाइडेन के विदेश मंत्री एंटोनी ब्लिंकेन, जिनके कहने पर मोदी सरकार ने साइन किया था पेरिस समझौता
वॉशिंगटन। अमेरिका के निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन ने एंटोनी ब्लिंकेन को देश के अगले विदेश मंत्री के तौर पर चुना है। बाइडेन जिस तरह से अमेरिका की राजनीति में कई वर्षों का अनुभव रखते हैं तो ब्लिंकेन के पास भी तीन दशकों का अनुभव है। जिस समय बाइडेन उप-राष्ट्रपति थे तो 58 साल के ब्लिंकेन उस समय बतौर डिप्टी एनएसए उनके साथ जुड़े थे। ब्लिंकेन, पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल में स्टेट डिपार्टमेंट डिप्टी के तौर पर कार्यरत रहे हैं।
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30 दशक से राजनीति में सक्रिय
जिस समय बाइडेन सीनेटर थे तो उस समय ब्लिंकेन ने उनके स्टाफ डायरेक्टर के तौर पर काम किया है और सीनेट की फॉरेन रिलेशंस कमेटी के साथ जुड़े रहे हैं। ब्लिंकेन, बाइडेन कैंपेन के साथ सक्रियता से जुड़े रहे थे और उन्होंने विदेश नीति पर बाइडेन के विचारों को रूपरेखा देने में काफी मदद की थी। ब्लिंकन का राजनीतिक करियर डेमोक्रेट बिल क्लिंटन के कार्यकाल के साथ शुरू हुआ था। 90 के दशक में जब क्लिंटन ने पहली बार राष्ट्रपति का पद संभाला था तो ब्लिंकन पर उनके स्पीच राइटर की जिम्मेदारी आई। ब्लिंकन, क्लिंटन के उन भाषणों को तैयार करते थे जो उन्हें अपनी विदेश यात्रा के दौरान देने होते थे। ब्लिंकन एक पूर्व राजनयिक के बेटे हैं। उनके पिता हंगरी में अमेरिका के राजदूत के तौर पर रहे हैं।
परमाणु डील में बड़ी भूमिका
3 नवंबर को हुए राष्ट्रपति चुनावों में ब्लिंकेन, डेमोक्रेट जो बाइडन के 2020 के राष्ट्रपति अभियान के साथ विदेश नीति के सलाहकार के तौर पर जुड़े। इस दौरान ब्लिंकन ने मध्य पूर्व, चीन, यूरोप, ईरान और भारत पर बाइडन के विचारों को आकार देने में मदद की। भारत और ब्लिंकेन का नाता भी काफी गहरा है। सन् 2005 में भारत ने अमेरिका के साथ असैन्य परमाणु सौदा किया। उस समय ब्लिंकेन ने ही सीनेट में भारत का पक्ष रखा था। साल 2008 में जब अमेरिका के राष्ट्रपति के तौर पर बराक ओबामा ने सत्ता संभाली तो वह परमाणु डील को लेकर कुछ आशंकित थे। तब ब्लिंकेन ने ही उनकी आशंकाओं को दूर किया। ऐसे में विदेश नीति के जानकार ब्लिंकेन को भारत का पुराना और अच्छा दोस्त मान रहे हैं।
जुलाई में की अहम टिप्पणी
इस वर्ष जुलाई में हडसन इंस्टीट्यूट में आयोजित एक कार्यक्रम में ब्लिंकेन से पूछा गया था कि वे भारत-अमेरिका के संबंधों को कैसे देखते हैं? इस पर ब्लिंकेन ने कहा था, 'मुझे लगता है कि उप राष्ट्रपति रहते हुए जो बाइडन के दृष्टिकोण से भारत के साथ संबंध को मजबूत करना और गहरा करना एक बहुत ही उच्च प्राथमिकता है। यह आम तौर पर इंडो-पैसिफिक के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण है। जिस तरह का क्रम हम सभी चाहते हैं, चीजें वैसी ही हो रही हैं। भारत और अमेरिका लोकतांत्रिक देश हैं। दोनों बड़ी वैश्विक चुनौतियों से निपटने में सक्षम हैं।'
पेरिस समझौते पर हुए साइन
ब्लिंकन ने उस भाषण में यह भी उल्लेख किया था कि कैसे जो बाइडन ने भारत को पेरिस जलवायु समझौते पर लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, क्योंकि भारत और चीन के बिना ये समझौता स्वयं ही अर्थहीन होता। ब्लिंकन ने कहा था, 'हमने भारत को यह समझाने के लिए कड़ी मेहनत की थी कि अगर वह पेरिस जलवायु समझौते पर साइन करता है, तो यह अधिक समृद्ध और अधिक सुरक्षित होगा। हम ऐसा करने में सफल हुए। यह आसान नहीं था। यह एक चुनौतीपूर्ण प्रयास था, लेकिन बाइडन भारत में हमारे सहयोगियों को समझाने के प्रयास के नेताओं में से एक थे। मुझे लगता है कि हम इस सौदे के हिस्से के रूप में भारत के बिना आम वैश्विक चुनौतियों को हल नहीं कर सकते थे।'
व्हाइट हाउस का अच्छा-खासा अनुभव
ब्लिंकन सन् 1994 से 2001 तक व्हाइट हाउस में राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद (एनएससी) के स्टाफ के साथ कार्यरत रहे। सन् 1994 से लेकर 1998 तक ब्लिंकेन राष्ट्रपति विशेष सहायक रहे और साथ ही सिक्योरिटी काउंसिल में सीनियर डायरेक्टर के तौर पर कई योजनाओं को आगे बढ़ाते रहे। वहीं वह एनएससी के लिए स्पीच राइटिंग भी करते थे। सन् 1999 से 2002 तक वह यूरोपियन और कनाडा से जुड़े मसलों पर राष्ट्रपति को विशेष सलाह देने का काम करते थे। साल 2002 में ब्लिंकेन को सीनेट की फॉरेन रिलेशंस कमेटी के लिए स्टाफ डायरेक्टर नियुक्त किया गया था और वह साल 2008 तक इस पद पर रहे। साल 2008 में ब्लिंकेन ने जो बाइडेन के साथ मिलकर उनके राष्ट्रपति कैंपेन के लिए काम किया। साल 2003 में ब्लिंकेन ने इराक में अमेरिकी फौजों की तरफ से हुई कार्रवाई का समर्थन किया था।